ਭਗਤ ਤੇਰੇ ਦਇਆਲ ਓਨੑਾ ਮਿਹਰ ਪਾਇ ॥
भगत तेरे दइआल ओन्हा मिहर पाइ ॥
हे दयानिधि ! ये भक्त तेरे ही हैं, उन पर अपनी मेहर कर।
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਵਡ ਰੋਗੁ ਨ ਪੋਹੇ ਤਿਸੁ ਮਾਇ ॥
दूखु दरदु वड रोगु न पोहे तिसु माइ ॥
दुःख, दर्द, बड़ा रोग एवं माया उनको स्पर्श नहीं कर सकती।
ਭਗਤਾ ਏਹੁ ਅਧਾਰੁ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਗਾਇ ॥
भगता एहु अधारु गुण गोविंद गाइ ॥
गोविन्द का गुणगान ही भक्तों के जीवन का आधार है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਇਕੋ ਇਕੁ ਧਿਆਇ ॥
सदा सदा दिनु रैणि इको इकु धिआइ ॥
वे सदा-सर्वदा दिन-रात एक ईश्वर का ही ध्यान करते रहते हैं और
ਪੀਵਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਜਨ ਨਾਮੇ ਰਹੇ ਅਘਾਇ ॥੧੪॥
पीवति अम्रित नामु जन नामे रहे अघाइ ॥१४॥
अमृत-नाम का पान करके नाम में ही तृप्त रहते हैं।॥ १४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਤਿਸੁ ਲਾਗਤੇ ਜਿਸ ਨੋ ਵਿਸਰੈ ਨਾਉ ॥
कोटि बिघन तिसु लागते जिस नो विसरै नाउ ॥
जिसे ईश्वर का नाम भूल जाता है, उसे (पथ में) करोड़ों ही विघ्न लग जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਬਿਲਪਤੇ ਜਿਉ ਸੁੰਞੈ ਘਰਿ ਕਾਉ ॥੧॥
नानक अनदिनु बिलपते जिउ सुंञै घरि काउ ॥१॥
हे नानक ! ऐसे लोग रात-दिन यूं रोते-चिल्लाते हैं जैसे सूने घर में कौआ कांव-कांव करता है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਪਿਰੀ ਮਿਲਾਵਾ ਜਾ ਥੀਐ ਸਾਈ ਸੁਹਾਵੀ ਰੁਤਿ ॥
पिरी मिलावा जा थीऐ साई सुहावी रुति ॥
वही ऋतु सुन्दर है, जब प्रियतम-प्रभु से मिलन होता है।
ਘੜੀ ਮੁਹਤੁ ਨਹ ਵੀਸਰੈ ਨਾਨਕ ਰਵੀਐ ਨਿਤ ॥੨॥
घड़ी मुहतु नह वीसरै नानक रवीऐ नित ॥२॥
हे नानक ! उसे नित्य ही याद करते रहना चाहिए और एक घड़ी एवं मुहूर्त भर के लिए भी भुलाना नहीं चाहिए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸੂਰਬੀਰ ਵਰੀਆਮ ਕਿਨੈ ਨ ਹੋੜੀਐ ॥
सूरबीर वरीआम किनै न होड़ीऐ ॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार इतने शूरवीर एवं पराक्रमी हैं कि इन्होंने शक्तिशाली एवं हठीली सेना एकत्र कर ली है।
ਫਉਜ ਸਤਾਣੀ ਹਾਠ ਪੰਚਾ ਜੋੜੀਐ ॥
फउज सताणी हाठ पंचा जोड़ीऐ ॥
ये पाँचों विकार किसी के रोकने पर भी नहीं रुकते।
ਦਸ ਨਾਰੀ ਅਉਧੂਤ ਦੇਨਿ ਚਮੋੜੀਐ ॥
दस नारी अउधूत देनि चमोड़ीऐ ॥
दस इन्द्रियाँ अवधूत पुरुषों को भी विषयों विकारों में लगाए रखती हैं।
ਜਿਣਿ ਜਿਣਿ ਲੈਨੑਿ ਰਲਾਇ ਏਹੋ ਏਨਾ ਲੋੜੀਐ ॥
जिणि जिणि लैन्हि रलाइ एहो एना लोड़ीऐ ॥
सभी पर विजय पाकर ये अपने साथ मिलाते जाते हैं और ये इसी बात की लालसा करते हैं।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਇਨ ਕੈ ਵਸਿ ਕਿਨੈ ਨ ਮੋੜੀਐ ॥
त्रै गुण इन कै वसि किनै न मोड़ीऐ ॥
त्रिगुणात्मक दुनिया उनके वश में है और कोई भी उनसे संघर्ष नहीं कर सकता।
ਭਰਮੁ ਕੋਟੁ ਮਾਇਆ ਖਾਈ ਕਹੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਤੋੜੀਐ ॥
भरमु कोटु माइआ खाई कहु कितु बिधि तोड़ीऐ ॥
भ्रम रूपी किला एवं माया की खाई को बताओ किस विधि से तोड़ा जा सकता है?
