ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ਸਮਾਵੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਹੇ ॥੧੨॥
गुरमुखि नामि समाइ समावै नानक नामु धिआई हे ॥१२॥
गुरुमुख नाम में लीन रहकर परमात्मा में ही विलीन हो जाता है, हे नानक ! वह परमात्मा के नाम का ही मनन करता रहता है।॥ १२॥
ਭਗਤਾ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਹੈ ਬਾਣੀ ॥
भगता मुखि अम्रित है बाणी ॥
भक्तों के मुँह में हर वक्त अमृत-वाणी ही रहती है,”
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥
गुरमुखि हरि नामु आखि वखाणी ॥
गुरु ने अपने मुखारबिंद से हरि-नाम ही कहकर सुनाया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰਤ ਸਦਾ ਮਨੁ ਬਿਗਸੈ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਮਨੁ ਲਾਈ ਹੇ ॥੧੩॥
हरि हरि करत सदा मनु बिगसै हरि चरणी मनु लाई हे ॥१३॥
परमात्मा का नाम जपने से मन सदा खिला रहता है, अतः परमात्मा के चरणों में ही मन लगाया है॥ १३॥
ਹਮ ਮੂਰਖ ਅਗਿਆਨ ਗਿਆਨੁ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ॥
हम मूरख अगिआन गिआनु किछु नाही ॥
हम मूर्ख एवं अज्ञानी हैं और हमें कुछ भी ज्ञान नहीं है।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਸਮਝ ਪੜੀ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
सतिगुर ते समझ पड़ी मन माही ॥
अब मन में सतगुरु से समझ पड़ गई है।
ਹੋਹੁ ਦਇਆਲੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਲਾਈ ਹੇ ॥੧੪॥
होहु दइआलु क्रिपा करि हरि जीउ सतिगुर की सेवा लाई हे ॥१४॥
हे प्रभु जी ! दयालु हो जाओ और कृपा करके सतगुरु की सेवा में लगाकर रखो॥ १४॥
ਜਿਨਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਾਤਾ ਤਿਨਿ ਏਕੁ ਪਛਾਤਾ ॥
जिनि सतिगुरु जाता तिनि एकु पछाता ॥
जिसने सतगुरु को जान लिया है, उसने एक परमेश्वर को भी पहचान लिया है।
ਸਰਬੇ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
सरबे रवि रहिआ सुखदाता ॥
जीवों को सुख देने वाला परमेश्वर सर्वव्यापक है।
ਆਤਮੁ ਚੀਨਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਈ ਹੇ ॥੧੫॥
आतमु चीनि परम पदु पाइआ सेवा सुरति समाई हे ॥१५॥
जिस जीव ने अपनी आत्म-ज्योति को पहचान कर परम पद पाया है, उसकी सुरति प्रभु-सेवा में ही लीन रहती है॥ १५॥
ਜਿਨ ਕਉ ਆਦਿ ਮਿਲੀ ਵਡਿਆਈ ॥
जिन कउ आदि मिली वडिआई ॥
जिन्हें प्रारम्भ से ही बड़ाई मिली है,”
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
सतिगुरु मनि वसिआ लिव लाई ॥
सतगुरु उनके मन में बसा रहता है और उनकी उसमें ही लगन लगी रहती है।
ਆਪਿ ਮਿਲਿਆ ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਨਾਨਕ ਅੰਕਿ ਸਮਾਈ ਹੇ ॥੧੬॥੧॥
आपि मिलिआ जगजीवनु दाता नानक अंकि समाई हे ॥१६॥१॥
हे नानक ! संसार को जीवन देने वाला निरंकार प्रभु स्वयं ही उन्हें मिला है और वे उसके चरणों में ही लीन रहते हैं॥ १६॥ १॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मारू महला ४ ॥
मारू महला ४॥
ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਸਦਾ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
हरि अगम अगोचरु सदा अबिनासी ॥
मन-वाणी से परे परमेश्वर सदा अनश्वर है,”
ਸਰਬੇ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਘਟ ਵਾਸੀ ॥
सरबे रवि रहिआ घट वासी ॥
सर्वव्याप्त सब में रमण कर रहा है।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਤਿਸਹਿ ਸਰੇਵਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਹੇ ॥੧॥
तिसु बिनु अवरु न कोई दाता हरि तिसहि सरेवहु प्राणी हे ॥१॥
उसके अतिरिक्त अन्य कोई देने वाला नहीं है, हे प्राणियो ! सो ऐसे प्रभु की उपासना करते रहो॥ १॥
ਜਾ ਕਉ ਰਾਖੈ ਹਰਿ ਰਾਖਣਹਾਰਾ ॥ ਤਾ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਸਾਕਸਿ ਮਾਰਾ ॥
जा कउ राखै हरि राखणहारा ॥ ता कउ कोइ न साकसि मारा ॥
ईश्वर समूचे संसार का रखवाला है,अतः जिसकी भी वह रक्षा करता है, उसे कोई भी मार नहीं सकता।
ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਸੰਤਹੁ ਜਾ ਕੀ ਊਤਮ ਬਾਣੀ ਹੇ ॥੨॥
सो ऐसा हरि सेवहु संतहु जा की ऊतम बाणी हे ॥२॥
हे भक्तजनो ! सो ऐसे ईश्वर की अर्चना करो, जिसकी वाणी सबसे उत्तम है।॥ २॥
ਜਾ ਜਾਪੈ ਕਿਛੁ ਕਿਥਾਊ ਨਾਹੀ ॥
जा जापै किछु किथाऊ नाही ॥
जहाँ मालूम होता है कि किसी स्थान पर कुछ भी नहीं है,”
ਤਾ ਕਰਤਾ ਭਰਪੂਰਿ ਸਮਾਹੀ ॥
ता करता भरपूरि समाही ॥
वहाँ ईश्वर सर्वव्यापी है।
ਸੂਕੇ ਤੇ ਫੁਨਿ ਹਰਿਆ ਕੀਤੋਨੁ ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਚੋਜ ਵਿਡਾਣੀ ਹੇ ॥੩॥
सूके ते फुनि हरिआ कीतोनु हरि धिआवहु चोज विडाणी हे ॥३॥
जिसने सूखे को भी पुनः हरा-भरा कर दिया है, जिसकी लीला बड़ी अद्भुत है, सो उस परमेश्वर का भजन करो॥ ३॥
ਜੋ ਜੀਆ ਕੀ ਵੇਦਨ ਜਾਣੈ ॥
जो जीआ की वेदन जाणै ॥
जो सब जीवों का दुख-दर्द जानता है।
ਤਿਸੁ ਸਾਹਿਬ ਕੈ ਹਉ ਕੁਰਬਾਣੈ ॥
तिसु साहिब कै हउ कुरबाणै ॥
मैं तो उस मालिक पर ही कुर्बान जाता हूँ,”
ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਜਨ ਕਰਿ ਬੇਨੰਤੀ ਜੋ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਕਾ ਦਾਣੀ ਹੇ ॥੪॥
तिसु आगै जन करि बेनंती जो सरब सुखा का दाणी हे ॥४॥
हे भक्तजनो ! उसके समक्ष ही विनती करो जो सर्व सुखों का दाता है।॥४॥
ਜੋ ਜੀਐ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ॥
जो जीऐ की सार न जाणै ॥
जो दिल की खबर नहीं जानता,”
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਕਿਛੁ ਨ ਕਹੀਐ ਅਜਾਣੈ ॥
तिसु सिउ किछु न कहीऐ अजाणै ॥
उस नासमझ इन्सान को कुछ भी नहीं कहना चाहिए।
ਮੂਰਖ ਸਿਉ ਨਹ ਲੂਝੁ ਪਰਾਣੀ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ਹੇ ॥੫॥
मूरख सिउ नह लूझु पराणी हरि जपीऐ पदु निरबाणी हे ॥५॥
हे प्राणी ! मूर्ख आदमी से कभी झगड़ा मत करो, अपितु भगवान का जाप करते रहना चाहिए, जिससे निर्वाण पद मिलता है।॥५॥
ਨਾ ਕਰਿ ਚਿੰਤ ਚਿੰਤਾ ਹੈ ਕਰਤੇ ॥
ना करि चिंत चिंता है करते ॥
हे मानव ! किसी बात की चिंता मत करो, कयोंकि परमात्मा को तो सबकी चिंता है।
