ਹਰਾਮਖੋਰ ਨਿਰਗੁਣ ਕਉ ਤੂਠਾ ॥
हरामखोर निरगुण कउ तूठा ॥
अगर वह किसी हरामखोर एवं गुणविहीन पुरुष पर प्रसन्न हो जाता है तो
ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਮਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵੂਠਾ ॥
मनु तनु सीतलु मनि अम्रितु वूठा ॥
उसका मन-तन शीतल हो जाता है और उसके मन में अमृत स्थित हो जाता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ॥
पारब्रहम गुर भए दइआला ॥
परब्रह्म गुरु उस पर दयालु हो गया है,
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦੇਖਿ ਭਏ ਨਿਹਾਲਾ ॥੪॥੧੦॥੨੩॥
नानक दास देखि भए निहाला ॥४॥१०॥२३॥
दास नानक उसकी दया-दृष्टि को देखकर आनंदित हो गया है॥४॥ १०॥ २३॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਬੇਮੁਹਤਾਜੁ ॥
सतिगुरु मेरा बेमुहताजु ॥
मेरा सतगुरु किसी पर निर्भर नहीं,
ਸਤਿਗੁਰ ਮੇਰੇ ਸਚਾ ਸਾਜੁ ॥
सतिगुर मेरे सचा साजु ॥
उसका कार्य भी सच्चा है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸਭਸ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥
सतिगुरु मेरा सभस का दाता ॥
मेरा सतगुरु सबको देने वाला है और
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥੧॥
सतिगुरु मेरा पुरखु बिधाता ॥१॥
वही मेरा विधाता है॥१॥
ਗੁਰ ਜੈਸਾ ਨਾਹੀ ਕੋ ਦੇਵ ॥
गुर जैसा नाही को देव ॥
गुरु जैसा पूज्य देवता कोई नहीं,
ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਸੁ ਲਾਗਾ ਸੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसु मसतकि भागु सु लागा सेव ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके माथे पर भाग्य है, वही उसकी सेवा में तल्लीन होता है।॥१॥रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ॥
सतिगुरु मेरा सरब प्रतिपालै ॥
मेरा सतगुरु सब का पोषण करता है,
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲੈ ॥
सतिगुरु मेरा मारि जीवालै ॥
वही मारने-जिंदा करने वाला है।
ਸਤਿਗੁਰ ਮੇਰੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
सतिगुर मेरे की वडिआई ॥
मेरे सतगुरु की कीर्ति
ਪ੍ਰਗਟੁ ਭਈ ਹੈ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥੨॥
प्रगटु भई है सभनी थाई ॥२॥
सारे संसार में फैल गई है॥२॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਤਾਣੁ ਨਿਤਾਣੁ ॥
सतिगुरु मेरा ताणु निताणु ॥
मेरा सतगुरु बलहीनों का बल है और
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਘਰਿ ਦੀਬਾਣੁ ॥
सतिगुरु मेरा घरि दीबाणु ॥
वही मेरा घर अवलम्ब है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਇਆ ॥
सतिगुर कै हउ सद बलि जाइआ ॥
मैं सतगुरु पर सदैव बलिहारी जाता हूँ,
ਪ੍ਰਗਟੁ ਮਾਰਗੁ ਜਿਨਿ ਕਰਿ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥੩॥
प्रगटु मारगु जिनि करि दिखलाइआ ॥३॥
जिसने सच्चा मार्ग दिखा दिया है॥३॥