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਆਰਾਧਿ ਬਿਖਮ ਦਲੁ ਫੋੜੀਐ ॥
गुरु पूरा आराधि बिखम दलु फोड़ीऐ ॥
पूर्ण गुरु की आराधना करने से यह भयानक दल फोड़ा जा सकता है इसलिए
ਹਉ ਤਿਸੁ ਅਗੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ਰਹਾ ਕਰ ਜੋੜੀਐ ॥੧੫॥
हउ तिसु अगै दिनु राति रहा कर जोड़ीऐ ॥१५॥
मैं रात-दिन उस गुरु के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा रहता हूँ॥ १५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਕਿਲਵਿਖ ਸਭੇ ਉਤਰਨਿ ਨੀਤ ਨੀਤ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
किलविख सभे उतरनि नीत नीत गुण गाउ ॥
नित्य ही परमात्मा का गुणगान करने से सभी पाप उतर जाते हैं।
ਕੋਟਿ ਕਲੇਸਾ ਊਪਜਹਿ ਨਾਨਕ ਬਿਸਰੈ ਨਾਉ ॥੧॥
कोटि कलेसा ऊपजहि नानक बिसरै नाउ ॥१॥
हे नानक ! यदि परमात्मा का नाम भूल जाए तो करोड़ों ही दुःख-क्लेश उत्पन्न हो जाते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭੇਟਿਐ ਪੂਰੀ ਹੋਵੈ ਜੁਗਤਿ ॥
नानक सतिगुरि भेटिऐ पूरी होवै जुगति ॥
हे नानक ! सच्चे गुरु से भेंट होने पर जीवन से मुक्ति पाने की युक्ति मिल जाती है और
ਹਸੰਦਿਆ ਖੇਲੰਦਿਆ ਪੈਨੰਦਿਆ ਖਾਵੰਦਿਆ ਵਿਚੇ ਹੋਵੈ ਮੁਕਤਿ ॥੨॥
हसंदिआ खेलंदिआ पैनंदिआ खावंदिआ विचे होवै मुकति ॥२॥
फिर हँसते, खेलते, पहनते, खाते-पीते हुए भी मुक्ति हो जाती है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਜਿਨਿ ਭਰਮ ਗੜੁ ਤੋੜਿਆ ॥
सो सतिगुरु धनु धंनु जिनि भरम गड़ु तोड़िआ ॥
वह सतगुरु धन्य-धन्य है, जिसने भ्रम का दुर्ग ध्वस्त कर दिया है।
ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੋੜਿਆ ॥
सो सतिगुरु वाहु वाहु जिनि हरि सिउ जोड़िआ ॥
वह सतगुरु स्तुति-योग्य है, जिसने मुझे भगवान से मिला दिया है।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਅਖੁਟੁ ਗੁਰੁ ਦੇਇ ਦਾਰੂਓ ॥
नामु निधानु अखुटु गुरु देइ दारूओ ॥
प्रभु-नाम का अक्षय भण्डार गुरु ने मुझे औषधि के रूप में दिया है और
ਮਹਾ ਰੋਗੁ ਬਿਕਰਾਲ ਤਿਨੈ ਬਿਦਾਰੂਓ ॥
महा रोगु बिकराल तिनै बिदारूओ ॥
उसने इस औषधि से महाविकराल रोग दूर कर दिया है।
ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਬਹੁਤੁ ਖਜਾਨਿਆ ॥
पाइआ नामु निधानु बहुतु खजानिआ ॥
मुझे प्रभु नाम-धन रूपी बहुत बड़ा खजाना हासिल हो गया है
ਜਿਤਾ ਜਨਮੁ ਅਪਾਰੁ ਆਪੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥
जिता जनमु अपारु आपु पछानिआ ॥
जिससे अपार जन्म का महत्व पहचान लिया है।
ਮਹਿਮਾ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ਗੁਰ ਸਮਰਥ ਦੇਵ ॥
महिमा कही न जाइ गुर समरथ देव ॥
सर्वकला समर्थ गुरुदेव की महिमा वर्णन नहीं की जा सकती क्योंकि
ਗੁਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਅਪਰੰਪਰ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥੧੬॥
