ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਦੁਤੁਕੀਆ
बसंतु महला ५ घरु १ दुतुकीआ
बसंतु महला ५ घरु १ दुतुकीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸੁਣਿ ਸਾਖੀ ਮਨ ਜਪਿ ਪਿਆਰ ॥
सुणि साखी मन जपि पिआर ॥
हे मन ! प्रेम से शिक्षाओं को सुनकर जाप कर।
ਅਜਾਮਲੁ ਉਧਰਿਆ ਕਹਿ ਏਕ ਬਾਰ ॥
अजामलु उधरिआ कहि एक बार ॥
केवल एक बार नारायण का उच्चारण करने से अजामल का उद्धार हो गया।
ਬਾਲਮੀਕੈ ਹੋਆ ਸਾਧਸੰਗੁ ॥
बालमीकै होआ साधसंगु ॥
वाल्मीकि को साधुओं की संगत प्राप्त हुई तो वह पार हो गया।
ਧ੍ਰੂ ਕਉ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਨਿਸੰਗ ॥੧॥
ध्रू कउ मिलिआ हरि निसंग ॥१॥
भक्त धुव को दर्शन देकर ईश्वर प्राप्त हुआ ॥१॥
ਤੇਰਿਆ ਸੰਤਾ ਜਾਚਉ ਚਰਨ ਰੇਨ ॥
तेरिआ संता जाचउ चरन रेन ॥
हे प्रभु ! तेरे संतजनों की चरणरज चाहता हूँ,
ਲੇ ਮਸਤਕਿ ਲਾਵਉ ਕਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦੇਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ले मसतकि लावउ करि क्रिपा देन ॥१॥ रहाउ ॥
इसे लेकर माथे पर लगाऊँ, कृपा करके प्रदान करो ॥१॥रहाउ॥
ਗਨਿਕਾ ਉਧਰੀ ਹਰਿ ਕਹੈ ਤੋਤ ॥
गनिका उधरी हरि कहै तोत ॥
तोते को हरिनाम का पाठ करवाती हुई गणिका का उद्धार हो गया।
ਗਜਇੰਦ੍ਰ ਧਿਆਇਓ ਹਰਿ ਕੀਓ ਮੋਖ ॥
गजइंद्र धिआइओ हरि कीओ मोख ॥
हाथी ने ध्यान किया तो परमात्मा ने उसे मगरमच्छ से मुक्त करवाया।
ਬਿਪ੍ਰ ਸੁਦਾਮੇ ਦਾਲਦੁ ਭੰਜ ॥
बिप्र सुदामे दालदु भंज ॥
श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण सुदामा की गरीबी को दूर किया।
ਰੇ ਮਨ ਤੂ ਭੀ ਭਜੁ ਗੋਬਿੰਦ ॥੨॥
रे मन तू भी भजु गोबिंद ॥२॥
हे मन ! तू भी ईश्वर का भजन कर ले ॥२॥
ਬਧਿਕੁ ਉਧਾਰਿਓ ਖਮਿ ਪ੍ਰਹਾਰ ॥
बधिकु उधारिओ खमि प्रहार ॥
श्रीकृष्ण के पैर पर तीर से प्रहार करने वाले शिकारी का उद्धार किया।
ਕੁਬਿਜਾ ਉਧਰੀ ਅੰਗੁਸਟ ਧਾਰ ॥
कुबिजा उधरी अंगुसट धार ॥
अंगूठे के स्पर्श मात्र से ही कुब्जा का उद्धार हो गया।
ਬਿਦਰੁ ਉਧਾਰਿਓ ਦਾਸਤ ਭਾਇ ॥
बिदरु उधारिओ दासत भाइ ॥
सेवा भाव के कारण विदुर का पार उतारा कर दिया।
ਰੇ ਮਨ ਤੂ ਭੀ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ॥੩॥
रे मन तू भी हरि धिआइ ॥३॥
हे मन ! तू भी ईश्वर का ध्यान कर ले ॥३॥
ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਰਖੀ ਹਰਿ ਪੈਜ ਆਪ ॥
प्रहलाद रखी हरि पैज आप ॥
ईश्वर ने स्वयं अपने प्रेिय भक्त प्रहलाद की लाज रखी।
ਬਸਤ੍ਰ ਛੀਨਤ ਦ੍ਰੋਪਤੀ ਰਖੀ ਲਾਜ ॥
बसत्र छीनत द्रोपती रखी लाज ॥
जब कौरवों की सभा में द्रौपदी के वस्त्रों का हरण किया जा रहा था तो ईश्वर ने ही लाज बचाई।
ਜਿਨਿ ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਅੰਤ ਬਾਰ ॥
