ਹੈ ਕੋਊ ਐਸਾ ਮੀਤੁ ਜਿ ਤੋਰੈ ਬਿਖਮ ਗਾਂਠਿ ॥
है कोऊ ऐसा मीतु जि तोरै बिखम गांठि ॥
क्या कोई ऐसा मित्र है जो संसार की विषम गांठ को तोड़ दे।
ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਸ੍ਰੀਧਰ ਨਾਥੁ ਜਿ ਟੂਟੇ ਲੇਇ ਸਾਂਠਿ ॥੧੫॥
नानक इकु स्रीधर नाथु जि टूटे लेइ सांठि ॥१५॥
गुरु नानक कथन करते हैं- केवल एक मालिक प्रभु ही है जो अपने से टूटे हुए को जोड़ लेता है॥ १५॥
ਧਾਵਉ ਦਸਾ ਅਨੇਕ ਪ੍ਰੇਮ ਪ੍ਰਭ ਕਾਰਣੇ ॥
धावउ दसा अनेक प्रेम प्रभ कारणे ॥
प्रभु प्रेम की खातिर मैं अनेक दिशाओं में दौड़ता फिर रहा हूँ।
ਪੰਚ ਸਤਾਵਹਿ ਦੂਤ ਕਵਨ ਬਿਧਿ ਮਾਰਣੇ ॥
पंच सतावहि दूत कवन बिधि मारणे ॥
काम-क्रोध रूपी पाँच दुष्ट मुझे तंग कर रहे हैं, इनको किस उपाय से मारा जाए।
ਤੀਖਣ ਬਾਣ ਚਲਾਇ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਧੵਾਈਐ ॥
तीखण बाण चलाइ नामु प्रभ ध्याईऐ ॥
“(उत्तर-) प्रभु-नाम का ध्यान करो, यही तीक्षण वाण है।
ਹਰਿਹਾਂ ਮਹਾਂ ਬਿਖਾਦੀ ਘਾਤ ਪੂਰਨ ਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ॥੧੬॥
हरिहां महां बिखादी घात पूरन गुरु पाईऐ ॥१६॥
हरिहां, पूर्ण गुरु को पाकर महां दुखदायक विकारों का अन्त हो जाता है॥ १६॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ਮੂਲਿ ਨ ਨਿਖੁਟਈ ॥
सतिगुर कीनी दाति मूलि न निखुटई ॥
सतगुरु ने हरिनाम रूपी ऐसा दान दिया है, जो कभी खत्म नहीं होता।
ਖਾਵਹੁ ਭੁੰਚਹੁ ਸਭਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੁਟਈ ॥
खावहु भुंचहु सभि गुरमुखि छुटई ॥
सब इसका भोग (अर्थात् हरि-भजन) करो, गुरु के सान्निध्य में संसार के बन्धनों से मुक्ति हो जाती है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਦਿਤਾ ਤੁਸਿ ਹਰਿ ॥
अम्रितु नामु निधानु दिता तुसि हरि ॥
परमेश्वर ने प्रसन्न होकर हमें सुखों का घर अमृतमय हरिनाम दिया है।
ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਅਰਾਧਿ ਕਦੇ ਨ ਜਾਂਹਿ ਮਰਿ ॥੧੭॥
नानक सदा अराधि कदे न जांहि मरि ॥१७॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे सज्जनो ! सदैव हरि की आराधना करो, जन्म-मरण का चक्र छूट जाता है॥ १७॥
ਜਿਥੈ ਜਾਏ ਭਗਤੁ ਸੁ ਥਾਨੁ ਸੁਹਾਵਣਾ ॥
जिथै जाए भगतु सु थानु सुहावणा ॥
जहाँ भक्त जाता है, वह स्थान खुशहाल हो जाता है।
ਸਗਲੇ ਹੋਏ ਸੁਖ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਣਾ ॥
सगले होए सुख हरि नामु धिआवणा ॥
हरिनाम का ध्यान करने से सब ओर सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਜੀਅ ਕਰਨਿ ਜੈਕਾਰੁ ਨਿੰਦਕ ਮੁਏ ਪਚਿ ॥
जीअ करनि जैकारु निंदक मुए पचि ॥
सब जीव भक्त की जय-जयकार करते हैं परन्तु निन्दक दुखों में जलते हैं।
