ਸਵਈਏ ਮਹਲੇ ਦੂਜੇ ਕੇ ੨
सवईए महले दूजे के २
सवईए महले दूजे के २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह परब्रह्म केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਸੋਈ ਪੁਰਖੁ ਧੰਨੁ ਕਰਤਾ ਕਾਰਣ ਕਰਤਾਰੁ ਕਰਣ ਸਮਰਥੋ ॥
सोई पुरखु धंनु करता कारण करतारु करण समरथो ॥
सम्पूर्ण विश्व की रचना करने वाला वह कर्तापुरुष धन्य है, वह करण कारण है, सर्वशक्तिमान है।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਧੰਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮਸਤਕਿ ਤੁਮ ਧਰਿਓ ਜਿਨਿ ਹਥੋ ॥
सतिगुरू धंनु नानकु मसतकि तुम धरिओ जिनि हथो ॥
हे गुरु अंगद ! वह सतगुरु नानक भी धन्य है, जिसने तुम्हारे माथे पर वरदहस्त रखा।
ਤ ਧਰਿਓ ਮਸਤਕਿ ਹਥੁ ਸਹਜਿ ਅਮਿਉ ਵੁਠਉ ਛਜਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਗਣ ਮੁਨਿ ਬੋਹਿਯ ਅਗਾਜਿ ॥
त धरिओ मसतकि हथु सहजि अमिउ वुठउ छजि सुरि नर गण मुनि बोहिय अगाजि ॥
जब गुरु नानक ने माथे पर हाथ रखा तो स्वाभाविक ही अमृत-वर्षा होने लगी, जिससे देवता, मनुष्य, मुनिगण इत्यादि अमृत में भीग गए।
ਮਾਰਿਓ ਕੰਟਕੁ ਕਾਲੁ ਗਰਜਿ ਧਾਵਤੁ ਲੀਓ ਬਰਜਿ ਪੰਚ ਭੂਤ ਏਕ ਘਰਿ ਰਾਖਿ ਲੇ ਸਮਜਿ ॥
मारिओ कंटकु कालु गरजि धावतु लीओ बरजि पंच भूत एक घरि राखि ले समजि ॥
तूने भयंकर काल को मारकर भगा दिया और कामादिक पाँच विकारों को रोककर मन को वशीभूत कर लिया।
ਜਗੁ ਜੀਤਉ ਗੁਰ ਦੁਆਰਿ ਖੇਲਹਿ ਸਮਤ ਸਾਰਿ ਰਥੁ ਉਨਮਨਿ ਲਿਵ ਰਾਖਿ ਨਿਰੰਕਾਰਿ ॥
जगु जीतउ गुर दुआरि खेलहि समत सारि रथु उनमनि लिव राखि निरंकारि ॥
गुरु नानक के द्वार पर सर्वस्व सौंपकर तुमने पूरे जगत को जीत लिया है, समता की बाजी तुम खेल रहे हो और उन्मनावस्था में निरंकार में ध्यान लगा रखा है।
ਕਹੁ ਕੀਰਤਿ ਕਲ ਸਹਾਰ ਸਪਤ ਦੀਪ ਮਝਾਰ ਲਹਣਾ ਜਗਤ੍ਰ ਗੁਰੁ ਪਰਸਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੧॥
कहु कीरति कल सहार सपत दीप मझार लहणा जगत्र गुरु परसि मुरारि ॥१॥
कवि कलसहार का कथन है कि जगद्गुरु गुरु नानक देव जी के चरणों में लगकर भाई लहणा (गुरु अंगद) की कीर्ति सम्पूर्ण विश्व में फैल गई है।॥१॥
ਜਾ ਕੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰ ਕਾਲੁਖ ਖਨਿ ਉਤਾਰ ਤਿਮਰ ਅਗੵਾਨ ਜਾਹਿ ਦਰਸ ਦੁਆਰ ॥
जा की द्रिसटि अम्रित धार कालुख खनि उतार तिमर अग्यान जाहि दरस दुआर ॥
जिस गुरु अंगद की दृष्टि अमृत-धारा के समान है, पापों की कालिमा को दूर करने वाली है, उस गुरु के द्वार का दर्शन करने से अज्ञान का अन्धेरा मिट जाता है।
ਓਇ ਜੁ ਸੇਵਹਿ ਸਬਦੁ ਸਾਰੁ ਗਾਖੜੀ ਬਿਖਮ ਕਾਰ ਤੇ ਨਰ ਭਵ ਉਤਾਰਿ ਕੀਏ ਨਿਰਭਾਰ ॥
ओइ जु सेवहि सबदु सारु गाखड़ी बिखम कार ते नर भव उतारि कीए निरभार ॥
