ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭ ਸਾਰੀ ਕੀਤੇ ਪਾਸਾ ਢਾਲਣਿ ਆਪਿ ਲਗਾ ॥੨੬॥
जीअ जंत सभ सारी कीते पासा ढालणि आपि लगा ॥२६॥
वह समस्त जीव-जन्तुओं को अपनी गोटियां बनाकर स्वयं ही गोटियां फॅक कर खेलने लग गया ॥ २६॥
ਭਭੈ ਭਾਲਹਿ ਸੇ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨੑ ਕਉ ਭਉ ਪਇਆ ॥
भभै भालहि से फलु पावहि गुर परसादी जिन्ह कउ भउ पइआ ॥
भ-गुरु की कृपा से जिनके मन में प्रभु का भय टिक जाता है, वह खोजते हुए फल के तौर पर उसे पा लेते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਫਿਰਹਿ ਨ ਚੇਤਹਿ ਮੂੜੇ ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਫੇਰੁ ਪਇਆ ॥੨੭॥
मनमुख फिरहि न चेतहि मूड़े लख चउरासीह फेरु पइआ ॥२७॥
स्वेच्छाचारी मूर्ख मनुष्य भटकते फिरते हैं और प्रभु को याद नहीं करते, परिणामस्वरूप वे चौरासी लाख योनियों के चक्र में पड़े रहते हैं॥ २७ ॥
ਮੰਮੈ ਮੋਹੁ ਮਰਣੁ ਮਧੁਸੂਦਨੁ ਮਰਣੁ ਭਇਆ ਤਬ ਚੇਤਵਿਆ ॥
ममै मोहु मरणु मधुसूदनु मरणु भइआ तब चेतविआ ॥
म-दुनिया के मोह के कारण जीव को मृत्यु एवं मधुसूदन याद नहीं आता लेकिन जब मृत्यु का समय आता है, तभी प्राणी में प्रभु स्मरण का विचार उत्पन्न होता है।
ਕਾਇਆ ਭੀਤਰਿ ਅਵਰੋ ਪੜਿਆ ਮੰਮਾ ਅਖਰੁ ਵੀਸਰਿਆ ॥੨੮॥
काइआ भीतरि अवरो पड़िआ ममा अखरु वीसरिआ ॥२८॥
जब तक काया में प्राण है, वह दूसरी बातें पढ़ता रहता है और ‘म’ अक्षर मृत्यु एवं मधुसूदन को विस्मृत कर देता है॥ २८ ॥
ਯਯੈ ਜਨਮੁ ਨ ਹੋਵੀ ਕਦ ਹੀ ਜੇ ਕਰਿ ਸਚੁ ਪਛਾਣੈ ॥
ययै जनमु न होवी कद ही जे करि सचु पछाणै ॥
य-यदि मनुष्य सत्य को पहचान ले तो वह दोबारा कदाचित जन्म नहीं लेता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਖੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥੨੯॥
गुरमुखि आखै गुरमुखि बूझै गुरमुखि एको जाणै ॥२९॥
गुरुमुख बनकर ही प्रभु के बारे में कहा जा सकता है, गुरुमुख बनकर ही मनुष्य उसके भेद को समझता है और गुरुमुख ही एक ईश्वर को जानता है ॥२९॥
ਰਾਰੈ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਜੇਤੇ ਕੀਏ ਜੰਤਾ ॥
रारै रवि रहिआ सभ अंतरि जेते कीए जंता ॥
र-परमात्मा ने जितने भी जीव पैदा किए, वह सब जीवों के अन्तर में बस रहा है।
ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਧੰਧੈ ਸਭ ਲਾਏ ਕਰਮੁ ਹੋਆ ਤਿਨ ਨਾਮੁ ਲਇਆ ॥੩੦॥
जंत उपाइ धंधै सभ लाए करमु होआ तिन नामु लइआ ॥३०॥
प्रभु ने जीवों को उत्पन्न करके उन्हें जगत के कामकाज में लगा दिया है। जिन पर ईश्वर की करुणा होती है, वे उसका नाम-स्मरण करते हैं॥ ३० ॥
ਲਲੈ ਲਾਇ ਧੰਧੈ ਜਿਨਿ ਛੋਡੀ ਮੀਠਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਕੀਆ ॥
ललै लाइ धंधै जिनि छोडी मीठा माइआ मोहु कीआ ॥
ल-प्रभु ने जीवों की उत्पत्ति करके उन्हें विभिन्न कार्यों में लगा दिया है, उसने उनके लिए माया का मोह मीठा बना दिया है।
ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਸਮ ਕਰਿ ਸਹਣਾ ਭਾਣੈ ਤਾ ਕੈ ਹੁਕਮੁ ਪਇਆ ॥੩੧॥
खाणा पीणा सम करि सहणा भाणै ता कै हुकमु पइआ ॥३१॥
वह जीवों को खाने-पीने के पदार्थ देता है। उसकी रज़ा में उसका हुक्म क्रियान्वित होता है। इसलिए सुख-दुःख को एक समान समझना चाहिए॥ ३१॥
ਵਵੈ ਵਾਸੁਦੇਉ ਪਰਮੇਸਰੁ ਵੇਖਣ ਕਉ ਜਿਨਿ ਵੇਸੁ ਕੀਆ ॥
ववै वासुदेउ परमेसरु वेखण कउ जिनि वेसु कीआ ॥
व-वासुदेव परमेश्वर ने देखने हेतु संसार रूपी वेष रचा है।
ਵੇਖੈ ਚਾਖੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥੩੨॥
वेखै चाखै सभु किछु जाणै अंतरि बाहरि रवि रहिआ ॥३२॥
वह देखता, चखता एवं सब कुछ जानता है। यह जीवों के भीतर एवं बाहर व्यापक हो रहा है। ३२ ॥
ੜਾੜੈ ਰਾੜਿ ਕਰਹਿ ਕਿਆ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਵਹੁ ਜਿ ਅਮਰੁ ਹੋਆ ॥
ड़ाड़ै राड़ि करहि किआ प्राणी तिसहि धिआवहु जि अमरु होआ ॥
ड़ – हे प्राणी ! तुम क्यों वाद – विवाद करते हो, इसका कोई लाभ नहीं इसलिए उस परमात्मा को याद करो जो अमर है।
ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਵਹੁ ਸਚਿ ਸਮਾਵਹੁ ਓਸੁ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ਕੀਆ ॥੩੩॥
तिसहि धिआवहु सचि समावहु ओसु विटहु कुरबाणु कीआ ॥३३॥
उसका ध्यान – मनन करो और सत्य में समां जाओ और उस पर कुर्बान होवो।
ਹਾਹੈ ਹੋਰੁ ਨ ਕੋਈ ਦਾਤਾ ਜੀਅ ਉਪਾਇ ਜਿਨਿ ਰਿਜਕੁ ਦੀਆ ॥
हाहै होरु न कोई दाता जीअ उपाइ जिनि रिजकु दीआ ॥
ह-प्रभु के अलावा दूसरा कोई दाता नहीं जो जीवों को उत्पन्न करके उन्हें रोज़ी प्रदान करके उनका भरण-पोषण करता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵਹੁ ਅਨਦਿਨੁ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੀਆ ॥੩੪॥
हरि नामु धिआवहु हरि नामि समावहु अनदिनु लाहा हरि नामु लीआ ॥३४॥
हरि-नाम का ध्यान करो, हरि के नाम में समा जाओ और रात-दिन हरि नाम का लाभ प्राप्त करो।। ३४ ।।
ਆਇੜੈ ਆਪਿ ਕਰੇ ਜਿਨਿ ਛੋਡੀ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੁ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ॥
आइड़ै आपि करे जिनि छोडी जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥
जिस परमात्मा ने आप ही दुनिया की रचना की है, वह जो कुछ करना चाहता है, वही कुछ कर रहा है।
ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਨਾਨਕ ਸਾਇਰ ਇਵ ਕਹਿਆ ॥੩੫॥੧॥
करे कराए सभ किछु जाणै नानक साइर इव कहिआ ॥३५॥१॥
नानक कवि ने यही कहा है कि प्रभु खुद ही सबकुछ करता और जीवों से करवाता है। वह सबकुछ जानता है॥ ३५॥ १॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਪਟੀ
रागु आसा महला ३ पटी
रागु आसा महला ३ पटी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਅਯੋ ਅੰਙੈ ਸਭੁ ਜਗੁ ਆਇਆ ਕਾਖੈ ਘੰਙੈ ਕਾਲੁ ਭਇਆ ॥
