ਕਰਮਾ ਉਪਰਿ ਨਿਬੜੈ ਜੇ ਲੋਚੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥੩॥
करमा उपरि निबड़ै जे लोचै सभु कोइ ॥३॥
चाहे सभी मनुष्य धन की तृष्णा में रहते हैं परन्तु उनकी किस्मत का उनके कर्मो अनुसार ही फैसला होता है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਕਰਣਾ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਸੋਈ ਸਾਰ ਕਰੇਇ ॥
नानक करणा जिनि कीआ सोई सार करेइ ॥
हे नानक ! जिसने सृष्टि की रचना की है, वही सबका पालन-पोषण करता है।
ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਪੀ ਖਸਮ ਕਾ ਕਿਸੈ ਵਡਾਈ ਦੇਇ ॥੪॥੧॥੧੮॥
हुकमु न जापी खसम का किसै वडाई देइ ॥४॥१॥१८॥
मालिक-प्रभु का हुक्म जाना नहीं जा सकता कि वह किसे महानता प्रदान करता है॥ ४॥ १॥ १८ ॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी बैरागणि महला १ ॥
गउड़ी बैरागणि महला १ ॥
ਹਰਣੀ ਹੋਵਾ ਬਨਿ ਬਸਾ ਕੰਦ ਮੂਲ ਚੁਣਿ ਖਾਉ ॥
हरणी होवा बनि बसा कंद मूल चुणि खाउ ॥
यदि मुझे मृगिनी बनकर वन में निवास करना पड़े तो मैं वहाँ कन्दमूल चुन-चुनकर खा लिया करूँगी।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮੇਰਾ ਸਹੁ ਮਿਲੈ ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਹਉ ਜਾਉ ਜੀਉ ॥੧॥
गुर परसादी मेरा सहु मिलै वारि वारि हउ जाउ जीउ ॥१॥
यदि गुरु की कृपा से मुझे मेरा पति-प्रभु मिल जाए तो मैं बार-बार उस पर कुर्बान जाऊँ॥ १॥
ਮੈ ਬਨਜਾਰਨਿ ਰਾਮ ਕੀ ॥
मै बनजारनि राम की ॥
मैं राम की वनजारिन (व्यापारी) हूँ।
ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਵਖਰੁ ਵਾਪਾਰੁ ਜੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरा नामु वखरु वापारु जी ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तेरा नाम ही व्यापार करने के लिए मेरा सौदा है॥ १॥ रहाउ॥
ਕੋਕਿਲ ਹੋਵਾ ਅੰਬਿ ਬਸਾ ਸਹਜਿ ਸਬਦ ਬੀਚਾਰੁ ॥
कोकिल होवा अंबि बसा सहजि सबद बीचारु ॥
यदि मुझे कोयल बन कर आम के पौधे पर रहना पड़े तो भी मैं सहज ही नाम की आराधना करूँगी।
ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ਮੇਰਾ ਸਹੁ ਮਿਲੈ ਦਰਸਨਿ ਰੂਪਿ ਅਪਾਰੁ ॥੨॥
सहजि सुभाइ मेरा सहु मिलै दरसनि रूपि अपारु ॥२॥
यदि मुझे सहज-स्वभाव मेरा पति-प्रभु मिल जाए तो उसके अपार रूप के दर्शन करूँगी॥ २॥
ਮਛੁਲੀ ਹੋਵਾ ਜਲਿ ਬਸਾ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਸਾਰਿ ॥
मछुली होवा जलि बसा जीअ जंत सभि सारि ॥
यदि मुझे मछली बनकर जल में निवास करना पड़े तो भी मैं उसकी आराधना करूँगी, जो समरत जीव-जन्तुओं की देखभाल करता है।
ਉਰਵਾਰਿ ਪਾਰਿ ਮੇਰਾ ਸਹੁ ਵਸੈ ਹਉ ਮਿਲਉਗੀ ਬਾਹ ਪਸਾਰਿ ॥੩॥
उरवारि पारि मेरा सहु वसै हउ मिलउगी बाह पसारि ॥३॥
प्रियतम प्रभु (इस संसार-सागर के अथाह जल के) दोनों ओर निवास करता है। अपनी भुजाएँ फैलाकर मैं उससे मिलूगी ॥ ३॥
ਨਾਗਨਿ ਹੋਵਾ ਧਰ ਵਸਾ ਸਬਦੁ ਵਸੈ ਭਉ ਜਾਇ ॥
नागनि होवा धर वसा सबदु वसै भउ जाइ ॥
