ਅੰਤਿ ਸੰਗ ਕਾਹੂ ਨਹੀ ਦੀਨਾ ਬਿਰਥਾ ਆਪੁ ਬੰਧਾਇਆ ॥੧॥
अंति संग काहू नही दीना बिरथा आपु बंधाइआ ॥१॥
जीवन के अन्तिम क्षणों में किसी ने भी तेरा साथ नहीं देना और तूने निरर्थक ही खुद को लौकिक पदार्थों में फंसा लिया है॥ १॥
ਨਾ ਹਰਿ ਭਜਿਓ ਨ ਗੁਰ ਜਨੁ ਸੇਵਿਓ ਨਹ ਉਪਜਿਓ ਕਛੁ ਗਿਆਨਾ ॥
ना हरि भजिओ न गुर जनु सेविओ नह उपजिओ कछु गिआना ॥
न तूने भगवान का भजन किया, न ही गुरुजन की सेवा की और न ही तेरे भीतर कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ है।
ਘਟ ਹੀ ਮਾਹਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਤੇਰੈ ਤੈ ਖੋਜਤ ਉਦਿਆਨਾ ॥੨॥
घट ही माहि निरंजनु तेरै तै खोजत उदिआना ॥२॥
मायातीत प्रभु तो तेरे हृदय में ही विद्यमान है लेकिन तू उसे वीराने में खोज रहा है॥ २॥
ਬਹੁਤੁ ਜਨਮ ਭਰਮਤ ਤੈ ਹਾਰਿਓ ਅਸਥਿਰ ਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
बहुतु जनम भरमत तै हारिओ असथिर मति नही पाई ॥
तू अनेक योनियों में भटकता हुआ थक गया है और तुझे फिर भी स्थिर बुद्धि प्राप्त नहीं हुई।
ਮਾਨਸ ਦੇਹ ਪਾਇ ਪਦ ਹਰਿ ਭਜੁ ਨਾਨਕ ਬਾਤ ਬਤਾਈ ॥੩॥੩॥
मानस देह पाइ पद हरि भजु नानक बात बताई ॥३॥३॥
नानक ने तो यही बात बताई है कि दुर्लभ मानव शरीर को पाकर भगवान के चरणों का ही भजन कर ॥३॥३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਮਨ ਰੇ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਨਿ ਬਿਚਾਰੋ ॥
मन रे प्रभ की सरनि बिचारो ॥
हे मन ! उस प्रभु की शरण में आने का विचार करो,
ਜਿਹ ਸਿਮਰਤ ਗਨਕਾ ਸੀ ਉਧਰੀ ਤਾ ਕੋ ਜਸੁ ਉਰ ਧਾਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिह सिमरत गनका सी उधरी ता को जसु उर धारो ॥१॥ रहाउ ॥
जिसका सिमरन करने से गणिका का भी उद्धार हो गया था, इसलिए उस प्रभु का यश अपने हृदय में धारण करो ॥ १॥ रहाउ॥
ਅਟਲ ਭਇਓ ਧ੍ਰੂਅ ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਅਰੁ ਨਿਰਭੈ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥
अटल भइओ ध्रूअ जा कै सिमरनि अरु निरभै पदु पाइआ ॥
जिस भगवान का सिमरन करने से भक्त धुव भी अटल हो गया था और उसे निर्भय पदवी प्राप्त हो गई थी।
ਦੁਖ ਹਰਤਾ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋ ਸੁਆਮੀ ਤੈ ਕਾਹੇ ਬਿਸਰਾਇਆ ॥੧॥
दुख हरता इह बिधि को सुआमी तै काहे बिसराइआ ॥१॥
मेरा स्वामी इस प्रकार के दुःख नाश करने वाला है, फिर तूने उसे क्यों विस्मृत कर दिया है॥ १॥
ਜਬ ਹੀ ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਗਜ ਗਰਾਹ ਤੇ ਛੂਟਾ ॥
जब ही सरनि गही किरपा निधि गज गराह ते छूटा ॥
जब ही हाथी कृपानिधि प्रभु की शरण में आया तो उसी समय वह मगरमच्छ से स्वतंत्र हो गया।
ਮਹਮਾ ਨਾਮ ਕਹਾ ਲਉ ਬਰਨਉ ਰਾਮ ਕਹਤ ਬੰਧਨ ਤਿਹ ਤੂਟਾ ॥੨॥
महमा नाम कहा लउ बरनउ राम कहत बंधन तिह तूटा ॥२॥
