ਕਰਿ ਮਜਨੋ ਸਪਤ ਸਰੇ ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ॥
करि मजनो सपत सरे मन निरमल मेरे राम ॥
हे मेरे मन ! सात सागर रूपी गुरु की संगति का स्नान करने से मन निर्मल हो जाता है।
ਨਿਰਮਲ ਜਲਿ ਨੑਾਏ ਜਾ ਪ੍ਰਭ ਭਾਏ ਪੰਚ ਮਿਲੇ ਵੀਚਾਰੇ ॥
निरमल जलि न्हाए जा प्रभ भाए पंच मिले वीचारे ॥
जब प्रभु को अच्छा लगता है तो मनुष्य पवित्र जल में स्नान कर लेता है और जीभ एवं काया इत्यादि यह पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ मन से मिलकर प्रभु के गुणों का विचार करते हैं।
ਕਾਮੁ ਕਰੋਧੁ ਕਪਟੁ ਬਿਖਿਆ ਤਜਿ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
कामु करोधु कपटु बिखिआ तजि सचु नामु उरि धारे ॥
काम, क्रोध, कपट एवं विकारों को छोड़कर प्राणी सत्यनाम को अपने हृदय में पा लेता है।
ਹਉਮੈ ਲੋਭ ਲਹਰਿ ਲਬ ਥਾਕੇ ਪਾਏ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
हउमै लोभ लहरि लब थाके पाए दीन दइआला ॥
जब अहंकार, लोभ की लहर एवं मिथ्या इत्यादि मिट जाते हैं तो मनुष्य दीनदयालु प्रभु को प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਮਾਨਿ ਤੀਰਥੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ਸਾਚੇ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥੩॥
नानक गुर समानि तीरथु नही कोई साचे गुर गोपाला ॥३॥
हे नानक ! गुरु के समान कोई तीर्थ स्थान नहीं, वह स्वयं ही गुरु गोपाल हैं।॥ ३॥
ਹਉ ਬਨੁ ਬਨੋ ਦੇਖਿ ਰਹੀ ਤ੍ਰਿਣੁ ਦੇਖਿ ਸਬਾਇਆ ਰਾਮ ॥
हउ बनु बनो देखि रही त्रिणु देखि सबाइआ राम ॥
मैं वन-वन में देख रही हूँ और सारी वनस्पति को देख चुकी हूँ।
ਤ੍ਰਿਭਵਣੋ ਤੁਝਹਿ ਕੀਆ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਸਬਾਇਆ ਰਾਮ ॥
त्रिभवणो तुझहि कीआ सभु जगतु सबाइआ राम ॥
हे प्रभु ! तीनों लोक एवं सारा जगत तेरा ही बनाया हुआ है।
ਤੇਰਾ ਸਭੁ ਕੀਆ ਤੂੰ ਥਿਰੁ ਥੀਆ ਤੁਧੁ ਸਮਾਨਿ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥
तेरा सभु कीआ तूं थिरु थीआ तुधु समानि को नाही ॥
यह सब कुछ तेरा ही उत्पन्न किया है, केवल तुम ही सदैव स्थिर हो। तेरे समान कोई नहीं।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਸਭ ਜਾਚਿਕ ਤੇਰੇ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਕਿਸੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥
तूं दाता सभ जाचिक तेरे तुधु बिनु किसु सालाही ॥
हे प्रभु ! तू दाता है और शेष सभी तेरे याचक हैं। तेरे बिना मैं किस का स्तुतिगान करूँ ?
