HINDI PAGE 440

ਪਿਰੁ ਸੰਗਿ ਕਾਮਣਿ ਜਾਣਿਆ ਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ਰਾਮ ॥
पिरु संगि कामणि जाणिआ गुरि मेलि मिलाई राम ॥
गुरु ने जिस जीव-स्त्री को अपनी संगति में मिला कर प्रभु से मिला दिया है, उसने जान लिया है कि उसका पति-प्रभु तो उसके साथ ही रहता है।

ਅੰਤਰਿ ਸਬਦਿ ਮਿਲੀ ਸਹਜੇ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ਰਾਮ ॥
अंतरि सबदि मिली सहजे तपति बुझाई राम ॥
वह शब्द द्वारा अन्तर में ही प्रभु से मिली रहती है और उसकी तृष्णा की अग्नि सहज ही बुझ गई है।

ਸਬਦਿ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ॥
सबदि तपति बुझाई अंतरि सांति आई सहजे हरि रसु चाखिआ ॥
शब्द द्वारा उसकी जलन बुझ गई है, अब उसकी अन्तरात्मा में शांति आ गई है और उसने सहज ही हरि रस को चख लिया है।

ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਪਣੇ ਸਦਾ ਰੰਗੁ ਮਾਣੇ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਖਿਆ ॥
मिलि प्रीतम अपणे सदा रंगु माणे सचै सबदि सुभाखिआ ॥
अपने प्रियतम से मिलकर वह सदा उसके प्रेम का आनंद प्राप्त करती है और सच्चे शब्द द्वारा सुन्दर वाणी बोलती है।

ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੰਡਿਤ ਮੋਨੀ ਥਾਕੇ ਭੇਖੀ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈ ॥
पड़ि पड़ि पंडित मोनी थाके भेखी मुकति न पाई ॥
पण्डित पढ़-पढ़कर और मौन धारण करने वाले ऋषि-मुनि समाधि लगाकर थक गए हैं। धार्मिक वेष धारण करने वाले साधुओं ने मुक्ति प्राप्त नहीं की।

ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਈ ॥੩॥
नानक बिनु भगती जगु बउराना सचै सबदि मिलाई ॥३॥
हे नानक ! प्रभु-भक्ति के बिना दुनिया बावली हो गई है। लेकिन सच्चे शब्द से जीव-स्त्री प्रभु से मिल जाती है॥ ३॥

ਸਾ ਧਨ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੇਲਿ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ॥
सा धन मनि अनदु भइआ हरि जीउ मेलि पिआरे राम ॥
जिस जीव-स्त्री को हरि-प्रभु अपने चरणों में मिला लेता है तो उसके मन में आनंद उत्पन्न हो जाता है।

ਸਾ ਧਨ ਹਰਿ ਕੈ ਰਸਿ ਰਸੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਅਪਾਰੇ ਰਾਮ ॥
सा धन हरि कै रसि रसी गुर कै सबदि अपारे राम ॥
गुरु के अपार शब्द द्वारा जीव-स्त्री हरि रस में लीन रहती है।

ਸਬਦਿ ਅਪਾਰੇ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰੇ ਸਦਾ ਗੁਣ ਸਾਰੇ ਮਨਿ ਵਸੇ ॥
सबदि अपारे मिले पिआरे सदा गुण सारे मनि वसे ॥
गुरु के अपार शब्द से वह अपने प्यारे-प्रभु से मिल जाती है और वह उसके गुणों को अपने मन में सदा याद करती एवं बसाती है।

ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਜਾ ਪਿਰਿ ਰਾਵੀ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਵਗਣ ਨਸੇ ॥
सेज सुहावी जा पिरि रावी मिलि प्रीतम अवगण नसे ॥
जब प्रियतम-प्रभु उससे रमण करता है तो उसकी सेज सुहावनी हो जाती है और अपने प्रियतम से मिलकर उस जीव-स्त्री के अवगुण नाश हो जाते हैं।

ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ਸੋਹਿਲੜਾ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ॥
जितु घरि नामु हरि सदा धिआईऐ सोहिलड़ा जुग चारे ॥
जिस हृदय-घर में सदा हरि-नाम का सुमिरन होता है वहाँ चारों युगों में मंगल गीत गाए जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਅਨਦੁ ਹੈ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਕਾਰਜ ਸਾਰੇ ॥੪॥੧॥੬॥
नानक नामि रते सदा अनदु है हरि मिलिआ कारज सारे ॥४॥१॥६॥
हे नानक ! प्रभु नाम में अनुरक्त होने से जीव हमेशा आनंद में रहता है। हरि-प्रभु को मिलने से उसके सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।॥ ४॥ १॥६॥

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਛੰਤ ਘਰੁ ੩ ॥
आसा महला ३ छंत घरु ३ ॥
आसा महला ३ छंत घरु ३ ॥

ਸਾਜਨ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮਹੁ ਤੁਮ ਸਹ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰੇਹੋ ॥
साजन मेरे प्रीतमहु तुम सह की भगति करेहो ॥
हे मेरे प्रिय सज्जनो ! तुम भगवान की भक्ति करते रहो।

ਗੁਰੁ ਸੇਵਹੁ ਸਦਾ ਆਪਣਾ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਲੇਹੋ ॥
गुरु सेवहु सदा आपणा नामु पदारथु लेहो ॥
हमेशा अपने गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करो एवं उससे नाम का धन प्राप्त करो।

ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਤੁਮ ਸਹੈ ਕੇਰੀ ਜੋ ਸਹ ਪਿਆਰੇ ਭਾਵਏ ॥
भगति करहु तुम सहै केरी जो सह पिआरे भावए ॥
तुम अपने भगवान की ऐसी भक्ति करो, जो भक्ति प्रभु को अच्छी लगती है।

ਆਪਣਾ ਭਾਣਾ ਤੁਮ ਕਰਹੁ ਤਾ ਫਿਰਿ ਸਹ ਖੁਸੀ ਨ ਆਵਏ ॥
आपणा भाणा तुम करहु ता फिरि सह खुसी न आवए ॥
यदि तुम अपनी मनमर्जी करोगे तो फिर प्रभु तुम पर खुश नहीं होगा।

ਭਗਤਿ ਭਾਵ ਇਹੁ ਮਾਰਗੁ ਬਿਖੜਾ ਗੁਰ ਦੁਆਰੈ ਕੋ ਪਾਵਏ ॥
भगति भाव इहु मारगु बिखड़ा गुर दुआरै को पावए ॥
इस भक्ति-भाव का मार्ग बहुत कठिन है, लेकिन गुरु के द्वार पर आने से कोई विरला पुरुष ही इसे पाता है।

ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਸੁ ਕਰੇ ਕਿਰਪਾ ਸੋ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਵਏ ॥੧॥
कहै नानकु जिसु करे किरपा सो हरि भगती चितु लावए ॥१॥
हे नानक ! जिस मनुष्य पर प्रभु कृपा करता है, वह हरि की भक्ति को अपने चित्त से लगाता है॥ १॥

ਮੇਰੇ ਮਨ ਬੈਰਾਗੀਆ ਤੂੰ ਬੈਰਾਗੁ ਕਰਿ ਕਿਸੁ ਦਿਖਾਵਹਿ ॥
मेरे मन बैरागीआ तूं बैरागु करि किसु दिखावहि ॥
हे मेरे वैरागी मन ! तुम वैरागी बन कर किसे दिखाते हो ?

ਹਰਿ ਸੋਹਿਲਾ ਤਿਨੑ ਸਦ ਸਦਾ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ॥
हरि सोहिला तिन्ह सद सदा जो हरि गुण गावहि ॥
जो मनुष्य हरि का गुणगान करते हैं, वे सदैव ही हरि की प्रसन्नता में रहते हैं।

ਕਰਿ ਬੈਰਾਗੁ ਤੂੰ ਛੋਡਿ ਪਾਖੰਡੁ ਸੋ ਸਹੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣਏ ॥
करि बैरागु तूं छोडि पाखंडु सो सहु सभु किछु जाणए ॥
इसलिए तू पाखंड को छोड़ कर वैराग्य धारण कर क्योंकि प्रभु सब कुछ जानता है।

