HINDI PAGE 436

ਧਨ ਪਿਰਹਿ ਮੇਲਾ ਹੋਇ ਸੁਆਮੀ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ॥
धन पिरहि मेला होइ सुआमी आपि प्रभु किरपा करे ॥
स्वामी-प्रभु जब स्वयं कृपा करता है तो जीव-स्त्री का अपने पिया के साथ मिलन हो जाता है।

ਸੇਜਾ ਸੁਹਾਵੀ ਸੰਗਿ ਪਿਰ ਕੈ ਸਾਤ ਸਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਰੇ ॥
सेजा सुहावी संगि पिर कै सात सर अम्रित भरे ॥
अपने पिया के साथ उसकी सेज सुहावनी हो जाती है, और उसके सातों सरोवर अर्थात् इन्द्रियाँ अमृत से भर जाती हैं।

ਕਰਿ ਦਇਆ ਮਇਆ ਦਇਆਲ ਸਾਚੇ ਸਬਦਿ ਮਿਲਿ ਗੁਣ ਗਾਵਓ ॥
करि दइआ मइआ दइआल साचे सबदि मिलि गुण गावओ ॥
हे दयालु सच्चे प्रभु ! मुझ पर दया एवं कृपा करो चूंकि संगत में मिलकर सच्चे शब्द द्वारा तेरा गुणगान करूँ।

ਨਾਨਕਾ ਹਰਿ ਵਰੁ ਦੇਖਿ ਬਿਗਸੀ ਮੁੰਧ ਮਨਿ ਓਮਾਹਓ ॥੧॥
नानका हरि वरु देखि बिगसी मुंध मनि ओमाहओ ॥१॥
हे नानक ! अपने वर हरि को देखकर मुग्धा नारी फूल की तरह खिल गई है और उसके मन में उमंग उत्पन्न हो गई है॥ १॥

ਮੁੰਧ ਸਹਜਿ ਸਲੋਨੜੀਏ ਇਕ ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਨੰਤੀ ਰਾਮ ॥
मुंध सहजि सलोनड़ीए इक प्रेम बिनंती राम ॥
हे सहज सलोनी मुग्धा ! अपने राम के समक्ष एक प्रेम भरी विनती कर।

ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਮਿ ਰਾਤੀ ਰਾਮ ॥
मै मनि तनि हरि भावै प्रभ संगमि राती राम ॥
मेरे तन-मन को हरि अच्छा लगता है और मैं प्रभु राम के संगम पर मोहित हो गई हूँ।

ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੇਮਿ ਰਾਤੀ ਹਰਿ ਬਿਨੰਤੀ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਕੈ ਸੁਖਿ ਵਸੈ ॥
प्रभ प्रेमि राती हरि बिनंती नामि हरि कै सुखि वसै ॥
मैं प्रभु के प्रेम से रंग गई हूँ। हरि के समक्ष मैं विनती करती रहती हूँ और हरि के नाम द्वारा मैं सुखपूर्वक रहती हूँ।

ਤਉ ਗੁਣ ਪਛਾਣਹਿ ਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣਹਿ ਗੁਣਹ ਵਸਿ ਅਵਗਣ ਨਸੈ ॥
तउ गुण पछाणहि ता प्रभु जाणहि गुणह वसि अवगण नसै ॥
यदि तुम उसके गुणों को पहचान लो तो तुम प्रभु को जान लोगे। इस तरह गुण तेरे भीतर प्रवेश कर जाएँगे और अवगुण नाश हो जाएँगे।

ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਰਹਿ ਨ ਸਾਕਾ ਕਹਣਿ ਸੁਨਣਿ ਨ ਧੀਜਏ ॥
तुधु बाझु इकु तिलु रहि न साका कहणि सुनणि न धीजए ॥
हे प्रभु! तेरे बिना मैं एक क्षण भी नहीं रह सकती, केवल सुनने एवं कहने से ही मुझे धैर्य नहीं होता।

ਨਾਨਕਾ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਕਰਿ ਪੁਕਾਰੇ ਰਸਨ ਰਸਿ ਮਨੁ ਭੀਜਏ ॥੨॥
नानका प्रिउ प्रिउ करि पुकारे रसन रसि मनु भीजए ॥२॥
हे नानक ! जो जीव रूपी नारी प्रिय-प्रिय पुकार कर प्रभु को याद करती रहती है, उसका मन एवं जिव्हा प्रभु के अमृत से भीग जाते हैं।॥ २॥

ਸਖੀਹੋ ਸਹੇਲੜੀਹੋ ਮੇਰਾ ਪਿਰੁ ਵਣਜਾਰਾ ਰਾਮ ॥
सखीहो सहेलड़ीहो मेरा पिरु वणजारा राम ॥
हे मेरी सखियों एवं सहेलियों ! मेरा पिया राम नाम का व्यापारी है।