मैं नाम की महिमा का कहाँ तक वर्णन करूँ ? चूंकि राम कहते ही बन्धन टूट जाते हैं ॥ २॥
ਅਜਾਮਲੁ ਪਾਪੀ ਜਗੁ ਜਾਨੇ ਨਿਮਖ ਮਾਹਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
अजामलु पापी जगु जाने निमख माहि निसतारा ॥
इस जगत में वासना में रत अजामल पापी जाना जाता है, जिसका एक क्षण में ही उद्धार हो गया था।
ਨਾਨਕ ਕਹਤ ਚੇਤ ਚਿੰਤਾਮਨਿ ਤੈ ਭੀ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਾ ॥੩॥੪॥
नानक कहत चेत चिंतामनि तै भी उतरहि पारा ॥३॥४॥
नानक कहते हैं कि उस चिंतामणि प्रभु को याद करो, तू भी भवसागर से पार हो जाएगा ॥ ३ ॥ ४ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਉਨੁ ਉਪਾਉ ਕਰੈ ॥
प्रानी कउनु उपाउ करै ॥
प्राणी क्या उपाय करे,
ਜਾ ਤੇ ਭਗਤਿ ਰਾਮ ਕੀ ਪਾਵੈ ਜਮ ਕੋ ਤ੍ਰਾਸੁ ਹਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा ते भगति राम की पावै जम को त्रासु हरै ॥१॥ रहाउ ॥
जिससे उसे राम की भक्ति प्राप्त हो जाए और मृत्यु का डर निवृत्त हो जाए॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਉਨੁ ਕਰਮ ਬਿਦਿਆ ਕਹੁ ਕੈਸੀ ਧਰਮੁ ਕਉਨੁ ਫੁਨਿ ਕਰਈ ॥
कउनु करम बिदिआ कहु कैसी धरमु कउनु फुनि करई ॥
बताओ , वह कौन-सा कर्म, कैसी विद्या और फिर कौन-सा धर्म करे।
ਕਉਨੁ ਨਾਮੁ ਗੁਰ ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰੈ ਭਵ ਸਾਗਰ ਕਉ ਤਰਈ ॥੧॥
कउनु नामु गुर जा कै सिमरै भव सागर कउ तरई ॥१॥
वह कौन-सा गुरु का दिया नाम है, जिसका सिमरन करने से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाए? ॥ १॥
ਕਲ ਮੈ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਜਾਹਿ ਜਪੈ ਗਤਿ ਪਾਵੈ ॥
कल मै एकु नामु किरपा निधि जाहि जपै गति पावै ॥
इस कलियुग में एक ईश्वर का नाम ही कृपा का भण्डार है, जिसका जाप करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ਅਉਰ ਧਰਮ ਤਾ ਕੈ ਸਮ ਨਾਹਨਿ ਇਹ ਬਿਧਿ ਬੇਦੁ ਬਤਾਵੈ ॥੨॥
अउर धरम ता कै सम नाहनि इह बिधि बेदु बतावै ॥२॥
वेद भी यही विधि बताते हैं कि एक ईश्वर के नाम के तुल्य अन्य कोई भी धर्म नहीं ॥ २॥
ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਰਹਤ ਸਦਾ ਨਿਰਲੇਪੀ ਜਾ ਕਉ ਕਹਤ ਗੁਸਾਈ ॥
सुखु दुखु रहत सदा निरलेपी जा कउ कहत गुसाई ॥
जिसे सारी दुनिया (विश्व का मालिक) गुसाँई कहती है, वह सुख-दुख से रहित है और सर्वदा निर्लिप्त रहता है।
ਸੋ ਤੁਮ ਹੀ ਮਹਿ ਬਸੈ ਨਿਰੰਤਰਿ ਨਾਨਕ ਦਰਪਨਿ ਨਿਆਈ ॥੩॥੫॥
सो तुम ही महि बसै निरंतरि नानक दरपनि निआई ॥३॥५॥
नानक का कथन है कि वह भगवान तेरे भीतर निरन्तर दर्पण में अक्स की भांति निवास करता है॥ ३ ॥ ५॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਮਾਈ ਮੈ ਕਿਹਿ ਬਿਧਿ ਲਖਉ ਗੁਸਾਈ ॥
माई मै किहि बिधि लखउ गुसाई ॥
है मेरी माँ! मैं किस विधि से उस भगवान को पहचानूँ ?
