ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ
बिलावलु महला ५ छंत
बिलावलु महला ५ छंत
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਖੀ ਆਉ ਸਖੀ ਵਸਿ ਆਉ ਸਖੀ ਅਸੀ ਪਿਰ ਕਾ ਮੰਗਲੁ ਗਾਵਹ ॥
सखी आउ सखी वसि आउ सखी असी पिर का मंगलु गावह ॥
हे सखी ! आओ, निष्ठापूर्वक आओ, हम सब मिलकर प्रभु का मंगलगान करें।
ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਸਖੀ ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਸਖੀ ਮਤੁ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਭਾਵਹ ॥
तजि मानु सखी तजि मानु सखी मतु आपणे प्रीतम भावह ॥
हे सखी ! अपने अभिमान को त्याग दो, शायद इस तरह प्रियतम को भा जाएँ।
ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਬਿਕਾਰੁ ਦੂਜਾ ਸੇਵਿ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨੋ ॥
तजि मानु मोहु बिकारु दूजा सेवि एकु निरंजनो ॥
अपना अहंकार, मोह एवं विकारों को त्यागकर पावन रूप ईश्वर की उपासना करो।
ਲਗੁ ਚਰਣ ਸਰਣ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਗਲ ਦੁਰਤ ਬਿਖੰਡਨੋ ॥
लगु चरण सरण दइआल प्रीतम सगल दुरत बिखंडनो ॥
उस दयालु प्रियतम के चरणों की शरण में लग जाओ, वह सब पाप नाश करने वाला है।
ਹੋਇ ਦਾਸ ਦਾਸੀ ਤਜਿ ਉਦਾਸੀ ਬਹੁੜਿ ਬਿਧੀ ਨ ਧਾਵਾ ॥
होइ दास दासी तजि उदासी बहुड़ि बिधी न धावा ॥
अपनी उदासी को तजकर प्रभु के दासों की दासी बन जाओ, फिर तुझे दोबारा भटकना नहीं पड़ेगा।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਕਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਤਾਮਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਵਾ ॥੧॥
नानकु पइअ्मपै करहु किरपा तामि मंगलु गावा ॥१॥
नानक विनय करते हैं कि हे परमेश्वर ! ऐसी कृपा करो कि तेरा स्तुतिगान करते रहें ॥ १ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪ੍ਰਿਅ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੈ ਅੰਧੁਲੇ ਟੋਹਨੀ ॥
अम्रितु प्रिअ का नामु मै अंधुले टोहनी ॥
मेरे प्रिय का अमृत नाम अन्धे के लिए छड़ी के सामान है।
ਓਹ ਜੋਹੈ ਬਹੁ ਪਰਕਾਰ ਸੁੰਦਰਿ ਮੋਹਨੀ ॥
ओह जोहै बहु परकार सुंदरि मोहनी ॥
सूंदर मोहिनी अनेक प्रकार से जीव को आकर्षित करने का प्रयास करती है।
ਮੋਹਨੀ ਮਹਾ ਬਚਿਤ੍ਰਿ ਚੰਚਲਿ ਅਨਿਕ ਭਾਵ ਦਿਖਾਵਏ ॥
मोहनी महा बचित्रि चंचलि अनिक भाव दिखावए ॥
यह मोहिनी बड़ी विचित्र एवं चंचल है और जीवों को अनेक नखरे दिखाती है।
