ਹਰਿ ਹਮ ਗਾਵਹਿ ਹਰਿ ਹਮ ਬੋਲਹਿ ਅਉਰੁ ਦੁਤੀਆ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਮ ਤਿਆਗੀ ॥੧॥
हरि हम गावहि हरि हम बोलहि अउरु दुतीआ प्रीति हम तिआगी ॥१॥
हम परमात्मा के गुण गाते हैं, उसके नाम का उच्चारण करते हैं और द्वैतभाव का प्रेम हमने त्याग दिया है॥१॥
ਮਨਮੋਹਨ ਮੋਰੋ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਾਮੁ ਹਰਿ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ਬੈਰਾਗੀ ॥
मनमोहन मोरो प्रीतम रामु हरि परमानंदु बैरागी ॥
एकमात्र वही मेरा मनमोहन एवं प्रियतम और वही परमानंद एवं वैराग्यवान है।
ਹਰਿ ਦੇਖੇ ਜੀਵਤ ਹੈ ਨਾਨਕੁ ਇਕ ਨਿਮਖ ਪਲੋ ਮੁਖਿ ਲਾਗੀ ॥੨॥੨॥੯॥੯॥੧੩॥੯॥੩੧॥
हरि देखे जीवत है नानकु इक निमख पलो मुखि लागी ॥२॥२॥९॥९॥१३॥९॥३१॥
हे नानक ! परमात्मा के दर्शन ही हमारा जीवन है, एक के लिए दर्शन मिल जाए॥२॥२॥६॥६॥१३॥६॥३१॥
ਰਾਗੁ ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧
रागु मलार महला ५ चउपदे घरु १
रागु मलार महला ५ चउपदे घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਿਆ ਤੂ ਸੋਚਹਿ ਕਿਆ ਤੂ ਚਿਤਵਹਿ ਕਿਆ ਤੂੰ ਕਰਹਿ ਉਪਾਏ ॥
किआ तू सोचहि किआ तू चितवहि किआ तूं करहि उपाए ॥
हे जीव ! तू क्या सोचता है, क्या याद करता है, तू कौन-सा उपाय आजमा रहा है।
ਤਾ ਕਉ ਕਹਹੁ ਪਰਵਾਹ ਕਾਹੂ ਕੀ ਜਿਹ ਗੋਪਾਲ ਸਹਾਏ ॥੧॥
ता कउ कहहु परवाह काहू की जिह गोपाल सहाए ॥१॥
जिसकी परमात्मा सहायता करने वाला है, उसे तो तनिक भी किसी की परवाह नहीं होती॥१॥
ਬਰਸੈ ਮੇਘੁ ਸਖੀ ਘਰਿ ਪਾਹੁਨ ਆਏ ॥
बरसै मेघु सखी घरि पाहुन आए ॥
हे सत्संगी सखी ! खुशी के बादल बरस रहे हैं, घर में पति-प्रभु आ गया है।
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਠਾਕੁਰ ਨਵ ਨਿਧਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोहि दीन क्रिपा निधि ठाकुर नव निधि नामि समाए ॥१॥ रहाउ ॥
मैं दीन कृपानिधान, नवनिधि-प्रदाता प्रभु के नाम में विलीन हूँ॥१॥रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਭੋਜਨ ਬਹੁ ਕੀਏ ਬਹੁ ਬਿੰਜਨ ਮਿਸਟਾਏ ॥
अनिक प्रकार भोजन बहु कीए बहु बिंजन मिसटाए ॥
हमने अनेक प्रकार के भोजन, विभिन्न व्यंजन एवं मिठाइयाँ तैयार की हैं।
ਕਰੀ ਪਾਕਸਾਲ ਸੋਚ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਹੁਣਿ ਲਾਵਹੁ ਭੋਗੁ ਹਰਿ ਰਾਏ ॥੨॥
करी पाकसाल सोच पवित्रा हुणि लावहु भोगु हरि राए ॥२॥
रसोई को पावन एवं शुद्ध किया है, हे प्रभु ! भोग-प्रसाद ग्रहण कीजिए॥२॥
ਦੁਸਟ ਬਿਦਾਰੇ ਸਾਜਨ ਰਹਸੇ ਇਹਿ ਮੰਦਿਰ ਘਰ ਅਪਨਾਏ ॥