ਸਾਜਨ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ॥੧੮॥
साजन मनि आनंदु नानक नामु जपि ॥१८॥
गुरु नानक कथन करते हैं- हरिनाम का जाप करने से सज्जनों के मन में आनंद बना रहता है ॥१८॥
ਪਾਵਨ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਕਤਹ ਨਹੀ ਸੇਵੀਐ ॥
पावन पतित पुनीत कतह नही सेवीऐ ॥
जो पतितों को पावन करने वाला है, उस पावन-स्वरूप ईश्वर की हम कभी उपासना नहीं करते।
ਝੂਠੈ ਰੰਗਿ ਖੁਆਰੁ ਕਹਾਂ ਲਗੁ ਖੇਵੀਐ ॥
झूठै रंगि खुआरु कहां लगु खेवीऐ ॥
संसार के झूठे रंगों में परेशान होते हैं तो इस तरह कब तक गुजारा होगा।
ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਪੇਖਿ ਕਾਹੇ ਸੁਖੁ ਮਾਨਿਆ ॥
हरिचंदउरी पेखि काहे सुखु मानिआ ॥
हरिश्चन्द्र की नगरी समान संसार को देखकर सुख मानते हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿੰਨ ਜਿ ਦਰਗਹਿ ਜਾਨਿਆ ॥੧੯॥
हरिहां हउ बलिहारी तिंन जि दरगहि जानिआ ॥१९॥
हरिहां, हम तो उन भक्तों पर कुर्बान जाते हैं, जो प्रभु के दरबार में प्रतिष्ठा के पात्र बने हैं।॥ १९॥
ਕੀਨੇ ਕਰਮ ਅਨੇਕ ਗਵਾਰ ਬਿਕਾਰ ਘਨ ॥
कीने करम अनेक गवार बिकार घन ॥
मूर्ख व्यक्ति पाप-विकारयुक्त अनेक कर्म करता है।
ਮਹਾ ਦ੍ਰੁਗੰਧਤ ਵਾਸੁ ਸਠ ਕਾ ਛਾਰੁ ਤਨ ॥
महा द्रुगंधत वासु सठ का छारु तन ॥
वह महा बदबूदार स्थान में रहता है और इस प्रकार मूर्ख का शरीर धूल में मिल जाता है।
ਫਿਰਤਉ ਗਰਬ ਗੁਬਾਰਿ ਮਰਣੁ ਨਹ ਜਾਨਈ ॥
फिरतउ गरब गुबारि मरणु नह जानई ॥
वह हरदम अहंकार में लीन रहता है और मौत को भी भुला देता है।
ਹਰਿਹਾਂ ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਪੇਖਿ ਕਾਹੇ ਸਚੁ ਮਾਨਈ ॥੨੦॥
हरिहां हरिचंदउरी पेखि काहे सचु मानई ॥२०॥
हरिहां, वह नाशवान संसार को देखकर उसे ही सत्य मानता है॥ २०॥
ਜਿਸ ਕੀ ਪੂਜੈ ਅਉਧ ਤਿਸੈ ਕਉਣੁ ਰਾਖਈ ॥
जिस की पूजै अउध तिसै कउणु राखई ॥
जिसकी जिन्दगी के दिन पूरे हो जाते हैं तो फिर भला उसे मौत के मुँह से कौन बचा सकता है।
ਬੈਦਕ ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਕਹਾਂ ਲਉ ਭਾਖਈ ॥
बैदक अनिक उपाव कहां लउ भाखई ॥
चिकित्सक चाहे अनेक उपाय, दवा-परहेज एवं हिदायतें देता रहे, पर सब व्यर्थ है।
ਏਕੋ ਚੇਤਿ ਗਵਾਰ ਕਾਜਿ ਤੇਰੈ ਆਵਈ ॥
एको चेति गवार काजि तेरै आवई ॥
अरे गंवार ! केवल परमात्मा का चिंतन कर, यही तेरे काम आना है।
ਹਰਿਹਾਂ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਤਨੁ ਛਾਰੁ ਬ੍ਰਿਥਾ ਸਭੁ ਜਾਵਈ ॥੨੧॥
हरिहां बिनु नावै तनु छारु ब्रिथा सभु जावई ॥२१॥
हरिहां, हरिनाम स्मरण बिना शरीर धूल समान है और सब वृथा ही जाता है॥ २१॥
ਅਉਖਧੁ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰੁ ਅਮੋਲਕੁ ਪੀਜਈ ॥
