HINDI PAGE 613

ਜਿਹ ਜਨ ਓਟ ਗਹੀ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਸੇ ਸੁਖੀਏ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣੇ ॥
जिह जन ओट गही प्रभ तेरी से सुखीए प्रभ सरणे ॥
हे प्रभु ! जिन भक्तों ने तेरी ओट ली है, वे तेरी शरण में सुख भोगते हैं।

ਜਿਹ ਨਰ ਬਿਸਰਿਆ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਤੇ ਦੁਖੀਆ ਮਹਿ ਗਨਣੇ ॥੨॥
जिह नर बिसरिआ पुरखु बिधाता ते दुखीआ महि गनणे ॥२॥
जिन लोगों को परमपुरुष विधाता भूल गया है, वे दु:खी मनुष्यों में गिने जाते हैं।॥ २॥

ਜਿਹ ਗੁਰ ਮਾਨਿ ਪ੍ਰਭੂ ਲਿਵ ਲਾਈ ਤਿਹ ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਰਸੁ ਕਰਿਆ ॥
जिह गुर मानि प्रभू लिव लाई तिह महा अनंद रसु करिआ ॥
जिन्होंने गुरु पर श्रद्धा धारण करके प्रभु में सुरति लगाई है, उन्हें महा आनंद के रस की अनुभूति हुई है।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਭੂ ਬਿਸਾਰਿ ਗੁਰ ਤੇ ਬੇਮੁਖਾਈ ਤੇ ਨਰਕ ਘੋਰ ਮਹਿ ਪਰਿਆ ॥੩॥
जिह प्रभू बिसारि गुर ते बेमुखाई ते नरक घोर महि परिआ ॥३॥
जो प्रभु को विस्मृत करके गुरु से विमुख हो जाता है, वह भयानक नरक में पड़ता है॥ ३॥

ਜਿਤੁ ਕੋ ਲਾਇਆ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਤੈਸੋ ਹੀ ਵਰਤਾਰਾ ॥
जितु को लाइआ तित ही लागा तैसो ही वरतारा ॥
जैसे भगवान किसी मनुष्य को लगाता है, वह वैसे ही लग जाता है, वैसा ही उसका आचरण बन जाता है।

ਨਾਨਕ ਸਹ ਪਕਰੀ ਸੰਤਨ ਕੀ ਰਿਦੈ ਭਏ ਮਗਨ ਚਰਨਾਰਾ ॥੪॥੪॥੧੫॥
नानक सह पकरी संतन की रिदै भए मगन चरनारा ॥४॥४॥१५॥
नानक ने तो संतों का आश्रय पकड़ा है और उसका ह्रदय प्रभु-चरणों में मग्न हो गया है॥ ४॥ ४॥ १५॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਰਾਜਨ ਮਹਿ ਰਾਜਾ ਉਰਝਾਇਓ ਮਾਨਨ ਮਹਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥
राजन महि राजा उरझाइओ मानन महि अभिमानी ॥
जैसे राजा राज्य के कार्यों में ही फंसा रहता है, जैसे अभिमानी पुरुष अभिमान में ही फंसा रहता है,

ਲੋਭਨ ਮਹਿ ਲੋਭੀ ਲੋਭਾਇਓ ਤਿਉ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਚੇ ਗਿਆਨੀ ॥੧॥
लोभन महि लोभी लोभाइओ तिउ हरि रंगि रचे गिआनी ॥१॥
जैसे लोभी पुरुष लोभ में ही मुग्ध रहता है, वैसे ही ज्ञानी पुरुष भगवान के रंग में लीन रहता है ॥१॥

ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਇਹੀ ਸੁਹਾਵੈ ॥
हरि जन कउ इही सुहावै ॥
भक्त को तो यही भला लगता है कि

ਪੇਖਿ ਨਿਕਟਿ ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਹੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
पेखि निकटि करि सेवा सतिगुर हरि कीरतनि ही त्रिपतावै ॥ रहाउ ॥
वह निकट ही दर्शन करके सतगुरु की सेवा करता रहे और भगवान का भजन करके ही तृप्त होता है ॥ रहाउ ॥

ਅਮਲਨ ਸਿਉ ਅਮਲੀ ਲਪਟਾਇਓ ਭੂਮਨ ਭੂਮਿ ਪਿਆਰੀ ॥
अमलन सिउ अमली लपटाइओ भूमन भूमि पिआरी ॥
नशे करने वाला पुरुष मादक पदार्थों में ही लीन रहता है और भूस्वामी का अपनी भूमि की वृद्धि से प्रेम है।

ਖੀਰ ਸੰਗਿ ਬਾਰਿਕੁ ਹੈ ਲੀਨਾ ਪ੍ਰਭ ਸੰਤ ਐਸੇ ਹਿਤਕਾਰੀ ॥੨॥
खीर संगि बारिकु है लीना प्रभ संत ऐसे हितकारी ॥२॥
जैसे छोटे बालक का दूध से लगाव है, वैसे ही संतजन प्रभु से अत्याधिक प्रेम करते हैं।॥२॥