ਅਣਮੰਗਿਆ ਦਾਨੁ ਦੀਜੈ ਦਾਤੇ ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
अणमंगिआ दानु दीजै दाते तेरी भगति भरे भंडारा ॥
हे दाता ! तुम तो बिना माँगे ही दान दिए जाते हो, तेरी भक्ति के भण्डार भरे हुए हैं।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਵੀਚਾਰਾ ॥੪॥੨॥
राम नाम बिनु मुकति न होई नानकु कहै वीचारा ॥४॥२॥
नानक का विचार है कि राम नाम के बिना किसी जीव को मुक्ति प्राप्त नहीं होती।॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥
ਮੇਰਾ ਮਨੋ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ॥
मेरा मनो मेरा मनु राता राम पिआरे राम ॥
मेरा मन अपने प्यारे राम के प्रेम में रंग गया है।
ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੋ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਅਪਰੰਪਰੋ ਧਾਰੇ ਰਾਮ ॥
सचु साहिबो आदि पुरखु अपर्मपरो धारे राम ॥
वह सच्चा प्रभु सबका मालिक एवं अपरम्पार आदिपुरुष है। उसने सारी धरती को सहारा प्रदान किया हुआ है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਅਪਰ ਅਪਾਰਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਧਾਨੋ ॥
अगम अगोचरु अपर अपारा पारब्रहमु परधानो ॥
वह अगम्य, अगोचर, अपरंपार पारब्रह्म सारे विश्व का बादशाह है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ਅਵਰੁ ਝੂਠਾ ਸਭੁ ਮਾਨੋ ॥
आदि जुगादी है भी होसी अवरु झूठा सभु मानो ॥
परमात्मा युगों के आरम्भ में भी था, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगा। शेष दुनिया को झूठा मानो !”
ਕਰਮ ਧਰਮ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ਸੁਰਤਿ ਮੁਕਤਿ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ॥
करम धरम की सार न जाणै सुरति मुकति किउ पाईऐ ॥
मनुष्य कर्म-धर्म की सार नहीं जानता। फिर वह सुरति एवं मुक्ति को कैसे प्राप्त कर सकता है?
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥
नानक गुरमुखि सबदि पछाणै अहिनिसि नामु धिआईऐ ॥१॥
हे नानक ! गुरुमुख केवल शब्द को ही जानता है और रात-दिन परमात्मा के नाम का ध्यान करता रहता है। १॥
ਮੇਰਾ ਮਨੋ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ਰਾਮ ॥
मेरा मनो मेरा मनु मानिआ नामु सखाई राम ॥
अब मेरे मन को आस्था हो चुकी है कि प्रभु का नाम ही लोक-परलोक में मनुष्य का सखा है।
ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਨ ਜਾਈ ਰਾਮ ॥
हउमै ममता माइआ संगि न जाई राम ॥
अहंत्व, ममता एवं माया मनुष्य के साथ नहीं जाती।
ਮਾਤਾ ਪਿਤ ਭਾਈ ਸੁਤ ਚਤੁਰਾਈ ਸੰਗਿ ਨ ਸੰਪੈ ਨਾਰੇ ॥
माता पित भाई सुत चतुराई संगि न स्मपै नारे ॥
माता, पिता, भाई, पुत्र, चतुराई, संपति एवं नारी उसका आगे साथ नहीं देते।
ਸਾਇਰ ਕੀ ਪੁਤ੍ਰੀ ਪਰਹਰਿ ਤਿਆਗੀ ਚਰਣ ਤਲੈ ਵੀਚਾਰੇ ॥
साइर की पुत्री परहरि तिआगी चरण तलै वीचारे ॥
प्रभु के सुमिरन द्वारा मैंने समुद्र की पुत्री लक्ष्मी अर्थात् माया को त्यागकर उसे अपने पैरों तले कुचल दिया है।
ਆਦਿ ਪੁਰਖਿ ਇਕੁ ਚਲਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਸੋਈ ॥
आदि पुरखि इकु चलतु दिखाइआ जह देखा तह सोई ॥
आदिपुरुष ने एक अलौकिक कौतुक दिखाया है कि जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, वहाँ मैं उसे ही पाता हूँ।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਨ ਛੋਡਉ ਸਹਜੇ ਹੋਇ ਸੁ ਹੋਈ ॥੨॥
