ਦੋਜਕਿ ਪਾਏ ਸਿਰਜਣਹਾਰੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੈ ਬਾਣੀਆ ॥੨॥
दोजकि पाए सिरजणहारै लेखा मंगै बाणीआ ॥२॥
सृजनहार उन्हें नरक में धकेल देता है और यमराज रूपी बानिया उनसे कर्मो का हिसाब-किताब माँगता है॥ २॥
ਸੰਗਿ ਨ ਕੋਈ ਭਈਆ ਬੇਬਾ ॥
संगि न कोई भईआ बेबा ॥
अन्त में बहिन भाई कोई भी साथी नहीं बनता।
ਮਾਲੁ ਜੋਬਨੁ ਧਨੁ ਛੋਡਿ ਵਞੇਸਾ ॥
मालु जोबनु धनु छोडि वञेसा ॥
वह अपना माल, यौवन एवं धन इत्यादि सबकुछ छोड़कर चल देता है।
ਕਰਣ ਕਰੀਮ ਨ ਜਾਤੋ ਕਰਤਾ ਤਿਲ ਪੀੜੇ ਜਿਉ ਘਾਣੀਆ ॥੩॥
करण करीम न जातो करता तिल पीड़े जिउ घाणीआ ॥३॥
जो कृपालु, पैदा करने वाले, सर्व समर्थ परमात्मा को नहीं जानता, उसे यम तिल की तरह कोल्हु में पीसता है॥ ३॥
ਖੁਸਿ ਖੁਸਿ ਲੈਦਾ ਵਸਤੁ ਪਰਾਈ ॥
खुसि खुसि लैदा वसतु पराई ॥
जीव खुशी-खुशी पराई वस्तु को लेता है,
ਵੇਖੈ ਸੁਣੇ ਤੇਰੈ ਨਾਲਿ ਖੁਦਾਈ ॥
वेखै सुणे तेरै नालि खुदाई ॥
लेकिन देखने, सुनने वाला खुदा उसके साथ ही है।
ਦੁਨੀਆ ਲਬਿ ਪਇਆ ਖਾਤ ਅੰਦਰਿ ਅਗਲੀ ਗਲ ਨ ਜਾਣੀਆ ॥੪॥
दुनीआ लबि पइआ खात अंदरि अगली गल न जाणीआ ॥४॥
दुनिया के लालच में पड़ कर वह पापों के गड्ढे में गिर गया है और परलोक में होने वाली बात को नहीं जाना॥ ४॥
ਜਮਿ ਜਮਿ ਮਰੈ ਮਰੈ ਫਿਰਿ ਜੰਮੈ ॥
जमि जमि मरै मरै फिरि जमै ॥
इस प्रकार मूर्ख जीव जन्म ले-लेकर मरता है, वह बार-बार मरता एवं जन्मता रहता है।
ਬਹੁਤੁ ਸਜਾਇ ਪਇਆ ਦੇਸਿ ਲੰਮੈ ॥
बहुतु सजाइ पइआ देसि लमै ॥
वह आवागमन के लम्बे चक्र में बहुत दण्ड प्राप्त करता है।
ਜਿਨਿ ਕੀਤਾ ਤਿਸੈ ਨ ਜਾਣੀ ਅੰਧਾ ਤਾ ਦੁਖੁ ਸਹੈ ਪਰਾਣੀਆ ॥੫॥
जिनि कीता तिसै न जाणी अंधा ता दुखु सहै पराणीआ ॥५॥
जिसने पैदा किया है, अन्धा प्राणी उस परमेश्वर को नहीं जानता और बहुत दुख सहन करता है॥ ५॥
ਖਾਲਕ ਥਾਵਹੁ ਭੁਲਾ ਮੁਠਾ ॥
खालक थावहु भुला मुठा ॥
परमात्मा को भुलाकर जीव लुट गया है।
ਦੁਨੀਆ ਖੇਲੁ ਬੁਰਾ ਰੁਠ ਤੁਠਾ ॥
दुनीआ खेलु बुरा रुठ तुठा ॥
यह दुनिया रूपी खेल तमाशा बहुत बुरा है क्योंकि माया के प्रभाव से जीव कभी रूठता और कभी प्रसन्न होता है।
ਸਿਦਕੁ ਸਬੂਰੀ ਸੰਤੁ ਨ ਮਿਲਿਓ ਵਤੈ ਆਪਣ ਭਾਣੀਆ ॥੬॥
सिदकु सबूरी संतु न मिलिओ वतै आपण भाणीआ ॥६॥
उसे कोई सत्यनिष्ठ संतोषी संत नहीं मिलता इसलिए वह अपनी इच्छानुसार चलता है॥ ६॥
ਮਉਲਾ ਖੇਲ ਕਰੇ ਸਭਿ ਆਪੇ ॥ ਇਕਿ ਕਢੇ ਇਕਿ ਲਹਰਿ ਵਿਆਪੇ ॥
मउला खेल करे सभि आपे ॥ इकि कढे इकि लहरि विआपे ॥
अल्लाह मौला खुद ही सब खेल करता है। किसी को मुक्ति प्रदान करता है और कोई संसार-सागर की लहरों में फंस जाता है।