ਜਿਨਿ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਤਿਸੁ ਭਉ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥
जिनि गुरु सेविआ तिसु भउ न बिआपै ॥
जिसने गुरु की सेवा की है, उसे कोई भय नहीं छूता।
ਜਿਨਿ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਤਿਸੁ ਦੁਖੁ ਨ ਸੰਤਾਪੈ ॥
जिनि गुरु सेविआ तिसु दुखु न संतापै ॥
गुरु की आराधना करने वाले जीव को कोई दुख अथवा संताप वेिचलित नहीं करता।
ਨਾਨਕ ਸੋਧੇ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ॥
नानक सोधे सिम्रिति बेद ॥
नानक फुरमाते हैं कि वेदों एवं स्मृतियों का विश्लेषण कर यही परिणाम मिला है कि
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰ ਨਾਹੀ ਭੇਦ ॥੪॥੧੧॥੨੪॥
पारब्रहम गुर नाही भेद ॥४॥११॥२४॥
परब्रह्म एवं गुरु में कोई भेद नहीं।॥४॥ ११॥ २४॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਮਨੁ ਪਰਗਟੁ ਭਇਆ ॥
नामु लैत मनु परगटु भइआ ॥
ईश्वर का नाम लेने से वह मन में ही प्रगट हो गया है,
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਪਾਪੁ ਤਨ ਤੇ ਗਇਆ ॥
नामु लैत पापु तन ते गइआ ॥
प्रभु का नाम जपने से तन के पाप निवृत्त हो गए हैं।
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਸਗਲ ਪੁਰਬਾਇਆ ॥
नामु लैत सगल पुरबाइआ ॥
हरिनाम जपने से सब पर्वो का फल प्राप्त होता है,
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਅਠਸਠਿ ਮਜਨਾਇਆ ॥੧॥
नामु लैत अठसठि मजनाइआ ॥१॥
प्रभु नाम के जाप से अड़सठ तीर्थों में स्नान हो जाता है।॥१॥
ਤੀਰਥੁ ਹਮਰਾ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ॥
तीरथु हमरा हरि को नामु ॥
प्रभु का नाम जपना ही हमारा तीर्थ है और
ਗੁਰਿ ਉਪਦੇਸਿਆ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि उपदेसिआ ततु गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु ने उपदेश देकर यही तत्व ज्ञान बताया है॥१॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਦੁਖੁ ਦੂਰਿ ਪਰਾਨਾ ॥
नामु लैत दुखु दूरि पराना ॥
हरिनाम के जाप से सब दुःख दूर हो जाते हैं,
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਅਤਿ ਮੂੜ ਸੁਗਿਆਨਾ ॥
नामु लैत अति मूड़ सुगिआना ॥
प्रभु का नाम लेने से मूर्ख भी ज्ञानवान बन जाता है।
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਪਰਗਟਿ ਉਜੀਆਰਾ ॥
नामु लैत परगटि उजीआरा ॥
नाम-स्मरण से मन में ज्ञान का उजाला हो जाता है।
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਛੁਟੇ ਜੰਜਾਰਾ ॥੨॥
नामु लैत छुटे जंजारा ॥२॥
प्रभु नाम का जाप करने से सब जंजालों से छुटकारा हो जाता है।॥२॥
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥
नामु लैत जमु नेड़ि न आवै ॥
नाम जपने से यम भी पास नहीं आता,
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਦਰਗਹ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥
नामु लैत दरगह सुखु पावै ॥
हरिनाम-स्मरण करने से प्रभु-दरबार में सुख प्राप्त होता है।
