ਤਨਿ ਮਨਿ ਸਾਂਤਿ ਹੋਇ ਅਧਿਕਾਈ ਰੋਗੁ ਕਾਟੈ ਸੂਖਿ ਸਵੀਜੈ ॥੩॥
तनि मनि सांति होइ अधिकाई रोगु काटै सूखि सवीजै ॥३॥
इससे तन-मन को शान्ति प्राप्त होगी, अधिकतर रोग कट जाएँगे और सुख प्राप्त होगा॥ ३॥
ਜਿਉ ਸੂਰਜੁ ਕਿਰਣਿ ਰਵਿਆ ਸਰਬ ਠਾਈ ਸਭ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਾਮੁ ਰਵੀਜੈ ॥
जिउ सूरजु किरणि रविआ सरब ठाई सभ घटि घटि रामु रवीजै ॥
जैसे सूरज की किरणें हर जगह पर पहुँचती हैं, वैसे ही घट घट में ईश्वर व्याप्त है।
ਸਾਧੂ ਸਾਧ ਮਿਲੇ ਰਸੁ ਪਾਵੈ ਤਤੁ ਨਿਜ ਘਰਿ ਬੈਠਿਆ ਪੀਜੈ ॥੪॥
साधू साध मिले रसु पावै ततु निज घरि बैठिआ पीजै ॥४॥
जब साधु पुरुष से होती है तो हरिनाम रस का पान होता है।॥ ४॥
ਜਨ ਕਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਗੁਰ ਸੇਤੀ ਜਿਉ ਚਕਵੀ ਦੇਖਿ ਸੂਰੀਜੈ ॥
जन कउ प्रीति लगी गुर सेती जिउ चकवी देखि सूरीजै ॥
सेवक की गुरु से ऐसी प्रीति लगी हुई भेंट है, ज्यों चकवी सूर्य दर्शन करके अपने प्रेम का इजहार करती है।
ਨਿਰਖਤ ਨਿਰਖਤ ਰੈਨਿ ਸਭ ਨਿਰਖੀ ਮੁਖੁ ਕਾਢੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥੫॥
निरखत निरखत रैनि सभ निरखी मुखु काढै अम्रितु पीजै ॥५॥
वह रात भर देखती है, जब सूर्य मुँह दिखाता है तो दर्शन का अमृतपान करती है॥ ५॥
ਸਾਕਤ ਸੁਆਨ ਕਹੀਅਹਿ ਬਹੁ ਲੋਭੀ ਬਹੁ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਭਰੀਜੈ ॥
साकत सुआन कहीअहि बहु लोभी बहु दुरमति मैलु भरीजै ॥
मायावी व्यक्ति कुत्ते की तरह लालची कहलाता है और उसमें दुर्मति की बहुत मैल भरी होती है।
ਆਪਨ ਸੁਆਇ ਕਰਹਿ ਬਹੁ ਬਾਤਾ ਤਿਨਾ ਕਾ ਵਿਸਾਹੁ ਕਿਆ ਕੀਜੈ ॥੬॥
आपन सुआइ करहि बहु बाता तिना का विसाहु किआ कीजै ॥६॥
अपने स्वार्थ के लिए वह बहुत बातें करता है, लेकिन ऐसे व्यक्ति पर कैसे विश्वास किया जा सकता है॥ ६॥
ਸਾਧੂ ਸਾਧ ਸਰਨਿ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਕਾਢਿ ਕਢੀਜੈ ॥
साधू साध सरनि मिलि संगति जितु हरि रसु काढि कढीजै ॥
साधु पुरुषों की शरण में आओ, उनकी संगत में रहना चाहिए, जिससे हरिनाम रस प्राप्त किया जाए।
ਪਰਉਪਕਾਰ ਬੋਲਹਿ ਬਹੁ ਗੁਣੀਆ ਮੁਖਿ ਸੰਤ ਭਗਤ ਹਰਿ ਦੀਜੈ ॥੭॥
परउपकार बोलहि बहु गुणीआ मुखि संत भगत हरि दीजै ॥७॥
गुणवान मनुष्य परोपकार की बातें करते हैं, अतः संतों एवं भक्तों के सम्मुख रहना चाहिए॥ ७॥
ਤੂ ਅਗਮ ਦਇਆਲ ਦਇਆ ਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸਭ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਰਖਿ ਲੀਜੈ ॥
तू अगम दइआल दइआ पति दाता सभ दइआ धारि रखि लीजै ॥