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਏਕੋ ਸੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਏ ॥
जलि थलि महीअलि एको सोई गुरमुखि हुकमु पछाणए ॥
एक ईश्वर ही जल, थल, पृथ्वी एवं गगन में सर्वत्र बसा हुआ है, गुरुमुख मनुष्य प्रभु के हुक्म को पहचानते हैं।

ਜਿਨਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਤਾ ਹਰੀ ਕੇਰਾ ਸੋਈ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਏ ॥
जिनि हुकमु पछाता हरी केरा सोई सरब सुख पावए ॥
जो व्यक्ति प्रभु के हुक्म को पहचानता है वही सर्व सुख प्राप्त करता है।

ਇਵ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੋ ਬੈਰਾਗੀ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਵਏ ॥੨॥
इव कहै नानकु सो बैरागी अनदिनु हरि लिव लावए ॥२॥
नानक इस तरह कहता है कि दरअसल वैरागी वही है, जो रात-दिन हरि की लगन में लीन रहता है।॥ २॥

ਜਹ ਜਹ ਮਨ ਤੂੰ ਧਾਵਦਾ ਤਹ ਤਹ ਹਰਿ ਤੇਰੈ ਨਾਲੇ ॥
जह जह मन तूं धावदा तह तह हरि तेरै नाले ॥
हे मेरे मन ! जहाँ-जहाँ तू दौड़ता है, वहाँ वहाँ ही हरि तेरे साथ है।

ਮਨ ਸਿਆਣਪ ਛੋਡੀਐ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਮਾਲੇ ॥
मन सिआणप छोडीऐ गुर का सबदु समाले ॥
हे मेरे मन ! तू अपनी चतुराई छोड़ दे और गुरु के शब्द का मनन कर।

ਸਾਥਿ ਤੇਰੈ ਸੋ ਸਹੁ ਸਦਾ ਹੈ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਹੇ ॥
साथि तेरै सो सहु सदा है इकु खिनु हरि नामु समालहे ॥
वह मालिक प्रभु सदैव तेरे साथ रहता है, इसलिए तू एक क्षण भर के लिए ही हरि का नाम याद कर लिया कर।

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਤੇਰੇ ਪਾਪ ਕਟੇ ਅੰਤਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਵਹੇ ॥
जनम जनम के तेरे पाप कटे अंति परम पदु पावहे ॥
तेरे जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाएँगे और अंततः परमगति प्राप्त हो जाएगी।

ਸਾਚੇ ਨਾਲਿ ਤੇਰਾ ਗੰਢੁ ਲਾਗੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ॥
साचे नालि तेरा गंढु लागै गुरमुखि सदा समाले ॥
गुरुमुख बनकर सदैव ही उसको याद कर, इस तरह तेरा सच्चे प्रभु के साथ अटूट प्रेम बन जाएगा।

ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਹ ਮਨ ਤੂੰ ਧਾਵਦਾ ਤਹ ਹਰਿ ਤੇਰੈ ਸਦਾ ਨਾਲੇ ॥੩॥
इउ कहै नानकु जह मन तूं धावदा तह हरि तेरै सदा नाले ॥३॥
नानक इस तरह कहता है कि हे मेरे मन ! जहाँ कहीं भी तू दौड़ता है, वहाँ हरि-प्रभु तेरे साथ रहता है॥ ३॥

ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਧਾਵਤੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਿਆ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਆਏ ॥
सतिगुर मिलिऐ धावतु थम्हिआ निज घरि वसिआ आए ॥
यदि सच्चा गुरु मिल जाए तो मोह-माया की ओर दौड़ता मन टिक जाता है और आकर अपने सच्चे घर प्रभु-चरणों में बस जाता है।

ਨਾਮੁ ਵਿਹਾਝੇ ਨਾਮੁ ਲਏ ਨਾਮਿ ਰਹੇ ਸਮਾਏ ॥
नामु विहाझे नामु लए नामि रहे समाए ॥
तब यह नाम को खरीदता है, नाम का जाप करता है और नाम में ही समाया रहता है।

error: Content is protected !!