HINDI PAGE 1028

ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਏ ॥
सतिगुरु दाता मुकति कराए ॥
सतिगुरु ही दाता है, वही जीव की मुक्ति करवाता है।

ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਏ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਏ ॥
सभि रोग गवाए अम्रित रसु पाए ॥
वह मुँह में नामामृत डाल कर सभी रोग दूर कर देता है।

ਜਮੁ ਜਾਗਾਤਿ ਨਾਹੀ ਕਰੁ ਲਾਗੈ ਜਿਸੁ ਅਗਨਿ ਬੁਝੀ ਠਰੁ ਸੀਨਾ ਹੇ ॥੫॥
जमु जागाति नाही करु लागै जिसु अगनि बुझी ठरु सीना हे ॥५॥
जिसकी तृष्णाग्नि बुझ गई है, सीना शीतल हो गया है, यम रूपी अधिकारी उस पर कोई कर (टैक्स) नहीं लगाता॥ ५॥

ਕਾਇਆ ਹੰਸ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਹੁ ਧਾਰੀ ॥
काइआ हंस प्रीति बहु धारी ॥
आत्मा रूपी हंस काया से बहुत प्रेम लगा लेता है।

ਓਹੁ ਜੋਗੀ ਪੁਰਖੁ ਓਹ ਸੁੰਦਰਿ ਨਾਰੀ ॥
ओहु जोगी पुरखु ओह सुंदरि नारी ॥
आत्मा एक योगी पुरुष के समान है और यह काया एक सुन्दर नारी की तरह है।

ਅਹਿਨਿਸਿ ਭੋਗੈ ਚੋਜ ਬਿਨੋਦੀ ਉਠਿ ਚਲਤੈ ਮਤਾ ਨ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੬॥
अहिनिसि भोगै चोज बिनोदी उठि चलतै मता न कीना हे ॥६॥
आत्मा रूपी योग्री काया रूपी नारी को दिन-रात भोगता रहता है, उससे बड़ा आनंद-विनोद करता है किन्तु संसार से जाते वक्त उससे कोई सलाह-मशविरा नहीं करता॥ ६॥

ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਇ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭ ਛਾਜੈ ॥
स्रिसटि उपाइ रहे प्रभ छाजै ॥
सृष्टि को पैदा करके प्रभु इसमें व्याप्त हो रहा है और

ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਗਾਜੈ ॥
पउण पाणी बैसंतरु गाजै ॥
वह पवन, पानी एवं अग्नि के रूप में प्रगट हो रहा है।

ਮਨੂਆ ਡੋਲੈ ਦੂਤ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਸੋ ਪਾਏ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੭॥
मनूआ डोलै दूत संगति मिलि सो पाए जो किछु कीना हे ॥७॥
परन्तु कामादिक दूतों की संगत में मिलकर मनुष्य का मन डगमगाता रहता है और अपने किए कमों का ही फल प्राप्त करता है॥ ७॥

ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਦੋਖ ਦੁਖ ਸਹੀਐ ॥
नामु विसारि दोख दुख सहीऐ ॥
वह परमात्मा के नाम को भुलाकर किए दोष के दुख सहन करता रहता है।

ਹੁਕਮੁ ਭਇਆ ਚਲਣਾ ਕਿਉ ਰਹੀਐ ॥
हुकमु भइआ चलणा किउ रहीऐ ॥
जब ईश्वर का हुक्म हो गया तो फिर जीव यहाँ चलने से कैसे रह सकता है।

ਨਰਕ ਕੂਪ ਮਹਿ ਗੋਤੇ ਖਾਵੈ ਜਿਉ ਜਲ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਮੀਨਾ ਹੇ ॥੮॥
नरक कूप महि गोते खावै जिउ जल ते बाहरि मीना हे ॥८॥
जैसे जल से विहीन मछली तड़पती है, वैसे ही जीव यमपुरी में जाकर नरक-कुण्ड में गोते खाता है॥ ८॥

ਚਉਰਾਸੀਹ ਨਰਕ ਸਾਕਤੁ ਭੋਗਾਈਐ ॥
चउरासीह नरक साकतु भोगाईऐ ॥
शाक्त मनुष्य चौरासी लाख योनि-चक्र का नरक भोगता है।

ਜੈਸਾ ਕੀਚੈ ਤੈਸੋ ਪਾਈਐ ॥
जैसा कीचै तैसो पाईऐ ॥
वह जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ਕਿਰਤਿ ਬਾਧਾ ਗ੍ਰਸਿ ਦੀਨਾ ਹੇ ॥੯॥
सतिगुर बाझहु मुकति न होई किरति बाधा ग्रसि दीना हे ॥९॥
गुरु के बिना उसकी मुक्ति नहीं होती, कमों में बँधा होने के कारण यम उसे जकड़ लेता है॥ ९॥

