ਪਹਿਲਾ ਫਾਹਾ ਪਇਆ ਪਾਧੇ ਪਿਛੋ ਦੇ ਗਲਿ ਚਾਟੜਿਆ ॥੫॥
पहिला फाहा पइआ पाधे पिछो दे गलि चाटड़िआ ॥५॥
क्योंकि पहले तो पण्डित के अपने गले में माया का फन्दा पड़ता है और तदुपरांत अपने शिष्यों के गले में भी वही फाँसी पड़ जाती है॥ ५॥
ਸਸੈ ਸੰਜਮੁ ਗਇਓ ਮੂੜੇ ਏਕੁ ਦਾਨੁ ਤੁਧੁ ਕੁਥਾਇ ਲਇਆ ॥
ससै संजमु गइओ मूड़े एकु दानु तुधु कुथाइ लइआ ॥
स-हे मूर्ख ! तूने अपना संयम गंवा दिया है। एक तो तूने अयोग्य दान ले लिया है।
ਸਾਈ ਪੁਤ੍ਰੀ ਜਜਮਾਨ ਕੀ ਸਾ ਤੇਰੀ ਏਤੁ ਧਾਨਿ ਖਾਧੈ ਤੇਰਾ ਜਨਮੁ ਗਇਆ ॥੬॥
साई पुत्री जजमान की सा तेरी एतु धानि खाधै तेरा जनमु गइआ ॥६॥
यजमान की पुत्री तेरी अपनी ही पुत्री है और उसका विवाह कराकर दान लेकर पाप किया है। इस धन को लेकर तूने अपने जन्म का सत्यनाश कर लिया है॥ ६॥
ਮੰਮੈ ਮਤਿ ਹਿਰਿ ਲਈ ਤੇਰੀ ਮੂੜੇ ਹਉਮੈ ਵਡਾ ਰੋਗੁ ਪਇਆ ॥
ममै मति हिरि लई तेरी मूड़े हउमै वडा रोगु पइआ ॥
म-हे मूर्ख ! तेरी बुद्धि भष्ट हो गई है, अहंकार का बड़ा रोग तुझे लग गया है।
ਅੰਤਰ ਆਤਮੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਚੀਨੑਿਆ ਮਾਇਆ ਕਾ ਮੁਹਤਾਜੁ ਭਇਆ ॥੭॥
अंतर आतमै ब्रहमु न चीन्हिआ माइआ का मुहताजु भइआ ॥७॥
अपनी अन्तरात्मा में तुम ब्रह्म को नहीं पहचानते और माया के मोहताज बनकर रह गए हो ॥ ७ ॥
ਕਕੈ ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਭਰਮਿਓਹੁ ਮੂੜੇ ਮਮਤਾ ਲਾਗੇ ਤੁਧੁ ਹਰਿ ਵਿਸਰਿਆ ॥
ककै कामि क्रोधि भरमिओहु मूड़े ममता लागे तुधु हरि विसरिआ ॥
क-हे मूर्ख ! तुम कामवासना एवं क्रोध में भटकते फिरते हो और सांसारिक ममता के साथ लग कर तूने हरि को भुला दिया है।
ਪੜਹਿ ਗੁਣਹਿ ਤੂੰ ਬਹੁਤੁ ਪੁਕਾਰਹਿ ਵਿਣੁ ਬੂਝੇ ਤੂੰ ਡੂਬਿ ਮੁਆ ॥੮॥
पड़हि गुणहि तूं बहुतु पुकारहि विणु बूझे तूं डूबि मुआ ॥८॥
तुम धार्मिक ग्रंथ पढ़ते रहते हो, उनके गुणों के बारे में सोचते रहते हो और बहुत ऊँची-ऊँची बोलकर दूसरों को सुनाते रहते हो। परन्तु ज्ञान को समझे बिना तुम डूब कर मर चुके हो॥ ८॥
ਤਤੈ ਤਾਮਸਿ ਜਲਿਓਹੁ ਮੂੜੇ ਥਥੈ ਥਾਨ ਭਰਿਸਟੁ ਹੋਆ ॥
ततै तामसि जलिओहु मूड़े थथै थान भरिसटु होआ ॥
त-हे मूर्ख ! क्रोधाग्नि ने तुझे जला कर रख दिया है। थ-जिस स्थान पर तुम रहते हो, वह भी भृष्ट हो गया है।
ਘਘੈ ਘਰਿ ਘਰਿ ਫਿਰਹਿ ਤੂੰ ਮੂੜੇ ਦਦੈ ਦਾਨੁ ਨ ਤੁਧੁ ਲਇਆ ॥੯॥
घघै घरि घरि फिरहि तूं मूड़े ददै दानु न तुधु लइआ ॥९॥
घ-हे मूर्ख (पण्डित) ! तुम घर-घर पर माँगते फिरते हो। द-प्रभु नाम का दान तूने अभी तक किसी गुरु से नहीं लिया।॥९॥
ਪਪੈ ਪਾਰਿ ਨ ਪਵਹੀ ਮੂੜੇ ਪਰਪੰਚਿ ਤੂੰ ਪਲਚਿ ਰਹਿਆ ॥
पपै पारि न पवही मूड़े परपंचि तूं पलचि रहिआ ॥
प-हे मूर्ख ! तुम दुनिया के प्रपंचों में इतने लिपटे हुए हो कि तुम्हारा भवसागर से पार उतारा नहीं होना।