ਜਿਉ ਨਚਾਏ ਤਿਉ ਤਿਉ ਨਚਨਿ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਕਿਰਤ ਵਿਹਾਣੀਆ ॥੭॥
जिउ नचाए तिउ तिउ नचनि सिरि सिरि किरत विहाणीआ ॥७॥
जैसे-जैसे वह नचाता है, वैसे ही वे नाचते हैं, प्रत्येक जीव के साथ उसके मुकद्दर अनुसार बीत रही है॥ ७॥
ਮਿਹਰ ਕਰੇ ਤਾ ਖਸਮੁ ਧਿਆਈ ॥
मिहर करे ता खसमु धिआई ॥
यदि मालिक मेहर कर दे तो ही जीव ध्यान करता है और
ਸੰਤਾ ਸੰਗਤਿ ਨਰਕਿ ਨ ਪਾਈ ॥
संता संगति नरकि न पाई ॥
संतों की संगति में रहने से नरक में नहीं जाना पड़ता।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਣ ਗੀਤਾ ਨਿਤ ਵਖਾਣੀਆ ॥੮॥੨॥੮॥੧੨॥੨੦॥
अम्रित नाम दानु नानक कउ गुण गीता नित वखाणीआ ॥८॥२॥८॥१२॥२०॥
नानक कहते हैं कि हे परमात्मा ! यदि नामामृत का दान मिल जाए तो नित्य तेरे गुणों के गीत गाता रहूँ ॥८॥२॥८॥१२॥२०॥
ਮਾਰੂ ਸੋਲਹੇ ਮਹਲਾ ੧
मारू सोलहे महला १
मारू सोलहे महला १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਸਾਚਾ ਸਚੁ ਸੋਈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
साचा सचु सोई अवरु न कोई ॥
केवल ईश्वर ही सत्य है, अन्य कोई नहीं।
ਜਿਨਿ ਸਿਰਜੀ ਤਿਨ ਹੀ ਫੁਨਿ ਗੋਈ ॥
जिनि सिरजी तिन ही फुनि गोई ॥
जिसने यह दुनिया बनाई है, उसने ही इसे नाश किया है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖਹੁ ਰਹਣਾ ਤੁਮ ਸਿਉ ਕਿਆ ਮੁਕਰਾਈ ਹੇ ॥੧॥
जिउ भावै तिउ राखहु रहणा तुम सिउ किआ मुकराई हे ॥१॥
हे परमेश्वर ! जैसे तुझे मंजूर है, वैसे ही सबने रहना है और तेरे आगे कोई बहाना नहीं चल सकता॥ १॥
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪਿ ਖਪਾਏ ॥
आपि उपाए आपि खपाए ॥
वह स्वयं ही पैदा करता है और स्वयं ही नष्ट कर देता है,
ਆਪੇ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਏ ॥
आपे सिरि सिरि धंधै लाए ॥
स्वयं ही जीवों को भिन्न-भिन्न कार्यों में लगाता है।
ਆਪੇ ਵੀਚਾਰੀ ਗੁਣਕਾਰੀ ਆਪੇ ਮਾਰਗਿ ਲਾਈ ਹੇ ॥੨॥
आपे वीचारी गुणकारी आपे मारगि लाई हे ॥२॥
वह गुणों का सागर स्वयं ही विचार करता है और स्वयं ही सन्मार्ग लगाता है॥ २॥
ਆਪੇ ਦਾਨਾ ਆਪੇ ਬੀਨਾ ॥
आपे दाना आपे बीना ॥
वह स्वयं ही चतुर है और स्वयं ही देखने वाला है।
ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇ ਪਤੀਨਾ ॥
आपे आपु उपाइ पतीना ॥
वह स्वयं ही सगुण रूप पैदा करके प्रसन्न होता है।
ਆਪੇ ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ਹੇ ॥੩॥
आपे पउणु पाणी बैसंतरु आपे मेलि मिलाई हे ॥३॥
