ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोक महला २ ॥
श्लोक महला २ ॥
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਨਾਨਕਾ ਆਪੇ ਰਖੈ ਵੇਕ ॥
आपि उपाए नानका आपे रखै वेक ॥
हे नानक ! ईश्वर सबको उत्पन्न करता है, स्वयं ही अलग-अलग रखता है।
ਮੰਦਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਜਾਂ ਸਭਨਾ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ॥
मंदा किस नो आखीऐ जां सभना साहिबु एकु ॥
बुरा किसको कहा जाए, जब सबका मालिक एक ही है।
ਸਭਨਾ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਹੈ ਵੇਖੈ ਧੰਧੈ ਲਾਇ ॥
सभना साहिबु एकु है वेखै धंधै लाइ ॥
सबका मालिक एक प्रभु ही है, वह सबको अलग-अलग कार्यों में लगाकर देखता है।
ਕਿਸੈ ਥੋੜਾ ਕਿਸੈ ਅਗਲਾ ਖਾਲੀ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥
किसै थोड़ा किसै अगला खाली कोई नाहि ॥
किसी जीव को उसने थोड़ा दिया है, किसी को अधिक दिया हुआ है, परन्तु खाली कोई नहीं है।
ਆਵਹਿ ਨੰਗੇ ਜਾਹਿ ਨੰਗੇ ਵਿਚੇ ਕਰਹਿ ਵਿਥਾਰ ॥
आवहि नंगे जाहि नंगे विचे करहि विथार ॥
सब जीव नंगे आते हैं, नंगे ही चले जाते है अर्थात् खाली ही आते और जाते हैं परन्तु फिर भी संसार में आडम्बर ही करते हैं।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਣੀਐ ਅਗੈ ਕਾਈ ਕਾਰ ॥੧॥
नानक हुकमु न जाणीऐ अगै काई कार ॥१॥
हे नानक ! उसके हुक्म को जाना नहीं जा सकता क्योंकि इस बात की भी कोई खबर नहीं आगे किस कार्य में लगाने वाला है॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १ ॥
ਜਿਨਸਿ ਥਾਪਿ ਜੀਆਂ ਕਉ ਭੇਜੈ ਜਿਨਸਿ ਥਾਪਿ ਲੈ ਜਾਵੈ ॥
जिनसि थापि जीआं कउ भेजै जिनसि थापि लै जावै ॥
वह अनेक प्रकार के जीवों को संसार में भेजता है और अनेक प्रकार के जीवों को संसार से ले भी जाता है।
ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੈ ਆਪੇ ਏਤੇ ਵੇਸ ਕਰਾਵੈ ॥
आपे थापि उथापै आपे एते वेस करावै ॥
वह स्वयं ही उत्पन्न कर नष्ट भी कर देता है और अनेक प्रकार के वेश करवाता है।
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਫਿਰਹਿ ਅਉਧੂਤੀ ਆਪੇ ਭਿਖਿਆ ਪਾਵੈ ॥
जेते जीअ फिरहि अउधूती आपे भिखिआ पावै ॥
जितने भी जीव साधु-फकीर बनकर घूमते हैं, उन्हें स्वयं ही भिक्षा देता है।
ਲੇਖੈ ਬੋਲਣੁ ਲੇਖੈ ਚਲਣੁ ਕਾਇਤੁ ਕੀਚਹਿ ਦਾਵੇ ॥
लेखै बोलणु लेखै चलणु काइतु कीचहि दावे ॥
हमारा बोलना एवं चलना सब भाग्यानुसार निश्चित है, फिर झूठे दावे करने का कोई लाभ नहीं।
ਮੂਲੁ ਮਤਿ ਪਰਵਾਣਾ ਏਹੋ ਨਾਨਕੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਏ ॥
मूलु मति परवाणा एहो नानकु आखि सुणाए ॥
सच्ची बात यही स्वीकार्य है जो नानक कहकर सुना रहा है,
ਕਰਣੀ ਉਪਰਿ ਹੋਇ ਤਪਾਵਸੁ ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ॥੨॥
करणी उपरि होइ तपावसु जे को कहै कहाए ॥२॥
कोई कुछ भी कहता कहलाता रहे, कमों के आधार पर ही न्याय होता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਚਲਤੁ ਰਚਾਇਓਨੁ ਗੁਣ ਪਰਗਟੀ ਆਇਆ ॥