ਖੰਡੇ ਧਾਰ ਗਲੀ ਅਤਿ ਭੀੜੀ ॥
खंडे धार गली अति भीड़ी ॥
यम के मार्ग में उसे ऐसी गली में से गुजरना पड़ता है जो तलवार की धार की तरह बहुत ही तंग एवं संकुचित है।

ਲੇਖਾ ਲੀਜੈ ਤਿਲ ਜਿਉ ਪੀੜੀ ॥
लेखा लीजै तिल जिउ पीड़ी ॥
जैसे तिलों को कोल्हू में पिराया जाता है, वैसे ही कर्मों का हिसाब लिया जाता है।

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਕਲਤ੍ਰ ਸੁਤ ਬੇਲੀ ਨਾਹੀ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਰਸ ਮੁਕਤਿ ਨ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੧੦॥
मात पिता कलत्र सुत बेली नाही बिनु हरि रस मुकति न कीना हे ॥१०॥
वहाँ माता-पिता, पत्नी-पुत्र, मित्र कोई भी साथ नहीं होता, हरि-नाम रूपी रस का पान किए बिना मुक्ति नहीं मिलती॥ १०॥

ਮੀਤ ਸਖੇ ਕੇਤੇ ਜਗ ਮਾਹੀ ॥
मीत सखे केते जग माही ॥
जग में चाहे कितने ही एवं साथी हों लेकिन

ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪਰਮੇਸਰ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
बिनु गुर परमेसर कोई नाही ॥
गुरु-परमेश्वर के बिना अंतकाल कोई भी मददगार नहीं होता।

ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਮੁਕਤਿ ਪਰਾਇਣਿ ਅਨਦਿਨੁ ਕੀਰਤਨੁ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੧੧॥
गुर की सेवा मुकति पराइणि अनदिनु कीरतनु कीना हे ॥११॥
गुरु की सेवा ही मुक्ति का साधन है और साथ ही जिसने रात-दिन परमात्मा का संकीर्तन किया है॥ ११॥

ਕੂੜੁ ਛੋਡਿ ਸਾਚੇ ਕਉ ਧਾਵਹੁ ॥
कूड़ु छोडि साचे कउ धावहु ॥
झूठ को छोड़कर सत्य को पाने का प्रयास करो और

ਜੋ ਇਛਹੁ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹੁ ॥
जो इछहु सोई फलु पावहु ॥
इस प्रकार मनवांछित फल पा लो।

ਸਾਚ ਵਖਰ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀ ਵਿਰਲੇ ਲੈ ਲਾਹਾ ਸਉਦਾ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੧੨॥
साच वखर के वापारी विरले लै लाहा सउदा कीना हे ॥१२॥
जग में सत्य-नाम रूपी सौदे के व्यापारी विरले ही हैं, जिन्होंने नाम रूपी मुनाफा प्राप्त करके यह सौदा किया है॥ १२॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਖਰੁ ਲੈ ਚਲਹੁ ॥
हरि हरि नामु वखरु लै चलहु ॥
हरि-नाम रूपी सौदा साथ लेकर जाओ और

ਦਰਸਨੁ ਪਾਵਹੁ ਸਹਜਿ ਮਹਲਹੁ ॥
दरसनु पावहु सहजि महलहु ॥
सहज ही सत्य के धाम पर पहुँचकर ईश्वर के दर्शन हासिल कर लो।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿ ਲਹਹਿ ਜਨ ਪੂਰੇ ਇਉ ਸਮਦਰਸੀ ਚੀਨਾ ਹੇ ॥੧੩॥
गुरमुखि खोजि लहहि जन पूरे इउ समदरसी चीना हे ॥१३॥
गुरमुख पूर्ण पुरुषों ने परम-सत्य को खोज लिया है और उस निरंकार को समदर्शी के रूप में पहचान लिया है॥ १३॥

ਪ੍ਰਭ ਬੇਅੰਤ ਗੁਰਮਤਿ ਕੋ ਪਾਵਹਿ ॥
प्रभ बेअंत गुरमति को पावहि ॥
कोई विरला ही गुरु मतानुसार बेअन्त प्रभु को प्राप्त करता है,

ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਨ ਕਉ ਸਮਝਾਵਹਿ ॥
गुर कै सबदि मन कउ समझावहि ॥
वह गुरु के शब्द द्वारा मन को समझाता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਸਤਿ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮਾਨਹੁ ਇਉ ਆਤਮ ਰਾਮੈ ਲੀਨਾ ਹੇ ॥੧੪॥
सतिगुर की बाणी सति सति करि मानहु इउ आतम रामै लीना हे ॥१४॥
सतगुरु की वाणी को सत्य मानो, इस प्रकार ईश्वर में लीन हुआ जा सकता है॥ १४॥

ਨਾਰਦ ਸਾਰਦ ਸੇਵਕ ਤੇਰੇ ॥
नारद सारद सेवक तेरे ॥
हे ईश्वर ! देवर्षि नारद एवं विद्या की देवी सरस्वती तेरे ही उपासक हैं,

ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਸੇਵਕ ਵਡਹੁ ਵਡੇਰੇ ॥
त्रिभवणि सेवक वडहु वडेरे ॥
आकाश, पाताल एवं पृथ्वी इन तीनों लोकों में बड़े-बड़े संत महात्मा, देवी-देवता इत्यादि तेरी उपासना में लीन हैं।

ਸਭ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਤੂ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਦਾਤਾ ਸਭੁ ਤੇਰੋ ਕਾਰਣੁ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੧੫॥
सभ तेरी कुदरति तू सिरि सिरि दाता सभु तेरो कारणु कीना हे ॥१५॥
यह सारी कुदरत तेरी ही रचना है, तू सबका दाता है और सब तेरी मर्जी से हो रहा है॥ १५॥

ਇਕਿ ਦਰਿ ਸੇਵਹਿ ਦਰਦੁ ਵਞਾਏ ॥
इकि दरि सेवहि दरदु वञाए ॥
कई जीव तेरे दर पर तेरी स्तुति करते हुए अपना दुख-दर्द दूर कर रहे हैं।

ਓਇ ਦਰਗਹ ਪੈਧੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਛਡਾਏ ॥
ओइ दरगह पैधे सतिगुरू छडाए ॥
सतगुरु उन्हें बन्धनों से मुक्त करवाता है और वे सत्य के दरबार में सत्कृत होते हैं।

ਹਉਮੈ ਬੰਧਨ ਸਤਿਗੁਰਿ ਤੋੜੇ ਚਿਤੁ ਚੰਚਲੁ ਚਲਣਿ ਨ ਦੀਨਾ ਹੇ ॥੧੬॥
हउमै बंधन सतिगुरि तोड़े चितु चंचलु चलणि न दीना हे ॥१६॥
सतगुरु उनके अहम् के बन्धनों को तोड़ देता है और उनका चंचल मन इधर-उधर नहीं भटकता॥ १६॥

ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਹੁ ਚੀਨਹੁ ਬਿਧਿ ਸਾਈ ॥
सतिगुर मिलहु चीनहु बिधि साई ॥
सतगुरु से मिलो और उससे ऐसी विधि पहचान लो,

ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਵਹੁ ਗਣਤ ਨ ਕਾਈ ॥
जितु प्रभु पावहु गणत न काई ॥
जिससे प्रभु प्राप्त हो जाए और कमों का हिसाब-किताब मिट जाए।

ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਕਰਹੁ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਭੀਨਾ ਹੇ ॥੧੭॥੨॥੮॥
हउमै मारि करहु गुर सेवा जन नानक हरि रंगि भीना हे ॥१७॥२॥८॥
अपने अहम् को मिटाकर गुरु की सेवा करो; नानक तो परमात्मा के प्रेम-रंग में भीग गया है॥ १७॥ २॥ ८॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਅਸੁਰ ਸਘਾਰਣ ਰਾਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥
असुर सघारण रामु हमारा ॥
ईश्वर पाप रूपी असुरों का संहार करने वाला है;

ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਰਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥
घटि घटि रमईआ रामु पिआरा ॥
वह प्यारा प्रभु सब जीवों में समाया हुआ है।

ਨਾਲੇ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖੀਐ ਮੂਲੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਿਖੁ ਵੀਚਾਰਾ ਹੇ ॥੧॥
नाले अलखु न लखीऐ मूले गुरमुखि लिखु वीचारा हे ॥१॥
वह अदृष्ट रूप में साथ ही है, मगर उसके दर्शन एवं सूझ बिल्कुल नहीं होती और गुरु के सान्निध्य में चिंतन से ही प्राप्ति होती है॥ १॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਧੂ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ॥
गुरमुखि साधू सरणि तुमारी ॥
जो साधु गुरुमुख तेरी शरण में आया है,

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