HINDI PAGE 887

ਪੀਵਤ ਅਮਰ ਭਏ ਨਿਹਕਾਮ ॥
पीवत अमर भए निहकाम ॥
जिसे पान करने से जीव अमर एवं निष्काम हो जाता है।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰੀ ॥
तनु मनु सीतलु अगनि निवारी ॥
इससे मन-तन शीतल हो जाता है और तृष्णाग्नि बुझ जाती है।

ਅਨਦ ਰੂਪ ਪ੍ਰਗਟੇ ਸੰਸਾਰੀ ॥੨॥
अनद रूप प्रगटे संसारी ॥२॥
वह आनंद स्वरूप में सारे संसार में लोकप्रिय हो जाता है।॥ २॥

ਕਿਆ ਦੇਵਉ ਜਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ॥
किआ देवउ जा सभु किछु तेरा ॥
हे परमेश्वर ! जब सबकुछ तेरा ही मुझे दिया हुआ है तो मैं तुझे क्या भेंट करूं ?

ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਿ ਜਾਉ ਲਖ ਬੇਰਾ ॥
सद बलिहारि जाउ लख बेरा ॥
मैं तुझ पर लाखों वार सदा ही बलिहारी जाता हूँ।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੇ ਸਾਜਿਆ ॥
तनु मनु जीउ पिंडु दे साजिआ ॥
यह तन-मन, प्राण सब देकर तूने ही बनाया है।

ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਨੀਚੁ ਨਿਵਾਜਿਆ ॥੩॥
गुर किरपा ते नीचु निवाजिआ ॥३॥
गुरु की कृपा से मुझ नीच को आदर प्रदान किया है॥ ३ ॥

ਖੋਲਿ ਕਿਵਾਰਾ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਇਆ ॥
खोलि किवारा महलि बुलाइआ ॥
तूने कपाट खोलकर मुझे अपने चरणों में बुला लिया है।

ਜੈਸਾ ਸਾ ਤੈਸਾ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥
जैसा सा तैसा दिखलाइआ ॥
तू जैसा है, वैसा अपना रूप दिखा दिया है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਭੁ ਪੜਦਾ ਤੂਟਾ ॥
कहु नानक सभु पड़दा तूटा ॥
हे नानक ! मेरा भ्रम का सारा पर्दा टूट गया है,

ਹਉ ਤੇਰਾ ਤੂ ਮੈ ਮਨਿ ਵੂਠਾ ॥੪॥੩॥੧੪॥
हउ तेरा तू मै मनि वूठा ॥४॥३॥१४॥
तू मेरे मन में बस गया है और मैं तेरा हो गया हूँ॥ ४॥ ३॥ १४॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਸੇਵਕੁ ਲਾਇਓ ਅਪੁਨੀ ਸੇਵ ॥ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਮੁਖਿ ਦੇਵ ॥
सेवकु लाइओ अपुनी सेव ॥ अम्रितु नामु दीओ मुखि देव ॥
सेवक को अपनी सेवा में लगा कर गुरु ने नामामृत मुँह में डाल दिया है।

ਸਗਲੀ ਚਿੰਤਾ ਆਪਿ ਨਿਵਾਰੀ ॥
सगली चिंता आपि निवारी ॥
उसने सारी चिंता दूर कर दी है,

ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੧॥
तिसु गुर कउ हउ सद बलिहारी ॥१॥
इसलिए उस गुरु पर सदैव बलिहारी जाता हूँ॥ १॥

ਕਾਜ ਹਮਾਰੇ ਪੂਰੇ ਸਤਗੁਰ ॥
काज हमारे पूरे सतगुर ॥
सतगुरु ने मेरे सभी कार्य पूरे कर दिए हैं और

ਬਾਜੇ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ਸਤਗੁਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बाजे अनहद तूरे सतगुर ॥१॥ रहाउ ॥
उसी के फलस्वरूप अनहद ध्वनि के बाजे बज रहे हैं। १॥ रहाउ ॥

ਮਹਿਮਾ ਜਾ ਕੀ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ॥
महिमा जा की गहिर ग्मभीर ॥
जिस परमात्मा की महिमा गहनगंभीर है,

ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ਦੇਇ ਜਿਸੁ ਧੀਰ ॥
होइ निहालु देइ जिसु धीर ॥
जिसे वह धीरज देता है, वह आनंदित हो जाता है।

ਜਾ ਕੇ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ਰਾਇ ॥
जा के बंधन काटे राइ ॥
वह जिसके बंधन काट देता है,

