Hindi Page 106

ਸਰਬ ਜੀਆ ਕਉ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥सरब जीआ कउ देवणहारा ॥परमेश्वर समस्त प्राणियों को देने वाला है। ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰਾ ॥गुर परसादी नदरि निहारा ॥गुरु की कृपा से उसने हमें दया की नज़र से देख लिया है। ਜਲ ਥਲ ਮਹੀਅਲ ਸਭਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਣੇ ਸਾਧੂ ਚਰਨ ਪਖਾਲੀ ਜੀਉ ॥੩॥जल थल महीअल सभि त्रिपताणे साधू चरन पखाली जीउ ॥३॥सागर,

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ਸਹਸ ਸਿਆਣਪ ਕਰਿ ਰਹੇ ਮਨਿ ਕੋਰੈ ਰੰਗੁ ਨ ਹੋਇ ॥सहस सिआणप करि रहे मनि कोरै रंगु न होइ ॥   हजार चतुराईयों का प्रयोग करके प्राणी असफल हो गए हैं। उनके कोरे मन पर ईश्वर के प्रेम का रंग धारण नहीं हुआ।    ਕੂੜਿ ਕਪਟਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਜੋ ਬੀਜੈ ਖਾਵੈ ਸੋਇ ॥੩॥कूड़ि कपटि किनै न पाइओ जो

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ਤਿਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਧਰਮ ਰਾਇ ਕਰੈ ਧੰਨੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥੨॥तिन की सेवा धरम राइ करै धंनु सवारणहारु ॥२॥   प्रभु-भक्तों की धर्मराज स्वयं उनकी लगन से सेवा करता है, वे प्राणी धन्य हैं और उनका सृजनहार प्रभु धन्य-धन्य है ॥२॥    ਮਨ ਕੇ ਬਿਕਾਰ ਮਨਹਿ ਤਜੈ ਮਨਿ ਚੂਕੈ ਮੋਹੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥मन के बिकार मनहि तजै मनि चूकै मोहु अभिमानु

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ਮੁੰਧੇ ਕੂੜਿ ਮੁਠੀ ਕੂੜਿਆਰਿ ॥मुंधे कूड़ि मुठी कूड़िआरि ॥   जीव रूपी मुग्ध स्त्री! तू झूठ द्वारा तगी हुई झूठी बन रही है।    ਪਿਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਸੋਹਣਾ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥   पिरु प्रभु साचा सोहणा पाईऐ गुर बीचारि ॥१॥ रहाउ ॥   सत्य व सुन्दर पति-परमात्मा गुरु के उपदेश द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है ॥ १॥

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ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਕਰਿ ਵੇਖਹੁ ਮਨਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥बिनु सतिगुर किनै न पाइओ करि वेखहु मनि वीचारि ॥  सतिगुरु के बिना परमात्मा को किसी ने भी नहीं पाया, बेशक अपने हृदय में विचार करके देख लो।    ਮਨਮੁਖ ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਜਿਚਰੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਨ ਕਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥੧॥मनमुख मैलु न उतरै जिचरु गुर सबदि न करे

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ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੁਣਦਾ ਵੇਖਦਾ ਕਿਉ ਮੁਕਰਿ ਪਇਆ ਜਾਇ ॥सभु किछु सुणदा वेखदा किउ मुकरि पइआ जाइ ॥   परमात्मा हमारा सब-कुछ कहा व किया, सुनता व देखता है, फिर उसके समक्ष कैसे इन्कार किया जा सकता है।        ਪਾਪੋ ਪਾਪੁ ਕਮਾਵਦੇ ਪਾਪੇ ਪਚਹਿ ਪਚਾਇ ॥पापो पापु कमावदे पापे पचहि पचाइ ॥   स्वेच्छाचारी जीव असंख्य पाप कमाते हैं,

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ਮਨਮੁਖ ਜਨਮੁ ਬਿਰਥਾ ਗਇਆ ਕਿਆ ਮੁਹੁ ਦੇਸੀ ਜਾਇ ॥੩॥मनमुख जनमु बिरथा गइआ किआ मुहु देसी जाइ ॥३॥   स्वेच्छाचारी जीव का जन्म व्यर्थ चला जाता है, ऐसे में वह आगे परलोक में जाकर क्या मुंह दिखाएगा ? ॥ ३॥    ਸਭ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਹੈ ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥सभ किछु आपे आपि है हउमै विचि

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ਸਬਦਿ ਮੰਨਿਐ ਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥सबदि मंनिऐ गुरु पाईऐ विचहु आपु गवाइ ॥  गुरु-उपदेश मान कर अंत:करण में से अभिमान समाप्त किया जा सकता है तथा सर्वश्रेष्ठ परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰੇ ਸਦਾ ਸਾਚੇ ਕੀ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥अनदिनु भगति करे सदा साचे की लिव लाइ ॥  नित्यप्रति भक्ति करके स्थिर

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ਸਤਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਸਦ ਭੈ ਰਚੈ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੧॥सतगुरि मिलिऐ सद भै रचै आपि वसै मनि आइ ॥१॥सतिगुरु के मिलन से प्रायः हृदय में परमात्मा का भय रहता है और वह स्वयं ही मन में आकर निवास करता है॥ १॥ ਭਾਈ ਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥भाई रे गुरमुखि बूझै कोइ ॥  हे जीव ! गुरुमुख

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ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੀ ਜਗੁ ਫਿਰੀ ਨਾ ਧਨੁ ਸੰਪੈ ਨਾਲਿ ॥हउ हउ करती जगु फिरी ना धनु स्मपै नालि ॥  ऐसी जीव-कामिनी ‘मैं-मैं करती हुई सम्पूर्ण संसार में भटकती फिरती है, किन्तु यह धन-सम्पति किसी के साथ नहीं गई। ਅੰਧੀ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਈ ਸਭ ਬਾਧੀ ਜਮਕਾਲਿ ॥अंधी नामु न चेतई सभ बाधी जमकालि ॥भौतिक पदार्थों के लोभ

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