दुसट बिदारे साजन रहसे इहि मंदिर घर अपनाए ॥
इस हृदय-घर को प्रभु ने अपनाया तो दुष्ट विकारों का नाश हो गया और गुण रूपी सज्जन खुशी से खिल उठे।
ਜਉ ਗ੍ਰਿਹਿ ਲਾਲੁ ਰੰਗੀਓ ਆਇਆ ਤਉ ਮੈ ਸਭਿ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥੩॥
जउ ग्रिहि लालु रंगीओ आइआ तउ मै सभि सुख पाए ॥३॥
जब रंगीला प्रभु हृदय घर में आया तो मुझे सर्व सुख प्राप्त हुए॥३॥
ਸੰਤ ਸਭਾ ਓਟ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਲੇਖੁ ਲਿਖਾਏ ॥
संत सभा ओट गुर पूरे धुरि मसतकि लेखु लिखाए ॥
विधाता ने भाग्य में लिखा हुआ था, इसी कारण संतों की सभा एवं पूर्ण गुरु का आसरा प्राप्त हुआ।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੰਤੁ ਰੰਗੀਲਾ ਪਾਇਆ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਏ ॥੪॥੧॥
जन नानक कंतु रंगीला पाइआ फिरि दूखु न लागै आए ॥४॥१॥
नानक का कथन है कि रंगीले प्रभु को पाकर अब पुनः कोई दुख-दर्द नहीं लगता॥४॥१॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਖੀਰ ਅਧਾਰਿ ਬਾਰਿਕੁ ਜਬ ਹੋਤਾ ਬਿਨੁ ਖੀਰੈ ਰਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥
खीर अधारि बारिकु जब होता बिनु खीरै रहनु न जाई ॥
जब छोटा-सा बच्चा दूध के आसरे होता है तो दूध के बिना वह बिल्कुल नहीं रहता।
ਸਾਰਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ਮਾਤਾ ਮੁਖਿ ਨੀਰੈ ਤਬ ਓਹੁ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੧॥
सारि सम्हालि माता मुखि नीरै तब ओहु त्रिपति अघाई ॥१॥
देखभाल करने वाली माता जब मुँह में दूध देती है तो वह तृप्त हो जाता है॥१॥
ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਤਾ ॥
हम बारिक पिता प्रभु दाता ॥
हे दाता प्रभु ! हम तेरे बच्चे हैं और तू हमारा पिता है।
ਭੂਲਹਿ ਬਾਰਿਕ ਅਨਿਕ ਲਖ ਬਰੀਆ ਅਨ ਠਉਰ ਨਾਹੀ ਜਹ ਜਾਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भूलहि बारिक अनिक लख बरीआ अन ठउर नाही जह जाता ॥१॥ रहाउ ॥
यदि बालक लाखों बार गलती करता है तो पिता के सिवा उसका अन्य कोई ठौर-ठिकाना नहीं होता॥१॥रहाउ॥
ਚੰਚਲ ਮਤਿ ਬਾਰਿਕ ਬਪੁਰੇ ਕੀ ਸਰਪ ਅਗਨਿ ਕਰ ਮੇਲੈ ॥
चंचल मति बारिक बपुरे की सरप अगनि कर मेलै ॥
बेचारे बालक की बुद्धि इतनी चंचल होती है कि वह सांप एवं अग्नि दोनों को हाथ लगाता है।
ਮਾਤਾ ਪਿਤਾ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਰਾਖੈ ਅਨਦ ਸਹਜਿ ਤਬ ਖੇਲੈ ॥੨॥
माता पिता कंठि लाइ राखै अनद सहजि तब खेलै ॥२॥