ਬਿਦਿਆ ਮਹਿ ਬਿਦੁਅੰਸੀ ਰਚਿਆ ਨੈਨ ਦੇਖਿ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ॥
बिदिआ महि बिदुअंसी रचिआ नैन देखि सुखु पावहि ॥
विद्वान पुरुष विद्या के अध्ययन में ही मग्न रहता है और आँखें सौन्दर्य रूप देख-देखकर सुख की अनुभूति करती हैं।

ਜੈਸੇ ਰਸਨਾ ਸਾਦਿ ਲੁਭਾਨੀ ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ॥੩॥
जैसे रसना सादि लुभानी तिउ हरि जन हरि गुण गावहि ॥३॥
जैसे जीभ विभिन्न स्वादों में मस्त रहती है, वैसे ही भक्त भगवान का गुणगान करने में लीन रहता है ॥३॥

ਜੈਸੀ ਭੂਖ ਤੈਸੀ ਕਾ ਪੂਰਕੁ ਸਗਲ ਘਟਾ ਕਾ ਸੁਆਮੀ ॥
जैसी भूख तैसी का पूरकु सगल घटा का सुआमी ॥
वह समस्त हृदयों का स्वामी जैसी मनुष्य की भूख-अभिलाषा है, वैसी ही वह इच्छा पूरी करने वाला है।

ਨਾਨਕ ਪਿਆਸ ਲਗੀ ਦਰਸਨ ਕੀ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲਿਆ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੫॥੧੬॥
नानक पिआस लगी दरसन की प्रभु मिलिआ अंतरजामी ॥४॥५॥१६॥
नानक को तो प्रभु-दर्शनों की तीव्र अभिलाषा थी और अंतर्यामी प्रभु उसे मिल गया है॥ ४॥ ५॥ १६॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਹਮ ਮੈਲੇ ਤੁਮ ਊਜਲ ਕਰਤੇ ਹਮ ਨਿਰਗੁਨ ਤੂ ਦਾਤਾ ॥
हम मैले तुम ऊजल करते हम निरगुन तू दाता ॥
हे पतितपावन ! हम पापों की मैल से मलिन हैं और तुम ही हमें पवित्र करते हो। हम निर्गुण हैं और तू हमारा दाता है।

ਹਮ ਮੂਰਖ ਤੁਮ ਚਤੁਰ ਸਿਆਣੇ ਤੂ ਸਰਬ ਕਲਾ ਕਾ ਗਿਆਤਾ ॥੧॥
हम मूरख तुम चतुर सिआणे तू सरब कला का गिआता ॥१॥
हम मूर्ख हैं, पर तुम चतुर-सियाने हो। तुम ही सर्वकला के ज्ञाता हो ॥१॥

ਮਾਧੋ ਹਮ ਐਸੇ ਤੂ ਐਸਾ ॥
माधो हम ऐसे तू ऐसा ॥
हे ईश्वर ! हम जीव ऐसे नीच हैं और तुम ऐसे (सर्वकला सम्पूर्ण) हो।

ਹਮ ਪਾਪੀ ਤੁਮ ਪਾਪ ਖੰਡਨ ਨੀਕੋ ਠਾਕੁਰ ਦੇਸਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हम पापी तुम पाप खंडन नीको ठाकुर देसा ॥ रहाउ ॥
हम बड़े पापी हैं और तुम पापों का नाश करने वाले हो। हे ठाकुर जी ! तेरा निवास स्थान मनोरम है ॥ रहाउ ॥

ਤੁਮ ਸਭ ਸਾਜੇ ਸਾਜਿ ਨਿਵਾਜੇ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੇ ਪ੍ਰਾਨਾ ॥
तुम सभ साजे साजि निवाजे जीउ पिंडु दे प्राना ॥
हे परमेश्वर ! तुम ही आत्मा, शरीर एवं प्राण देकर सबकी रचना करके निवाजते हो।

ਨਿਰਗੁਨੀਆਰੇ ਗੁਨੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ਤੁਮ ਦਾਨੁ ਦੇਹੁ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥੨॥
निरगुनीआरे गुनु नही कोई तुम दानु देहु मिहरवाना ॥२॥
हे मेहरबान प्रभु ! हम गुणविहीन हैं और कोई भी गुण हमारे भीतर विद्यमान नहीं।अतः हमें गुणों का दान दीजिए ॥२॥

ਤੁਮ ਕਰਹੁ ਭਲਾ ਹਮ ਭਲੋ ਨ ਜਾਨਹ ਤੁਮ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਇਆਲਾ ॥
तुम करहु भला हम भलो न जानह तुम सदा सदा दइआला ॥
हे दीनदयालु ! हम जीवों का तुम भला ही करते हो परन्तु हम तुच्छ जीव तेरे भले को नहीं समझते। तुम हम पर सर्वदा ही दयावान हो।