ਹੋਇ ਢੀਠ ਮੀਠੀ ਮਨਹਿ ਲਾਗੈ ਨਾਮੁ ਲੈਣ ਨ ਆਵਏ ॥
होइ ढीठ मीठी मनहि लागै नामु लैण न आवए ॥
यह ढीठ बनकर मन को मीठी लगने लगती है, इसी वजह से जीव को परमात्मा का नाम स्मरण नहीं होता।
ਗ੍ਰਿਹ ਬਨਹਿ ਤੀਰੈ ਬਰਤ ਪੂਜਾ ਬਾਟ ਘਾਟੈ ਜੋਹਨੀ ॥
ग्रिह बनहि तीरै बरत पूजा बाट घाटै जोहनी ॥
यह घर, वन, तट, व्रत-पूजा करते वक्त, राह-घाट हर जगह छलती रहती है।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਦਇਆ ਧਾਰਹੁ ਮੈ ਨਾਮੁ ਅੰਧੁਲੇ ਟੋਹਨੀ ॥੨॥
नानकु पइअ्मपै दइआ धारहु मै नामु अंधुले टोहनी ॥२॥
नानक विनय करते हैं हे परमात्मा ! दया करो; तेरा नाम ही मुझ अन्धे के लिए छड़ी समान है॥ २॥
ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਪ੍ਰਿਅ ਨਾਥ ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਰਖਹੁ ॥
मोहि अनाथ प्रिअ नाथ जिउ जानहु तिउ रखहु ॥
हे प्रिय नाथ ! तुझे उपयुक्त लगे, वैसे ही मुझ अनाथ की रक्षा करो।
ਚਤੁਰਾਈ ਮੋਹਿ ਨਾਹਿ ਰੀਝਾਵਉ ਕਹਿ ਮੁਖਹੁ ॥
चतुराई मोहि नाहि रीझावउ कहि मुखहु ॥
कोई चतुराई नहीं जानती कि अपने मुंह से कुछ कहकर तुझे प्रसन्न कर सकूं।
ਨਹ ਚਤੁਰਿ ਸੁਘਰਿ ਸੁਜਾਨ ਬੇਤੀ ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨਿ ਗੁਨੁ ਨਹੀ ॥
नह चतुरि सुघरि सुजान बेती मोहि निरगुनि गुनु नही ॥
मैं चतुर, सुघड़, समझदार एवं बुद्धिमान भी नहीं। में निर्गुण हूँ और मुझ में कोई गुण नहीं।
ਨਹ ਰੂਪ ਧੂਪ ਨ ਨੈਣ ਬੰਕੇ ਜਹ ਭਾਵੈ ਤਹ ਰਖੁ ਤੁਹੀ ॥
नह रूप धूप न नैण बंके जह भावै तह रखु तुही ॥
न मेरा रूप, सौन्दर्य है और न ही सुन्दर नयन हैं। जैसे तुझे ठीक लगता है, वैसे ही मुझे रखो।
ਜੈ ਜੈ ਜਇਅੰਪਹਿ ਸਗਲ ਜਾ ਕਉ ਕਰੁਣਾਪਤਿ ਗਤਿ ਕਿਨਿ ਲਖਹੁ ॥
जै जै जइअ्मपहि सगल जा कउ करुणापति गति किनि लखहु ॥
हे करुणापति ! सारे लोग तेरी जय-जयकार करते रहते है और तेरी गति कोई नहीं जानता।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਸੇਵ ਸੇਵਕੁ ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਮੋਹਿ ਰਖਹੁ ॥੩॥
नानकु पइअ्मपै सेव सेवकु जिउ जानहु तिउ मोहि रखहु ॥३॥
नानक विनय करते हैं कि हे प्रभु ! मैं तेरा सेवक हूँ, मुझे अपनी सेवा का अवसर दीजिए, जैसे तुझे उपयुक्त लगे, वैसे ही मेरी रक्षा करो।॥ ३॥
ਮੋਹਿ ਮਛੁਲੀ ਤੁਮ ਨੀਰ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਸਰੈ ॥
मोहि मछुली तुम नीर तुझ बिनु किउ सरै ॥
हे प्रभु में मछली हूँ और तू पानी है, तेरे बिना मेरा गुजारा कैसे हो सकता है?