पवन, पानी एवं अग्नि भी वह स्वयं ही है और स्वयं ही मिलाता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਸਸਿ ਸੂਰਾ ਪੂਰੋ ਪੂਰਾ ॥
आपे ससि सूरा पूरो पूरा ॥
वह स्वयं ही चाँद एवं सूरज है, और सर्वकला सम्पूर्ण है।
ਆਪੇ ਗਿਆਨਿ ਧਿਆਨਿ ਗੁਰੁ ਸੂਰਾ ॥
आपे गिआनि धिआनि गुरु सूरा ॥
ज्ञान-ध्यान में लीन रहने वाला शूरवीर गुरु भी वही है।
ਕਾਲੁ ਜਾਲੁ ਜਮੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਸਾਚੇ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਈ ਹੇ ॥੪॥
कालु जालु जमु जोहि न साकै साचे सिउ लिव लाई हे ॥४॥
जिसने परमसत्य ईश्वर में ध्यान लगाया है, उसे मृत्यु एवं यम-जाल भी प्रभावित नहीं करता॥ ४॥
ਆਪੇ ਪੁਰਖੁ ਆਪੇ ਹੀ ਨਾਰੀ ॥
आपे पुरखु आपे ही नारी ॥
पुरुष एवं नारी के रूप में स्वयं ही है,
ਆਪੇ ਪਾਸਾ ਆਪੇ ਸਾਰੀ ॥
आपे पासा आपे सारी ॥
वह स्वयं चौपड़ का खेल एवं स्वयं ही गोटियां है।
ਆਪੇ ਪਿੜ ਬਾਧੀ ਜਗੁ ਖੇਲੈ ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ਹੇ ॥੫॥
आपे पिड़ बाधी जगु खेलै आपे कीमति पाई हे ॥५॥
परमात्मा ने स्वयं ही यह धरती रूपी अखाड़ा बनाया है, जिसमें समूचा जगत्-खेल रहा है और स्वयं जीव रूपी खिलाड़ियों को शुभाशुभ कर्म का फल देता है॥ ५॥
ਆਪੇ ਭਵਰੁ ਫੁਲੁ ਫਲੁ ਤਰਵਰੁ ॥
आपे भवरु फुलु फलु तरवरु ॥
भंवरा, फल-फूल, वृक्ष,
ਆਪੇ ਜਲੁ ਥਲੁ ਸਾਗਰੁ ਸਰਵਰੁ ॥
आपे जलु थलु सागरु सरवरु ॥
जल, भूमि, सागर एवं सरोवर सब उसका ही रूप है।
ਆਪੇ ਮਛੁ ਕਛੁ ਕਰਣੀਕਰੁ ਤੇਰਾ ਰੂਪੁ ਨ ਲਖਣਾ ਜਾਈ ਹੇ ॥੬॥
आपे मछु कछु करणीकरु तेरा रूपु न लखणा जाई हे ॥६॥
हे परमेश्वर ! तेरा रूप जाना नहीं जा सकता, तू ही मत्स्यावतार, कच्छपावतार और सारी रचना रचने वाला है॥ ६॥
ਆਪੇ ਦਿਨਸੁ ਆਪੇ ਹੀ ਰੈਣੀ ॥
आपे दिनसु आपे ही रैणी ॥
दिनं एवं रात वही है और
ਆਪਿ ਪਤੀਜੈ ਗੁਰ ਕੀ ਬੈਣੀ ॥
आपि पतीजै गुर की बैणी ॥
वह स्वयं ही गुरु के वचनों अर्थात् वाणी से प्रसन्न होता है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਅਨਾਹਦਿ ਅਨਦਿਨੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਬਦੁ ਰਜਾਈ ਹੇ ॥੭॥
आदि जुगादि अनाहदि अनदिनु घटि घटि सबदु रजाई हे ॥७॥
उसकी मर्जी से युगों-युगान्तरों से दिन-रात घट-घट में उसका अनाहत शब्द गूंज रहा है॥ ७॥
ਆਪੇ ਰਤਨੁ ਅਨੂਪੁ ਅਮੋਲੋ ॥
आपे रतनु अनूपु अमोलो ॥
वह स्वयं ही अनुपम अमूल्य नाम रूपी रत्न है।
ਆਪੇ ਪਰਖੇ ਪੂਰਾ ਤੋਲੋ ॥
आपे परखे पूरा तोलो ॥
वह स्वयं ही बुरे-भले को परखता है और स्वयं ही पूरा तोलता है।