ਰਾਗੁ ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੫
रागु मारू महला १ घरु ५
रागु मारू महला १ घरु ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਜਾਗੈ ਨੀਦ ਨ ਸੋਵੈ ॥
अहिनिसि जागै नीद न सोवै ॥
वह रात-दिन जागता रहता है, उसे नींद नहीं आती।
ਸੋ ਜਾਣੈ ਜਿਸੁ ਵੇਦਨ ਹੋਵੈ ॥
सो जाणै जिसु वेदन होवै ॥
जिसे प्रेम-वेदना होती है, वही जानता है
ਪ੍ਰੇਮ ਕੇ ਕਾਨ ਲਗੇ ਤਨ ਭੀਤਰਿ ਵੈਦੁ ਕਿ ਜਾਣੈ ਕਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥
प्रेम के कान लगे तन भीतरि वैदु कि जाणै कारी जीउ ॥१॥
जिसके तन में प्रेम के तीर लगे हों, उसका उपचार वैद्य क्या कर सकता है ?॥ १॥
ਜਿਸ ਨੋ ਸਾਚਾ ਸਿਫਤੀ ਲਾਏ ॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲੇ ਕਿਸੈ ਬੁਝਾਏ ॥
जिस नो साचा सिफती लाए ॥ गुरमुखि विरले किसै बुझाए ॥
परमात्मा जिसे स्तुतिगान में लगाता है, किसी विरले गुरुमुख को ही इस तथ्य की सूझ प्रदान करता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕੀ ਸਾਰ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਜਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਾ ਵਾਪਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रित की सार सोई जाणै जि अम्रित का वापारी जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
जो अमृत का व्यापारी होता है, वही अमृत का महत्व समझता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪਿਰ ਸੇਤੀ ਧਨ ਪ੍ਰੇਮੁ ਰਚਾਏ ॥ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਤਥਾ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥
पिर सेती धन प्रेमु रचाए ॥ गुर कै सबदि तथा चितु लाए ॥
जैसे पत्नी अपने पति से प्रेम करती है, वैसे ही अगर गुरु के शब्द द्वारा प्रभु में चित लगाया जाए तो
ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਧਨ ਖਰੀ ਸੁਹੇਲੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਤਿਖਾ ਨਿਵਾਰੀ ਜੀਉ ॥੨॥
सहज सेती धन खरी सुहेली त्रिसना तिखा निवारी जीउ ॥२॥
जीव रूपी नारी सहज ही हो जाती है और उसकी तृष्णा की प्यास बुझ जाती है॥ २॥
ਸਹਸਾ ਤੋੜੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
सहसा तोड़े भरमु चुकाए ॥
जीव रूपी नारी अपने संशय एवं भ्रम को मिटा देती है और
ਸਹਜੇ ਸਿਫਤੀ ਧਣਖੁ ਚੜਾਏ ॥
सहजे सिफती धणखु चड़ाए ॥
सहज ही परमात्मा की स्तुति का तीर हृदय-रूपी धनुष पर चढ़ाती है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਮਨੁ ਮਾਰੇ ਸੁੰਦਰਿ ਜੋਗਾਧਾਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥
गुर कै सबदि मरै मनु मारे सुंदरि जोगाधारी जीउ ॥३॥
वह गुरु के शब्द द्वारा मन को मारकर अहंकार को समाप्त कर देती है, इस प्रकार वह सुन्दर प्रभु को पा लेती है॥ ३॥
ਹਉਮੈ ਜਲਿਆ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੇ ॥
हउमै जलिआ मनहु विसारे ॥
अहंकार की अग्नि में जलकर जो व्यक्ति मन से परमात्मा को भुला देता है,
ਜਮ ਪੁਰਿ ਵਜਹਿ ਖੜਗ ਕਰਾਰੇ ॥
जम पुरि वजहि खड़ग करारे ॥
वह यमपुरी में खड्ग के भीष्ण दण्ड का पात्र बनता है।
ਅਬ ਕੈ ਕਹਿਐ ਨਾਮੁ ਨ ਮਿਲਈ ਤੂ ਸਹੁ ਜੀਅੜੇ ਭਾਰੀ ਜੀਉ ॥੪॥
अब कै कहिऐ नामु न मिलई तू सहु जीअड़े भारी जीउ ॥४॥
हे जीव ! अब हरि-नाम माँगने से भी नहीं मिलेगा, तुझे भारी दण्ड भोगना पड़ेगा।॥ ४॥
ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਪਵਹਿ ਖਿਆਲੀ ॥
माइआ ममता पवहि खिआली ॥
जो मोह-माया की ममता के ख्यालों में प्रवृत्त रहेगा,
ਜਮ ਪੁਰਿ ਫਾਸਹਿਗਾ ਜਮ ਜਾਲੀ ॥
जम पुरि फासहिगा जम जाली ॥
वह यमपुरी में यम जाल में फंस जाएगा।
ਹੇਤ ਕੇ ਬੰਧਨ ਤੋੜਿ ਨ ਸਾਕਹਿ ਤਾ ਜਮੁ ਕਰੇ ਖੁਆਰੀ ਜੀਉ ॥੫॥
हेत के बंधन तोड़ि न साकहि ता जमु करे खुआरी जीउ ॥५॥
जो मोह-माया के बन्धन तोड़ नहीं सकता, उसे यम ख्वार करता है॥ ५॥
ਨਾ ਹਉ ਕਰਤਾ ਨਾ ਮੈ ਕੀਆ ॥
ना हउ करता ना मै कीआ ॥
न में अब कुछ करता हूँ और न ही पहले कुछ किया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ॥
अम्रितु नामु सतिगुरि दीआ ॥