ਸੋ ਨਰੁ ਬਹੁਰਿ ਨ ਜੋਨੀ ਪਾਇ ॥੨॥
सो नरु बहुरि न जोनी पाइ ॥२॥
वह नर दोबारा योनियों के चक्र में नहीं पड़ता॥ २॥

ਜਾ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਆਪ ॥
जा कै अंतरि प्रगटिओ आप ॥
जिसके अन्तर्मन में प्रभु स्वयं प्रगट हो गया है,

ਤਾ ਕਉ ਨਾਹੀ ਦੂਖ ਸੰਤਾਪ ॥
ता कउ नाही दूख संताप ॥
उसे कोई दुख-संताप नहीं लगता।

ਲਾਲੁ ਰਤਨੁ ਤਿਸੁ ਪਾਲੈ ਪਰਿਆ ॥
लालु रतनु तिसु पालै परिआ ॥
जिसके आँचल में लाल-रत्न जैसा नाम पड़ा है,

ਸਗਲ ਕੁਟੰਬ ਓਹੁ ਜਨੁ ਲੈ ਤਰਿਆ ॥੩॥
सगल कुट्मब ओहु जनु लै तरिआ ॥३॥
वह अपने समूचे परिवार सहित भवसागर से पार हो गया है॥ ३॥

ਨਾ ਕਿਛੁ ਭਰਮੁ ਨ ਦੁਬਿਧਾ ਦੂਜਾ ॥
ना किछु भरमु न दुबिधा दूजा ॥
उसका भ्रम, दुविधा एवं द्वैतभाव मिट गया है,

ਏਕੋ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨ ਪੂਜਾ ॥
एको एकु निरंजन पूजा ॥
जिसने केवल परमात्मा की पूजा की है।

ਜਤ ਕਤ ਦੇਖਉ ਆਪਿ ਦਇਆਲ ॥
जत कत देखउ आपि दइआल ॥
जिधर भी देखता हूँ दयालु प्रभु स्वयं ही मौजूद है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਰਸਾਲ ॥੪॥੪॥੧੫॥
कहु नानक प्रभ मिले रसाल ॥४॥४॥१५॥
हे नानक ! रसों का भण्डार प्रभु मुझे मिल गया है॥ ४॥ ४॥ १५॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਤਨ ਤੇ ਛੁਟਕੀ ਅਪਨੀ ਧਾਰੀ ॥
तन ते छुटकी अपनी धारी ॥
तन से अपनी ही धारण की हुई अहम्-भावना छूट गई है,

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਆਗਿਆ ਲਗੀ ਪਿਆਰੀ ॥
प्रभ की आगिआ लगी पिआरी ॥
प्रभु की आज्ञा इतनी प्यारी लगी है।

ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੁ ਮਨਿ ਮੇਰੈ ਮੀਠਾ ॥
जो किछु करै सु मनि मेरै मीठा ॥
वह जो कुछ करता है, वही मेरे मन को मीठा लगता है।

ਤਾ ਇਹੁ ਅਚਰਜੁ ਨੈਨਹੁ ਡੀਠਾ ॥੧॥
ता इहु अचरजु नैनहु डीठा ॥१॥
यह विचित्र खेल मैंने अपनी आँखों से देख लिया है॥ १॥

ਅਬ ਮੋਹਿ ਜਾਨੀ ਰੇ ਮੇਰੀ ਗਈ ਬਲਾਇ ॥
अब मोहि जानी रे मेरी गई बलाइ ॥
अब मैंने जान लिया है कि मेरी सब बलाएँ दूर हो गई हैं,

ਬੁਝਿ ਗਈ ਤ੍ਰਿਸਨ ਨਿਵਾਰੀ ਮਮਤਾ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਲੀਓ ਸਮਝਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बुझि गई त्रिसन निवारी ममता गुरि पूरै लीओ समझाइ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरी तृष्णा बुझ गई है, मन में से ममता भी दूर हो गई है, क्योंकि पूर्ण गुरु ने मुझे समझा दिया है। १॥ रहाउ॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖਿਓ ਗੁਰਿ ਸਰਨਾ ॥
करि किरपा राखिओ गुरि सरना ॥
गुरु ने कृपा करके मुझे अपनी शरण में रखा हुआ है और

ਗੁਰਿ ਪਕਰਾਏ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨਾ ॥
गुरि पकराए हरि के चरना ॥
उसने मुझे हरि के चरण पकड़ा दिए हैं।

