HINDI PAGE 1009

ਹਰਿ ਪੜੀਐ ਹਰਿ ਬੁਝੀਐ ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਮਿ ਉਧਾਰਾ ॥
हरि पड़ीऐ हरि बुझीऐ गुरमती नामि उधारा ॥
ईश्वर का पाठ करो, उसे ही समझो, गुरु-मतानुसार हरि-नाम का जाप करने से ही उद्धार होता है,

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਹੈ ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥
गुरि पूरै पूरी मति है पूरै सबदि बीचारा ॥
पूर्ण गुरु का उपदेश पूर्ण है, जो पूर्ण शब्द का चिंतन करता है।

ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟਣਹਾਰਾ ॥੨॥
अठसठि तीरथ हरि नामु है किलविख काटणहारा ॥२॥
हरि-नाम ही अड़सठ तीर्थ का स्नान है, जो सब पापों को काटनेवाला है॥ २॥

ਜਲੁ ਬਿਲੋਵੈ ਜਲੁ ਮਥੈ ਤਤੁ ਲੋੜੈ ਅੰਧੁ ਅਗਿਆਨਾ ॥
जलु बिलोवै जलु मथै ततु लोड़ै अंधु अगिआना ॥
अंधा अज्ञानी जीव माखन की लालसा करता है, पर वह जल विलोता है और जल का ही मंथन करता रहता है।

ਗੁਰਮਤੀ ਦਧਿ ਮਥੀਐ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਈਐ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨਾ ॥
गुरमती दधि मथीऐ अम्रितु पाईऐ नामु निधाना ॥
यदि गुरु उपदेश रूपी दही का मंथन किया जाए तो सुखों की निधि नामामृत प्राप्त होता है।

ਮਨਮੁਖ ਤਤੁ ਨ ਜਾਣਨੀ ਪਸੂ ਮਾਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥੩॥
मनमुख ततु न जाणनी पसू माहि समाना ॥३॥
मनमुखी जीव पशु के समान है, जो नाम-तत्व से अनभिज्ञ है॥ ३॥

ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਮਰੀ ਮਰੁ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥
हउमै मेरा मरी मरु मरि जमै वारो वार ॥
अहम् में लीन रहने वाला जन्म-मरण के चक्र में फँसा रहता है।

ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਜੇ ਮਰੈ ਫਿਰਿ ਮਰੈ ਨ ਦੂਜੀ ਵਾਰ ॥
गुर कै सबदे जे मरै फिरि मरै न दूजी वार ॥
यदि गुरु के शब्द द्वार मरे तो उसकी मुक्ति हो जाती है।

ਗੁਰਮਤੀ ਜਗਜੀਵਨੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਭਿ ਕੁਲ ਉਧਾਰਣਹਾਰ ॥੪॥
गुरमती जगजीवनु मनि वसै सभि कुल उधारणहार ॥४॥
यदि गुरु-मतानुसार जग का जीवन परमेश्वर मन में वास कर जाए तो समूची वंशावलि का उद्धार हो जाता है। ४॥

ਸਚਾ ਵਖਰੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਸਚਾ ਵਾਪਾਰਾ ॥
सचा वखरु नामु है सचा वापारा ॥
प्रभु का नाम ही सच्चा सौदा है और इस सौदे का व्यापार ही सच्चा है,

ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਸੰਸਾਰਿ ਹੈ ਗੁਰਮਤੀ ਵੀਚਾਰਾ ॥
लाहा नामु संसारि है गुरमती वीचारा ॥
संसार में प्रभु का नाम-स्मरण ही सच्चा लाभ है परन्तु इस तथ्य का ज्ञान गुरु-मतानुसार ही होता है।

ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਨਿਤ ਤੋਟਾ ਸੈਸਾਰਾ ॥੫॥
दूजै भाइ कार कमावणी नित तोटा सैसारा ॥५॥
द्वैतभाव में कोई कार्य करने से संसार में निरंतर क्षति होती रहती है॥ ५॥

ਸਾਚੀ ਸੰਗਤਿ ਥਾਨੁ ਸਚੁ ਸਚੇ ਘਰ ਬਾਰਾ ॥ ਸਚਾ ਭੋਜਨੁ ਭਾਉ ਸਚੁ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥
साची संगति थानु सचु सचे घर बारा ॥ सचा भोजनु भाउ सचु सचु नामु अधारा ॥
जो व्यक्ति अच्छी संगत, पावन स्थान एवं सच्चे घर-बार में रहता है। वहाँ वह हरि-नाम रूपी सच्चा भोजन ही ग्रहण करता है, सत्य में ही आस्था रखता है और सत्य नाम ही उसका जीवनाधार होता है।

ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸੰਤੋਖਿਆ ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥੬॥
सची बाणी संतोखिआ सचा सबदु वीचारा ॥६॥
सच्ची वाणी द्वारा ही उसे संतोष प्राप्त होता है और वह सच्चे शब्द का चिंतन करता रहता है॥ ६॥

ਰਸ ਭੋਗਣ ਪਾਤਿਸਾਹੀਆ ਦੁਖ ਸੁਖ ਸੰਘਾਰਾ ॥
रस भोगण पातिसाहीआ दुख सुख संघारा ॥
राज-शासन के ऐश्वर्य-सुख भोगने पर भी दुख-सुख ने जीव को नष्ट कर दिया है।

ਮੋਟਾ ਨਾਉ ਧਰਾਈਐ ਗਲਿ ਅਉਗਣ ਭਾਰਾ ॥
मोटा नाउ धराईऐ गलि अउगण भारा ॥
बड़ा नाम रखवाने से मनुष्य के गले में अवगुणों का भारी पत्थर पड़ जाता है।

ਮਾਣਸ ਦਾਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਤੂ ਦਾਤਾ ਸਾਰਾ ॥੭॥
माणस दाति न होवई तू दाता सारा ॥७॥
हे ईश्वर ! मनुष्य भला क्या दे सकता है, केवल तू ही संसार को देने वाला है॥ ७॥

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਤੂ ਧਣੀ ਅਵਿਗਤੁ ਅਪਾਰਾ ॥
अगम अगोचरु तू धणी अविगतु अपारा ॥
हे मालिक ! तू अगम्य, अगोचर, अनश्वर एवं अपार है।

ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਦਰੁ ਜੋਈਐ ਮੁਕਤੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
गुर सबदी दरु जोईऐ मुकते भंडारा ॥
यदि शब्द-गुरु द्वारा तेरे द्वार की तलाश की जाए तो मुक्ति का भण्डार प्राप्त हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਮੇਲੁ ਨ ਚੂਕਈ ਸਾਚੇ ਵਾਪਾਰਾ ॥੮॥੧॥
नानक मेलु न चूकई साचे वापारा ॥८॥१॥
हे नानक ! सच्चा व्यापार करने से मिलाप कभी नहीं टूटता॥ ८॥ १॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਬਿਖੁ ਬੋਹਿਥਾ ਲਾਦਿਆ ਦੀਆ ਸਮੁੰਦ ਮੰਝਾਰਿ ॥
बिखु बोहिथा लादिआ दीआ समुंद मंझारि ॥
विकारों का जहाज लादकर संसार-समुद्र में उतार दिया है।

ਕੰਧੀ ਦਿਸਿ ਨ ਆਵਈ ਨਾ ਉਰਵਾਰੁ ਨ ਪਾਰੁ ॥
कंधी दिसि न आवई ना उरवारु न पारु ॥
इस संसार-समुद्र का कोई किनारा नजर नहीं आता और न ही कोई आर-पार है।

ਵੰਝੀ ਹਾਥਿ ਨ ਖੇਵਟੂ ਜਲੁ ਸਾਗਰੁ ਅਸਰਾਲੁ ॥੧॥
वंझी हाथि न खेवटू जलु सागरु असरालु ॥१॥
हाथ में न कोई चप्पू है और न ही कोई इसे चलाने वाला खेवट है और इस सागर का जल बड़ा भयानक है॥ १॥

ਬਾਬਾ ਜਗੁ ਫਾਥਾ ਮਹਾ ਜਾਲਿ ॥
बाबा जगु फाथा महा जालि ॥
हे बाबा, यह जगत् महाजाल में फँसा हुआ है।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਉਬਰੇ ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादी उबरे सचा नामु समालि ॥१॥ रहाउ ॥
यदि शाश्वत हरिनाम का स्मरण करे तो गुरु कृपा से यह उबर सकता है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਤਿਗੁਰੂ ਹੈ ਬੋਹਿਥਾ ਸਬਦਿ ਲੰਘਾਵਣਹਾਰੁ ॥
सतिगुरू है बोहिथा सबदि लंघावणहारु ॥
सतगुरु जहाज है, शब्द-गुरु पार करवाने वाला है।

ਤਿਥੈ ਪਵਣੁ ਨ ਪਾਵਕੋ ਨਾ ਜਲੁ ਨਾ ਆਕਾਰੁ ॥
तिथै पवणु न पावको ना जलु ना आकारु ॥
इस जहाज में पवन, अग्नि, जल नहीं है और न ही कोई आकार है।