यह नामामृत सतगुरु ने कृपा करके मुझे प्रदान किया है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਹਿ ਤਿਸੈ ਕਿਆ ਚਾਰਾ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਜੀਉ ॥੬॥੧॥੧੨॥
जिसु तू देहि तिसै किआ चारा नानक सरणि तुमारी जीउ ॥६॥१॥१२॥
नानक विनती करते हैं कि हे ईश्वर ! जिसे तू देता है, उसे अन्य प्रयास करने की कोई आवश्यकता नहीं, इसलिए मैं तेरी ही शरण में आया हूँ॥ ६॥ १॥ १२॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧
मारू महला ३ घरु १
मारू महला ३ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਜਹ ਬੈਸਾਲਹਿ ਤਹ ਬੈਸਾ ਸੁਆਮੀ ਜਹ ਭੇਜਹਿ ਤਹ ਜਾਵਾ ॥
जह बैसालहि तह बैसा सुआमी जह भेजहि तह जावा ॥
हे स्वामी ! तू जहाँ मुझे बिठाता है, मैं वहीं बैठता हूँ और जहाँ भेजता है, वहीं जाता हूँ।
ਸਭ ਨਗਰੀ ਮਹਿ ਏਕੋ ਰਾਜਾ ਸਭੇ ਪਵਿਤੁ ਹਹਿ ਥਾਵਾ ॥੧॥
सभ नगरी महि एको राजा सभे पवितु हहि थावा ॥१॥
यह विश्व रूपी समूची नगरी का एक तू ही सम्राट है और सब स्थान पावन हैं।॥ १॥
ਬਾਬਾ ਦੇਹਿ ਵਸਾ ਸਚ ਗਾਵਾ ॥
बाबा देहि वसा सच गावा ॥
हे बाबा ! मुझे ऐसी सुसंगति में बसा दीजिए,
ਜਾ ਤੇ ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा ते सहजे सहजि समावा ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ सत्य का स्तुतिगान करता रहूँ, जिससे मैं सहज ही समा जाऊँ॥ १॥ रहाउ॥
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਕਿਛੁ ਆਪਸ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ਏਈ ਸਗਲ ਵਿਕਾਰਾ ॥
बुरा भला किछु आपस ते जानिआ एई सगल विकारा ॥
बुरा-भला जो कुछ कर्म होता है, उसका कर्ता मैं खुद को मानता हूँ, यह अहम् ही सारे पापों का कारण है।
ਇਹੁ ਫੁਰਮਾਇਆ ਖਸਮ ਕਾ ਹੋਆ ਵਰਤੈ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥੨॥
इहु फुरमाइआ खसम का होआ वरतै इहु संसारा ॥२॥
परमात्मा के हुक्म से ही सारे संसार में सबकुछ हो रहा है॥ २॥
ਇੰਦ੍ਰੀ ਧਾਤੁ ਸਬਲ ਕਹੀਅਤ ਹੈ ਇੰਦ੍ਰੀ ਕਿਸ ਤੇ ਹੋਈ ॥
इंद्री धातु सबल कहीअत है इंद्री किस ते होई ॥
इस काम-इन्द्रिय रूपी विकार को बहुत प्रबल कहा जाता है परन्तु यह इन्द्रिय किससे उत्पन्न हुई है?
ਆਪੇ ਖੇਲ ਕਰੈ ਸਭਿ ਕਰਤਾ ਐਸਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੩॥
आपे खेल करै सभि करता ऐसा बूझै कोई ॥३॥
परमेश्वर स्वयं ही सारी लीला करता है, परन्तु इस तथ्य को कोई विरला ही बूझता है॥ ३॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਦੁਬਿਧਾ ਤਦੇ ਬਿਨਾਸੀ ॥
गुर परसादी एक लिव लागी दुबिधा तदे बिनासी ॥
गुरु की कृपा से जब परमेश्वर में लगन लग गई तो दुविधा का नाश हो गया।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਣਾ ਸੋ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥੪॥
जो तिसु भाणा सो सति करि मानिआ काटी जम की फासी ॥४॥
जो परमात्मा को मंजूर हैं, उसे ही सत्य मान लिया है, जिससे यम की फांसी कट गई है॥ ४॥
ਭਣਤਿ ਨਾਨਕੁ ਲੇਖਾ ਮਾਗੈ ਕਵਨਾ ਜਾ ਚੂਕਾ ਮਨਿ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥
भणति नानकु लेखा मागै कवना जा चूका मनि अभिमाना ॥
नानक कहते हैं कि जब मन का अभिमान ही चूक गया तो कर्मो का लेखा-जोखा कौन मॉग सकता है।
ਤਾਸੁ ਤਾਸੁ ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਪਤੁ ਹੈ ਪਏ ਸਚੇ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥੫॥੧॥
तासु तासु धरम राइ जपतु है पए सचे की सरना ॥५॥१॥
जब सच्चे परमेश्वर की शरण में पड़ें तो यमराज भी डरता हुआ जाप करने लग गया।॥ ५॥ १॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३ ॥
मारू महला ३॥
ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਨਾ ਥੀਐ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹੋਇ ॥
आवण जाणा ना थीऐ निज घरि वासा होइ ॥
जिस जीव का अपने सच्चे घर में निवास हो जाता है, उसका आवागमन ही मिट जाता है।
ਸਚੁ ਖਜਾਨਾ ਬਖਸਿਆ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਸੋਇ ॥੧॥
सचु खजाना बखसिआ आपे जाणै सोइ ॥१॥
जिसे ईश्वर ने सत्य का कोष प्रदान किया है, वह स्वयं ही इस रहस्य को जानता है ॥१॥