ਮੋਹਿ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਬੂੰਦ ਤ੍ਰਿਪਤਉ ਮੁਖਿ ਪਰੈ ॥
मोहि चात्रिक तुम्ह बूंद त्रिपतउ मुखि परै ॥
मैं पपीहा हूँ और तू स्वाति- बूंद है। मैं तभी तृप्त होता हूँ जब यह बूंद मेरे मुँह में पड़ती है।
ਮੁਖਿ ਪਰੈ ਹਰੈ ਪਿਆਸ ਮੇਰੀ ਜੀਅ ਹੀਆ ਪ੍ਰਾਨਪਤੇ ॥
मुखि परै हरै पिआस मेरी जीअ हीआ प्रानपते ॥
यह बूंद मुँह में पड़ने से मेरी प्यास बुझा देती है। हे प्राणपति ! तू मेरी जिन्दगी और हृदय है।
ਲਾਡਿਲੇ ਲਾਡ ਲਡਾਇ ਸਭ ਮਹਿ ਮਿਲੁ ਹਮਾਰੀ ਹੋਇ ਗਤੇ ॥
लाडिले लाड लडाइ सभ महि मिलु हमारी होइ गते ॥
हे लाडले ! तेरे लाड लडाने से हमारी गति हो जाती है।
ਚੀਤਿ ਚਿਤਵਉ ਮਿਟੁ ਅੰਧਾਰੇ ਜਿਉ ਆਸ ਚਕਵੀ ਦਿਨੁ ਚਰੈ ॥
चीति चितवउ मिटु अंधारे जिउ आस चकवी दिनु चरै ॥
जैसे चकवी को आशा होती है कि दिन उदय होगा, वैसे ही में चित्त में तुझे याद करती रहती हूँ कि मेरा अज्ञान रूपी अंधेरा मिट जाए।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗਿ ਮੇਲੀ ਮਛੁਲੀ ਨੀਰੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ॥੪॥
नानकु पइअ्मपै प्रिअ संगि मेली मछुली नीरु न वीसरै ॥४॥
नानक विनय करते हैं कि मुझे प्रभु ने अपने साथ मिला लिया है और मछली के समान परमात्मा रूपी जल को नहीं भूलती ॥ ४॥
ਧਨਿ ਧੰਨਿ ਹਮਾਰੇ ਭਾਗ ਘਰਿ ਆਇਆ ਪਿਰੁ ਮੇਰਾ ॥
धनि धंनि हमारे भाग घरि आइआ पिरु मेरा ॥
मेरा भाग्य अच्छा है कि प्रभु मेरे घर में आ गया है।
ਸੋਹੇ ਬੰਕ ਦੁਆਰ ਸਗਲਾ ਬਨੁ ਹਰਾ ॥
सोहे बंक दुआर सगला बनु हरा ॥
मेरे घर के द्वार सुन्दर हो गए हैं और सारा बाग हरा-भरा हो गया है।
ਹਰ ਹਰਾ ਸੁਆਮੀ ਸੁਖਹ ਗਾਮੀ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਰਸੁ ਘਣਾ ॥
हर हरा सुआमी सुखह गामी अनद मंगल रसु घणा ॥
सुख देने वाले स्वामी ने मेरा जीवन खुशहाल कर दिया है। अब मन में बड़ा आनंद, खुशियाँ एवं स्वाद बना रहता है।
ਨਵਲ ਨਵਤਨ ਨਾਹੁ ਬਾਲਾ ਕਵਨ ਰਸਨਾ ਗੁਨ ਭਣਾ ॥
नवल नवतन नाहु बाला कवन रसना गुन भणा ॥
मेरा सुकुमार पति सदैव नवीन एवं बड़ा सुन्दर है, फिर मैं अपनी जीभ से उसके कौन-से गुण बखान करूँ ?
ਮੇਰੀ ਸੇਜ ਸੋਹੀ ਦੇਖਿ ਮੋਹੀ ਸਗਲ ਸਹਸਾ ਦੁਖੁ ਹਰਾ ॥
मेरी सेज सोही देखि मोही सगल सहसा दुखु हरा ॥
मेरी सेज सुन्दर हो गई है और उसे देखकर मेरा सारा संशय एवं दुख समाप्त हो गया है।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਮੇਰੀ ਆਸ ਪੂਰੀ ਮਿਲੇ ਸੁਆਮੀ ਅਪਰੰਪਰਾ ॥੫॥੧॥੩॥
नानकु पइअ्मपै मेरी आस पूरी मिले सुआमी अपर्मपरा ॥५॥१॥३॥
नानक विनय करते हैं कि अपरंपार स्वामी के मिलन से मेरी आशा पूरी हो गई है॥ ५॥ १॥ ३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ਮੰਗਲ
बिलावलु महला ५ छंत मंगल
बिलावलु महला ५ छंत मंगल
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਸੁੰਦਰ ਸਾਂਤਿ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਨਿਧਿ ਪੀਉ ॥
सुंदर सांति दइआल प्रभ सरब सुखा निधि पीउ ॥
मेरा प्रिय प्रभु बड़ा सुन्दर, शान्ति का पुंज, दयालु एवं सर्व सुखों का भण्डार है।