गुरमुखि चलतु रचाइओनु गुण परगटी आइआ ॥
गुरु ने लीला रची है, जिससे सभी गुण प्रगट हो गए हैं।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਸਦ ਉਚਰੈ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
गुरबाणी सद उचरै हरि मंनि वसाइआ ॥
वह सदा गुरु की वाणी का उच्चारण करता है और प्रभु को मन में बसा लिया है।
ਸਕਤਿ ਗਈ ਭ੍ਰਮੁ ਕਟਿਆ ਸਿਵ ਜੋਤਿ ਜਗਾਇਆ ॥
सकति गई भ्रमु कटिआ सिव जोति जगाइआ ॥
माया का प्रपंच दूर हो गया है, भ्रम कट गया है और ज्ञान ज्योति का दीपक प्रज्वलित हो गया है।
ਜਿਨ ਕੈ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਹੈ ਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥
जिन कै पोतै पुंनु है गुरु पुरखु मिलाइआ ॥
जिनके पास पुण्य हैं, गुरु ने उन्हें परमात्मा से मिला दिया है।
ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਮਿਲਿ ਰਹੇ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥੨॥
नानक सहजे मिलि रहे हरि नामि समाइआ ॥२॥
हे नानक ! वे सहज स्वाभाविक प्रभु नाम में विलीन रहते हैं।॥२॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोक महला २ ॥
श्लोक महला २ ॥
ਸਾਹ ਚਲੇ ਵਣਜਾਰਿਆ ਲਿਖਿਆ ਦੇਵੈ ਨਾਲਿ ॥
साह चले वणजारिआ लिखिआ देवै नालि ॥
परमात्मा रूपी शाह से जीव रूपी व्यापारी चल पड़ते हैं और वह उनका कर्मालेख साथ दे देता है।
ਲਿਖੇ ਉਪਰਿ ਹੁਕਮੁ ਹੋਇ ਲਈਐ ਵਸਤੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥
लिखे उपरि हुकमु होइ लईऐ वसतु सम्हालि ॥
उस लिखे पर हुक्म होता है और उस अनुसार वस्तु मिलती है।
ਵਸਤੁ ਲਈ ਵਣਜਾਰਈ ਵਖਰੁ ਬਧਾ ਪਾਇ ॥
वसतु लई वणजारई वखरु बधा पाइ ॥
इस तरह जीव रूपी व्यापारी वस्तुएँ खरीदते हैं और सामान लाद लेते हैं।
ਕੇਈ ਲਾਹਾ ਲੈ ਚਲੇ ਇਕਿ ਚਲੇ ਮੂਲੁ ਗਵਾਇ ॥
केई लाहा लै चले इकि चले मूलु गवाइ ॥
कोई लाभ कमाकर साथ ले चलता है परन्तु कोई मूलधन भी गंवा देता है।
ਥੋੜਾ ਕਿਨੈ ਨ ਮੰਗਿਓ ਕਿਸੁ ਕਹੀਐ ਸਾਬਾਸਿ ॥
थोड़ा किनै न मंगिओ किसु कहीऐ साबासि ॥
इन दोनों में से किसी ने थोड़ा नहीं माँगा, फिर किसको शाबाशी दी जाए।
ਨਦਰਿ ਤਿਨਾ ਕਉ ਨਾਨਕਾ ਜਿ ਸਾਬਤੁ ਲਾਏ ਰਾਸਿ ॥੧॥
नदरि तिना कउ नानका जि साबतु लाए रासि ॥१॥
नानक फुरमाते हैं कि कृपा-दृष्टि उन पर ही हुई जो अपने जीवन की राशि पूर्णतया बचाकर लाते हैं।॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १ ॥
ਜੁੜਿ ਜੁੜਿ ਵਿਛੁੜੇ ਵਿਛੁੜਿ ਜੁੜੇ ॥
जुड़ि जुड़ि विछुड़े विछुड़ि जुड़े ॥
जीव कितनी बार मिलते और बिछुड़ जाते हैं, बिछुड़कर दोबारा मिल जाते हैं।
ਜੀਵਿ ਜੀਵਿ ਮੁਏ ਮੁਏ ਜੀਵੇ ॥
जीवि जीवि मुए मुए जीवे ॥
जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं और मरने के बाद पुनः जन्म लेते हैं।इस तरह जन्म-मरण का चक्र चलता रहता है।
ਕੇਤਿਆ ਕੇ ਬਾਪ ਕੇਤਿਆ ਕੇ ਬੇਟੇ ਕੇਤੇ ਗੁਰ ਚੇਲੇ ਹੂਏ ॥
केतिआ के बाप केतिआ के बेटे केते गुर चेले हूए ॥
कभी किसी के बाप, किसी के बेटे, किसी के गुरु और किसी के शिष्य बनते हैं।
ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਗਣਤ ਨ ਆਵੈ ਕਿਆ ਜਾਤੀ ਕਿਆ ਹੁਣਿ ਹੂਏ ॥