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਪ੍ਰਭੁ ਕਹੈ ਸਾਬਾਸਿ ॥
नामु लैत प्रभु कहै साबासि ॥
नाम जपने वाले भक्त की प्रभु श्लाघा करता है,
ਨਾਮੁ ਹਮਾਰੀ ਸਾਚੀ ਰਾਸਿ ॥੩॥
नामु हमारी साची रासि ॥३॥
अतः प्रभु-नाम ही हमारी सच्ची जीवन-राशि है॥३॥
ਗੁਰਿ ਉਪਦੇਸੁ ਕਹਿਓ ਇਹੁ ਸਾਰੁ ॥
गुरि उपदेसु कहिओ इहु सारु ॥
गुरु ने उपदेश देकर यही सार बताया है कि
ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਮਨ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
हरि कीरति मन नामु अधारु ॥
हरिनाम का कीर्ति-गान ही मन का आसरा है।
ਨਾਨਕ ਉਧਰੇ ਨਾਮ ਪੁਨਹਚਾਰ ॥
नानक उधरे नाम पुनहचार ॥
हे नानक ! प्रभु-नाम के जाप से प्रायश्चित है,
ਅਵਰਿ ਕਰਮ ਲੋਕਹ ਪਤੀਆਰ ॥੪॥੧੨॥੨੫॥
अवरि करम लोकह पतीआर ॥४॥१२॥२५॥
अन्य कर्मकाण्ड तो लोगों को खुश करने के लिए हैं।॥४॥ १२॥ २५॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਨਮਸਕਾਰ ਤਾ ਕਉ ਲਖ ਬਾਰ ॥
नमसकार ता कउ लख बार ॥
लाखों बार ईश्वर को नमस्कार है,
ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ਤਾ ਕਉ ਵਾਰਿ ॥
इहु मनु दीजै ता कउ वारि ॥
यह मन भी उसे न्यौछावर कर देना चाहिए।
ਸਿਮਰਨਿ ਤਾ ਕੈ ਮਿਟਹਿ ਸੰਤਾਪ ॥
सिमरनि ता कै मिटहि संताप ॥
उसका स्मरण करने से सब संताप मिट जाते हैं
ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ਨ ਵਿਆਪਹਿ ਤਾਪ ॥੧॥
होइ अनंदु न विआपहि ताप ॥१॥
एवं ताप निवृत्त होकर आनंद प्राप्त होता है।॥१॥
ਐਸੋ ਹੀਰਾ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮ ॥
ऐसो हीरा निरमल नाम ॥
प्रभु का निर्मल नाम ऐसा अमोल हीरा है,
ਜਾਸੁ ਜਪਤ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जासु जपत पूरन सभि काम ॥१॥ रहाउ ॥
जिसका जाप करने से सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਦੁਖ ਡੇਰਾ ਢਹੈ ॥
जा की द्रिसटि दुख डेरा ढहै ॥
जिसकी करुणा-दृष्टि से दु:खों का पहाड़ नष्ट हो जाता है और
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸੀਤਲੁ ਮਨਿ ਗਹੈ ॥
अम्रित नामु सीतलु मनि गहै ॥
मन अमृतमय शीतल नाम को लेता है।
ਅਨਿਕ ਭਗਤ ਜਾ ਕੇ ਚਰਨ ਪੂਜਾਰੀ ॥
अनिक भगत जा के चरन पूजारी ॥
अनेकानेक भक्त जिसके चरणों के पुजारी हैं,
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨਹਾਰੀ ॥੨॥
सगल मनोरथ पूरनहारी ॥२॥
वह उनके सब मनोरथ पूर्ण करनेवाला है॥२॥
ਖਿਨ ਮਹਿ ਊਣੇ ਸੁਭਰ ਭਰਿਆ ॥
खिन महि ऊणे सुभर भरिआ ॥
ईश्वर की लीला इतनी विचित्र है कि वह पल में खाली चीजों को पूर्ण रूप से भर देता है,
ਖਿਨ ਮਹਿ ਸੂਕੇ ਕੀਨੇ ਹਰਿਆ ॥
खिन महि सूके कीने हरिआ ॥
पल में ही सूखी धरती को हरा-भरा कर देता है।
ਖਿਨ ਮਹਿ ਨਿਥਾਵੇ ਕਉ ਦੀਨੋ ਥਾਨੁ ॥
खिन महि निथावे कउ दीनो थानु ॥
वह पल में ही बेसहारा को सहारा दे देता है और
ਖਿਨ ਮਹਿ ਨਿਮਾਣੇ ਕਉ ਦੀਨੋ ਮਾਨੁ ॥੩॥
खिन महि निमाणे कउ दीनो मानु ॥३॥
पल में ही सम्मानहीन को सम्मान प्रदान करता है॥३॥