हे ईश्वर ! तू अगम्य, दयालु, दया का भण्डार और सब को देने वाला है, दया करके हमें बचा लो।
ਸਰਬ ਜੀਅ ਜਗਜੀਵਨੁ ਏਕੋ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਕਰੀਜੈ ॥੮॥੫॥
सरब जीअ जगजीवनु एको नानक प्रतिपाल करीजै ॥८॥५॥
नानक का कथन है- सब जीवों का एकमात्र तू ही जीवनदाता है, सबका पोषण करता है॥ ८॥ ५॥
ਕਲਿਆਨੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कलिआनु महला ४ ॥
कलिआन महला ४ ॥
ਰਾਮਾ ਹਮ ਦਾਸਨ ਦਾਸ ਕਰੀਜੈ ॥
रामा हम दासन दास करीजै ॥
हे ईश्वर ! हमें दासों का दास बना लो।
ਜਬ ਲਗਿ ਸਾਸੁ ਹੋਇ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ਪਿਵੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जब लगि सासु होइ मन अंतरि साधू धूरि पिवीजै ॥१॥ रहाउ ॥
जब तक अन्तर्मन में जीवन सॉसें चल रही हैं, साधु पुरुषों की चरण-धूल पान करते रहें॥ १॥रहाउ॥
ਸੰਕਰੁ ਨਾਰਦੁ ਸੇਖਨਾਗ ਮੁਨਿ ਧੂਰਿ ਸਾਧੂ ਕੀ ਲੋਚੀਜੈ ॥
संकरु नारदु सेखनाग मुनि धूरि साधू की लोचीजै ॥
शिवशंकर, देवर्षि नारद, शेषनाग एवं मुनिजन भी साधुओं की चरण-धूल चाहते हैं।
ਭਵਨ ਭਵਨ ਪਵਿਤੁ ਹੋਹਿ ਸਭਿ ਜਹ ਸਾਧੂ ਚਰਨ ਧਰੀਜੈ ॥੧॥
भवन भवन पवितु होहि सभि जह साधू चरन धरीजै ॥१॥
जहाँ साधु अपने चरण रखते हैं, वे सभी स्थान पवित्र हो जाते हैं॥ १॥
ਤਜਿ ਲਾਜ ਅਹੰਕਾਰੁ ਸਭੁ ਤਜੀਐ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਰਹੀਜੈ ॥
तजि लाज अहंकारु सभु तजीऐ मिलि साधू संगि रहीजै ॥
लाज, अहंकार सब छोड़कर साधु पुरुषों की संगत में रहना चाहिए।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੀ ਕਾਨਿ ਚੁਕਾਵੈ ਬਿਖੁ ਡੁਬਦਾ ਕਾਢਿ ਕਢੀਜੈ ॥੨॥
धरम राइ की कानि चुकावै बिखु डुबदा काढि कढीजै ॥२॥
साधु धर्मराज का भय दूर करते हैं और विकारों के सागर में डूबने से बचा लेते हैं।॥ २॥
ਭਰਮਿ ਸੂਕੇ ਬਹੁ ਉਭਿ ਸੁਕ ਕਹੀਅਹਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਹਰੀਜੈ ॥
भरमि सूके बहु उभि सुक कहीअहि मिलि साधू संगि हरीजै ॥
जो भ्रम में भटक कर सूख जाते हैं, खड़े-खड़े सूख जाते हैं, साधुओं के संग रहकर पुनः हरे भरे हो जाते हैं।
ਤਾ ਤੇ ਬਿਲਮੁ ਪਲੁ ਢਿਲ ਨ ਕੀਜੈ ਜਾਇ ਸਾਧੂ ਚਰਨਿ ਲਗੀਜੈ ॥੩॥
ता ते बिलमु पलु ढिल न कीजै जाइ साधू चरनि लगीजै ॥३॥
अतः पल भर की देरी किए बिना साधुओं के चरणों में लग जाना चाहिए॥ ३॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਕੀਰਤਨ ਰਤਨ ਵਥੁ ਹਰਿ ਸਾਧੂ ਪਾਸਿ ਰਖੀਜੈ ॥
राम नाम कीरतन रतन वथु हरि साधू पासि रखीजै ॥
प्रभु नामकीर्तन रूपी अमूल्य रत्न साधुओं के पास मौजूद है।