ਹਰਿ ਨਾਮੋੁ ਵਣੰਜੜਿਆ ਰਸਿ ਮੋਲਿ ਅਪਾਰਾ ਰਾਮ ॥
हरि नामो वणंजड़िआ रसि मोलि अपारा राम ॥
हरि का नाम मैंने उससे खरीदा है अर्थात् उसके साथ नाम का व्यापार किया है। उस राम की मिठास अमूल्य है।

ਮੋਲਿ ਅਮੋਲੋ ਸਚ ਘਰਿ ਢੋਲੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਤਾ ਮੁੰਧ ਭਲੀ ॥
मोलि अमोलो सच घरि ढोलो प्रभ भावै ता मुंध भली ॥
वह नाम प्राप्त करके मूल्य में अमूल्य बन गई है। वह अपने पिया के सत्य के घर में रहती है। यदि मुग्धा प्रियतम प्रभु को अच्छी लगने लग जाए तो वह प्रिय बन जाती है।

ਇਕਿ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੈ ਕਰਹਿ ਰਲੀਆ ਹਉ ਪੁਕਾਰੀ ਦਰਿ ਖਲੀ ॥
इकि संगि हरि कै करहि रलीआ हउ पुकारी दरि खली ॥
कई तो प्रभु के साथ आनंदपूर्वक रमण करती रहती हैं जबकि मैं उसके द्वार पर खड़ी पुकार करती रहती हूँ।

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਸ੍ਰੀਧਰ ਆਪਿ ਕਾਰਜੁ ਸਾਰਏ ॥
करण कारण समरथ स्रीधर आपि कारजु सारए ॥
श्रीधर प्रभु सब कुछ करने एवं करवाने में समर्थ है। वह स्वयं ही सभी कार्य सिद्ध कर देता है।

ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਧਨ ਸੋਹਾਗਣਿ ਸਬਦੁ ਅਭ ਸਾਧਾਰਏ ॥੩॥
नानक नदरी धन सोहागणि सबदु अभ साधारए ॥३॥
हे नानक ! अपने पति-प्रभु की कृपा-दृष्टि से जीव रूपी नारी सुहागिन बन गई है। शब्द ने उसके हृदय को सहारा दिया है॥ ३॥

ਹਮ ਘਰਿ ਸਾਚਾ ਸੋਹਿਲੜਾ ਪ੍ਰਭ ਆਇਅੜੇ ਮੀਤਾ ਰਾਮ ॥
हम घरि साचा सोहिलड़ा प्रभ आइअड़े मीता राम ॥
मेरे हृदय घर में सत्य का स्तुतिगान है।चूंकि मेरा मित्र प्रभु राम मेरे हृदय घर में आकर बस गया है।

ਰਾਵੇ ਰੰਗਿ ਰਾਤੜਿਆ ਮਨੁ ਲੀਅੜਾ ਦੀਤਾ ਰਾਮ ॥
रावे रंगि रातड़िआ मनु लीअड़ा दीता राम ॥
प्रेम में अनुरक्त हुआ प्रभु मेरे साथ रमण करता है।उस राम का मन मैंने मोहित कर लिया है और अपना मन उसे अर्पित कर दिया है।

ਆਪਣਾ ਮਨੁ ਦੀਆ ਹਰਿ ਵਰੁ ਲੀਆ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਵਏ ॥
आपणा मनु दीआ हरि वरु लीआ जिउ भावै तिउ रावए ॥
मैंने अपना मन अर्पित करके हरि वर के रूप में पा लिया है।जैसे उसे भला लगता है, वैसे ही वह मुझ से रमण करता है।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਪਿਰ ਆਗੈ ਸਬਦਿ ਸਭਾਗੈ ਘਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਫਲੁ ਪਾਵਏ ॥
तनु मनु पिर आगै सबदि सभागै घरि अम्रित फलु पावए ॥
मैंने अपना यह तन-मन प्रियतम-प्रभु के समक्ष अर्पित किया है और नाम द्वारा सौभाग्यशाली बन गई हूँ।अपने हृदय घर में मैंने अमृत फल प्राप्त कर लिया है।

ਬੁਧਿ ਪਾਠਿ ਨ ਪਾਈਐ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈਐ ਭਾਇ ਮਿਲੈ ਮਨਿ ਭਾਣੇ ॥
बुधि पाठि न पाईऐ बहु चतुराईऐ भाइ मिलै मनि भाणे ॥
बुद्धि, पूजा-पाठ एवं अधिक चतुरता द्वारा प्रभु प्राप्त नहीं होता।जो कुछ मन चाहता है, वह प्रेम भाव से प्राप्त होता है।

ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰ ਮੀਤ ਹਮਾਰੇ ਹਮ ਨਾਹੀ ਲੋਕਾਣੇ ॥੪॥੧॥
नानक ठाकुर मीत हमारे हम नाही लोकाणे ॥४॥१॥
हे नानक ! ठाकुर मेरा मित्र है।हम लोगों के नहीं अर्थात् प्रभु के हैं।॥ ४॥ १ ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਅਨਹਦੋ ਅਨਹਦੁ ਵਾਜੈ ਰੁਣ ਝੁਣਕਾਰੇ ਰਾਮ ॥
अनहदो अनहदु वाजै रुण झुणकारे राम ॥
मेरे मन में रुणझुन धुंघरुओं एवं वाद्य यन्त्रों की ध्वनि करने वाला अनहद शब्द निरन्तर बज रहा है।

