ਰਾਗੁ ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ
रागु भैरउ महला १ घरु १ चउपदे
रागु भैरउ महला १ घरु १ चउपदे
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
वह अनंतशक्ति ओमकार-स्वरूप केवल एक है, उसका नाम सत्य है, वह आदिपुरुष, संसार का रचयिता है, वह भय से रहित है, वह वैर भावना से रहित (प्रेम-स्वरूप) है, वह कालातीत ब्रह्म-मूर्ति है, वह जन्म-मरण से रहित (अमर) है, वह अपने आप ही प्रगट हुआ है, गुरु-कृपा से पाया जाता है।
ਤੁਝ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕਿਛੂ ਨ ਹੋਇ ॥
तुझ ते बाहरि किछू न होइ ॥
हे स्रष्टा ! तेरी रज़ा से बाहर कुछ नहीं होता,
ਤੂ ਕਰਿ ਕਰਿ ਦੇਖਹਿ ਜਾਣਹਿ ਸੋਇ ॥੧॥
तू करि करि देखहि जाणहि सोइ ॥१॥
तू सब कर-करके देखता और जानता है॥१॥
ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਕਿਛੁ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
किआ कहीऐ किछु कही न जाइ ॥
तेरे रहस्य के बारे में क्या कहा जाए, कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਅਹੈ ਸਭ ਤੇਰੀ ਰਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो किछु अहै सभ तेरी रजाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जो कुछ यह संसार है, सब तेरी रज़ा में (चल रहा) है॥१॥ रहाउ॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੁ ਤੇਰੈ ਪਾਸਿ ॥
जो किछु करणा सु तेरै पासि ॥
जो कुछ करना है, वह तेरे पास ही कहना है,
ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਕੀਚੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥੨॥
किसु आगै कीचै अरदासि ॥२॥
फिर किसके सम्मुख प्रार्थना करें॥२॥
ਆਖਣੁ ਸੁਨਣਾ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥
आखणु सुनणा तेरी बाणी ॥
हमारा कहना एवं सुनना तेरी ही वाणी है,
ਤੂ ਆਪੇ ਜਾਣਹਿ ਸਰਬ ਵਿਡਾਣੀ ॥੩॥
तू आपे जाणहि सरब विडाणी ॥३॥
हे सब लीला करने वाले ! तू स्वयं ही सब जानता है॥३॥
ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਜਾਣੈ ਆਪਿ ॥
करे कराए जाणै आपि ॥
गुरु नानक का मत है कि करने-कराने एवं जानने वाला आप परमेश्वर ही है,
ਨਾਨਕ ਦੇਖੈ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥੪॥੧॥
नानक देखै थापि उथापि ॥४॥१॥
बनाकर तोड़कर वही देखता संभालता है॥४॥१॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਰਾਗੁ ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੨ ॥
रागु भैरउ महला १ घरु २ ॥
रागु भैरउ महला १ घरु २॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਤਰੇ ਮੁਨਿ ਕੇਤੇ ਇੰਦ੍ਰਾਦਿਕ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿ ਤਰੇ ॥
गुर कै सबदि तरे मुनि केते इंद्रादिक ब्रहमादि तरे ॥
गुरु के उपदेश से कितने ही मुनि, स्वर्गाधिपति इन्द्र, ब्रह्मा इत्यादि पार हो गए।
ਸਨਕ ਸਨੰਦਨ ਤਪਸੀ ਜਨ ਕੇਤੇ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਰਿ ਪਰੇ ॥੧॥
सनक सनंदन तपसी जन केते गुर परसादी पारि परे ॥१॥
सनक-सनंदन जैसे अनेकों ही तपस्वी जन गुरु की कृपा से मुक्ति पा गए॥१॥