अयो अंङै सभु जगु आइआ काखै घंङै कालु भइआ ॥
अयो अंडै का अर्थ यह वर्णित किया गया है कि यह समूचा जगत परमात्मा के हुक्म से पैदा हुआ है, काखे घंडै का यह अर्थ बताया गया है कि यह जगत काल (मृत्यु) के वश में पड़ गया है।
ਰੀਰੀ ਲਲੀ ਪਾਪ ਕਮਾਣੇ ਪੜਿ ਅਵਗਣ ਗੁਣ ਵੀਸਰਿਆ ॥੧॥
रीरी लली पाप कमाणे पड़ि अवगण गुण वीसरिआ ॥१॥
री री लली का अर्थ यह वर्णित है कि नश्वर प्राणी पाप कर्म करता जा रहा है और अवगुणों में फंसकर गुणों को विस्मृत किए जा रहा है॥ १॥
ਮਨ ਐਸਾ ਲੇਖਾ ਤੂੰ ਕੀ ਪੜਿਆ ॥
मन ऐसा लेखा तूं की पड़िआ ॥
हे मेरे मन ! तूने भला ऐसा लेखा क्यों पढ़ा है,
ਲੇਖਾ ਦੇਣਾ ਤੇਰੈ ਸਿਰਿ ਰਹਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लेखा देणा तेरै सिरि रहिआ ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि तेरे सिर पर लेखा देना अभी भी शेष है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਿਧੰਙਾਇਐ ਸਿਮਰਹਿ ਨਾਹੀ ਨੰਨੈ ਨਾ ਤੁਧੁ ਨਾਮੁ ਲਇਆ ॥
सिधंङाइऐ सिमरहि नाही नंनै ना तुधु नामु लइआ ॥
सिघंडाइऐ – हे जीव ! तुम प्रभु को याद नहीं करते। न-न ही तुम उसका नाम लेते हो।
ਛਛੈ ਛੀਜਹਿ ਅਹਿਨਿਸਿ ਮੂੜੇ ਕਿਉ ਛੂਟਹਿ ਜਮਿ ਪਾਕੜਿਆ ॥੨॥
छछै छीजहि अहिनिसि मूड़े किउ छूटहि जमि पाकड़िआ ॥२॥
छ – हे मूर्ख जीव ! तुम रात दिन नाश होते जा रहे हो अर्थात अपना गवां रहे हो। जब यमदूत ने तुझे पकड़ लिया तो फिर कैसे मुक्त होवोगे। ॥२॥
ਬਬੈ ਬੂਝਹਿ ਨਾਹੀ ਮੂੜੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਤੇਰਾ ਜਨਮੁ ਗਇਆ ॥
बबै बूझहि नाही मूड़े भरमि भुले तेरा जनमु गइआ ॥
व-हे मूर्ख ! तुम सन्मार्ग नहीं समझते और भ्रम में कुमार्गगामी होकर तुम अपना जन्म व्यर्थ गंवा रहे हो।
ਅਣਹੋਦਾ ਨਾਉ ਧਰਾਇਓ ਪਾਧਾ ਅਵਰਾ ਕਾ ਭਾਰੁ ਤੁਧੁ ਲਇਆ ॥੩॥
अणहोदा नाउ धराइओ पाधा अवरा का भारु तुधु लइआ ॥३॥
तुमने निरर्थक ही अपना नाम पण्डित (पांधा) रखवाया है, जबकि दूसरों का भार अपने सिर पर लादा हुआ है।॥ ३॥
ਜਜੈ ਜੋਤਿ ਹਿਰਿ ਲਈ ਤੇਰੀ ਮੂੜੇ ਅੰਤਿ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਵਹਿਗਾ ॥
जजै जोति हिरि लई तेरी मूड़े अंति गइआ पछुतावहिगा ॥
ज-हे मूर्ख ! तेरी सुमति मोह-माया ने छीन ली है, अन्तिम समय जब संसार से गमन करोगे तो पश्चाताप करोगे।
ਏਕੁ ਸਬਦੁ ਤੂੰ ਚੀਨਹਿ ਨਾਹੀ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਆਵਹਿਗਾ ॥੪॥
एकु सबदु तूं चीनहि नाही फिरि फिरि जूनी आवहिगा ॥४॥
एक शब्द (अर्थात् परमात्मा के नाम) की तुम पहचान नहीं करते जिसके परिणामस्वरूप बार-बार योनियों में आते रहोगे ॥ ४ ॥
ਤੁਧੁ ਸਿਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਪੜੁ ਪੰਡਿਤ ਅਵਰਾ ਨੋ ਨ ਸਿਖਾਲਿ ਬਿਖਿਆ ॥
तुधु सिरि लिखिआ सो पड़ु पंडित अवरा नो न सिखालि बिखिआ ॥
हे पण्डित ! जो तेरे सिर पर तकदीर का लेख लिखा हुआ है, उसे पढ़ और दूसरों को विष रूपी माया का लेखा मत पढ़ा।