ਮਹਾ ਮੋਹ ਅਗਿਆਨਿ ਤਿਮਰਿ ਮੋ ਮਨੁ ਰਹਿਓ ਉਰਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
महा मोह अगिआनि तिमरि मो मनु रहिओ उरझाई ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि मेरा मन तो महामोह एवं अज्ञानता के अन्धेरे में उलझा हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਜਨਮ ਭਰਮ ਹੀ ਭਰਮ ਖੋਇਓ ਨਹ ਅਸਥਿਰੁ ਮਤਿ ਪਾਈ ॥
सगल जनम भरम ही भरम खोइओ नह असथिरु मति पाई ॥
मैंने अपना समूचा जीवन भ्रम में भटक कर ही गंवा दिया है और मुझे सुमति प्राप्त नहीं हुई।
ਬਿਖਿਆਸਕਤ ਰਹਿਓ ਨਿਸ ਬਾਸੁਰ ਨਹ ਛੂਟੀ ਅਧਮਾਈ ॥੧॥
बिखिआसकत रहिओ निस बासुर नह छूटी अधमाई ॥१॥
मैं तो रात-दिन विषय-विकारों में ही आसक्त रहता हूँ और मेरी यह अधमता अभी तक नहीं छूटी ॥ १ ॥
ਸਾਧਸੰਗੁ ਕਬਹੂ ਨਹੀ ਕੀਨਾ ਨਹ ਕੀਰਤਿ ਪ੍ਰਭ ਗਾਈ ॥
साधसंगु कबहू नही कीना नह कीरति प्रभ गाई ॥
मैंने कभी भी सत्संगति नहीं की और न ही मैंने प्रभु का कीर्ति-गान किया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਮੈ ਨਾਹਿ ਕੋਊ ਗੁਨੁ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਸਰਨਾਈ ॥੨॥੬॥
जन नानक मै नाहि कोऊ गुनु राखि लेहु सरनाई ॥२॥६॥
नानक का कथन है कि हे ईश्वर ! मुझ में तो कोई अच्छाई नहीं है, फिर भी दया करके मुझे अपनी शरण में रख लो॥ २॥ ६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਮਾਈ ਮਨੁ ਮੇਰੋ ਬਸਿ ਨਾਹਿ ॥
माई मनु मेरो बसि नाहि ॥
हे मेरी माँ ! मेरा चंचल मन नियंत्रण में नहीं है।
ਨਿਸ ਬਾਸੁਰ ਬਿਖਿਅਨ ਕਉ ਧਾਵਤ ਕਿਹਿ ਬਿਧਿ ਰੋਕਉ ਤਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निस बासुर बिखिअन कउ धावत किहि बिधि रोकउ ताहि ॥१॥ रहाउ ॥
यह तो रात-दिन विषय-विकारों के पीछे ही भागता रहता है, अतः मैं इस पर किस विधि से विराम लगाऊँ॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਕੇ ਮਤ ਸੁਨਿ ਨਿਮਖ ਨ ਹੀਏ ਬਸਾਵੈ ॥
बेद पुरान सिम्रिति के मत सुनि निमख न हीए बसावै ॥
यह वेद, पुराणों एवं स्मृतियों के उपदेश को सुनकर एक क्षण भर के लिए भी अपने ह्रदय में नहीं बसाता।
ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਦਾਰਾ ਸਿਉ ਰਚਿਓ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਸਿਰਾਵੈ ॥੧॥
पर धन पर दारा सिउ रचिओ बिरथा जनमु सिरावै ॥१॥
यह तो-पराया धन एवं पराई नारी के आकर्षण में ही फॅसकर अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा रहा है॥ १॥
ਮਦਿ ਮਾਇਆ ਕੈ ਭਇਓ ਬਾਵਰੋ ਸੂਝਤ ਨਹ ਕਛੁ ਗਿਆਨਾ ॥
मदि माइआ कै भइओ बावरो सूझत नह कछु गिआना ॥
यह तो केवल माया के नशे में ही बावला हो गया है और उसे कुछ ज्ञान नहीं सूझता।
ਘਟ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਬਸਤ ਨਿਰੰਜਨੁ ਤਾ ਕੋ ਮਰਮੁ ਨ ਜਾਨਾ ॥੨॥
घट ही भीतरि बसत निरंजनु ता को मरमु न जाना ॥२॥
निरंजन परमात्मा तो उसके हृदय के भीतर ही निवास करता है लेकिन वह उसके रहस्य को नहीं जानता ॥२॥