आगै पाछै गणत न आवै किआ जाती किआ हुणि हूए ॥
आगे-पीछे का हिसाब नहीं लगाया जा सकता कि अतीत में क्या थे और अव वर्तमान में क्या हो गए हैं।
ਸਭੁ ਕਰਣਾ ਕਿਰਤੁ ਕਰਿ ਲਿਖੀਐ ਕਰਿ ਕਰਿ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਕਰੇ ॥
सभु करणा किरतु करि लिखीऐ करि करि करता करे करे ॥
सब कमों के अनुसार हो रहा है, जैसा भाग्य है, वैसा ही जीव कर रहा है, इस तरह विधाता करवाता जा रहा है।
ਮਨਮੁਖਿ ਮਰੀਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰੀਐ ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੨॥
मनमुखि मरीऐ गुरमुखि तरीऐ नानक नदरी नदरि करे ॥२॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि स्वेच्छाचारी मौत के चक्र में पड़ा रहता है, पर गुरु की शिक्षा पर चलने वाला मुक्त हो जाता है और ईश्वर समान कृपा-दृष्टि करता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਮਨਮੁਖਿ ਦੂਜਾ ਭਰਮੁ ਹੈ ਦੂਜੈ ਲੋਭਾਇਆ ॥
मनमुखि दूजा भरमु है दूजै लोभाइआ ॥
मन की इच्छानुसार चलने वाला दुविधा एवं भ्रम में लीन रहता है और द्वैतभाव व लोभ-लालच में पड़ा रहता है।
ਕੂੜੁ ਕਪਟੁ ਕਮਾਵਦੇ ਕੂੜੋ ਆਲਾਇਆ ॥
कूड़ु कपटु कमावदे कूड़ो आलाइआ ॥
वह झूठ एवं छल-कपट का आचरण अपना कर झूठ ही बोलता है।
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰੁ ਮੋਹੁ ਹੇਤੁ ਹੈ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਸਬਾਇਆ ॥
पुत्र कलत्रु मोहु हेतु है सभु दुखु सबाइआ ॥
इसका अपने पुत्र एवं पत्नी से मोह तथा प्रेम बना रहता है, जो सभी दुख पहुँचाते हैं।
ਜਮ ਦਰਿ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਹਿ ਭਰਮਹਿ ਭਰਮਾਇਆ ॥
जम दरि बधे मारीअहि भरमहि भरमाइआ ॥
वह यम के द्वार पर दण्ड भोगता है और इस तरह भ्रम में ही भटकता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਾਇਆ ॥੩॥
मनमुखि जनमु गवाइआ नानक हरि भाइआ ॥३॥
हे नानक ! स्वेच्छाचारी अपना जन्म गंवा देता है, संभवतः ईश्वर को यही मंजूर है॥३॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोक महला २ ॥
श्लोक महला २॥
ਜਿਨ ਵਡਿਆਈ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਕੀ ਤੇ ਰਤੇ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
जिन वडिआई तेरे नाम की ते रते मन माहि ॥
जिनके पास हरि-नाम की कीर्ति है, वे मन में नामोच्चारण में ही लीन रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਹਿ ॥
नानक अम्रितु एकु है दूजा अम्रितु नाहि ॥
हे नानक ! अमृत एक हरि-नाम ही है, दूसरा कोई अमृत नहीं।
ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ॥
नानक अम्रितु मनै माहि पाईऐ गुर परसादि ॥
नानक का कथन है कि गुरु की कृपा से अमृत मन में प्राप्त हो जाता है।
ਤਿਨੑੀ ਪੀਤਾ ਰੰਗ ਸਿਉ ਜਿਨੑ ਕਉ ਲਿਖਿਆ ਆਦਿ ॥੧॥
तिन्ही पीता रंग सिउ जिन्ह कउ लिखिआ आदि ॥१॥
जिनके भाग्य में पूर्व से ही लिखा है, उन्होंने प्रेमपूर्वक नामामृत का पान किया है॥१॥