अउखधु नामु अपारु अमोलकु पीजई ॥
हरिनाम अमूल्य अपार औषधि है, इसका पान करना चाहिए।
ਮਿਲਿ ਮਿਲਿ ਖਾਵਹਿ ਸੰਤ ਸਗਲ ਕਉ ਦੀਜਈ ॥
मिलि मिलि खावहि संत सगल कउ दीजई ॥
संत पुरुष मिलकर इसका सेवन करते हैं और अन्य जिज्ञासुओं को भी देते हैं।
ਜਿਸੈ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ਤਿਸੈ ਹੀ ਪਾਵਣੇ ॥
जिसै परापति होइ तिसै ही पावणे ॥
वही इस दवा को पाता है, जिसे संतों की प्राप्ति होती है।
ਹਰਿਹਾਂ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿੰਨੑ ਜਿ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਰਾਵਣੇ ॥੨੨॥
हरिहां हउ बलिहारी तिंन्ह जि हरि रंगु रावणे ॥२२॥
हरिहां, हम उन जिज्ञासुओं पर बलिहारी जाते हैं, जो परमात्मा के रंग में लीन रहते हैं॥ २२॥
ਵੈਦਾ ਸੰਦਾ ਸੰਗੁ ਇਕਠਾ ਹੋਇਆ ॥
वैदा संदा संगु इकठा होइआ ॥
संतों की मण्डली वैद्य रूप में इकट्ठा होती है।
ਅਉਖਦ ਆਏ ਰਾਸਿ ਵਿਚਿ ਆਪਿ ਖਲੋਇਆ ॥
अउखद आए रासि विचि आपि खलोइआ ॥
तब हरिनाम रूपी औषधि अपना पूरा असर करती है, क्योंकि इसमें ईश्वर स्वयं विराजमान होता है।
ਜੋ ਜੋ ਓਨਾ ਕਰਮ ਸੁਕਰਮ ਹੋਇ ਪਸਰਿਆ ॥
जो जो ओना करम सुकरम होइ पसरिआ ॥
वे जो-जो कर्म करते हैं, वे सुकर्म बनकर लोगों में फैलते हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਦੂਖ ਰੋਗ ਸਭਿ ਪਾਪ ਤਨ ਤੇ ਖਿਸਰਿਆ ॥੨੩॥
हरिहां दूख रोग सभि पाप तन ते खिसरिआ ॥२३॥
हरिहां, इस तरह दुख-रोग एवं सब पाप शरीर से निवृत्त हो जाते हैं।॥ २३॥
ਚਉਬੋਲੇ ਮਹਲਾ ੫
चउबोले महला ५
चउबोले महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह परब्रह्म केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਸੰਮਨ ਜਉ ਇਸ ਪ੍ਰੇਮ ਕੀ ਦਮ ਕੵਿਹੁ ਹੋਤੀ ਸਾਟ ॥
समन जउ इस प्रेम की दम क्यिहु होती साट ॥
हे सम्मन ! यदि प्रेम की खरीदारी धन-दौलत से हो सकती तो लंकापति रावण जैसा बादशाह कंगाल नहीं था,
ਰਾਵਨ ਹੁਤੇ ਸੁ ਰੰਕ ਨਹਿ ਜਿਨਿ ਸਿਰ ਦੀਨੇ ਕਾਟਿ ॥੧॥
रावन हुते सु रंक नहि जिनि सिर दीने काटि ॥१॥
जिसने शिव को प्रसन्न करने के लिए ग्यारह बार अपना सिर काट कर भेंट कर दिया था॥ १॥
ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਤਨੁ ਖਚਿ ਰਹਿਆ ਬੀਚੁ ਨ ਰਾਈ ਹੋਤ ॥
प्रीति प्रेम तनु खचि रहिआ बीचु न राई होत ॥
जिसका मन अपने प्रियतम के प्रेम में लीन रहता है, उसके भीतर थोड़ा-सा भी फर्क नहीं होता।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਬੇਧਿਓ ਬੂਝਨੁ ਸੁਰਤਿ ਸੰਜੋਗ ॥੨॥
चरन कमल मनु बेधिओ बूझनु सुरति संजोग ॥२॥
मन तो प्रियतम के चरण-कमल में बिंध जाता है, अन्तरात्मा प्रेम लगन में लीन रहकर चेतन हो जाती है॥ २॥