ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫ ਪੜਤਾਲ
रागु सूही महला ५ घरु ५ पड़ताल
रागु सूही महला ५ घरु ५ पड़ताल
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰੀਆ ਮੋਹਨ ਲਾਲਨਾ ॥
प्रीति प्रीति गुरीआ मोहन लालना ॥
प्यारे प्रभु का प्रेम जग के हर प्रकार के प्रेम से उत्तम एवं सुखदायक है।
ਜਪਿ ਮਨ ਗੋਬਿੰਦ ਏਕੈ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਕੋ ਲੇਖੈ ਸੰਤ ਲਾਗੁ ਮਨਹਿ ਛਾਡੁ ਦੁਬਿਧਾ ਕੀ ਕੁਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जपि मन गोबिंद एकै अवरु नही को लेखै संत लागु मनहि छाडु दुबिधा की कुरीआ ॥१॥ रहाउ ॥
इसलिए मन में केवल गोविंद का ही नाम जपो, चूंकि अन्य सब काम निष्फल ही हैं। हे बन्धु ! संतों के चरणों में लग जाओ और अपने मन से दुविधा का मार्ग छोड़ दो ॥ १॥ रहाउ॥
ਨਿਰਗੁਨ ਹਰੀਆ ਸਰਗੁਨ ਧਰੀਆ ਅਨਿਕ ਕੋਠਰੀਆ ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਭਿਨ ਕਰੀਆ ॥
निरगुन हरीआ सरगुन धरीआ अनिक कोठरीआ भिंन भिंन भिंन भिन करीआ ॥
परमात्मा निर्गुण है, मगर उसने अपना सगुण रूप धारण किया हुआ है। उसने भिन्न-भिन्न प्रकार की शरीर रूपी कोठियाँ बना दी हैं,
ਵਿਚਿ ਮਨ ਕੋਟਵਰੀਆ ॥
विचि मन कोटवरीआ ॥
जिनमें कोतवाल मन बसता है।
ਨਿਜ ਮੰਦਰਿ ਪਿਰੀਆ ॥
निज मंदरि पिरीआ ॥
प्यारा प्रभु हर मन्दिर रूपी शरीर में बसता है और
ਤਹਾ ਆਨਦ ਕਰੀਆ ॥
तहा आनद करीआ ॥
वह वहाँ आनंद करता रहता है।
ਨਹ ਮਰੀਆ ਨਹ ਜਰੀਆ ॥੧॥
नह मरीआ नह जरीआ ॥१॥
उसकी न मृत्यु होती है और न ही उसे बुढ़ापा आता है॥ १॥
ਕਿਰਤਨਿ ਜੁਰੀਆ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਫਿਰੀਆ ਪਰ ਕਉ ਹਿਰੀਆ ॥
किरतनि जुरीआ बहु बिधि फिरीआ पर कउ हिरीआ ॥
आदमी दुनिया के धंधों में जुड़ा रहता है, बहुत प्रकार से भटकता है और पराया धन छीनता रहता है।
ਬਿਖਨਾ ਘਿਰੀਆ ॥
बिखना घिरीआ ॥
वह तो विषय-विकारों में ही घिरा रहता है।
ਅਬ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਪਰੀਆ ॥
अब साधू संगि परीआ ॥
अब वह साधु की संगत में आ गया है,
ਹਰਿ ਦੁਆਰੈ ਖਰੀਆ ॥
हरि दुआरै खरीआ ॥
वह हरि के द्वार आ खड़ा है और
ਦਰਸਨੁ ਕਰੀਆ ॥
दरसनु करीआ ॥
उसका दर्शन किया है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਮਿਰੀਆ ॥
नानक गुर मिरीआ ॥
हे नानक ! उसे गुरु मिल गया है और
ਬਹੁਰਿ ਨ ਫਿਰੀਆ ॥੨॥੧॥੪੪॥
बहुरि न फिरीआ ॥२॥१॥४४॥
वह फिर से जीवन-मृत्यु के चक्र में नहीं भटकता॥ २॥ १॥ ४४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥
