ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਸਿ ॥
से धनवंत जिन हरि प्रभु रासि ॥
वही धनवान है, जिसके पास प्रभु रूपी राशि है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਨਾਸਿ ॥
काम क्रोध गुर सबदि नासि ॥
गुरु के उपदेश से काम क्रोध का नाश होता है।
ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਨਿਰਭੈ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥
भै बिनसे निरभै पदु पाइआ ॥
भय नष्ट हो जाता है और निर्भय पद प्राप्त हो जाता है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਨਕਿ ਖਸਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੨॥
गुर मिलि नानकि खसमु धिआइआ ॥२॥
हे नानक ! गुरु को मिलकर मालिक का ध्यान किया है।॥२॥
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਓ ਨਿਵਾਸ ॥
साधसंगति प्रभि कीओ निवास ॥
प्रभु ने हमारा साधु पुरुषों की संगत में निवास बना दिया है और
ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਹੋਈ ਪੂਰਨ ਆਸ ॥
हरि जपि जपि होई पूरन आस ॥
प्रभु का नाम जपकर हर आशा पूरी हो गई है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥
जलि थलि महीअलि रवि रहिआ ॥
समुद्र, पृथ्वी एवं अंतरिक्ष में केवल वही व्याप्त है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਨਕਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਹਿਆ ॥੩॥
गुर मिलि नानकि हरि हरि कहिआ ॥३॥
गुरु को मिलकर नानक ने ईश्वर का यश उच्चारण किया है॥३॥
ਅਸਟ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਏਹ ॥
असट सिधि नव निधि एह ॥
प्रभु का नाम अठारह सिद्धियाँ एवं नौ निधियाँ है,
ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਜਿਸੁ ਨਾਮੁ ਦੇਹ ॥
करमि परापति जिसु नामु देह ॥
नाम भी उसे प्राप्त होता है, जिस पर प्रभु की कृपा होती है।
ਪ੍ਰਭ ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਹਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ॥
प्रभ जपि जपि जीवहि तेरे दास ॥
हे प्रभु ! तेरे दास तुझे जप जपकर जीवन पा रहे हैं और
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਨਕ ਕਮਲ ਪ੍ਰਗਾਸ ॥੪॥੧੩॥
गुर मिलि नानक कमल प्रगास ॥४॥१३॥
गुरु को मिलकर नानक का हृदय कमल खिल गया है॥ ४॥ १३॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਇਕ ਤੁਕੇ
बसंतु महला ५ घरु १ इक तुके
बसंतु महला ५ घरु १ इक तुके
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਸਗਲ ਇਛਾ ਜਪਿ ਪੁੰਨੀਆ ॥
सगल इछा जपि पुंनीआ ॥
परमात्मा का जप करने से सभी कामनाएँ पूरी हो गई हैं।
ਪ੍ਰਭਿ ਮੇਲੇ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥੧॥
प्रभि मेले चिरी विछुंनिआ ॥१॥
बहुत लम्बे समय से बिछुड़ा हुआ था, अब प्रभु से मिलाप हो गया है॥१॥
ਤੁਮ ਰਵਹੁ ਗੋਬਿੰਦੈ ਰਵਣ ਜੋਗੁ ॥
तुम रवहु गोबिंदै रवण जोगु ॥
हे जीव ! तुम ईश्वर की पूजा करो, वही पूजा के योग्य है,
ਜਿਤੁ ਰਵਿਐ ਸੁਖ ਸਹਜ ਭੋਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु रविऐ सुख सहज भोगु ॥१॥ रहाउ ॥
जिसकी पूजा करने से परम सुखों का आनंद प्राप्त होता है।॥१॥रहाउ॥।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥
करि किरपा नदरि निहालिआ ॥
प्रभु ने कृपा-दृष्टि करके आनंदित कर दिया है और
ਅਪਣਾ ਦਾਸੁ ਆਪਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿਆ ॥੨॥
अपणा दासु आपि सम्हालिआ ॥२॥
अपने दास की स्वयं ही संभाल की है॥२॥
ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਰਸਿ ਬਨੀ ॥
सेज सुहावी रसि बनी ॥
हृदय रूपी सेज सुन्दर हो गई है,
ਆਇ ਮਿਲੇ ਪ੍ਰਭ ਸੁਖ ਧਨੀ ॥੩॥
आइ मिले प्रभ सुख धनी ॥३॥
सुखों का मालिक प्रभु आ मिला है॥३॥
ਮੇਰਾ ਗੁਣੁ ਅਵਗਣੁ ਨ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥
मेरा गुणु अवगणु न बीचारिआ ॥
उसने मेरे गुण-अवगुण का बिल्कुल ख्याल नहीं किया।
ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਚਰਣ ਪੂਜਾਰਿਆ ॥੪॥੧॥੧੪॥
प्रभ नानक चरण पूजारिआ ॥४॥१॥१४॥
नानक ने तो प्रभु-चरणों की ही पूजा-अर्चना की है॥४॥१॥ १४॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥
ਕਿਲਬਿਖ ਬਿਨਸੇ ਗਾਇ ਗੁਨਾ ॥
किलबिख बिनसे गाइ गुना ॥
परमात्मा का यशोगान करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और