जो लोग शब्द का चिंतन करते हैं, कठिन साधना करते हैं, ऐसे व्यक्तियों को गुरु ने संसार-सागर से पार उतार कर बन्धनों से मुक्त कर दिया है।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਹਜ ਸਾਰਿ ਜਾਗੀਲੇ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਿ ਨਿੰਮਰੀ ਭੂਤ ਸਦੀਵ ਪਰਮ ਪਿਆਰਿ ॥
सतसंगति सहज सारि जागीले गुर बीचारि निमरी भूत सदीव परम पिआरि ॥
वे सत्संगत में स्वाभाविक ही गुरु के वचनों द्वारा जाग्रत हो जाते हैं और नम्रतापूर्वक सदैव प्रेम प्यार में लीन रहते हैं।
ਕਹੁ ਕੀਰਤਿ ਕਲ ਸਹਾਰ ਸਪਤ ਦੀਪ ਮਝਾਰ ਲਹਣਾ ਜਗਤ੍ਰ ਗੁਰੁ ਪਰਸਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੨॥
कहु कीरति कल सहार सपत दीप मझार लहणा जगत्र गुरु परसि मुरारि ॥२॥
कलसहार का कथन है कि जगद्गुरु गुरु नानक की चरण-शरण में भाई लहणा (गुरु अंगद देव जी) की कीर्ति सम्पूर्ण विश्व में फैल गई है॥२॥
ਤੈ ਤਉ ਦ੍ਰਿੜਿਓ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰੁ ਬਿਮਲ ਜਾਸੁ ਬਿਥਾਰੁ ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਸੁਜਨ ਜੀਆ ਕੋ ਅਧਾਰੁ ॥
तै तउ द्रिड़िओ नामु अपारु बिमल जासु बिथारु साधिक सिध सुजन जीआ को अधारु ॥
हे गुरु अंगद ! तूने तो अपने मन में हरिनाम को ही बसाया है, तुम्हारा निर्मल यश हर तरफ फैला हुआ है, सिद्ध-साधक एवं संतजनों के जीवन का तू ही आसरा है।
ਤੂ ਤਾ ਜਨਿਕ ਰਾਜਾ ਅਉਤਾਰੁ ਸਬਦੁ ਸੰਸਾਰਿ ਸਾਰੁ ਰਹਹਿ ਜਗਤ੍ਰ ਜਲ ਪਦਮ ਬੀਚਾਰ ॥
तू ता जनिक राजा अउतारु सबदु संसारि सारु रहहि जगत्र जल पदम बीचार ॥
तू ही राजा जनक का अवतार है। संसार में तेरा उपदेश सर्वश्रेष्ठ है, जल में कमल की तरह तू जगत में अलिप्त रहता है।
ਕਲਿਪ ਤਰੁ ਰੋਗ ਬਿਦਾਰੁ ਸੰਸਾਰ ਤਾਪ ਨਿਵਾਰੁ ਆਤਮਾ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਤੇਰੈ ਏਕ ਲਿਵ ਤਾਰ ॥
कलिप तरु रोग बिदारु संसार ताप निवारु आतमा त्रिबिधि तेरै एक लिव तार ॥
तू ही कल्पवृक्ष है, सर्व रोगों को दूर करने वाला और संसार के दुखों का निवारण करने वाला है। तीन गुणों वाले संसारी जीव एकाग्रचित होकर तेरा ध्यान करते हैं।
ਕਹੁ ਕੀਰਤਿ ਕਲ ਸਹਾਰ ਸਪਤ ਦੀਪ ਮਝਾਰ ਲਹਣਾ ਜਗਤ੍ਰ ਗੁਰੁ ਪਰਸਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੩॥
कहु कीरति कल सहार सपत दीप मझार लहणा जगत्र गुरु परसि मुरारि ॥३॥
कलसहार कहते हैं कि जगद्गुरु गुरु नानक देव जी की शरण में भाई लहणा (गुरु अंगद देव जी) की कीर्ति सम्पूर्ण सृष्टि में फैल गई है॥३ ॥
ਤੈ ਤਾ ਹਦਰਥਿ ਪਾਇਓ ਮਾਨੁ ਸੇਵਿਆ ਗੁਰੁ ਪਰਵਾਨੁ ਸਾਧਿ ਅਜਗਰੁ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਉਨਮਾਨੁ ॥
तै ता हदरथि पाइओ मानु सेविआ गुरु परवानु साधि अजगरु जिनि कीआ उनमानु ॥
हे गुरु अंगद ! तूने हजरत नानक से मान-प्रतिष्ठा प्राप्त की है, गुरु नानक की तन-मन से सेवा करके सफल हुए, अजगर सरीखे असाध्य मन को ऊँचा किया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਰਸ ਸਮਾਨ ਆਤਮਾ ਵੰਤਗਿਆਨ ਜਾਣੀਅ ਅਕਲ ਗਤਿ ਗੁਰ ਪਰਵਾਨ ॥