ਭਵਜਲੁ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਕਿਉ ਤਰੀਐ ॥
भवजलु बिनु सबदै किउ तरीऐ ॥
गुरु-उपदेश के बिना संसार-समुद्र को कैसे पार किया जा सकता है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜਗੁ ਰੋਗਿ ਬਿਆਪਿਆ ਦੁਬਿਧਾ ਡੁਬਿ ਡੁਬਿ ਮਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम बिना जगु रोगि बिआपिआ दुबिधा डुबि डुबि मरीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
हरिनाम बिना पूरा जगत रोगी बना हुआ है और दुविधा में लीन होकर डूबकर मर रहा है॥१॥ रहाउ॥
ਗੁਰੁ ਦੇਵਾ ਗੁਰੁ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥
गुरु देवा गुरु अलख अभेवा त्रिभवण सोझी गुर की सेवा ॥
गुरु ही देव है, वह अदृश्य एवं रहस्यमय है और गुरु की सेवा से तीनों लोकों की सूझ होती है।
ਆਪੇ ਦਾਤਿ ਕਰੀ ਗੁਰਿ ਦਾਤੈ ਪਾਇਆ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥੨॥
आपे दाति करी गुरि दातै पाइआ अलख अभेवा ॥२॥
दाता गुरु ने स्वयं ही देन प्रदान की, जिसके फलस्वरूप अदृश्य एवं रहस्यातीत परमसत्य को पाया है॥२॥
ਮਨੁ ਰਾਜਾ ਮਨੁ ਮਨ ਤੇ ਮਾਨਿਆ ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਈ ॥
मनु राजा मनु मन ते मानिआ मनसा मनहि समाई ॥
मन ही राजा है, साक्षात्कार के उपरांत मन स्वयं से ही प्रसन्न होता है और मन की लालसाएँ समाप्त हो जाती हैं।
ਮਨੁ ਜੋਗੀ ਮਨੁ ਬਿਨਸਿ ਬਿਓਗੀ ਮਨੁ ਸਮਝੈ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥੩॥
मनु जोगी मनु बिनसि बिओगी मनु समझै गुण गाई ॥३॥
मन ही योगी है और वियोगी बनकर विनष्ट होता है। ईश्वर का गुणगान करने से उसे सूझ प्राप्त होती है।॥३॥
ਗੁਰ ਤੇ ਮਨੁ ਮਾਰਿਆ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿਆ ਤੇ ਵਿਰਲੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥
गुर ते मनु मारिआ सबदु वीचारिआ ते विरले संसारा ॥
संसार में ऐसे विरले ही व्यक्ति है, जिन्होंने गुरु द्वारा मन को मारा है और शब्द का मनन किया है।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਭਰਿਪੁਰਿ ਲੀਣਾ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੪॥੧॥੨॥
नानक साहिबु भरिपुरि लीणा साच सबदि निसतारा ॥४॥१॥२॥
गुरु नानक का कथन है कि ईश्वर सबमें भरपूर है और सच्चे शब्द से ही जीव मुक्ति पाता है ॥४॥१॥२॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੧ ॥
भैरउ महला १ ॥
भैरउ महला १॥
ਨੈਨੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨਹੀ ਤਨੁ ਹੀਨਾ ਜਰਿ ਜੀਤਿਆ ਸਿਰਿ ਕਾਲੋ ॥
नैनी द्रिसटि नही तनु हीना जरि जीतिआ सिरि कालो ॥
आँखों में रोशनी नहीं, शरीर बिल्कुल कमजोर हो चुका है, बुढ़ापे ने कब्जा कर लिया है और मौत सिर पर खड़ी है।
ਰੂਪੁ ਰੰਗੁ ਰਹਸੁ ਨਹੀ ਸਾਚਾ ਕਿਉ ਛੋਡੈ ਜਮ ਜਾਲੋ ॥੧॥
रूपु रंगु रहसु नही साचा किउ छोडै जम जालो ॥१॥
रूप-रंग तो सदा रहने वाला नहीं, फिर मौत का जाल क्योंकर छोड़ सकता है॥१॥
ਪ੍ਰਾਣੀ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਨਮੁ ਗਇਓ ॥
प्राणी हरि जपि जनमु गइओ ॥
हे प्राणी ! ईश्वर का जाप कर ले, यह जीवन खत्म हो गया है।