ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮੇਲਾਵੈ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਹਉ ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਕਉ ਜਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु पूरा मेलावै मेरा प्रीतमु हउ वारि वारि आपणे गुरू कउ जासा ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु ही मुझे मेरे प्रियतम-प्रभु से मिलाता है और अपने गुरु पर मैं करोड़ों बार न्यौछावर होता हूँ ॥१॥ रहाउ॥
ਮੈ ਅਵਗਣ ਭਰਪੂਰਿ ਸਰੀਰੇ ॥
मै अवगण भरपूरि सरीरे ॥
मेरा यह शरीर अवगुणों से परिपूर्ण है,
ਹਉ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮਿਲਾ ਅਪਣੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪੂਰੇ ॥੨॥
हउ किउ करि मिला अपणे प्रीतम पूरे ॥२॥
फिर भला मैं अपने गुणों से भरपूर प्रियतम से कैसे मिलन कर सकती हूँ? ॥ २॥
ਜਿਨਿ ਗੁਣਵੰਤੀ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਪਾਇਆ ॥
जिनि गुणवंती मेरा प्रीतमु पाइआ ॥
हे मेरी माता! जिन गुणवानों ने मेरा प्रियतम-प्रभु प्राप्त कर लिया है,
ਸੇ ਮੈ ਗੁਣ ਨਾਹੀ ਹਉ ਕਿਉ ਮਿਲਾ ਮੇਰੀ ਮਾਇਆ ॥੩॥
से मै गुण नाही हउ किउ मिला मेरी माइआ ॥३॥
उनकी तरह तमाम गुण मुझमें विद्यमान नहीं, फिर मेरा मिलन कैसे हो ? ॥३॥
ਹਉ ਕਰਿ ਕਰਿ ਥਾਕਾ ਉਪਾਵ ਬਹੁਤੇਰੇ ॥
हउ करि करि थाका उपाव बहुतेरे ॥
मैं अनेक उपाय करके थक चुका हूँ,
ਨਾਨਕ ਗਰੀਬ ਰਾਖਹੁ ਹਰਿ ਮੇਰੇ ॥੪॥੧॥
नानक गरीब राखहु हरि मेरे ॥४॥१॥
नानक की प्रार्थना है कि हे मेरे हरि ! मुझ गरीब को अपनी शरण में रखो ॥४॥१॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
वडहंसु महला ४ ॥
वडहंसु महला ४
ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁੰਦਰੁ ਮੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥
मेरा हरि प्रभु सुंदरु मै सार न जाणी ॥
मेरा हरि-प्रभु बहुत सुन्दर है किन्तु मैं उसकी कद्र को नहीं जानती।
ਹਉ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਛੋਡਿ ਦੂਜੈ ਲੋਭਾਣੀ ॥੧॥
हउ हरि प्रभ छोडि दूजै लोभाणी ॥१॥
मैं तो प्रभु को छोड़कर मोह-माया के आकर्षण में ही फंसी हुई हूँ॥ १॥
ਹਉ ਕਿਉ ਕਰਿ ਪਿਰ ਕਉ ਮਿਲਉ ਇਆਣੀ ॥
हउ किउ करि पिर कउ मिलउ इआणी ॥
मैं विमूढ़ अपने पति-परमेश्वर को कैसे मिल सकती हूँ?
ਜੋ ਪਿਰ ਭਾਵੈ ਸਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਸਾਈ ਪਿਰ ਕਉ ਮਿਲੈ ਸਿਆਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो पिर भावै सा सोहागणि साई पिर कउ मिलै सिआणी ॥१॥ रहाउ ॥
जो जीवात्मा अपने पति-परमेश्वर को अच्छी लगती है, वही सौभाग्यवती है और वही बुद्धिमान जीवात्मा अपने प्रियतम से मिलती है।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈ ਵਿਚਿ ਦੋਸ ਹਉ ਕਿਉ ਕਰਿ ਪਿਰੁ ਪਾਵਾ ॥
मै विचि दोस हउ किउ करि पिरु पावा ॥
मुझमें अनेक दोष हैं, फिर मेरा प्रियतम-प्रभु से कैसे मिलन हो सकता है?