ਤੁਮ ਸੁਖਦਾਈ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਤੁਮ ਰਾਖਹੁ ਅਪੁਨੇ ਬਾਲਾ ॥੩॥
तुम सुखदाई पुरख बिधाते तुम राखहु अपुने बाला ॥३॥
हे परमपुरुष विधाता ! तुम हमें सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले हो, इसलिए तुम अपनी संतान की रक्षा करना ॥३॥

ਤੁਮ ਨਿਧਾਨ ਅਟਲ ਸੁਲਿਤਾਨ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਜਾਚੈ ॥
तुम निधान अटल सुलितान जीअ जंत सभि जाचै ॥
हे ईश्वर ! तुम गुणों के कोष हो, अटल सुल्तान हो और समस्त जीव तेरे समक्ष तुझ से ही (भिक्षा) माँगते हैं।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਮ ਇਹੈ ਹਵਾਲਾ ਰਾਖੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਪਾਛੈ ॥੪॥੬॥੧੭॥
कहु नानक हम इहै हवाला राखु संतन कै पाछै ॥४॥६॥१७॥
नानक का कथन है कि हे परमेश्वर ! हम जीवों का यही हाल है। अतः तुम हम पर अपार कृपा करके हमें संतों के मार्ग पर चलाओ ॥४॥६॥१७॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ॥
सोरठि महला ५ घरु २ ॥
सोरठि महला ५ घरु २ ॥

ਮਾਤ ਗਰਭ ਮਹਿ ਆਪਨ ਸਿਮਰਨੁ ਦੇ ਤਹ ਤੁਮ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥
मात गरभ महि आपन सिमरनु दे तह तुम राखनहारे ॥
जैसे तूने माता के गर्भ में अपने सिमरन की देन देकर मेरी रक्षा की थी;

ਪਾਵਕ ਸਾਗਰ ਅਥਾਹ ਲਹਰਿ ਮਹਿ ਤਾਰਹੁ ਤਾਰਨਹਾਰੇ ॥੧॥
पावक सागर अथाह लहरि महि तारहु तारनहारे ॥१॥
वैसे ही हे मुक्तिदाता प्रभु! इस जगत रूपी अग्नि सागर की अथाह लहरों से मुझे पार कर दो ॥१॥

ਮਾਧੌ ਤੂ ਠਾਕੁਰੁ ਸਿਰਿ ਮੋਰਾ ॥
माधौ तू ठाकुरु सिरि मोरा ॥
हे भगवान ! तू ही मेरे सिर पर मेरा ठाकुर है और

ਈਹਾ ਊਹਾ ਤੁਹਾਰੋ ਧੋਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
ईहा ऊहा तुहारो धोरा ॥ रहाउ ॥
लोक-परलोक में तेरा ही मुझे आसरा है ॥ रहाउ ॥

ਕੀਤੇ ਕਉ ਮੇਰੈ ਸੰਮਾਨੈ ਕਰਣਹਾਰੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਜਾਨੈ ॥
कीते कउ मेरै समानै करणहारु त्रिणु जानै ॥
भगवान द्वारा रचित पदार्थों को तुच्छ मनुष्य पर्वत तुल्य वड़ा जानता है परन्तु उस रचयिता को तृण मात्र ही समझता है।

ਤੂ ਦਾਤਾ ਮਾਗਨ ਕਉ ਸਗਲੀ ਦਾਨੁ ਦੇਹਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਨੈ ॥੨॥
तू दाता मागन कउ सगली दानु देहि प्रभ भानै ॥२॥
हे परमात्मा ! तू दाता है और सभी तेरे द्वार पर भिखारी हैं।किन्तु तू अपनी इच्छानुसार ही दान देता है ॥२॥

ਖਿਨ ਮਹਿ ਅਵਰੁ ਖਿਨੈ ਮਹਿ ਅਵਰਾ ਅਚਰਜ ਚਲਤ ਤੁਮਾਰੇ ॥
खिन महि अवरु खिनै महि अवरा अचरज चलत तुमारे ॥
हे ईश्वर ! तुम्हारी लीलाएँ अद्भुत हैं क्योंकि एक क्षण में तुम कुछ होते हो और एक क्षण में ही कुछ अन्य भी।

ਰੂੜੋ ਗੂੜੋ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੋ ਊਚੌ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥੩॥
रूड़ो गूड़ो गहिर ग्मभीरो ऊचौ अगम अपारे ॥३॥
तुम सुन्दर, रहस्यपूर्ण, गहन-गंभीर, सर्वोच्च, अगम्य एवं अपार हो।॥ ३॥

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