जिनि जिनि सेविआ अंत बार ॥
जिस-जिसने भी मुसीबत के समय ईश्वर का स्मरण किया, उसे मुक्ति प्राप्त हुई।
ਰੇ ਮਨ ਸੇਵਿ ਤੂ ਪਰਹਿ ਪਾਰ ॥੪॥
रे मन सेवि तू परहि पार ॥४॥
हे मन ! तू भी परमेश्वर का स्मरण कर ले, संसार-सागर से पार उतर जाओगे ॥४॥
ਧੰਨੈ ਸੇਵਿਆ ਬਾਲ ਬੁਧਿ ॥
धंनै सेविआ बाल बुधि ॥
भोलेभाले बालबुद्धि भक्त घन्ना ने ईश्वर की अर्चना की तो प्रभु को पा लिया।
ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਈ ਸਿਧਿ ॥
त्रिलोचन गुर मिलि भई सिधि ॥
त्रिलोचन ने गुरु को मिलकर सफलता प्राप्त की।
ਬੇਣੀ ਕਉ ਗੁਰਿ ਕੀਓ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥
बेणी कउ गुरि कीओ प्रगासु ॥
बेणी को गुरु ने सत्य का ज्ञान प्रदान किया।
ਰੇ ਮਨ ਤੂ ਭੀ ਹੋਹਿ ਦਾਸੁ ॥੫॥
रे मन तू भी होहि दासु ॥५॥
हे मन ! तू भी ईश्वर का दास बन जा॥५॥
ਜੈਦੇਵ ਤਿਆਗਿਓ ਅਹੰਮੇਵ ॥
जैदेव तिआगिओ अहमेव ॥
जयदेव ने अहम्-भावना को त्याग दिया और
ਨਾਈ ਉਧਰਿਓ ਸੈਨੁ ਸੇਵ ॥
नाई उधरिओ सैनु सेव ॥
सैन नाई भी ईश्वर की सेवा कर संसार-सागर से पार उतर गया।
ਮਨੁ ਡੀਗਿ ਨ ਡੋਲੈ ਕਹੂੰ ਜਾਇ ॥
मनु डीगि न डोलै कहूं जाइ ॥
भक्त सैन का मन न ही विचलित हुआ और न ही डगमगाया।
ਮਨ ਤੂ ਭੀ ਤਰਸਹਿ ਸਰਣਿ ਪਾਇ ॥੬॥
मन तू भी तरसहि सरणि पाइ ॥६॥
हे मन ! तू भी ईश्वर शरण की लालसा कर ॥६॥
ਜਿਹ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਠਾਕੁਰਿ ਕੀਓ ਆਪਿ ॥
जिह अनुग्रहु ठाकुरि कीओ आपि ॥
हे ठाकुर ! जिस पर तूने कृपा की है,
ਸੇ ਤੈਂ ਲੀਨੇ ਭਗਤ ਰਾਖਿ ॥
से तैं लीने भगत राखि ॥
उन भक्तों को तूने स्वयं बचा लिया है।
ਤਿਨ ਕਾ ਗੁਣੁ ਅਵਗਣੁ ਨ ਬੀਚਾਰਿਓ ਕੋਇ ॥
तिन का गुणु अवगणु न बीचारिओ कोइ ॥
उनके गुण-अवगुण की ओर तनिक ध्यान नहीं दिया।
ਇਹ ਬਿਧਿ ਦੇਖਿ ਮਨੁ ਲਗਾ ਸੇਵ ॥੭॥
इह बिधि देखि मनु लगा सेव ॥७॥
इस तरह देखकर यह मन भी ईश्वर की भक्ति में लग गया है॥७॥
ਕਬੀਰਿ ਧਿਆਇਓ ਏਕ ਰੰਗ ॥
कबीरि धिआइओ एक रंग ॥
भक्त कबीर ने प्रेमपूर्वक ईश्वर का ध्यान किया और
ਨਾਮਦੇਵ ਹਰਿ ਜੀਉ ਬਸਹਿ ਸੰਗਿ ॥
नामदेव हरि जीउ बसहि संगि ॥
नामदेव के साथ सदैव परमात्मा बसा रहा।
ਰਵਿਦਾਸ ਧਿਆਏ ਪ੍ਰਭ ਅਨੂਪ ॥
रविदास धिआए प्रभ अनूप ॥
रविदास ने भी प्रभु का भजन किया।
ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਗੋਵਿੰਦ ਰੂਪ ॥੮॥੧॥
गुर नानक देव गोविंद रूप ॥८॥१॥
नानक का कथन है कि (हरिनाम को रसिया, दुनिया का कल्याण करने वाले) गुरु नानक देव जी देवाधिदेव परमेश्वर का रूप हुए हैं।॥८॥१॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५ ॥
ਅਨਿਕ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮੇ ਜੋਨਿ ਮਾਹਿ ॥
अनिक जनम भ्रमे जोनि माहि ॥