ਤੇਰੇ ਅਨੇਕ ਪਿਆਰੇ ਹਉ ਪਿਰ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਾ ॥੨॥
तेरे अनेक पिआरे हउ पिर चिति न आवा ॥२॥
हे प्रियतम-प्रभु ! तेरे तो अनेक ही प्रेमी हैं, मैं तो तुझे याद ही नहीं आती ॥२॥
ਜਿਨਿ ਪਿਰੁ ਰਾਵਿਆ ਸਾ ਭਲੀ ਸੁਹਾਗਣਿ ॥
जिनि पिरु राविआ सा भली सुहागणि ॥
जो जीवात्मा अपने पति-परमेश्वर के साथ रमण करती है, वही वास्तव में भली सौभाग्यवती है।
ਸੇ ਮੈ ਗੁਣ ਨਾਹੀ ਹਉ ਕਿਆ ਕਰੀ ਦੁਹਾਗਣਿ ॥੩॥
से मै गुण नाही हउ किआ करी दुहागणि ॥३॥
वे गुण मुझमें विद्यमान नहीं है, फिर मैं दुहागिन जीवात्मा क्या करूँ ? ॥ ३॥
ਨਿਤ ਸੁਹਾਗਣਿ ਸਦਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵੈ ॥
नित सुहागणि सदा पिरु रावै ॥
सौभाग्यवती जीवात्मा नित्य ही अपने पति-प्रभु के साथ सर्वदा रमण करती है।
ਮੈ ਕਰਮਹੀਣ ਕਬ ਹੀ ਗਲਿ ਲਾਵੈ ॥੪॥
मै करमहीण कब ही गलि लावै ॥४॥
क्या मुझ कर्महीन को कभी मेरा पति-प्रभु अपने गले से लगाएगा ? ॥४॥
ਤੂ ਪਿਰੁ ਗੁਣਵੰਤਾ ਹਉ ਅਉਗੁਣਿਆਰਾ ॥
तू पिरु गुणवंता हउ अउगुणिआरा ॥
हे प्रियतम-प्रभु ! तू गुणवान है किन्तु मैं अवगुणों से भरी हुई हूँ।
ਮੈ ਨਿਰਗੁਣ ਬਖਸਿ ਨਾਨਕੁ ਵੇਚਾਰਾ ॥੫॥੨॥
मै निरगुण बखसि नानकु वेचारा ॥५॥२॥
मुझ निर्गुण एवं बेचारे नानक को क्षमा कर दो ॥५॥२॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨
वडहंसु महला ४ घरु २
वडहंसु महला ४ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੈ ਮਨਿ ਵਡੀ ਆਸ ਹਰੇ ਕਿਉ ਕਰਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਪਾਵਾ ॥
मै मनि वडी आस हरे किउ करि हरि दरसनु पावा ॥
मेरे मन में बड़ी आशा है, फिर में कैसे हरि के दर्शन करूँ ?
ਹਉ ਜਾਇ ਪੁਛਾ ਅਪਨੇ ਸਤਗੁਰੈ ਗੁਰ ਪੁਛਿ ਮਨੁ ਮੁਗਧੁ ਸਮਝਾਵਾ ॥
हउ जाइ पुछा अपने सतगुरै गुर पुछि मनु मुगधु समझावा ॥
मैं अपने सतिगुरु से जाकर पूछता हूँ और गुरु से पूछकर अपने विमूढ़ मन को समझाता हूँ।
ਭੂਲਾ ਮਨੁ ਸਮਝੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਦਾ ਧਿਆਏ ॥
भूला मनु समझै गुर सबदी हरि हरि सदा धिआए ॥
यह भूला हुआ मन गुरु के शब्द द्वारा ही समझता है और इस तरह दिन-रात हरि-परमेश्वर का ध्यान करता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਪਿਆਰਾ ਸੋ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥੧॥
नानक जिसु नदरि करे मेरा पिआरा सो हरि चरणी चितु लाए ॥१॥
हे नानक ! मेरा प्रियतम जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि करता है, वह हरि के सुन्दर चरणों में अपना चित्त लगाता है ॥१॥
ਹਉ ਸਭਿ ਵੇਸ ਕਰੀ ਪਿਰ ਕਾਰਣਿ ਜੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸਾਚੇ ਭਾਵਾ ॥
हउ सभि वेस करी पिर कारणि जे हरि प्रभ साचे भावा ॥
अपने प्रियतम-प्रभु के लिए मैं विभिन्न प्रकार के सभी वेष धारण करती हूँ चूंकि जो मैं अपने सत्यस्वरूप हरि-प्रभु को अच्छी लगने लगूं।
ਸੋ ਪਿਰੁ ਪਿਆਰਾ ਮੈ ਨਦਰਿ ਨ ਦੇਖੈ ਹਉ ਕਿਉ ਕਰਿ ਧੀਰਜੁ ਪਾਵਾ ॥
सो पिरु पिआरा मै नदरि न देखै हउ किउ करि धीरजु पावा ॥
लेकिन वह प्रियतम प्यारा मेरी तरफ कृपा-दृष्टि से नजर उठाकर भी नहीं देखता तो फिर मैं क्या कर धैर्य प्राप्त कर सकती हूँ?