ਤਿਥੈ ਸਚਾ ਸਚਿ ਨਾਇ ਭਵਜਲ ਤਾਰਣਹਾਰੁ ॥੨॥
तिथै सचा सचि नाइ भवजल तारणहारु ॥२॥
वहां शाश्वत हरि-नाम ही भवसागर से पार करवाने वाला है॥ २॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਲੰਘੇ ਸੇ ਪਾਰਿ ਪਏ ਸਚੇ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
गुरमुखि लंघे से पारि पए सचे सिउ लिव लाइ ॥
गुरुमुख सत्य से लगन लगाकर पार हो गए हैं।

ਆਵਾ ਗਉਣੁ ਨਿਵਾਰਿਆ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇ ॥
आवा गउणु निवारिआ जोती जोति मिलाइ ॥
उनका आवागमन मिट गया है और उनकी ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो गई है।

ਗੁਰਮਤੀ ਸਹਜੁ ਊਪਜੈ ਸਚੇ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੩॥
गुरमती सहजु ऊपजै सचे रहै समाइ ॥३॥
गुरु-मतानुसार सहजावरथा उत्पन्न होती है और वे सत्य में ही विलीन रहते हैं।॥ ३॥

ਸਪੁ ਪਿੜਾਈ ਪਾਈਐ ਬਿਖੁ ਅੰਤਰਿ ਮਨਿ ਰੋਸੁ ॥
सपु पिड़ाई पाईऐ बिखु अंतरि मनि रोसु ॥
अगर किसी साँप को पिटारी में डाल दिया जाए तो भी उसके भीतर जहर एवं मन में क्रोध भरा रहता है।

ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਈਐ ਕਿਸ ਨੋ ਦੀਜੈ ਦੋਸੁ ॥
पूरबि लिखिआ पाईऐ किस नो दीजै दोसु ॥
जीव अपने कर्मो का फल ही भोगता है, इसलिए किसी दूसरे को दोष मत दीजिए।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਰੜੁ ਜੇ ਸੁਣੇ ਮੰਨੇ ਨਾਉ ਸੰਤੋਸੁ ॥੪॥
गुरमुखि गारड़ु जे सुणे मंने नाउ संतोसु ॥४॥
अगर कोई जीव गुरु से गारूड़-मंत्र सुन ले, नाम का मनन करे तो उसे संतोष प्राप्त हो जाता है॥ ४॥

ਮਾਗਰਮਛੁ ਫਹਾਈਐ ਕੁੰਡੀ ਜਾਲੁ ਵਤਾਇ ॥
मागरमछु फहाईऐ कुंडी जालु वताइ ॥
जैसे पानी में जाल अथवा कुण्डी में माँस लगाकर मगरमच्छ को फँसा लिया जाता है,

ਦੁਰਮਤਿ ਫਾਥਾ ਫਾਹੀਐ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਪਛੋਤਾਇ ॥
दुरमति फाथा फाहीऐ फिरि फिरि पछोताइ ॥
वैसे ही दुर्मति के कारण यम की फाँसी में फँसा हुआ जीव पुनःपुनः पछताता है।

ਜੰਮਣ ਮਰਣੁ ਨ ਸੁਝਈ ਕਿਰਤੁ ਨ ਮੇਟਿਆ ਜਾਇ ॥੫॥
जमण मरणु न सुझई किरतु न मेटिआ जाइ ॥५॥
जीव को जन्म-मरण के चक्र की कोई सूझ नहीं होती और किए हुए कमों का फल कभी भी मिटाया नहीं जा सकता॥ ५॥

ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਪਾਇ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ਸਬਦੁ ਵਸੈ ਬਿਖੁ ਜਾਇ ॥
हउमै बिखु पाइ जगतु उपाइआ सबदु वसै बिखु जाइ ॥
ईश्वर ने अहम् रूपी जहर डालकर जगत् को पैदा किया है, परन्तु यदि मन में शब्द स्थित हो जाए तो यह जहर दूर हो जाता है।

ਜਰਾ ਜੋਹਿ ਨ ਸਕਈ ਸਚਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
जरा जोहि न सकई सचि रहै लिव लाइ ॥
जिसका परम-सत्य में ध्यान लगा रहता है, उसे बुढ़ापा प्रभावित नहीं करता।

ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਸੋ ਆਖੀਐ ਜਿਸੁ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥੬॥
जीवन मुकतु सो आखीऐ जिसु विचहु हउमै जाइ ॥६॥
जीवन मुक्त वही कहलवाता है, जिसके मन का अभिमान दूर हो जाता है।॥६॥

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