ਸਚੈ ਆਪਿ ਖੁਆਇਓਹੁ ਮੂੜੇ ਇਹੁ ਸਿਰਿ ਤੇਰੈ ਲੇਖੁ ਪਇਆ ॥੧੦॥
सचै आपि खुआइओहु मूड़े इहु सिरि तेरै लेखु पइआ ॥१०॥
सत्य (प्रभु) ने तुझे स्वयं मोह-माया में कुमार्गगामी किया है। हे मूर्ख ! तेरे सिर पर यही भाग्य लेख लिखा हुआ था ॥ १०॥
ਭਭੈ ਭਵਜਲਿ ਡੁਬੋਹੁ ਮੂੜੇ ਮਾਇਆ ਵਿਚਿ ਗਲਤਾਨੁ ਭਇਆ ॥
भभै भवजलि डुबोहु मूड़े माइआ विचि गलतानु भइआ ॥
भ-हे मूर्ख ! तू माया में इतना लीन हो चुका है कि भवसागर में डूबता जा रहा है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ਏਕ ਘੜੀ ਮਹਿ ਪਾਰਿ ਪਇਆ ॥੧੧॥
गुर परसादी एको जाणै एक घड़ी महि पारि पइआ ॥११॥
जो गुरु की कृपा से एक ईश्वर को समझता है, वह एक क्षण में ही भवसागर से पार हो जाता है॥ ११॥
ਵਵੈ ਵਾਰੀ ਆਈਆ ਮੂੜੇ ਵਾਸੁਦੇਉ ਤੁਧੁ ਵੀਸਰਿਆ ॥
ववै वारी आईआ मूड़े वासुदेउ तुधु वीसरिआ ॥
व-हे मूर्ख ! किस्मत से तेरी अब मानव जन्म में गोविन्द मिलन की बारी आई है। लेकिन तूने वासुदेव को भुला दिया।
ਏਹ ਵੇਲਾ ਨ ਲਹਸਹਿ ਮੂੜੇ ਫਿਰਿ ਤੂੰ ਜਮ ਕੈ ਵਸਿ ਪਇਆ ॥੧੨॥
एह वेला न लहसहि मूड़े फिरि तूं जम कै वसि पइआ ॥१२॥
हे मूर्ख ! यह शुभावसर तुझे दोबारा प्राप्त नहीं होना, तुम यमदूतों के वश में आ जाओगे॥ १२ ॥
ਝਝੈ ਕਦੇ ਨ ਝੂਰਹਿ ਮੂੜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਣਿ ਤੂੰ ਵਿਖਾ ॥
झझै कदे न झूरहि मूड़े सतिगुर का उपदेसु सुणि तूं विखा ॥
झ-हे मूर्ख ! तुझे कभी दु:ख क्लेश नहीं होगा यदि तू सच्चे गुरु का उपदेश सुनकर देख ले।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਗੁਰੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ਨਿਗੁਰੇ ਕਾ ਹੈ ਨਾਉ ਬੁਰਾ ॥੧੩॥
सतिगुर बाझहु गुरु नही कोई निगुरे का है नाउ बुरा ॥१३॥
सच्चे गुरु के बिना दूसरा कोई गुरु नहीं और निगुरे का नाम ही बुरा है॥ १३॥
ਧਧੈ ਧਾਵਤ ਵਰਜਿ ਰਖੁ ਮੂੜੇ ਅੰਤਰਿ ਤੇਰੈ ਨਿਧਾਨੁ ਪਇਆ ॥
धधै धावत वरजि रखु मूड़े अंतरि तेरै निधानु पइआ ॥
ध-हे मूर्ख ! विषय-विकारों में भटकते हुए मन को अंकुश लगा क्योंकि तेरे अन्तर्मन में ही प्रभु नाम का खजाना है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵਹਿ ਤਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵਹਿ ਜੁਗਾ ਜੁਗੰਤਰਿ ਖਾਹਿ ਪਇਆ ॥੧੪॥
गुरमुखि होवहि ता हरि रसु पीवहि जुगा जुगंतरि खाहि पइआ ॥१४॥
यदि मनुष्य गुरुमुख बन जाए तो वह हरि रस का पान करता है और युग-युगांतरों तक वह इसका पान करता रहता है॥ १४॥
ਗਗੈ ਗੋਬਿਦੁ ਚਿਤਿ ਕਰਿ ਮੂੜੇ ਗਲੀ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥
गगै गोबिदु चिति करि मूड़े गली किनै न पाइआ ॥
ग-हे मूर्ख ! गोबिन्द को याद कर, केवल निरर्थक बातें करने से ही किसी ने कभी उसे प्राप्त नहीं किया।