यदि मुझे नागिन बनकर पृथ्वी में निवास करना पड़े तो भी मैं अपने प्रभु के नाम में ही निवास करूँगी और मेरा भय निवृत्त हो जाएगा।
ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥੨॥੧੯॥
नानक सदा सोहागणी जिन जोती जोति समाइ ॥४॥२॥१९॥
हे नानक ! वह जीव-स्त्री सदा सुहागिन है, जिसकी ज्योति प्रभु-ज्योति में समाई रहती है॥ ४॥ २॥ १९॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਦੀਪਕੀ ਮਹਲਾ ੧
गउड़ी पूरबी दीपकी महला १
गउड़ी पूरबी दीपकी महला १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜੈ ਘਰਿ ਕੀਰਤਿ ਆਖੀਐ ਕਰਤੇ ਕਾ ਹੋਇ ਬੀਚਾਰੋ ॥
जै घरि कीरति आखीऐ करते का होइ बीचारो ॥
जिस सत्संगति में परमात्मा की कीर्ति का गान होता है और सृष्टिकर्ता की महिमा का चिंतन किया जाता है,
ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਗਾਵਹੁ ਸੋਹਿਲਾ ਸਿਵਰਹੁ ਸਿਰਜਣਹਾਰੋ ॥੧॥
तितु घरि गावहु सोहिला सिवरहु सिरजणहारो ॥१॥
उस सत्संगति रूपी घर में जाकर यश के गीत गायन करो और उस करतार की ही आराधना करो।॥ १॥
ਤੁਮ ਗਾਵਹੁ ਮੇਰੇ ਨਿਰਭਉ ਕਾ ਸੋਹਿਲਾ ॥
तुम गावहु मेरे निरभउ का सोहिला ॥
हे मन ! तू सत्संगियों के साथ मिलकर निडर प्रभु की स्तुति के गीत गायन कर।
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜਾਉ ਜਿਤੁ ਸੋਹਿਲੈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ वारी जाउ जितु सोहिलै सदा सुखु होइ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं उस स्तुति के गीत पर कुर्बान जाता हूँ, जिस द्वारा सदैव सुख प्राप्त होता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਿਤ ਨਿਤ ਜੀਅੜੇ ਸਮਾਲੀਅਨਿ ਦੇਖੈਗਾ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥
नित नित जीअड़े समालीअनि देखैगा देवणहारु ॥
हे मानव ! जो पालनहार ईश्वर नित्यप्रति अनेकानेक जीवों का पोषण कर रहा है, वह तुझ पर भी कृपा-दृष्टि करेगा।
ਤੇਰੇ ਦਾਨੈ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਤਿਸੁ ਦਾਤੇ ਕਵਣੁ ਸੁਮਾਰੁ ॥੨॥
तेरे दानै कीमति ना पवै तिसु दाते कवणु सुमारु ॥२॥
उस ईश्वर द्वारा प्रदत्त पदार्थों का कोई मूल्यांकन नहीं है, क्योंकि वे तो अनन्त हैं।॥ २॥
ਸੰਬਤਿ ਸਾਹਾ ਲਿਖਿਆ ਮਿਲਿ ਕਰਿ ਪਾਵਹੁ ਤੇਲੁ ॥
स्मबति साहा लिखिआ मिलि करि पावहु तेलु ॥
इस मृत्युलोक से जाने का समय निश्चित किया हुआ है अर्थात् इहलोक से जाने हेतु साहे-पत्र रूपी संदेश संवत-दिन इत्यादि लिखकर तय किया हुआ है, इसलिए भगवान से मिलाप हेतु सत्संगियों के साथ मिलकर तेल डालने का शगुन कर लो अर्थात् मृत्यु रूपी विवाह होने से पूर्व शुभ कर्म कर लो ।
ਦੇਹੁ ਸਜਣ ਆਸੀਸੜੀਆ ਜਿਉ ਹੋਵੈ ਸਾਹਿਬ ਸਿਉ ਮੇਲੁ ॥੩॥
देहु सजण आसीसड़ीआ जिउ होवै साहिब सिउ मेलु ॥३॥
हे सज्जनो ! मुझे अपना आशीर्वाद दो कि मेरा प्रभु-पति से मिलन हो जाए॥ ३॥
ਘਰਿ ਘਰਿ ਏਹੋ ਪਾਹੁਚਾ ਸਦੜੇ ਨਿਤ ਪਵੰਨਿ ॥
घरि घरि एहो पाहुचा सदड़े नित पवंनि ॥
