ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
ईश्वर एक है, उसका नाम सदैव सत्य है, वह जगत का रचयिता है, सर्वशक्तिमान है, निर्भय है, उसका किसी से कोई वैर नहीं, वह मायातीत अमर है, जन्म-मरण के चक्र से परे है, स्वयंभू है, जो गुरु की बख्शिश से ही मिलता है।
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ ॥
सोरठि महला १ घरु १ चउपदे ॥
सोरठि महला १ घरु १ चउपदे ॥
ਸਭਨਾ ਮਰਣਾ ਆਇਆ ਵੇਛੋੜਾ ਸਭਨਾਹ ॥
सभना मरणा आइआ वेछोड़ा सभनाह ॥
दुनिया में जो भी आया है, सभी के लिए मृत्यु अटल है और सभी ने अपनों से जुदा होना है।
ਪੁਛਹੁ ਜਾਇ ਸਿਆਣਿਆ ਆਗੈ ਮਿਲਣੁ ਕਿਨਾਹ ॥
पुछहु जाइ सिआणिआ आगै मिलणु किनाह ॥
चाहे जाकर विद्वानों से इस बारे पूछ लो कि आगे जाकर प्राणियों का (प्रभु से) मिलाप होगा अथवा नहीं।
ਜਿਨ ਮੇਰਾ ਸਾਹਿਬੁ ਵੀਸਰੈ ਵਡੜੀ ਵੇਦਨ ਤਿਨਾਹ ॥੧॥
जिन मेरा साहिबु वीसरै वडड़ी वेदन तिनाह ॥१॥
जो मेरे मालिक को भुला देते हैं, उन लोगों को बड़ी वेदना होती है॥ १ ॥
ਭੀ ਸਾਲਾਹਿਹੁ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥
भी सालाहिहु साचा सोइ ॥
इसलिए हमेशा ही उस परम-सत्य परमेश्वर की स्तुति करो,
ਜਾ ਕੀ ਨਦਰਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जा की नदरि सदा सुखु होइ ॥ रहाउ ॥
जिसकी कृपा-दृष्टि से सदा सुख मिलता है॥ रहाउ ॥
ਵਡਾ ਕਰਿ ਸਾਲਾਹਣਾ ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ਸੋਇ ॥
वडा करि सालाहणा है भी होसी सोइ ॥
उस परमेश्वर को महान् समझकर उसका स्तुतिगान करो चूंकि वह वर्तमान में भी स्थित है और भविष्य में भी मौजूद रहेगा।
ਸਭਨਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਤੂ ਮਾਣਸ ਦਾਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
सभना दाता एकु तू माणस दाति न होइ ॥
हे परमेश्वर ! एक तू ही सभी जीवों का दाता है और मनुष्य तो तिल मात्र भी कोई देन नहीं दे सकता।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ਰੰਨ ਕਿ ਰੁੰਨੈ ਹੋਇ ॥੨॥
जो तिसु भावै सो थीऐ रंन कि रुंनै होइ ॥२॥
जो कुछ उस प्रभु को मंजूर है, वही होता है, औरतों की तरह फूट फूट कर अश्रु बहाने से क्या उपलब्ध हो सकता है ? ॥२॥
ਧਰਤੀ ਉਪਰਿ ਕੋਟ ਗੜ ਕੇਤੀ ਗਈ ਵਜਾਇ ॥
धरती उपरि कोट गड़ केती गई वजाइ ॥
इस धरती में कितने ही लोग करोड़ों दुर्ग निर्मित करके, (राज का) ढोल बजाकर कूच कर गए हैं।
ਜੋ ਅਸਮਾਨਿ ਨ ਮਾਵਨੀ ਤਿਨ ਨਕਿ ਨਥਾ ਪਾਇ ॥
जो असमानि न मावनी तिन नकि नथा पाइ ॥
जो लोग अभिमान में आकर आसमान में फूले हुए भी समाते नहीं थे, उनकी नाक में परमात्मा ने नुकेल डाल दी है अर्थात् उनका अभिमान चूर-चूर कर दिया है।
ਜੇ ਮਨ ਜਾਣਹਿ ਸੂਲੀਆ ਕਾਹੇ ਮਿਠਾ ਖਾਹਿ ॥੩॥
जे मन जाणहि सूलीआ काहे मिठा खाहि ॥३॥
हे मन ! यद्यपि तुझे यह बोध हो जाए कि संसार के सारे विलास सूली चढ़ने के बराबर कष्टदायक हैं तो फिर तू क्यों विषय-विकारों को मीठा समझते हुए ग्रहण करे॥ ३ ॥
ਨਾਨਕ ਅਉਗੁਣ ਜੇਤੜੇ ਤੇਤੇ ਗਲੀ ਜੰਜੀਰ ॥
नानक अउगुण जेतड़े तेते गली जंजीर ॥
गुरु नानक देव जी का कथन है कि ये जितने भी अवगुण हैं, उतनी ही मनुष्य की गर्दन में अवगुणों की जंजीरें पड़ी हुई हैं।
