ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥
जुग चारे गुर सबदि पछाता ॥
उसने शब्द-गुरु के भेद को चारों युग में पहचान लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਰੈ ਨ ਜਨਮੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਸਮਾਹਾ ਹੇ ॥੧੦॥
गुरमुखि मरै न जनमै गुरमुखि गुरमुखि सबदि समाहा हे ॥१०॥
वह जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है और शब्द में ही लीन रहता है।॥ १०॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਸਬਦਿ ਸਾਲਾਹੇ ॥
गुरमुखि नामि सबदि सालाहे ॥
गुरुमुख नाम एवं शब्द की ही स्तुति करता है,”
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਵੇਪਰਵਾਹੇ ॥
अगम अगोचर वेपरवाहे ॥
जो अगम्य-मन वाणी से परे एवं बेपरवाह है।
ਏਕ ਨਾਮਿ ਜੁਗ ਚਾਰਿ ਉਧਾਰੇ ਸਬਦੇ ਨਾਮ ਵਿਸਾਹਾ ਹੇ ॥੧੧॥
एक नामि जुग चारि उधारे सबदे नाम विसाहा हे ॥११॥
चारों युग एक हरि-नाम ही जीवों का उद्धार करने वाला है और शब्द द्वारा ही नाम का व्यापार होता है॥ ११॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਂਤਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
गुरमुखि सांति सदा सुखु पाए ॥
गुरुमुख सदैव ही शान्ति एवं सुख प्राप्त करता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥
गुरमुखि हिरदै नामु वसाए ॥
अपने हृदय में हरि-नाम को बसा लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਨਾਮੁ ਬੂਝੈ ਕਾਟੇ ਦੁਰਮਤਿ ਫਾਹਾ ਹੇ ॥੧੨॥
गुरमुखि होवै सो नामु बूझै काटे दुरमति फाहा हे ॥१२॥
जो गुरुमुख होता है, वह नाम के भेद को बूझ लेता है और उसकी दुर्मति का फन्दा कट जाता है॥ १२॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਪਜੈ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥
गुरमुखि उपजै साचि समावै ॥
गुरुमुख सत्य से उत्पन्न होकर सत्य में ही विलीन हो जाता है।
ਨਾ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਨ ਜੂਨੀ ਪਾਵੈ ॥
ना मरि जमै न जूनी पावै ॥
वह न ही जन्मता-मरता है और न ही योनि-चक्र में पड़ता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਰਹਹਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਅਨਦਿਨੁ ਲੈਦੇ ਲਾਹਾ ਹੇ ॥੧੩॥
गुरमुखि सदा रहहि रंगि राते अनदिनु लैदे लाहा हे ॥१३॥
गुरुमुख सदा ही परमात्मा के रंग में लीन रहता है और नित्य नाम का लाभ प्राप्त करता है॥ १३॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਬਾਰੇ ॥
गुरमुखि भगत सोहहि दरबारे ॥
गुरुमुख भक्त प्रभु दरबार में सुन्दर लगते हैं और
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੇ ॥
सची बाणी सबदि सवारे ॥
सच्ची वाणी शब्द द्वारा उनका जीवन-संवार देती है।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਹਾ ਹੇ ॥੧੪॥
अनदिनु गुण गावै दिनु राती सहज सेती घरि जाहा हे ॥१४॥
वे दिन-रात परमात्मा के गुण गाते हैं और सहज ही अपने सच्चे घर पहुँच जाते हैं।॥ १४॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥
सतिगुरु पूरा सबदु सुणाए ॥
पूर्ण सतिगुरु शब्द सुनाता है,”
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
अनदिनु भगति करहु लिव लाए ॥