नानक हरि की भगति न छोडउ सहजे होइ सु होई ॥२॥
हे नानक ! मैं हरि की भक्ति को नहीं छोडूंगा, सहज रूप में जो होना है वह होता रहे॥ २॥
ਮੇਰਾ ਮਨੋ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚੁ ਸਮਾਲੇ ਰਾਮ ॥
मेरा मनो मेरा मनु निरमलु साचु समाले राम ॥
मेरा मन उस सत्यस्वरूप राम के सुमिरन द्वारा निर्मल हो गया है।
ਅਵਗਣ ਮੇਟਿ ਚਲੇ ਗੁਣ ਸੰਗਮ ਨਾਲੇ ਰਾਮ ॥
अवगण मेटि चले गुण संगम नाले राम ॥
मैंने अपने अवगुणों को मिटा दिया है, इसलिए गुण मेरे साथ चलते हैं और गुणों के फलस्वरूप मेरा प्रभु के साथ संगम हो गया है।
ਅਵਗਣ ਪਰਹਰਿ ਕਰਣੀ ਸਾਰੀ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸਚਿਆਰੋ ॥
अवगण परहरि करणी सारी दरि सचै सचिआरो ॥
अवगुणों को त्यागकर मैं शुभ कर्म करता हूँ और सत्य के दरबार में सत्यवादी बन जाता हूँ।
ਆਵਣੁ ਜਾਵਣੁ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤੁ ਵੀਚਾਰੋ ॥
आवणु जावणु ठाकि रहाए गुरमुखि ततु वीचारो ॥
मेरा जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो गया है क्योंकि गुरुमुख बनकर मैंने परम तत्व प्रभु का चिन्तन किया है।
ਸਾਜਨੁ ਮੀਤੁ ਸੁਜਾਣੁ ਸਖਾ ਤੂੰ ਸਚਿ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ॥
साजनु मीतु सुजाणु सखा तूं सचि मिलै वडिआई ॥
हे प्रभु ! तू ही मेरा साजन, मित्र, सुजान एवं सखा है। तेरे सत्य-नाम द्वारा मुझे बड़ाई मिलती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਐਸੀ ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਈ ॥੩॥
नानक नामु रतनु परगासिआ ऐसी गुरमति पाई ॥३॥
हे नानक ! मुझे ऐसी गुरमति प्राप्त हुई है कि नाम-रत्न मेरे भीतर प्रकाशमान हो गया है॥ ३॥
ਸਚੁ ਅੰਜਨੋ ਅੰਜਨੁ ਸਾਰਿ ਨਿਰੰਜਨਿ ਰਾਤਾ ਰਾਮ ॥
सचु अंजनो अंजनु सारि निरंजनि राता राम ॥
सत्य एक अंजन है और इस सत्य के अंजन को मैंने संभालकर अपने नयनों में लगा लिया है तथा मैं निरंजन प्रभु के साथ रंग गया हूँ।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਜਗਜੀਵਨੋ ਦਾਤਾ ਰਾਮ ॥
मनि तनि रवि रहिआ जगजीवनो दाता राम ॥
मेरे तन-मन के भीतर जगजीवन दाता राम बस रहा है।
ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਮਨਿ ਰਾਤਾ ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਮੇਲਾਇਆ ॥
जगजीवनु दाता हरि मनि राता सहजि मिलै मेलाइआ ॥
मेरा मन जगजीवन दाता हरि के साथ लीन हुआ है और सहजता से मिलाने से ही मिलन हो गया है।
ਸਾਧ ਸਭਾ ਸੰਤਾ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਨਦਰਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
साध सभा संता की संगति नदरि प्रभू सुखु पाइआ ॥
साधुओं की सभा एवं संतों की संगति में मुझे प्रभु की कृपादृष्टि से ही सुख उपलब्ध हुआ है।
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਰਤੇ ਬੈਰਾਗੀ ਚੂਕੇ ਮੋਹ ਪਿਆਸਾ ॥
हरि की भगति रते बैरागी चूके मोह पिआसा ॥
वैरागी पुरुष हरि की भक्ति में लीन रहते हैं तथा उनका मोह एवं तृष्णा मिट जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਪਤੀਣੇ ਵਿਰਲੇ ਦਾਸ ਉਦਾਸਾ ॥੪॥੩॥
नानक हउमै मारि पतीणे विरले दास उदासा ॥४॥३॥
हे नानक ! कोई विरला ही वैरागी प्रभु का दास है जो अपना अहंकार मिटाकर प्रसन्न रहता है॥ ४॥ ३॥