जब माता-पिता उसे गले से लगाकर रखते हैं, तब वह आनंद एवं खुशी में खेलता है॥२॥
ਜਿਸ ਕਾ ਪਿਤਾ ਤੂ ਹੈ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਤਿਸੁ ਬਾਰਿਕ ਭੂਖ ਕੈਸੀ ॥
जिस का पिता तू है मेरे सुआमी तिसु बारिक भूख कैसी ॥
हे मेरे स्वामी ! जिसका तू पिता है, उस बालक को भला कैसी भूख होगी।
ਨਵ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਬਾਂਛੈ ਸੋ ਲੈਸੀ ॥੩॥
नव निधि नामु निधानु ग्रिहि तेरै मनि बांछै सो लैसी ॥३॥
नवनिधि एवं सुखों का भण्डार नाम तेरे घर में है।जैसी मनोकामना होती है, वही मिलता है॥३॥
ਪਿਤਾ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਆਗਿਆ ਇਹ ਦੀਨੀ ਬਾਰਿਕੁ ਮੁਖਿ ਮਾਂਗੈ ਸੋ ਦੇਨਾ ॥
पिता क्रिपालि आगिआ इह दीनी बारिकु मुखि मांगै सो देना ॥
कृपालु पिता ने यह आज्ञा कर दी है कि बालक मुख से जो मांगता है, उसे दे देना।
ਨਾਨਕ ਬਾਰਿਕੁ ਦਰਸੁ ਪ੍ਰਭ ਚਾਹੈ ਮੋਹਿ ਹ੍ਰਿਦੈ ਬਸਹਿ ਨਿਤ ਚਰਨਾ ॥੪॥੨॥
नानक बारिकु दरसु प्रभ चाहै मोहि ह्रिदै बसहि नित चरना ॥४॥२॥
हे नानक ! यह बालक प्रभु दर्शन ही चाहता है और कामना करता है कि मेरे हृदय में सदैव प्रभु के चरण बसे रहें॥४॥२॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਸਗਲ ਬਿਧੀ ਜੁਰਿ ਆਹਰੁ ਕਰਿਆ ਤਜਿਓ ਸਗਲ ਅੰਦੇਸਾ ॥
सगल बिधी जुरि आहरु करिआ तजिओ सगल अंदेसा ॥
सभी तरीकों का चिन्तन करके हमने सब भ्रमों को त्याग देने का कार्य किया है।
ਕਾਰਜੁ ਸਗਲ ਅਰੰਭਿਓ ਘਰ ਕਾ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਭਾਰੋਸਾ ॥੧॥
रजु सगल अर्मभिओ घर का ठाकुर का भारोसा ॥१॥
मालिक पर भरोसा करके घर में भक्ति का कार्य आरम्भ किया है॥१॥
ਸੁਨੀਐ ਬਾਜੈ ਬਾਜ ਸੁਹਾਵੀ ॥
सुनीऐ बाजै बाज सुहावी ॥
संगीत की सुखमय ध्वनियां सुनाई दे रही हैं।
ਭੋਰੁ ਭਇਆ ਮੈ ਪ੍ਰਿਅ ਮੁਖ ਪੇਖੇ ਗ੍ਰਿਹਿ ਮੰਗਲ ਸੁਹਲਾਵੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भोरु भइआ मै प्रिअ मुख पेखे ग्रिहि मंगल सुहलावी ॥१॥ रहाउ ॥
ज्ञान की सुबह हो गई है, मुझे प्रभु के दर्शन प्राप्त हुए हैं और घर में खुशियों का मंगलगान हो रहा है॥१॥रहाउ॥
ਮਨੂਆ ਲਾਇ ਸਵਾਰੇ ਥਾਨਾਂ ਪੂਛਉ ਸੰਤਾ ਜਾਏ ॥
मनूआ लाइ सवारे थानां पूछउ संता जाए ॥
मन लगाकर सभी स्थानों को सुन्दर बनाया है और संतों से जाकर पूछती हूँ कि प्रभु कहाँ है।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਮੈ ਪਾਹੁਨ ਮਿਲਿਓ ਭਗਤਿ ਕਰਉ ਨਿਵਿ ਪਾਏ ॥੨॥
खोजत खोजत मै पाहुन मिलिओ भगति करउ निवि पाए ॥२॥
खोजते-खोजते मुझे पति-परमेश्वर मिल गया है और उसके पैरों में झुककर उसकी भक्ति करती हूँ॥२॥