उपदेश करता है कि नित्य ध्यान लगाकर भगवान् की भक्ति करो।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਦ ਹੀ ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਮਲ ਗੁਣ ਪਾਤਿਸਾਹਾ ਹੇ ॥੧੫॥
हरि गुण गावहि सद ही निरमल निरमल गुण पातिसाहा हे ॥१५॥
जो भगवान् का गुणगान करते हैं, वे सदैव ही निर्मल हैं और निर्मल गुणों के कारण बादशाह बन जाते हैं।॥ १५॥
ਗੁਣ ਕਾ ਦਾਤਾ ਸਚਾ ਸੋਈ ॥
गुण का दाता सचा सोई ॥
गुणों का दाता वह सत्यस्वरूप परमेश्वर ही है,”
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥
गुरमुखि विरला बूझै कोई ॥
इस रहस्य को कोई विरला गुरुमुख ही बूझता है।
ਨਾਨਕ ਜਨੁ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹੇ ਬਿਗਸੈ ਸੋ ਨਾਮੁ ਬੇਪਰਵਾਹਾ ਹੇ ॥੧੬॥੨॥੧੧॥
नानक जनु नामु सलाहे बिगसै सो नामु बेपरवाहा हे ॥१६॥२॥११॥
हे नानक ! परमात्मा का नाम बेपरवाह है, वह तो नाम का स्तुतिगान करके ही प्रसन्न रहता है। १६॥२॥ ११॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३ ॥
मारू महला ३॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਸੇਵਿਹੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥
हरि जीउ सेविहु अगम अपारा ॥
अगम्य अपार ईश्वर की उपासना करो;
ਤਿਸ ਦਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥
तिस दा अंतु न पाईऐ पारावारा ॥
उसका कोई अन्त एवं आर-पार पाया नहीं जा सकता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਰਵਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਤਿਤੁ ਘਟਿ ਮਤਿ ਅਗਾਹਾ ਹੇ ॥੧॥
गुर परसादि रविआ घट अंतरि तितु घटि मति अगाहा हे ॥१॥
गुरु की कृपा से वह जिसके हृदय में बस जाता है, उस हृदय में अथाह ज्ञान उत्पन्न हो जाता है।॥ १॥
ਸਭ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥
सभ महि वरतै एको सोई ॥
सब जीवों में एक परमेश्वर ही व्याप्त है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਰਗਟੁ ਹੋਈ ॥
गुर परसादी परगटु होई ॥
गुरु की कृपा से वह प्रगट हो जाता है।
ਸਭਨਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਕਰੇ ਜਗਜੀਵਨੁ ਦੇਦਾ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹਾ ਹੇ ॥੨॥
सभना प्रतिपाल करे जगजीवनु देदा रिजकु स्मबाहा हे ॥२॥
जगत् को जीवन देने वाला परमात्मा सबका पोषण करता है और सब जीवों को रिजक देकर संभाल करता है॥ २॥
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝਿ ਬੁਝਾਇਆ ॥
पूरै सतिगुरि बूझि बुझाइआ ॥
पूर्ण सतिगुरु ने बूझकर यही समझाया है कि
ਹੁਕਮੇ ਹੀ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
हुकमे ही सभु जगतु उपाइआ ॥
ईश्वर के हुक्म से समूचा जगत् उत्पन्न हुआ है।
ਹੁਕਮੁ ਮੰਨੇ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਹੁਕਮੁ ਸਿਰਿ ਸਾਹਾ ਪਾਤਿਸਾਹਾ ਹੇ ॥੩॥
हुकमु मंने सोई सुखु पाए हुकमु सिरि साहा पातिसाहा हे ॥३॥
जो हुक्म मानता है, उसे ही सुख प्राप्त होता है और उसका हुक्म शाह-बादशाह सब पर चलता है॥ ३॥
ਸਚਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰਾ ॥
सचा सतिगुरु सबदु अपारा ॥
सच्चे सतगुरु का शब्द अपार है,”
ਤਿਸ ਦੈ ਸਬਦਿ ਨਿਸਤਰੈ ਸੰਸਾਰਾ ॥
तिस दै सबदि निसतरै संसारा ॥
