ਨਾਨਕ ਸਾ ਕਰਮਾਤਿ ਸਾਹਿਬ ਤੁਠੈ ਜੋ ਮਿਲੈ ॥੧॥
नानक सा करमाति साहिब तुठै जो मिलै ॥१॥
हे नानक ! अदभुत देन वह है, जो प्रभु की कृपा-दृष्टि होने पर प्राप्त होती है॥ १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਏਹ ਕਿਨੇਹੀ ਚਾਕਰੀ ਜਿਤੁ ਭਉ ਖਸਮ ਨ ਜਾਇ ॥
एह किनेही चाकरी जितु भउ खसम न जाइ ॥
यह कैसी चाकरी (सेवा) है, जिससे स्वामी का भय दूर नहीं होता ?
ਨਾਨਕ ਸੇਵਕੁ ਕਾਢੀਐ ਜਿ ਸੇਤੀ ਖਸਮ ਸਮਾਇ ॥੨॥
नानक सेवकु काढीऐ जि सेती खसम समाइ ॥२॥
हे नानक ! सच्चा सेवक वही कहलवाता है, जो अपने स्वामी में समा जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਨਾਨਕ ਅੰਤ ਨ ਜਾਪਨੑੀ ਹਰਿ ਤਾ ਕੇ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥
नानक अंत न जापन्ही हरि ता के पारावार ॥
हे नानक ! परमात्मा का अन्त जाना नहीं जाता। उसका ओर-छोर कोई नहीं, वह अनन्त है।
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਸਾਖਤੀ ਫਿਰਿ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਮਾਰ ॥
आपि कराए साखती फिरि आपि कराए मार ॥
वह स्वयं ही सृष्टि की रचना करता है और स्वयं ही अपनी रचित सृष्टि का नाश कर देता है।
ਇਕਨੑਾ ਗਲੀ ਜੰਜੀਰੀਆ ਇਕਿ ਤੁਰੀ ਚੜਹਿ ਬਿਸੀਆਰ ॥
इकन्हा गली जंजीरीआ इकि तुरी चड़हि बिसीआर ॥
कुछ जीवों के गले पर जंजीरें पड़ी हुई हैं अर्थात् बन्धनों में जकड़े हुए हैं और कई असंख्य घोड़ों पर सवार होकर आनंद प्राप्त करते हैं।
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਹਉ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥
आपि कराए करे आपि हउ कै सिउ करी पुकार ॥
वह प्रभु स्वयं ही लीला करता है और स्वयं ही जीव से करवाता है। मैं किसके पास फरियाद कर सकता हूँ?
ਨਾਨਕ ਕਰਣਾ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਫਿਰਿ ਤਿਸ ਹੀ ਕਰਣੀ ਸਾਰ ॥੨੩॥
नानक करणा जिनि कीआ फिरि तिस ही करणी सार ॥२३॥
हे नानक ! जिस प्रभु ने सृष्टि की रचना की है, वही फिर उसकी देखरेख करता है॥ २३ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਆਪੇ ਭਾਂਡੇ ਸਾਜਿਅਨੁ ਆਪੇ ਪੂਰਣੁ ਦੇਇ ॥
आपे भांडे साजिअनु आपे पूरणु देइ ॥
भगवान ने स्वयं ही जीव रूपी बर्तन बनाए हैं एवं वह स्वयं ही उनके शरीर में गुण-अवगुण, सुख-दुख डालता है।
ਇਕਨੑੀ ਦੁਧੁ ਸਮਾਈਐ ਇਕਿ ਚੁਲ੍ਹ੍ਹੈ ਰਹਨੑਿ ਚੜੇ ॥
इकन्ही दुधु समाईऐ इकि चुल्है रहन्हि चड़े ॥
कुछ जीव रूपी बर्तनों में दूध भरा रहता है अर्थात् सद्गुण विद्यमान रहते हैं और कई चूल्हे पर ताप सहते रहते हैं।
ਇਕਿ ਨਿਹਾਲੀ ਪੈ ਸਵਨੑਿ ਇਕਿ ਉਪਰਿ ਰਹਨਿ ਖੜੇ ॥
इकि निहाली पै सवन्हि इकि उपरि रहनि खड़े ॥
कुछ भाग्यशाली बिस्तरों पर निश्चित होकर विश्राम करते हैं और कई उनकी सेवा में खड़े होकर पहरा देते हैं।
ਤਿਨੑਾ ਸਵਾਰੇ ਨਾਨਕਾ ਜਿਨੑ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੧॥
तिन्हा सवारे नानका जिन्ह कउ नदरि करे ॥१॥
हे नानक ! भगवान उन मनुष्यों का जीवन सुन्दर बना देता है, जिन पर वह अपनी कृपा-दृष्टि करता है॥ १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਕਰੇ ਆਪਿ ਜਾਈ ਭਿ ਰਖੈ ਆਪਿ ॥
आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि ॥
भगवान स्वयं ही दुनिया बनाता और स्वयं ही सबकुछ करता है। वह स्वयं ही अपनी रचना की देखभाल करता है।
ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਕੈ ਦੇਖੈ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥
तिसु विचि जंत उपाइ कै देखै थापि उथापि ॥
वह दुनिया में जीवों को उत्पन्न करके उनके जन्म-मरण को देखता रहता है।
ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ਨਾਨਕਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥੨॥
किस नो कहीऐ नानका सभु किछु आपे आपि ॥२॥
हे नानक ! भगवान के अतिरिक्त किसके समक्ष प्रार्थना कर सकते हैं, जबकि वह स्वयं ही सब कुछ करता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਵਡੇ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ਕਿਛੁ ਕਹਣਾ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
वडे कीआ वडिआईआ किछु कहणा कहणु न जाइ ॥
महान प्रभु की महिमा एवं बड़प्पन का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਸੋ ਕਰਤਾ ਕਾਦਰ ਕਰੀਮੁ ਦੇ ਜੀਆ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹਿ ॥
सो करता कादर करीमु दे जीआ रिजकु स्मबाहि ॥
वह विश्व का रचयिता, अपनी कुदरत को बनाने वाला तथा स्वयं जीवों पर कृपा-दृष्टि करने वाला है। वह समस्त जीवों को रोजी प्रदान करता है।
ਸਾਈ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਧੁਰਿ ਛੋਡੀ ਤਿੰਨੈ ਪਾਇ ॥
साई कार कमावणी धुरि छोडी तिंनै पाइ ॥
जीव वही कर्म करता है, जो उसने आदि से ही भाग्य में लिख दिया है।
ਨਾਨਕ ਏਕੀ ਬਾਹਰੀ ਹੋਰ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥
नानक एकी बाहरी होर दूजी नाही जाइ ॥
हे नानक ! उस एक प्रभु के अतिरिक्त दूसरा कोई शरण का स्थान नहीं।
ਸੋ ਕਰੇ ਜਿ ਤਿਸੈ ਰਜਾਇ ॥੨੪॥੧॥ ਸੁਧੁ
सो करे जि तिसै रजाइ ॥२४॥१॥ सुधु
वह वही कुछ करता है, जो उसे मंजूर होता है॥ २४॥ १॥ शुद्ध॥
ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टि की रचना करने वाला है। वह सर्वशक्तिमान है, वह भय से रहित है, उसका किसी से वैर नहीं, वस्तुतः सब पर उसकी समान दृष्टि है, वह कालातीत ब्रह्म मूर्ति अमर है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त है, वह स्वयं प्रकाशमान हुआ है, गुरु-कृपा से प्राप्त होता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾ ਕੀ ॥
रागु आसा बाणी भगता की ॥
रागु आसा बाणी भगता की ॥
ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਨਾਮਦੇਉ ਜੀਉ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ ॥
कबीर जीउ नामदेउ जीउ रविदास जीउ ॥
कबीर जी नामदेउ जी रविदास जी ॥
ਆਸਾ ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ॥
आसा स्री कबीर जीउ ॥
आसा श्री कबीर जी ॥
ਗੁਰ ਚਰਣ ਲਾਗਿ ਹਮ ਬਿਨਵਤਾ ਪੂਛਤ ਕਹ ਜੀਉ ਪਾਇਆ ॥
गुर चरण लागि हम बिनवता पूछत कह जीउ पाइआ ॥
मैं अपने गुरु के चरणों में लगकर विनती करता हूँ एवं पूछता हूँ कि मनुष्य क्यों उत्पन्न किया गया है ?