ਜਿਸੁ ਕਾਰਣਿ ਹਉ ਸੀਗਾਰੁ ਸੀਗਾਰੀ ਸੋ ਪਿਰੁ ਰਤਾ ਮੇਰਾ ਅਵਰਾ ॥
जिसु कारणि हउ सीगारु सीगारी सो पिरु रता मेरा अवरा ॥
जिसके कारण मैंने अनेक हार-श्रृंगारों से श्रृंगार किया है, वह मेरा पति-प्रभु दूसरों के प्रेम में लीन रहता है।
ਨਾਨਕ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਸੋਹਾਗਣਿ ਜਿਨਿ ਪਿਰੁ ਰਾਵਿਅੜਾ ਸਚੁ ਸਵਰਾ ॥੨॥
नानक धनु धंनु धंनु सोहागणि जिनि पिरु राविअड़ा सचु सवरा ॥२॥
हे नानक ! वह जीव-स्त्री धन्य-धन्य एवं सौभाग्यवती है, जिसने पति-प्रभु के साथ रमण किया है और इस सत्यस्वरूप सर्वश्रेष्ठ पति को ही बसाया हुआ है॥ २॥
ਹਉ ਜਾਇ ਪੁਛਾ ਸੋਹਾਗ ਸੁਹਾਗਣਿ ਤੁਸੀ ਕਿਉ ਪਿਰੁ ਪਾਇਅੜਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥
हउ जाइ पुछा सोहाग सुहागणि तुसी किउ पिरु पाइअड़ा प्रभु मेरा ॥
मैं जाकर भाग्यशाली सुहागिन से पूछती हूँ कि आपने कैसे मेरे प्रभु (सुहाग) को प्राप्त किया है।
ਮੈ ਊਪਰਿ ਨਦਰਿ ਕਰੀ ਪਿਰਿ ਸਾਚੈ ਮੈ ਛੋਡਿਅੜਾ ਮੇਰਾ ਤੇਰਾ ॥
मै ऊपरि नदरि करी पिरि साचै मै छोडिअड़ा मेरा तेरा ॥
वह कहती है कि मैंने मेरे-तेरे के अन्तर को छोड़ दिया है, इसलिए मेरे सच्चे पति-परमेश्वर ने मुझ पर कृपा-दृष्टि की है।
ਸਭੁ ਮਨੁ ਤਨੁ ਜੀਉ ਕਰਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਇਤੁ ਮਾਰਗਿ ਭੈਣੇ ਮਿਲੀਐ ॥
सभु मनु तनु जीउ करहु हरि प्रभ का इतु मारगि भैणे मिलीऐ ॥
हे मेरी बहन ! अपना मन, तन, प्राण एवं सर्वस्व हरि-प्रभु को अर्पित कर दे, यही उससे मिलन का सुगम मार्ग है।
ਆਪਨੜਾ ਪ੍ਰਭੁ ਨਦਰਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ਨਾਨਕ ਜੋਤਿ ਜੋਤੀ ਰਲੀਐ ॥੩॥
आपनड़ा प्रभु नदरि करि देखै नानक जोति जोती रलीऐ ॥३॥
हे नानक ! अपना प्रभु जिस पर कृपा-दृष्टि से देखता है, उसकी ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है॥ ३॥
ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਮੈ ਦੇਇ ਸਨੇਹਾ ਤਿਸੁ ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਪਣਾ ਦੇਵਾ ॥
जो हरि प्रभ का मै देइ सनेहा तिसु मनु तनु अपणा देवा ॥
जो कोई पुण्यात्मा मुझे मेरे हरि-प्रभु का सन्देश देती है, उसे मैं अपना तन-मन अर्पण करती हूँ।
ਨਿਤ ਪਖਾ ਫੇਰੀ ਸੇਵ ਕਮਾਵਾ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਪਾਣੀ ਢੋਵਾਂ ॥
नित पखा फेरी सेव कमावा तिसु आगै पाणी ढोवां ॥
मैं नित्य ही उसे पंखा फेरती हूँ, उसकी श्रद्धा से सेवा करती हूँ और उसके समक्ष जल लाती हूँ।
ਨਿਤ ਨਿਤ ਸੇਵ ਕਰੀ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਜੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣਾਏ ॥
नित नित सेव करी हरि जन की जो हरि हरि कथा सुणाए ॥
जो मुझे हरि की हरि-कथा सुनाता है, उस हरि के सेवक की मैं दिन-रात सर्वदा सेवा करती हूँ।