ਜੋ ਬਚਨੁ ਗੁਰ ਸਤਿ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮਾਨੈ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਕਾਢਿ ਧਰੀਜੈ ॥੪॥
जो बचनु गुर सति सति करि मानै तिसु आगै काढि धरीजै ॥४॥
जो गुरु के वचन को सत्य मानता है, गुरु उसके सम्मुख नाम-रत्न निकाल कर रख देता हैं।॥ ४॥
ਸੰਤਹੁ ਸੁਨਹੁ ਸੁਨਹੁ ਜਨ ਭਾਈ ਗੁਰਿ ਕਾਢੀ ਬਾਹ ਕੁਕੀਜੈ ॥
संतहु सुनहु सुनहु जन भाई गुरि काढी बाह कुकीजै ॥
हे सज्जनो, हे मेरे भाई ! मेरी बात जरा ध्यान से सुनना, गुरु बाँह उठाकर पुकार रहा है कि
ਜੇ ਆਤਮ ਕਉ ਸੁਖੁ ਸੁਖੁ ਨਿਤ ਲੋੜਹੁ ਤਾਂ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਨਿ ਪਵੀਜੈ ॥੫॥
जे आतम कउ सुखु सुखु नित लोड़हु तां सतिगुर सरनि पवीजै ॥५॥
यदि आत्मा को नित्य सुख चाहते हो तो सतिगुरु की शरण में पड़ो।॥ ५॥
ਜੇ ਵਡ ਭਾਗੁ ਹੋਇ ਅਤਿ ਨੀਕਾ ਤਾਂ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜੀਜੈ ॥
जे वड भागु होइ अति नीका तां गुरमति नामु द्रिड़ीजै ॥
यदि उत्तम भाग्य हो तो गुरु के उपदेश से हरिनाम का स्मरण होता है।
ਸਭੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਬਿਖਮੁ ਜਗੁ ਤਰੀਐ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੬॥
सभु माइआ मोहु बिखमु जगु तरीऐ सहजे हरि रसु पीजै ॥६॥
तदन्तर माया-मोह के विषम संसार-समुद्र से पार हुआ जाता है और स्वाभाविक ही हरिनाम रस का पान होता है॥ ६॥
ਮਾਇਆ ਮਾਇਆ ਕੇ ਜੋ ਅਧਿਕਾਈ ਵਿਚਿ ਮਾਇਆ ਪਚੈ ਪਚੀਜੈ ॥
माइआ माइआ के जो अधिकाई विचि माइआ पचै पचीजै ॥
जो लोग धन-दौलत के अभिलाषी होते हैं, वे धन में ही मरते खपते हैं।
ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰੁ ਮਹਾ ਪੰਥੁ ਬਿਖੜਾ ਅਹੰਕਾਰਿ ਭਾਰਿ ਲਦਿ ਲੀਜੈ ॥੭॥
अगिआनु अंधेरु महा पंथु बिखड़ा अहंकारि भारि लदि लीजै ॥७॥
अज्ञान के अन्धेरे वाला रास्ता बहुत विषम है, परन्तु मनुष्य अहंकार का बोझ लाद लेता है॥ ७॥
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਰਮ ਰਮੁ ਰਮ ਰਮ ਰਾਮੈ ਤੇ ਗਤਿ ਕੀਜੈ ॥
नानक राम रम रमु रम रम रामै ते गति कीजै ॥
गुरु नानक का फुरमान है कि राम-राम जपते रहो, राम नाम से मुक्ति होती है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤਾ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਰਾਮ ਨਾਮੈ ਰਲੈ ਮਿਲੀਜੈ ॥੮॥੬॥ ਛਕਾ ੧ ॥
सतिगुरु मिलै ता नामु द्रिड़ाए राम नामै रलै मिलीजै ॥८॥६॥ छका १ ॥
जब सच्चा गुरु मिल जाता है तो वह नाम का जाप करवाता है, तदन्तर जीव राम नाम में विलीन हो जाता है।॥ ८॥ ६॥ छ: अष्टपदियों का जोड।