ਬੀਸ ਬਿਸੁਏ ਜਾ ਮਨ ਠਹਰਾਨੇ ॥
बीस बिसुए जा मन ठहराने ॥
जब मन शत-प्रतिशत स्थिर हो गया तो

ਗੁਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਏਕੈ ਹੀ ਜਾਨੇ ॥੨॥
गुर पारब्रहम एकै ही जाने ॥२॥
जान लिया कि गुरु-परब्रह्म एक ही हैं।॥ २ ॥

ਜੋ ਜੋ ਕੀਨੋ ਹਮ ਤਿਸ ਕੇ ਦਾਸ ॥
जो जो कीनो हम तिस के दास ॥
जो भी जीव प्रभु ने पैदा किया है, मैं उसका दास हूँ क्योंकि

ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਕੋ ਸਗਲ ਨਿਵਾਸ ॥
प्रभ मेरे को सगल निवास ॥
सब जीवों में मेरे प्रभु का ही निवास है,

ਨਾ ਕੋ ਦੂਤੁ ਨਹੀ ਬੈਰਾਈ ॥
ना को दूतु नही बैराई ॥
इसलिए न कोई मेरा दुश्मन है और न ही मेरा कोई वैरी है।

ਗਲਿ ਮਿਲਿ ਚਾਲੇ ਏਕੈ ਭਾਈ ॥੩॥
गलि मिलि चाले एकै भाई ॥३॥
अब मैं सब के गले मिलकर ऐसे चलता हूँ, जैसे एक पिता के पुत्र होते हैं।॥ ३॥

ਜਾ ਕਉ ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਦੀਏ ਸੂਖਾ ॥
जा कउ गुरि हरि दीए सूखा ॥
जिसे हरि गुरु ने सुख दिया है,

ਤਾ ਕਉ ਬਹੁਰਿ ਨ ਲਾਗਹਿ ਦੂਖਾ ॥
ता कउ बहुरि न लागहि दूखा ॥
उसे दोबारा कोई दुख नहीं लगता।

ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥ ਨਾਨਕ ਰਾਤਉ ਰੰਗਿ ਗੋਪਾਲ ॥੪॥੫॥੧੬॥
आपे आपि सरब प्रतिपाल ॥ नानक रातउ रंगि गोपाल ॥४॥५॥१६॥
हे नानक ! वह परमेश्वर स्वयं ही सबका प्रतिपालक है और मैं उसके रंग में ही मग्न रहता हूँ॥ ४॥ ५॥ १६॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਮੁਖ ਤੇ ਪੜਤਾ ਟੀਕਾ ਸਹਿਤ ॥
मुख ते पड़ता टीका सहित ॥
हे पण्डित ! तू अपने मुँह से अर्थों सहित ग्रंथों का अध्ययन करता रहता है,

ਹਿਰਦੈ ਰਾਮੁ ਨਹੀ ਪੂਰਨ ਰਹਤ ॥
हिरदै रामु नही पूरन रहत ॥
लेकिन फिर भी तेरे हृदय में राम नहीं बसता।

ਉਪਦੇਸੁ ਕਰੇ ਕਰਿ ਲੋਕ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ॥
उपदेसु करे करि लोक द्रिड़ावै ॥
तू उपदेश कर करके लोगों को दृढ़ करवाता रहता है लेकिन

ਅਪਨਾ ਕਹਿਆ ਆਪਿ ਨ ਕਮਾਵੈ ॥੧॥
अपना कहिआ आपि न कमावै ॥१॥
स्वयं उस पर अमल नहीं करता ॥ १॥

ਪੰਡਿਤ ਬੇਦੁ ਬੀਚਾਰਿ ਪੰਡਿਤ ॥
पंडित बेदु बीचारि पंडित ॥
हे पण्डित ! वेदों का चिंतन कर और

ਮਨ ਕਾ ਕ੍ਰੋਧੁ ਨਿਵਾਰਿ ਪੰਡਿਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन का क्रोधु निवारि पंडित ॥१॥ रहाउ ॥
अपने मन का क्रोध दूर कर दे ॥ १॥ रहाउ॥

ਆਗੈ ਰਾਖਿਓ ਸਾਲ ਗਿਰਾਮੁ ॥
आगै राखिओ साल गिरामु ॥
तूने शालिग्राम अपने सामने रखा हुआ है,

error: Content is protected !!