ਕਵਨ ਕਾਜਿ ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਕਹਹੁ ਮੋਹਿ ਸਮਝਾਇਆ ॥੧॥
कवन काजि जगु उपजै बिनसै कहहु मोहि समझाइआ ॥१॥
यह जगत किसलिए उत्पन्न होता है और क्यों इसका विनाश हो जाता है? ॥ १॥
ਦੇਵ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ਮੋਹਿ ਮਾਰਗਿ ਲਾਵਹੁ ਜਿਤੁ ਭੈ ਬੰਧਨ ਤੂਟੈ ॥
देव करहु दइआ मोहि मारगि लावहु जितु भै बंधन तूटै ॥
हे गुरुदेव ! मुझ पर दया करो और सन्मार्ग लगाओ, जिससे मेरे भय के बन्धन टूट जाएँ।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਫੇੜ ਕਰਮ ਸੁਖ ਜੀਅ ਜਨਮ ਤੇ ਛੂਟੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनम मरन दुख फेड़ करम सुख जीअ जनम ते छूटै ॥१॥ रहाउ ॥
मुझ पर ऐसी सुख की कृपा करो कि मेरे पूर्व जन्म के जन्म-मरण के दु:ख नाश हो जाएँ और मेरी आत्मा जन्मों के चक्र से छूट जाए॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਫਾਸ ਬੰਧ ਨਹੀ ਫਾਰੈ ਅਰੁ ਮਨ ਸੁੰਨਿ ਨ ਲੂਕੇ ॥
माइआ फास बंध नही फारै अरु मन सुंनि न लूके ॥
मन माया की फाँसी के बन्धन को नहीं तोड़ता और इसलिए वह शून्य समाधि में लीन नहीं होता।
ਆਪਾ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੁ ਨ ਚੀਨੑਿਆ ਇਨ ਬਿਧਿ ਅਭਿਉ ਨ ਚੂਕੇ ॥੨॥
आपा पदु निरबाणु न चीन्हिआ इन बिधि अभिउ न चूके ॥२॥
वह अपने अहंत्व एवं मोक्ष के पद की पहचान नहीं करता। इस विधि से उसकी जन्म-मरण की दुविधा दूर नहीं होती ॥ २ ॥
ਕਹੀ ਨ ਉਪਜੈ ਉਪਜੀ ਜਾਣੈ ਭਾਵ ਅਭਾਵ ਬਿਹੂਣਾ ॥
कही न उपजै उपजी जाणै भाव अभाव बिहूणा ॥
आत्मा कभी भी पैदा नहीं होती चाहे मनुष्य समझते हैं कि यह पैदा होती है।
ਉਦੈ ਅਸਤ ਕੀ ਮਨ ਬੁਧਿ ਨਾਸੀ ਤਉ ਸਦਾ ਸਹਜਿ ਲਿਵ ਲੀਣਾ ॥੩॥
उदै असत की मन बुधि नासी तउ सदा सहजि लिव लीणा ॥३॥
यह तो जन्म-मरण से रहित है। जब मन का जन्म-मरण का ख्याल निवृत्त हो जाता है तो सदैव ही प्रभु की वृति में समाया रहता है॥ ३॥
ਜਿਉ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬੁ ਬਿੰਬ ਕਉ ਮਿਲੀ ਹੈ ਉਦਕ ਕੁੰਭੁ ਬਿਗਰਾਨਾ ॥
जिउ प्रतिबि्मबु बि्मब कउ मिली है उदक कु्मभु बिगराना ॥
जैसे जल के घड़े में पड़ने वाला प्रतिबंब घड़े के फूटने से वस्तु में मिल जाता है,
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਐਸਾ ਗੁਣ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗਾ ਤਉ ਮਨੁ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਨਾਂ ॥੪॥੧॥
कहु कबीर ऐसा गुण भ्रमु भागा तउ मनु सुंनि समानां ॥४॥१॥
वैसे ही हे कबीर ! जब गुण के माध्यम से दुविधा भाग जाती है तो मन प्रभु में समा जाता है॥ ४॥ १॥