ਅਨਦਿਨ ਉਪਜੀ ਸਹਜ ਧੁਨਾ ॥੧॥
अनदिन उपजी सहज धुना ॥१॥
हर पल मन में परम सुख की ध्वनि उत्पन्न होती है॥१॥
ਮਨੁ ਮਉਲਿਓ ਹਰਿ ਚਰਨ ਸੰਗਿ ॥
मनु मउलिओ हरि चरन संगि ॥
परमात्मा के चरणों में रत रहने से मन खिल गया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਾਧੂ ਜਨ ਭੇਟੇ ਨਿਤ ਰਾਤੌ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा साधू जन भेटे नित रातौ हरि नाम रंगि ॥१॥ रहाउ ॥
जब ईश्वर ने कृपा की तो साधुजनों से संपर्क हो गया, अब नित्य प्रभु नाम की प्रशस्ति में लीन रहता हूँ॥१॥रहाउ॥।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਗਟੇ ਗੋੁਪਾਲ ॥
करि किरपा प्रगटे गोपाल ॥
कृपा करके ईश्वर प्रगट हो गया है,
ਲੜਿ ਲਾਇ ਉਧਾਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ॥੨॥
लड़ि लाइ उधारे दीन दइआल ॥२॥
उस दीनदयाल ने चरणों में लगाकर उद्धार कर दिया है॥२॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਹੋਆ ਸਾਧ ਧੂਰਿ ॥
इहु मनु होआ साध धूरि ॥
हमारा यह मन साधु पुरुषों की चरण-धूल बन गया है और
ਨਿਤ ਦੇਖੈ ਸੁਆਮੀ ਹਜੂਰਿ ॥੩॥
नित देखै सुआमी हजूरि ॥३॥
नित्य स्वामी को पास ही देखता है॥३॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਗਈ ॥ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ॥੪॥੨॥੧੫॥
काम क्रोध त्रिसना गई ॥ नानक प्रभ किरपा भई ॥४॥२॥१५॥
हे नानक ! जब प्रभु की कृपा हुई तब काम, क्रोध एवं तृष्णा दूर हो गई ॥४॥२॥ १५॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥
ਰੋਗ ਮਿਟਾਏ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪਿ ॥
रोग मिटाए प्रभू आपि ॥
प्रभु ने स्वयं ही रोग मिटा दिया है,
ਬਾਲਕ ਰਾਖੇ ਅਪਨੇ ਕਰ ਥਾਪਿ ॥੧॥
बालक राखे अपने कर थापि ॥१॥
उसने हाथ रखकर बालक (हरिगोविंद) की रक्षा की है॥१॥
ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸਦ ਬਸੰਤੁ ॥
सांति सहज ग्रिहि सद बसंतु ॥
घर में सुख-शान्ति एवं आनंद उत्पन्न हो गया है।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਸਰਣੀ ਆਏ ਕਲਿਆਣ ਰੂਪ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੰਤੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर पूरे की सरणी आए कलिआण रूप जपि हरि हरि मंतु ॥१॥ रहाउ ॥
पूरे गुरु की शरण में आकर कल्याण रूप ‘हरि हरि’ मंत्र का ही जाप किया है।॥१॥रहाउ॥।
ਸੋਗ ਸੰਤਾਪ ਕਟੇ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ॥
सोग संताप कटे प्रभि आपि ॥
प्रभु ने शोक एवं गम को काट दिया है।
ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਨਿਤ ਨਿਤ ਜਾਪਿ ॥੨॥
गुर अपुने कउ नित नित जापि ॥२॥
मैं नित्य अपने गुरु का जाप करता हूँ॥२॥
ਜੋ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ਜਪੇ ਨਾਉ ॥
जो जनु तेरा जपे नाउ ॥
हे प्रभु! जो व्यक्ति तेरा नाम जपता है,
ਸਭਿ ਫਲ ਪਾਏ ਨਿਹਚਲ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੩॥
सभि फल पाए निहचल गुण गाउ ॥३॥
वह तेरे गुण गाकर निश्चय ही सब फल प्राप्त करता है॥३॥
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਭਲੀ ਰੀਤਿ ॥
नानक भगता भली रीति ॥
नानक का मत है कि भक्तों का भला शिष्टाचार है कि
ਸੁਖਦਾਤਾ ਜਪਦੇ ਨੀਤ ਨੀਤਿ ॥੪॥੩॥੧੬॥
सुखदाता जपदे नीत नीति ॥४॥३॥१६॥
वे हर वक्त सुखदाता ईश्वर को ही जपते रहते हैं।॥४॥३॥ १६॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥
ਹੁਕਮੁ ਕਰਿ ਕੀਨੑੇ ਨਿਹਾਲ ॥
हुकमु करि कीन्हे निहाल ॥
प्रभु ने हुक्म करके निहाल कर दिया है और
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਭਇਆ ਦਇਆਲੁ ॥੧॥
अपने सेवक कउ भइआ दइआलु ॥१॥
अपने सेवक पर दयालु हो गया है॥१॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸਭੁ ਪੂਰਾ ਕੀਆ ॥
गुरि पूरै सभु पूरा कीआ ॥
पूर्ण गुरु ने हर कार्य पूरा कर दिया है,
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਮਹਿ ਦੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रित नामु रिद महि दीआ ॥१॥ रहाउ ॥
हृदय में अमृत नाम प्रदान किया है॥१॥रहाउ॥।
ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਮੇਰਾ ਕਛੁ ਨ ਬੀਚਾਰਿਓ ॥
करमु धरमु मेरा कछु न बीचारिओ ॥
उसने मेरे कर्म धर्म का कोई ख्याल नहीं किया और