HINDI PAGE 1353

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਬਿਭਾਸ
प्रभाती असटपदीआ महला १ बिभास
प्रभाती असटपदीआ महला १ बिभास

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਦੁਬਿਧਾ ਬਉਰੀ ਮਨੁ ਬਉਰਾਇਆ ॥
दुबिधा बउरी मनु बउराइआ ॥
बावली दुविधा ने इस मन को भी बावला बना दिया है।

ਝੂਠੈ ਲਾਲਚਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
झूठै लालचि जनमु गवाइआ ॥
झूठे लालच में फँसकर अमूल्य जीवन गंवा दिया है।

ਲਪਟਿ ਰਹੀ ਫੁਨਿ ਬੰਧੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
लपटि रही फुनि बंधु न पाइआ ॥
यह इस प्रकार जीव से लिपट रही है कि इसे पुनः रोका नहीं जा रहा।

ਸਤਿਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥੧॥
सतिगुरि राखे नामु द्रिड़ाइआ ॥१॥
सच्चा गुरु ही प्रभु के नाम का जाप करवा कर इससे बचाता है॥ १॥

ਨਾ ਮਨੁ ਮਰੈ ਨ ਮਾਇਆ ਮਰੈ ॥
ना मनु मरै न माइआ मरै ॥
न ही मन की वासनाएँ मिटती हैं और न ही माया का मोह समाप्त होता है।

ਜਿਨਿ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਭਉ ਸਾਗਰੁ ਤਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिनि किछु कीआ सोई जाणै सबदु वीचारि भउ सागरु तरै ॥१॥ रहाउ ॥
जिसने कुछ प्राप्त किया है, वही जानता है, शब्द के चिंतन द्वारा वह भयानक संसार-सागर से पार उतर जाता है॥ १॥रहाउ॥

ਮਾਇਆ ਸੰਚਿ ਰਾਜੇ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥
माइआ संचि राजे अहंकारी ॥
माया संचित करके राजा अहंकारी बन जाते हैं,

ਮਾਇਆ ਸਾਥਿ ਨ ਚਲੈ ਪਿਆਰੀ ॥
माइआ साथि न चलै पिआरी ॥
परन्तु प्यारी माया उनका साथ नहीं देती।

ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਹੈ ਬਹੁ ਰੰਗੀ ॥
माइआ ममता है बहु रंगी ॥
माया-ममता अनेक रंग दिखाती है,

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਸਾਥਿ ਨ ਸੰਗੀ ॥੨॥
बिनु नावै को साथि न संगी ॥२॥
पर परमात्मा के नाम बिना कोई साथ नहीं देता॥ २॥

ਜਿਉ ਮਨੁ ਦੇਖਹਿ ਪਰ ਮਨੁ ਤੈਸਾ ॥
जिउ मनु देखहि पर मनु तैसा ॥
मन जिस प्रकार ,किसी को देखता है, उसे वैसा ही दूसरे का मन लगता है।

ਜੈਸੀ ਮਨਸਾ ਤੈਸੀ ਦਸਾ ॥
जैसी मनसा तैसी दसा ॥
जैसी कामना होती है, वैसी दशा हो जाती है।

ਜੈਸਾ ਕਰਮੁ ਤੈਸੀ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥
जैसा करमु तैसी लिव लावै ॥
वह जैसे कर्म करता है, वैसी ही लगन लग जाती है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਛਿ ਸਹਜ ਘਰੁ ਪਾਵੈ ॥੩॥
सतिगुरु पूछि सहज घरु पावै ॥३॥
गुरु के उपदेश का पालन करने से सहजावस्था प्राप्त होती है॥ ३॥

ਰਾਗਿ ਨਾਦਿ ਮਨੁ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
रागि नादि मनु दूजै भाइ ॥
राग-संगीत में लीन मन द्वैतभाव में लिप्त रहता है।

ਅੰਤਰਿ ਕਪਟੁ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇ ॥
अंतरि कपटु महा दुखु पाइ ॥
मन में छल-कपट की वजह से मनुष्य महा दुख प्राप्त करता है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੈ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥
सतिगुरु भेटै सोझी पाइ ॥
जब सतगुरु से भेंट होती है तो ही ज्ञान प्राप्त होता है,

ਸਚੈ ਨਾਮਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੪॥
सचै नामि रहै लिव लाइ ॥४॥
फिर परमात्मा के नाम में ध्यान लगा रहता है।॥ ४॥

ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥
सचै सबदि सचु कमावै ॥
वह गुरु के सच्चे उपदेश से सत्कर्म करता है और

ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
ची बाणी हरि गुण गावै ॥
शुद्ध वाणी से परमात्मा का गुणानुवाद करता है।

ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਅਮਰ ਪਦੁ ਪਾਵੈ ॥
निज घरि वासु अमर पदु पावै ॥
वह अपने सच्चे घर में रहकर अमर पदवी पा लेता है।

ਤਾ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਵੈ ॥੫॥
ता दरि साचै सोभा पावै ॥५॥
इस तरह प्रभु के द्वार पर शोभा प्राप्त करता है॥ ५॥

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥
गुर सेवा बिनु भगति न होई ॥
गुरु की सेवा बिना भक्ति नहीं होती

ਅਨੇਕ ਜਤਨ ਕਰੈ ਜੇ ਕੋਈ ॥
अनेक जतन करै जे कोई ॥
बेशक कोई अनेय यत्न कर ले ।

ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਸਬਦੇ ਖੋਈ ॥
हउमै मेरा सबदे खोई ॥
जब गुरु के वचन से अहम्-भाव दूर होता है तो

ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਸੋਈ ॥੬॥
निरमल नामु वसै मनि सोई ॥६॥
मन में निर्मल नाम बस जाता है।॥ ६॥

ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਸਬਦੁ ਕਰਣੀ ਹੈ ਸਾਰੁ ॥
इसु जग महि सबदु करणी है सारु ॥
इस दुनिया में ब्रह्म-शब्द ही श्रेष्ठ प्राप्ति है।

ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਹੋਰੁ ਮੋਹੁ ਗੁਬਾਰੁ ॥
बिनु सबदै होरु मोहु गुबारु ॥
प्रभु-शब्द के बिना सब मोह एवं अंधकार है और

ਸਬਦੇ ਨਾਮੁ ਰਖੈ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
सबदे नामु रखै उरि धारि ॥
शब्द से ही नाम हृदय में धारण होता है।

ਸਬਦੇ ਗਤਿ ਮਤਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੭॥
सबदे गति मति मोख दुआरु ॥७॥
शब्द की इतनी महता है कि इससे मुक्ति प्राप्त होती है।॥ ७॥

ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਕਰਿ ਦੇਖਣਹਾਰੋ ॥
अवरु नाही करि देखणहारो ॥
भगवान के बिना अन्य कोई भी नहीं है, जो रचना करके पोषण करने वाला हो।

ਸਾਚਾ ਆਪਿ ਅਨੂਪੁ ਅਪਾਰੋ ॥
साचा आपि अनूपु अपारो ॥
वह सत्यस्वरूप, अनुपम एवं अपार है।

ਰਾਮ ਨਾਮ ਊਤਮ ਗਤਿ ਹੋਈ ॥
राम नाम ऊतम गति होई ॥
गुरु नानक उपदेश करते हैं- राम नाम के स्मरण से ही उतम गति होती है,

ਨਾਨਕ ਖੋਜਿ ਲਹੈ ਜਨੁ ਕੋਈ ॥੮॥੧॥
नानक खोजि लहै जनु कोई ॥८॥१॥
कोई भी जिज्ञासु खोज कर पा लेता है ॥८॥१॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਗਲ ਜਗੁ ਛਾਇਆ ॥
माइआ मोहि सगल जगु छाइआ ॥
पूरे संसार में माया का मोह फैला हुआ है।

ਕਾਮਣਿ ਦੇਖਿ ਕਾਮਿ ਲੋਭਾਇਆ ॥
कामणि देखि कामि लोभाइआ ॥
सुन्दर युवती को देखकर कामपिपासु उस पर लुब्ध हो जाता है।

ਸੁਤ ਕੰਚਨ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ਵਧਾਇਆ ॥
सुत कंचन सिउ हेतु वधाइआ ॥
जीव ने अपने पुत्र एवं धन-दौलत से प्रेम लगाया हुआ है।

ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਅਪਨਾ ਇਕੁ ਰਾਮੁ ਪਰਾਇਆ ॥੧॥
सभु किछु अपना इकु रामु पराइआ ॥१॥
सब चीजों को तो वह अपना मानता है, लेकिन एक परमेश्वर ही उसके लिए पराया बना हुआ है॥ १॥

ਐਸਾ ਜਾਪੁ ਜਪਉ ਜਪਮਾਲੀ ॥
ऐसा जापु जपउ जपमाली ॥
माला लेकर ऐसा जाप करो कि

ਦੁਖ ਸੁਖ ਪਰਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨਿਰਾਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुख सुख परहरि भगति निराली ॥१॥ रहाउ ॥
दुख सुख से रहित होकर भक्ति में लीन हो जाओ॥ १॥रहाउ॥

ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
गुण निधान तेरा अंतु न पाइआ ॥
हे गुणों के खजाने ! तेरा रहस्य कोई नहीं पा सकता,

ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਤੁਝ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥
साच सबदि तुझ माहि समाइआ ॥
सच्चे शब्द द्वारा ही जीव तुझ में लीन होता है।

ਆਵਾ ਗਉਣੁ ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਰਚਾਇਆ ॥
आवा गउणु तुधु आपि रचाइआ ॥
जन्म-मरण तूने स्वयं ही बनाया है।

ਸੇਈ ਭਗਤ ਜਿਨ ਸਚਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥੨॥
सेई भगत जिन सचि चितु लाइआ ॥२॥
वही परम भक्त है, जिसने परमात्मा में मन लगाया है॥ २॥

ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਨਰਹਰਿ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥
गिआनु धिआनु नरहरि निरबाणी ॥
ईश्वर के ज्ञान ध्यान को

ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੀ ॥
बिनु सतिगुर भेटे कोइ न जाणी ॥
सतगुरु के साक्षात्कार के बिना कोई नहीं जान सकता।

ਸਗਲ ਸਰੋਵਰ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥
सगल सरोवर जोति समाणी ॥
सबके अन्तर्मन में उसी की ज्योति फैली हुई है,

ਆਨਦ ਰੂਪ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੀ ॥੩॥
आनद रूप विटहु कुरबाणी ॥३॥
मैं उस आनंदरूप प्रभु पर सदा कुर्बान जाता हूँ॥ ३॥

ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਗੁਰਮਤੀ ਪਾਏ ॥
भाउ भगति गुरमती पाए ॥
गुरु की शिक्षा से ही भाव-भक्ति प्राप्त होती है और

ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
हउमै विचहु सबदि जलाए ॥
शब्द से मन का अहंकार जल जाता है।

error: Content is protected !!