प्रत्येक घर में इस साहे-पत्र को भेजा जा रहा है, नित्य ही यह सन्देश किसी न किसी घर पहुँच रहा है अर्थात् नित्य ही कोई न कोई मृत्यु को प्राप्त हो रहा है।
ਸਦਣਹਾਰਾ ਸਿਮਰੀਐ ਨਾਨਕ ਸੇ ਦਿਹ ਆਵੰਨਿ ॥੪॥੧॥੨੦॥
सदणहारा सिमरीऐ नानक से दिह आवंनि ॥४॥१॥२०॥
नानक कथन करते हैं कि हे जीव ! मृत्यु का निमंत्रण भेजने वाले को स्मरण कर, चूंकि वह दिन निकट आ रहे हैं।॥ ४॥ १॥ २०॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ॥
रागु गउड़ी गुआरेरी ॥
रागु गउड़ी गुआरेरी ॥
ਮਹਲਾ ੩ ਚਉਪਦੇ ॥
महला ३ चउपदे ॥
महला ३ चउपदे ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਮੇਲਾ ਹੋਈ ॥
गुरि मिलिऐ हरि मेला होई ॥
यदि गुरु मिल जाए तो ईश्वर से मिलन हो जाता है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈ ਸੋਈ ॥
आपे मेलि मिलावै सोई ॥
वह ईश्वर स्वयं ही गुरु से मिलाकर अपने साथ मिला लेता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਬਿਧਿ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ॥
मेरा प्रभु सभ बिधि आपे जाणै ॥
मेरा प्रभु जीवों को अपने साथ मिलाने की समस्त युक्तियां जानता है।
ਹੁਕਮੇ ਮੇਲੇ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ॥੧॥
हुकमे मेले सबदि पछाणै ॥१॥
अपने हुक्म द्वारा वह उनको अपने साथ मिला लेता है, जो उसके नाम को पहचानते हैं।॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਇ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਜਾਇ ॥
सतिगुर कै भइ भ्रमु भउ जाइ ॥
सतिगुरु के भय-आदर में रहने से संशय एवं दूसरे खौफ लुप्त हो जाते हैं।
ਭੈ ਰਾਚੈ ਸਚ ਰੰਗਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भै राचै सच रंगि समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जो गुरु के भय में हर्षित रहता है, वह सत्य के प्रेम में लीन रहता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸੁਭਾਇ ॥
गुरि मिलिऐ हरि मनि वसै सुभाइ ॥
यदि गुरु मिल जाए तो ईश्वर सहज ही मनुष्य के हृदय में निवास कर जाता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਭਾਰਾ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇ ॥
मेरा प्रभु भारा कीमति नही पाइ ॥
मेरा प्रभु महान है, उसका मूल्यांकन नहीं पाया जा सकता।
ਸਬਦਿ ਸਾਲਾਹੈ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥
सबदि सालाहै अंतु न पारावारु ॥
गुरु के उपदेश से मैं प्रभु की सराहना करता हूँ, जिसका कोई अन्त नहीं, उसके अस्तित्व का ओर-छोर नहीं मिल सकता।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਬਖਸੇ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ॥੨॥
मेरा प्रभु बखसे बखसणहारु ॥२॥
मेरा परमेश्वर क्षमाशील है। वह दोषी जीवों को भी क्षमा कर देता है॥ २॥
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਸਭ ਮਤਿ ਬੁਧਿ ਹੋਇ ॥
गुरि मिलिऐ सभ मति बुधि होइ ॥
गुरु के मिलन से समस्त चतुराइयां एवं सद्बुद्धि प्राप्त हो जाती है।