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਹਿਰਦੈ ਵਸਾਇ ਮੂੜੇ ਪਿਛਲੇ ਗੁਨਹ ਸਭ ਬਖਸਿ ਲਇਆ ॥੧੫॥
गुर के चरन हिरदै वसाइ मूड़े पिछले गुनह सभ बखसि लइआ ॥१५॥
हे मूर्ख ! गुरु के चरण अपने हृदय में बसा, वह तेरे पिछले गुनाह सब क्षमा कर देंगे॥ १५॥
ਹਾਹੈ ਹਰਿ ਕਥਾ ਬੂਝੁ ਤੂੰ ਮੂੜੇ ਤਾ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
हाहै हरि कथा बूझु तूं मूड़े ता सदा सुखु होई ॥
ह-हे मूर्ख ! हरि की कथा को समझ, तभी तुझे सदैव सुख प्राप्त होगा।
ਮਨਮੁਖਿ ਪੜਹਿ ਤੇਤਾ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੧੬॥
मनमुखि पड़हि तेता दुखु लागै विणु सतिगुर मुकति न होई ॥१६॥
मनमुख जितना भी पढ़ते हैं उतना ही अधिक दु:ख प्राप्त करते हैं, सच्चे गुरु के बिना उनकी जीवन-मृत्यु से मुक्ति नहीं होती।॥ १६ ॥
ਰਾਰੈ ਰਾਮੁ ਚਿਤਿ ਕਰਿ ਮੂੜੇ ਹਿਰਦੈ ਜਿਨੑ ਕੈ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥
रारै रामु चिति करि मूड़े हिरदै जिन्ह कै रवि रहिआ ॥
र-हे मूर्ख ! जिनके हृदय में राम बस रहा है, उनकी संगति करके तू राम को याद कर।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨੑੀ ਰਾਮੁ ਪਛਾਤਾ ਨਿਰਗੁਣ ਰਾਮੁ ਤਿਨੑੀ ਬੂਝਿ ਲਹਿਆ ॥੧੭॥
गुर परसादी जिन्ही रामु पछाता निरगुण रामु तिन्ही बूझि लहिआ ॥१७॥
गुरु की कृपा से जिन्होंने राम को पहचान लिया है, उन्होंने समझकर निर्गुण राम को पा लिया है॥ १७ ॥
ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਈ ਲਖਿਆ ਅਕਥੁ ਨ ਜਾਈ ਹਰਿ ਕਥਿਆ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ अकथु न जाई हरि कथिआ ॥
हे प्रभु ! तेरा अन्त नहीं पाया जा सकता। अकथनीय हरि का कथन नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਜਿਨੑ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਤਿਨੑ ਕਾ ਲੇਖਾ ਨਿਬੜਿਆ ॥੧੮॥੧॥੨॥
नानक जिन्ह कउ सतिगुरु मिलिआ तिन्ह का लेखा निबड़िआ ॥१८॥१॥२॥
हे नानक ! जिन्हें सच्चा गुरु मिल गया है उनका (कर्मो का) लेखा मिट गया है॥ १८॥ १॥ २॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਛੰਤ ਘਰੁ ੧
रागु आसा महला १ छंत घरु १
रागु आसा महला १ छंत घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੁੰਧ ਜੋਬਨਿ ਬਾਲੜੀਏ ਮੇਰਾ ਪਿਰੁ ਰਲੀਆਲਾ ਰਾਮ ॥
मुंध जोबनि बालड़ीए मेरा पिरु रलीआला राम ॥
हे मुग्धा यौवन बाला ! मेरा पिया राम बड़ा ही रंगीला आनंद विनोदी है।
ਧਨ ਪਿਰ ਨੇਹੁ ਘਣਾ ਰਸਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਦਇਆਲਾ ਰਾਮ ॥
धन पिर नेहु घणा रसि प्रीति दइआला राम ॥
यदि पति-पत्नी में बड़ा प्रेम हो जाए तो दयालु राम और भी प्रीति प्रदान करता है।