ਰਾਸਿ ਮੰਡਲੁ ਕੀਨੋ ਆਖਾਰਾ ॥
रासि मंडलु कीनो आखारा ॥
परमात्मा ने यह पृथ्वी जीव रूपी गोपियों के लिए रास रचाने के लिए एक अखाड़ा बनाया है।
ਸਗਲੋ ਸਾਜਿ ਰਖਿਓ ਪਾਸਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगलो साजि रखिओ पासारा ॥१॥ रहाउ ॥
उसने सारी रचना रच कर यह जगत्-प्रसार कर रखा है॥ १॥ रहाउ ॥
ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਰੂਪ ਰੰਗ ਆਪਾਰਾ ॥
बहु बिधि रूप रंग आपारा ॥
परमात्मा ने अनेक तरीकों से अपार रूप-रंग वाली दुनिया बनाई है।
ਪੇਖੈ ਖੁਸੀ ਭੋਗ ਨਹੀ ਹਾਰਾ ॥
पेखै खुसी भोग नही हारा ॥
वह इसे खुशी से देखता रहता है और वह स्वयं जीवों के रूप में सब पदार्थों को भोग कर थका नहीं है।
ਸਭਿ ਰਸ ਲੈਤ ਬਸਤ ਨਿਰਾਰਾ ॥੧॥
सभि रस लैत बसत निरारा ॥१॥
वह जीवों के रूप में सब पदार्थों के स्वादों का आनंद लेता है लेकिन वह खुद सब से निराला है॥ १॥
ਬਰਨੁ ਚਿਹਨੁ ਨਾਹੀ ਮੁਖੁ ਨ ਮਾਸਾਰਾ ॥
बरनु चिहनु नाही मुखु न मासारा ॥
हे परमेश्वर ! तेरा कोई रंग और चिन्ह नहीं है और तेरा कोई मांस का बना मुँह भी नहीं है।
ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ਖੇਲੁ ਤੁਹਾਰਾ ॥
कहनु न जाई खेलु तुहारा ॥
तेरा जगत् रूपी खेल कथन नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਰੇਣ ਸੰਤ ਚਰਨਾਰਾ ॥੨॥੨॥੪੫॥
नानक रेण संत चरनारा ॥२॥२॥४५॥
नानक तेरे संतजनों की चरण-धूलि की ही कामना करता है॥ २॥ २॥ ४५ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥
ਤਉ ਮੈ ਆਇਆ ਸਰਨੀ ਆਇਆ ॥
तउ मै आइआ सरनी आइआ ॥
हे मालिक प्रभु ! मैं तेरे पास तेरी शरण में आया हूँ।
ਭਰੋਸੈ ਆਇਆ ਕਿਰਪਾ ਆਇਆ ॥
भरोसै आइआ किरपा आइआ ॥
मैं तेरे भरोसे पर तेरी कृपा से आया हूँ।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖਹੁ ਸੁਆਮੀ ਮਾਰਗੁ ਗੁਰਹਿ ਪਠਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ भावै तिउ राखहु सुआमी मारगु गुरहि पठाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे तुझे भला लगता है, वैसे ही मेरी रक्षा करो। हे स्वामी ! मुझे तेरे इस मार्ग पर गुरु ने भेजा है॥ १॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਦੁਤਰੁ ਮਾਇਆ ॥
महा दुतरु माइआ ॥
माया रूपी सागर में से पार होना बहुत ही कठिन है।
ਜੈਸੇ ਪਵਨੁ ਝੁਲਾਇਆ ॥੧॥
जैसे पवनु झुलाइआ ॥१॥
यह माया ऐसी है, जैसे तेज हवा झूलती है॥ १॥
ਸੁਨਿ ਸੁਨਿ ਹੀ ਡਰਾਇਆ ॥ ਕਰਰੋ ਧ੍ਰਮਰਾਇਆ ॥੨॥