उसके शब्द से संसार का उद्धार होता है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਦੇਦਾ ਸਾਸ ਗਿਰਾਹਾ ਹੇ ॥੪॥
आपे करता करि करि वेखै देदा सास गिराहा हे ॥४॥
स्रष्टा स्वयं ही पैदा कर करके जीवों की देखभाल करता है और उन्हें श्वास एवं भोजन देता है॥ ४॥
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ॥
कोटि मधे किसहि बुझाए ॥
करोड़ों में से किसी विरले को ही वह ज्ञान प्रदान करता है,
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਰੰਗੁ ਲਾਏ ॥
गुर कै सबदि रते रंगु लाए ॥
ऐसा पुरुष गुरु के शब्द द्वारा प्रभु के रंग में ही लीन रहता है।
ਹਰਿ ਸਾਲਾਹਹਿ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਰਿ ਬਖਸੇ ਭਗਤਿ ਸਲਾਹਾ ਹੇ ॥੫॥
हरि सालाहहि सदा सुखदाता हरि बखसे भगति सलाहा हे ॥५॥
जिसे भक्ति एवं स्तुतिगान का वरदान प्रदान करता है, वह सदा सुख देने वाले ईश्वर का ही स्तुतिगान करता रहता है॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਜਨ ਸਾਚੇ ॥
सतिगुरु सेवहि से जन साचे ॥
वही मनुष्य सच्चे हैं, जो सतिगुरु की सेवा करते हैं।
ਜੋ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਕਾਚਨਿ ਕਾਚੇ ॥
जो मरि जमहि काचनि काचे ॥
जो जन्मते-मरते रहते हैं, वे कच्चे ही हैं।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਅਥਾਹਾ ਹੇ ॥੬॥
अगम अगोचरु वेपरवाहा भगति वछलु अथाहा हे ॥६॥
ईश्वर अपहुँच, मन-वाणी से परे, बे-परवाह, भक्तवत्सल एवं गुणों का अथाह सागर है॥ ६॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਾਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
सतिगुरु पूरा साचु द्रिड़ाए ॥
पूर्ण सतगुरु ने जिसे सत्य-नाम दृढ़ करवा दिया है,”
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥
सचै सबदि सदा गुण गाए ॥
वह सच्चे शब्द द्वारा सदैव ही प्रभु का गुणगान करता रहता है।
ਗੁਣਦਾਤਾ ਵਰਤੈ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਲਿਖਦਾ ਸਾਹਾ ਹੇ ॥੭॥
गुणदाता वरतै सभ अंतरि सिरि सिरि लिखदा साहा हे ॥७॥
गुणदाता परमेश्वर सबके अन्तर्मन में व्याप्त है और वह सबके माथे पर भाग्य एवं मृत्यु का समय लिखता है॥ ७॥
ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਪੈ ॥
सदा हदूरि गुरमुखि जापै ॥
गुरुमुख जीव को वह सदैव ही आस-पास अनुभव होता है।
ਸਬਦੇ ਸੇਵੈ ਸੋ ਜਨੁ ਧ੍ਰਾਪੈ ॥
सबदे सेवै सो जनु ध्रापै ॥
जो ब्रह्म-शब्द की उपासना करता है, वह सदा तृप्त रहता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸੇਵਹਿ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਓਮਾਹਾ ਹੇ ॥੮॥
अनदिनु सेवहि सची बाणी सबदि सचै ओमाहा हे ॥८॥
जो मनुष्य नित्य सच्ची वाणी द्वारा परमात्मा की सेवा करता है, सच्चे शब्द द्वारा उसके मन में भक्ति के लिए उत्साह बना रहता है।॥ ८॥
ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧਾ ਬਹੁ ਕਰਮ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
अगिआनी अंधा बहु करम द्रिड़ाए ॥
अन्धा अज्ञानी आदमी अनेक कर्म करता है और
ਮਨਹਠਿ ਕਰਮ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਪਾਏ ॥
मनहठि करम फिरि जोनी पाए ॥
मन के हठ से कर्म करके पुनः योनियों में ही पड़ता है।