ਹਰਿ ਦੇਵੈ ਜਲਿ ਥਲਿ ਜੰਤਾ ਸਭਤੈ ॥
हरि देवै जलि थलि जंता सभतै ॥
वह तो समुद्र-पृथ्वी में रहने वाले सब जीवों को आहार देता है।
ਅਚਿੰਤ ਦਾਨੁ ਦੇਇ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਵਿਚਿ ਪਾਥਰ ਕੀਟ ਪਖਾਣੀ ਹੇ ॥੬॥
अचिंत दानु देइ प्रभु मेरा विचि पाथर कीट पखाणी हे ॥६॥
मेरा प्रभु तो पत्थर की चट्टानों में रहने वाले कीटों को भी रिजक देता है॥ ६॥
ਨਾ ਕਰਿ ਆਸ ਮੀਤ ਸੁਤ ਭਾਈ ॥
ना करि आस मीत सुत भाई ॥
अपने मित्र, पुत्र एवं भाई की भी कोई आशा मत करो और
ਨਾ ਕਰਿ ਆਸ ਕਿਸੈ ਸਾਹ ਬਿਉਹਾਰ ਕੀ ਪਰਾਈ ॥
ना करि आस किसै साह बिउहार की पराई ॥
न ही किसी साहूकार एवं अपने वाणिज्य-व्यापार की कोई पराई आशा करो।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਵੈ ਕੋ ਬੇਲੀ ਨਾਹੀ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਸਾਰੰਗਪਾਣੀ ਹੇ ॥੭॥
बिनु हरि नावै को बेली नाही हरि जपीऐ सारंगपाणी हे ॥७॥
परमात्मा के नाम बिना कोई भी तेरा सच्चा साथी नहीं, सो उसका नाम जपते रहना चाहिए॥ ७॥
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਬਨਵਾਰੀ ॥
अनदिनु नामु जपहु बनवारी ॥
प्रतिदिन परमात्मा का नाम जपते रहो;
ਸਭ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਪੂਰੈ ਥਾਰੀ ॥
सभ आसा मनसा पूरै थारी ॥
वह तेरी सब आशाएँ एवं मनोरथ पूरे कर देगा।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਭਵ ਖੰਡਨੁ ਸੁਖਿ ਸਹਜੇ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ਹੇ ॥੮॥
जन नानक नामु जपहु भव खंडनु सुखि सहजे रैणि विहाणी हे ॥८॥
हे नानक ! जन्म-मरण का चक्र मिटाने वाले प्रभु का नाम जपते रहो; इससे तेरी जीवन रूपी रात्रि सुखमय एवं परमानंद में व्यतीत होगी।॥ ८॥
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥
जिसने भी ईश्वर की उपासना की है, उसने ही सुख पाया है और
ਸਹਜੇ ਹੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥
सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥
वह सहजावस्था में प्रभु-नाम में विलीन हो गया है।
ਜੋ ਸਰਣਿ ਪਰੈ ਤਿਸ ਕੀ ਪਤਿ ਰਾਖੈ ਜਾਇ ਪੂਛਹੁ ਵੇਦ ਪੁਰਾਣੀ ਹੇ ॥੯॥
जो सरणि परै तिस की पति राखै जाइ पूछहु वेद पुराणी हे ॥९॥
जो भी उसकी शरण में पड़े हैं, प्रभु ने उनकी लाज रखी है, इस सच्चाई के संदर्भ में वेद-पुराण भी हामी भरते हैं।॥ ९॥
ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ਸੋਈ ਜਨੁ ਲਾਗੈ ॥
जिसु हरि सेवा लाए सोई जनु लागै ॥
भगवान जिसे अपनी आराधना में लगाता है, वही खुशनसीब उसकी आराधना में तल्लीन होता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਭਰਮ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥
गुर कै सबदि भरम भउ भागै ॥
गुरु के उपदेश द्वारा भ्रम एवं भय दूर हो जाता है।
ਵਿਚੇ ਗ੍ਰਿਹ ਸਦਾ ਰਹੈ ਉਦਾਸੀ ਜਿਉ ਕਮਲੁ ਰਹੈ ਵਿਚਿ ਪਾਣੀ ਹੇ ॥੧੦॥
विचे ग्रिह सदा रहै उदासी जिउ कमलु रहै विचि पाणी हे ॥१०॥
जैसे पानी में कमल का फूल निर्लिप्त रहता है, वैसे ही ऐसा मनुष्य गृहस्थ में भी माया से सदा विरक्त रहता है ॥१०॥