सुनि सुनि ही डराइआ ॥ कररो ध्रमराइआ ॥२॥
यह सुन-सुन कर मैं बहुत डर गया हूँ कि यमराज बड़ा निर्दयी है॥ २॥
ਗ੍ਰਿਹ ਅੰਧ ਕੂਪਾਇਆ ॥
ग्रिह अंध कूपाइआ ॥
जगत् रूपी घर एक अंधा कुआं है और
ਪਾਵਕੁ ਸਗਰਾਇਆ ॥੩॥
पावकु सगराइआ ॥३॥
इसमें तृष्णा रूपी आग ही भरी हुई है॥ ३॥
ਗਹੀ ਓਟ ਸਾਧਾਇਆ ॥ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥
गही ओट साधाइआ ॥ नानक हरि धिआइआ ॥
मैंने साधुओं की ओट ली है। हे नानक ! मैंने भगवान का ध्यान-मनन किया है और
ਅਬ ਮੈ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੪॥੩॥੪੬॥
अब मै पूरा पाइआ ॥४॥३॥४६॥
अब मैंने पूर्ण परमानंद को पा लिया है॥ ४॥ ३ ॥ ४६ ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬
रागु सूही महला ५ घरु ६
रागु सूही महला ५ घरु ६
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ਬੇਨੰਤੀਆ ਮਿਲੈ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰਾ ॥
सतिगुर पासि बेनंतीआ मिलै नामु आधारा ॥
सतगुरु के पास मेरी यही विनती है कि मुझे ईश्वर का नाम मिल जाए, जो मेरे जीवन का आधार है।
ਤੁਠਾ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਤਾਪੁ ਗਇਆ ਸੰਸਾਰਾ ॥੧॥
तुठा सचा पातिसाहु तापु गइआ संसारा ॥१॥
सच्चा पातशाह मुझ पर प्रसन्न हो गया है और मेरा संसार का ताप दूर हो गया है॥ १॥
ਭਗਤਾ ਕੀ ਟੇਕ ਤੂੰ ਸੰਤਾ ਕੀ ਓਟ ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਿਰਜਨਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भगता की टेक तूं संता की ओट तूं सचा सिरजनहारा ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तू भक्तों की टेक है, तू ही संतजनों की ओट है और एक तू ही सच्चा सृजनहार है। ॥ रहाउ॥
ਸਚੁ ਤੇਰੀ ਸਾਮਗਰੀ ਸਚੁ ਤੇਰਾ ਦਰਬਾਰਾ ॥
सचु तेरी सामगरी सचु तेरा दरबारा ॥
तेरी सामग्री सत्य है और तेरा दरबार सत्य है।
ਸਚੁ ਤੇਰੇ ਖਾਜੀਨਿਆ ਸਚੁ ਤੇਰਾ ਪਾਸਾਰਾ ॥੨॥
सचु तेरे खाजीनिआ सचु तेरा पासारा ॥२॥
तेरे खजाने भी सत्य हैं और तेरा जगत्-प्रसार भी सत्य है॥ २ ॥
ਤੇਰਾ ਰੂਪੁ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਅਨੂਪੁ ਤੇਰਾ ਦਰਸਾਰਾ ॥
तेरा रूपु अगमु है अनूपु तेरा दरसारा ॥
तेरा रूप अगम्य है और तेरा दर्शन अनुपम है।
ਹਉ ਕੁਰਬਾਣੀ ਤੇਰਿਆ ਸੇਵਕਾ ਜਿਨੑ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥੩॥
हउ कुरबाणी तेरिआ सेवका जिन्ह हरि नामु पिआरा ॥३॥
मैं तेरे उन सेवकों पर कुर्बान जाता हूँ, जिन्हें तेरा नाम बड़ा प्यारा लगता है। ३॥