ਮੇਰਾ ਮਨੋ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਲਾਲ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ॥
मेरा मनो मेरा मनु राता लाल पिआरे राम ॥
मेरा मन अपने प्रियतम राम के प्रेम में रंग गया है।

ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਤਾ ਮਨੁ ਬੈਰਾਗੀ ਸੁੰਨ ਮੰਡਲਿ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ॥
अनदिनु राता मनु बैरागी सुंन मंडलि घरु पाइआ ॥
वैरागी मन रात-दिन एक ईश्वर में लीन रहता है और शून्य मण्डल में बसेरा पा लेता है।

ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਪਿਆਰਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥
आदि पुरखु अपर्मपरु पिआरा सतिगुरि अलखु लखाइआ ॥
सतिगुरु ने मुझे अपरम्पार, अदृष्ट एवं प्यारा आदिपुरुष दिखा दिया है।

ਆਸਣਿ ਬੈਸਣਿ ਥਿਰੁ ਨਾਰਾਇਣੁ ਤਿਤੁ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਵੀਚਾਰੇ ॥
आसणि बैसणि थिरु नाराइणु तितु मनु राता वीचारे ॥
अपने आसन पर बैठने वाला नारायण सदैव स्थिर रहता है। मेरा मन उसके प्रेम में मग्न रहता है और उसका ही सिमरन करता रहता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਬੈਰਾਗੀ ਅਨਹਦ ਰੁਣ ਝੁਣਕਾਰੇ ॥੧॥
नानक नामि रते बैरागी अनहद रुण झुणकारे ॥१॥
हे नानक ! जो परमात्मा के नाम में मग्न रहते हैं, उनके मन में वैराग्य पैदा हो जाता है और उनके मन में अनहद शब्द की सुरीली रुणझुनकार होती रहती है॥ १॥

ਤਿਤੁ ਅਗਮ ਤਿਤੁ ਅਗਮ ਪੁਰੇ ਕਹੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਜਾਈਐ ਰਾਮ ॥
तितु अगम तितु अगम पुरे कहु कितु बिधि जाईऐ राम ॥
कहो, मैं अगम्य राम के उस अगम्य नगर में किस विधि से पहुँच सकता हूँ?”

ਸਚੁ ਸੰਜਮੋ ਸਾਰਿ ਗੁਣਾ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਈਐ ਰਾਮ ॥
सचु संजमो सारि गुणा गुर सबदु कमाईऐ राम ॥
सत्य, संयम एवं प्रभु के गुणों को ग्रहण करके गुरु के शब्द को कमाना चाहिए।

ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਕਮਾਈਐ ਨਿਜ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ਪਾਈਐ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨਾ ॥
सचु सबदु कमाईऐ निज घरि जाईऐ पाईऐ गुणी निधाना ॥
सत्य शब्द के अनुकूल आचरण बनाने से मनुष्य प्रभु के घर पहुँच जाता है और गुणों के भण्डार को प्राप्त कर लेता है।

ਤਿਤੁ ਸਾਖਾ ਮੂਲੁ ਪਤੁ ਨਹੀ ਡਾਲੀ ਸਿਰਿ ਸਭਨਾ ਪਰਧਾਨਾ ॥
तितु साखा मूलु पतु नही डाली सिरि सभना परधाना ॥
उस भगवान का आश्रय लेने पर उसकी शाखाओं, डालियों, जड़ एवं पत्तों की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि वह खुद ही सबके सिर पर प्रधान स्वामी है।

ਜਪੁ ਤਪੁ ਕਰਿ ਕਰਿ ਸੰਜਮ ਥਾਕੀ ਹਠਿ ਨਿਗ੍ਰਹਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ॥
जपु तपु करि करि संजम थाकी हठि निग्रहि नही पाईऐ ॥
लोग जप, तप एवं संयम करके थक गए हैं। हठ निग्रह द्वारा भी उन्हें भगवान प्राप्त नहीं होता।

ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਮਿਲੇ ਜਗਜੀਵਨ ਸਤਿਗੁਰ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈਐ ॥੨॥
नानक सहजि मिले जगजीवन सतिगुर बूझ बुझाईऐ ॥२॥
हे नानक ! सहजता में रहकर ही जगजीवन प्रभु मिलता है, पर इसकी सूझ सतगुरु से ही जानी जाती है॥ २॥

ਗੁਰੁ ਸਾਗਰੋ ਰਤਨਾਗਰੁ ਤਿਤੁ ਰਤਨ ਘਣੇਰੇ ਰਾਮ ॥
गुरु सागरो रतनागरु तितु रतन घणेरे राम ॥
गुरु एक सागर एवं रतनागर हैं, जिसमें अनेक रत्न विद्यमान हैं।

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