हम जीव अनेक जन्म योनियों में घूमते हैं,
ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਬਿਨੁ ਨਰਕਿ ਪਾਹਿ ॥
हरि सिमरन बिनु नरकि पाहि ॥
भगवान का स्मरण किए बिना नरक भोगते हैं।
ਭਗਤਿ ਬਿਹੂਨਾ ਖੰਡ ਖੰਡ ॥
भगति बिहूना खंड खंड ॥
भगवान की भक्ति से विहीन जीव दुख-तकलीफों में पड़ा रहता है और
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਜਮੁ ਦੇਤ ਡੰਡ ॥੧॥
बिनु बूझे जमु देत डंड ॥१॥
ईश्वर को समझे बिना यम उसे दण्ड प्रदान करता है॥१॥
ਗੋਬਿੰਦ ਭਜਹੁ ਮੇਰੇ ਸਦਾ ਮੀਤ ॥
गोबिंद भजहु मेरे सदा मीत ॥
हे मेरे मित्र ! सदा ईश्वर का भजन करो और
ਸਾਚ ਸਬਦ ਕਰਿ ਸਦਾ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साच सबद करि सदा प्रीति ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चे शब्द से ही सदा प्रेम करो ॥१॥रहाउ॥।
ਸੰਤੋਖੁ ਨ ਆਵਤ ਕਹੂੰ ਕਾਜ ॥
संतोखु न आवत कहूं काज ॥
किसी भी काम से संतोष प्राप्त नहीं होता और
ਧੂੰਮ ਬਾਦਰ ਸਭਿ ਮਾਇਆ ਸਾਜ ॥
धूम बादर सभि माइआ साज ॥
यह माया का प्रपंच बादल के धुएं की तरह है।
ਪਾਪ ਕਰੰਤੌ ਨਹ ਸੰਗਾਇ ॥
पाप करंतौ नह संगाइ ॥
पाप करते हुए मनुष्य संकोच नहीं करता और
ਬਿਖੁ ਕਾ ਮਾਤਾ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੨॥
बिखु का माता आवै जाइ ॥२॥
बुराईयों के जहर में लीन रहकर आवागमन में पड़ा रहता है॥२॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਬਧੇ ਬਿਕਾਰ ॥
हउ हउ करत बधे बिकार ॥
मनुष्य जितना अभिमान करता है, उसके विकारों में उतनी ही बढ़ोतरी होती है,
ਮੋਹ ਲੋਭ ਡੂਬੌ ਸੰਸਾਰ ॥
मोह लोभ डूबौ संसार ॥
इस तरह पूरा संसार लोभ मोह में डूब रहा है।
ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਮਨੁ ਵਸਿ ਕੀਆ ॥
कामि क्रोधि मनु वसि कीआ ॥
काम, क्रोध ने मन को वशीभूत किया हुआ है,
ਸੁਪਨੈ ਨਾਮੁ ਨ ਹਰਿ ਲੀਆ ॥੩॥
सुपनै नामु न हरि लीआ ॥३॥
जिस कारण मनुष्य सपने में भी परमात्मा का नाम नहीं लेता ॥३॥
ਕਬ ਹੀ ਰਾਜਾ ਕਬ ਮੰਗਨਹਾਰੁ ॥
कब ही राजा कब मंगनहारु ॥
मनुष्य कभी अमीर बन जाता है तो कभी सड़क पर भीख मांगने वाला भिखारी बन जाता है,
ਦੂਖ ਸੂਖ ਬਾਧੌ ਸੰਸਾਰ ॥
दूख सूख बाधौ संसार ॥
इस तरह पूर्ण संसार दुख सुख में बंधा हुआ है।
ਮਨ ਉਧਰਣ ਕਾ ਸਾਜੁ ਨਾਹਿ ॥
मन उधरण का साजु नाहि ॥
वह मन के उद्धार का कोई कार्य नहीं करता और
ਪਾਪ ਬੰਧਨ ਨਿਤ ਪਉਤ ਜਾਹਿ ॥੪॥
पाप बंधन नित पउत जाहि ॥४॥
नित्य पापों के बन्धन में पड़ा रहता है।॥४॥
ਈਠ ਮੀਤ ਕੋਊ ਸਖਾ ਨਾਹਿ ॥
ईठ मीत कोऊ सखा नाहि ॥
अंतकाल घनिष्ठ मित्रों में से कोई साथ नहीं देता और
ਆਪਿ ਬੀਜਿ ਆਪੇ ਹੀ ਖਾਂਹਿ ॥
आपि बीजि आपे ही खांहि ॥
मनुष्य अपने किए शुभाशुभ कर्मों का ही फल पाता है।