ਜੇ ਗੁਣ ਹੋਨਿ ਤ ਕਟੀਅਨਿ ਸੇ ਭਾਈ ਸੇ ਵੀਰ ॥
जे गुण होनि त कटीअनि से भाई से वीर ॥
यदि उसके पास गुण हों तो ही उसकी जंजीरो को कटा जा सकता है।इस तरह गुण ही सबके मित्र एवं भाई है।
ਅਗੈ ਗਏ ਨ ਮੰਨੀਅਨਿ ਮਾਰਿ ਕਢਹੁ ਵੇਪੀਰ ॥੪॥੧॥
अगै गए न मंनीअनि मारि कढहु वेपीर ॥४॥१॥
अवगुणों से भरे हुए हुए वे गुरु-विहीन आगे परलोक में जाकर स्वीकृत नहीं होते और उन्हें मार-मार कर वहाँ से निकाल दिया जाता है|॥४॥१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ॥
सोरठि महला १ घरु १ ॥
सोरठि महला १ घरु १ ॥
ਮਨੁ ਹਾਲੀ ਕਿਰਸਾਣੀ ਕਰਣੀ ਸਰਮੁ ਪਾਣੀ ਤਨੁ ਖੇਤੁ ॥
मनु हाली किरसाणी करणी सरमु पाणी तनु खेतु ॥
अपने मन को कृषक, शुभ आचरण को कृषि, श्रम को जल एवं अपने तन को खेत बना।
ਨਾਮੁ ਬੀਜੁ ਸੰਤੋਖੁ ਸੁਹਾਗਾ ਰਖੁ ਗਰੀਬੀ ਵੇਸੁ ॥
नामु बीजु संतोखु सुहागा रखु गरीबी वेसु ॥
“(प्रभु का) नाम तेरा बीज, संतोष भूमि समतल करने वाला सोहागा एवं नम्रता का पहनावा तेरी बाड़ हो।
ਭਾਉ ਕਰਮ ਕਰਿ ਜੰਮਸੀ ਸੇ ਘਰ ਭਾਗਠ ਦੇਖੁ ॥੧॥
भाउ करम करि जमसी से घर भागठ देखु ॥१॥
इस तरह प्रेम के कर्म करने से तेरा बीज अंकुरित हो जाएगा और तब तू ऐसे घर को भाग्यशाली होता देखेगा। ॥१॥
ਬਾਬਾ ਮਾਇਆ ਸਾਥਿ ਨ ਹੋਇ ॥
बाबा माइआ साथि न होइ ॥
हे बाबा ! माया मनुष्य के साथ नहीं जाती।
ਇਨਿ ਮਾਇਆ ਜਗੁ ਮੋਹਿਆ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
इनि माइआ जगु मोहिआ विरला बूझै कोइ ॥ रहाउ ॥
इस माया ने तो सारी दुनिया को ही मोहित कर लिया है लेकिन कोई विरला पुरुष ही इस तथ्य को समझता है ॥ रहाउ ॥
ਹਾਣੁ ਹਟੁ ਕਰਿ ਆਰਜਾ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਕਰਿ ਵਥੁ ॥
हाणु हटु करि आरजा सचु नामु करि वथु ॥
नित्य क्षीण होने वाली आयु को अपनी दुकान बना और उसमें सत्य-नाम को अपना सौदा बना।
ਸੁਰਤਿ ਸੋਚ ਕਰਿ ਭਾਂਡਸਾਲ ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਤਿਸ ਨੋ ਰਖੁ ॥
सुरति सोच करि भांडसाल तिसु विचि तिस नो रखु ॥
सुरति एवं चिंतन को अपना माल-गोदाम बना और उस माल-गोदाम में तू उस सत्य नाम को रख।
ਵਣਜਾਰਿਆ ਸਿਉ ਵਣਜੁ ਕਰਿ ਲੈ ਲਾਹਾ ਮਨ ਹਸੁ ॥੨॥
वणजारिआ सिउ वणजु करि लै लाहा मन हसु ॥२॥
प्रभु नाम के व्यापारियों से व्यापार कर और लाभ प्राप्त करके अपने मन में सुप्रसन्न हो ॥ २ ॥
ਸੁਣਿ ਸਾਸਤ ਸਉਦਾਗਰੀ ਸਤੁ ਘੋੜੇ ਲੈ ਚਲੁ ॥
सुणि सासत सउदागरी सतु घोड़े लै चलु ॥
शास्त्रों को सुनना तेरी सौदागिरी हो एवं सत्य नाम रूपी घोड़े माल बेचने के लिए ले चल।
ਖਰਚੁ ਬੰਨੁ ਚੰਗਿਆਈਆ ਮਤੁ ਮਨ ਜਾਣਹਿ ਕਲੁ ॥
खरचु बंनु चंगिआईआ मतु मन जाणहि कलु ॥
अपने गुणों को यात्रा का खर्च बना ले और अपने मन में आने वाली सुबह का ख्याल मत कर।
ਨਿਰੰਕਾਰ ਕੈ ਦੇਸਿ ਜਾਹਿ ਤਾ ਸੁਖਿ ਲਹਹਿ ਮਹਲੁ ॥੩॥
निरंकार कै देसि जाहि ता सुखि लहहि महलु ॥३॥
जब तू निराकार प्रभु के देश में जाएगा तो तुझे उसके महल में सुख प्राप्त होगा। ॥ ३ ॥
ਲਾਇ ਚਿਤੁ ਕਰਿ ਚਾਕਰੀ ਮੰਨਿ ਨਾਮੁ ਕਰਿ ਕੰਮੁ ॥
लाइ चितु करि चाकरी मंनि नामु करि कमु ॥
चित लगाकर अपनी प्रभु-भक्ति रूपी नौकरी कर और मन में ही नाम-सिमरन का काम कर।