गुर पारब्रहम परमेसुर अपर्मपर अलख अभेव ॥१६॥
गुरू आप ही परब्रह्म-परमेश्वर अपरंपार, अलक्ष्य एवं अभेद सत्य का रूप है ॥१६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५ ॥
ਉਦਮੁ ਕਰੇਦਿਆ ਜੀਉ ਤੂੰ ਕਮਾਵਦਿਆ ਸੁਖ ਭੁੰਚੁ ॥
उदमु करेदिआ जीउ तूं कमावदिआ सुख भुंचु ॥
हे जीव ! तू नाम-सिमरन का उद्यम करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर, इस साधना से तू सुख भोगेगा।
ਧਿਆਇਦਿਆ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਉਤਰੀ ਚਿੰਤ ॥੧॥
धिआइदिआ तूं प्रभू मिलु नानक उतरी चिंत ॥१॥
हे नानक ! नाम की आराधना करने से प्रभु मिल जाएगा और तेरी चिंता दूर हो जाएगी॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਸੁਭ ਚਿੰਤਨ ਗੋਬਿੰਦ ਰਮਣ ਨਿਰਮਲ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ॥
सुभ चिंतन गोबिंद रमण निरमल साधू संग ॥
हे गोविन्द ! मुझे शुभ चिंतन, सुमिरन एवं निर्मल साधु-संगति की देन प्रदान कीजिए।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵਿਸਰਉ ਇਕ ਘੜੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਵੰਤ ॥੨॥
नानक नामु न विसरउ इक घड़ी करि किरपा भगवंत ॥२॥
हे भगवान ! नानक पर ऐसी कृपा करो कि वह तेरे नाम को एक घड़ी भर के लिए भी न भूले ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਤੇਰਾ ਕੀਤਾ ਹੋਇ ਤ ਕਾਹੇ ਡਰਪੀਐ ॥
तेरा कीता होइ त काहे डरपीऐ ॥
हे स्वामी ! जब सब कुछ तेरा किया ही घटित होता है तो हम क्यों डर अनुभव करें?
ਜਿਸੁ ਮਿਲਿ ਜਪੀਐ ਨਾਉ ਤਿਸੁ ਜੀਉ ਅਰਪੀਐ ॥
जिसु मिलि जपीऐ नाउ तिसु जीउ अरपीऐ ॥
जिसके साथ मिलकर नाम-सुमिरन किया जाता है उसे अपने प्राण अर्पण कर देने चाहिए।
ਆਇਐ ਚਿਤਿ ਨਿਹਾਲੁ ਸਾਹਿਬ ਬੇਸੁਮਾਰ ॥
आइऐ चिति निहालु साहिब बेसुमार ॥
उस बेशुमार मालिक को मन में याद करने से जीव आनंदित हो जाता है।
ਤਿਸ ਨੋ ਪੋਹੇ ਕਵਣੁ ਜਿਸੁ ਵਲਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥
तिस नो पोहे कवणु जिसु वलि निरंकार ॥
जिसके साथ निरंकार परमात्मा है, उसे कोई दुख स्पर्श नहीं कर सकता।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕੈ ਵਸਿ ਨ ਕੋਈ ਬਾਹਰਾ ॥
सभु किछु तिस कै वसि न कोई बाहरा ॥
सब कुछ उसके वश में है और कोई भी उसके हुक्म से बाहर नहीं।
ਸੋ ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਸਚਿ ਸਮਾਹਰਾ ॥
सो भगता मनि वुठा सचि समाहरा ॥
वह परम-सत्य प्रभु भक्तों के मन में निवास करता है और उनकी अन्तरात्मा में समा जाता है।
ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਧਿਆਇਨਿ ਤੁਧੁ ਤੂੰ ਰਖਣ ਵਾਲਿਆ ॥
तेरे दास धिआइनि तुधु तूं रखण वालिआ ॥
हे भगवान ! तेरे दास तेरा ही ध्यान करते हैं और तू ही उनका रखवाला है।