हरि हरि दरस समान आतमा वंतगिआन जाणीअ अकल गति गुर परवान ॥
तेरे दर्शन तो परमात्मा के दर्शन समान हैं, तुम पुण्यात्मा, ज्ञानवान, सर्वज्ञ हो, तुमने गुरु नानक की उच्चावस्था को जान लिया है,
ਜਾ ਕੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਅਚਲ ਠਾਣ ਬਿਮਲ ਬੁਧਿ ਸੁਥਾਨ ਪਹਿਰਿ ਸੀਲ ਸਨਾਹੁ ਸਕਤਿ ਬਿਦਾਰਿ ॥
जा की द्रिसटि अचल ठाण बिमल बुधि सुथान पहिरि सील सनाहु सकति बिदारि ॥
जिसकी दृष्टि अचल स्थान पर टिकी है, जिसकी बुद्धि निर्मल स्थान पर लगी हुई है, जिसने सहनशीलता का कवच धारण करके माया-शक्ति का नाश कर दिया है।
ਕਹੁ ਕੀਰਤਿ ਕਲ ਸਹਾਰ ਸਪਤ ਦੀਪ ਮਝਾਰ ਲਹਣਾ ਜਗਤ੍ਰ ਗੁਰੁ ਪਰਸਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੪॥
कहु कीरति कल सहार सपत दीप मझार लहणा जगत्र गुरु परसि मुरारि ॥४॥
कलसहार का कथन है कि जगद्गुरु गुरु नानक देव जी के चरणों में भाई लहणा (गुरु अंगद देव जी) की कीर्ति पूरे जगत में फैल गई है॥ ४॥
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਧਰਤ ਤਮ ਹਰਨ ਦਹਨ ਅਘ ਪਾਪ ਪ੍ਰਨਾਸਨ ॥
द्रिसटि धरत तम हरन दहन अघ पाप प्रनासन ॥
हे गुरु अंगद ! तुम्हारी कृपा-दृष्टि धारण करते ही अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है, तुम अपराधों को जला देने वाले एवं पापों का नाश करने वाले हो।
ਸਬਦ ਸੂਰ ਬਲਵੰਤ ਕਾਮ ਅਰੁ ਕ੍ਰੋਧ ਬਿਨਾਸਨ ॥
सबद सूर बलवंत काम अरु क्रोध बिनासन ॥
तुम शब्द के शूरवीर एवं बलवान हो, काम और क्रोध का नाश करने वाले हो।
ਲੋਭ ਮੋਹ ਵਸਿ ਕਰਣ ਸਰਣ ਜਾਚਿਕ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਣ ॥
लोभ मोह वसि करण सरण जाचिक प्रतिपालण ॥
तुमने लोभ एवं मोह को वश में कर लिया है, शरण में आने वाले याचक का पालन-पोषण करने वाले हो।
ਆਤਮ ਰਤ ਸੰਗ੍ਰਹਣ ਕਹਣ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਲ ਢਾਲਣ ॥
आतम रत संग्रहण कहण अम्रित कल ढालण ॥
तुमने आत्म-प्रेम का भण्डार इकठ्ठा किया हुआ है और तुम्हारा वचन अमृत शक्ति की धारा है।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਕਲ ਸਤਿਗੁਰ ਤਿਲਕੁ ਸਤਿ ਲਾਗੈ ਸੋ ਪੈ ਤਰੈ ॥
सतिगुरू कल सतिगुर तिलकु सति लागै सो पै तरै ॥
कलसहार का कथन है कि (गुरु नानक की गद्दी पर विराजमान) सतगुरु अंगद देव शिरोमणि गुरु हैं, जो निश्चय धारण करके गुरु-चरणों में लगता है, वह पार उतर जाता है।
ਗੁਰੁ ਜਗਤ ਫਿਰਣਸੀਹ ਅੰਗਰਉ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਲਹਣਾ ਕਰੈ ॥੫॥
गुरु जगत फिरणसीह अंगरउ राजु जोगु लहणा करै ॥५॥
जगद्गुरु, बाबा फेरुमल का सुपुत्र भाई लहणा गुरु अंगद बनकर राज योग भोग रहा है॥ ५ ॥