ਜਬ ਪ੍ਰਿਅ ਆਇ ਬਸੇ ਗ੍ਰਿਹਿ ਆਸਨਿ ਤਬ ਹਮ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥
जब प्रिअ आइ बसे ग्रिहि आसनि तब हम मंगलु गाइआ ॥
जब प्रियतम-प्रभु हृदय-घर में आसन लगाकर बस गया तो हमने उसी का मंगलगान किया।
ਮੀਤ ਸਾਜਨ ਮੇਰੇ ਭਏ ਸੁਹੇਲੇ ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ ॥੩॥
मीत साजन मेरे भए सुहेले प्रभु पूरा गुरू मिलाइआ ॥३॥
प्रभु ने पूर्ण गुरु से मिलाप करवाया तो मेरे मित्र एवं सज्जन सभी सुखी हो गए॥३॥
ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਭਏ ਅਨੰਦਾ ਗੁਰਿ ਕਾਰਜ ਹਮਰੇ ਪੂਰੇ ॥
सखी सहेली भए अनंदा गुरि कारज हमरे पूरे ॥
पूर्ण गुरु ने हमारे सभी कार्य पूरे कर दिए हैं, जिससे सत्संगी सखी-सहेलियां आनंदमय हो गई हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਵਰੁ ਮਿਲਿਆ ਸੁਖਦਾਤਾ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਈ ਦੂਰੇ ॥੪॥੩॥
कहु नानक वरु मिलिआ सुखदाता छोडि न जाई दूरे ॥४॥३॥
हे नानक ! सुख देने वाला पति-परमेश्वर मिल गया है, अब उसे छोड़कर कहीं दूर नहीं जाता॥४॥३॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਰਾਜ ਤੇ ਕੀਟ ਕੀਟ ਤੇ ਸੁਰਪਤਿ ਕਰਿ ਦੋਖ ਜਠਰ ਕਉ ਭਰਤੇ ॥
राज ते कीट कीट ते सुरपति करि दोख जठर कउ भरते ॥
राजा से लेकर कीट एवं कीट से लेकर स्वर्गाधिपति देवराज इन्द्र तक अपने पापों के कारण योनि-चक्र भोगते हैं।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਛੋਡਿ ਆਨ ਕਉ ਪੂਜਹਿ ਆਤਮ ਘਾਤੀ ਹਰਤੇ ॥੧॥
क्रिपा निधि छोडि आन कउ पूजहि आतम घाती हरते ॥१॥
जो कृपानिधान को छोड़कर किसी अन्य की पूजा करता है, वह आत्मघाती एवं लुटेरा है॥१॥
ਹਰਿ ਬਿਸਰਤ ਤੇ ਦੁਖਿ ਦੁਖਿ ਮਰਤੇ ॥
हरि बिसरत ते दुखि दुखि मरते ॥
ईश्वर को भुलाकर सब दुखों में मरते हैं।
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਭ੍ਰਮਹਿ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਟੇਕ ਨ ਕਾਹੂ ਧਰਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनिक बार भ्रमहि बहु जोनी टेक न काहू धरते ॥१॥ रहाउ ॥
वे अनेक बार विभिन्न योनियों में भटकते हैं लेकिन उनको कहीं भी आसरा नहीं मिलता॥१॥रहाउ॥
ਤਿਆਗਿ ਸੁਆਮੀ ਆਨ ਕਉ ਚਿਤਵਤ ਮੂੜ ਮੁਗਧ ਖਲ ਖਰ ਤੇ ॥
तिआगि सुआमी आन कउ चितवत मूड़ मुगध खल खर ते ॥
जो लोग स्वामी को त्यागकर किसी अन्य को याद करते हैं, ऐसे व्यक्ति मूर्ख, बेवकूफ एवं गधे ही हैं।
ਕਾਗਰ ਨਾਵ ਲੰਘਹਿ ਕਤ ਸਾਗਰੁ ਬ੍ਰਿਥਾ ਕਥਤ ਹਮ ਤਰਤੇ ॥੨॥
कागर नाव लंघहि कत सागरु ब्रिथा कथत हम तरते ॥२॥
कागज की नाव पर सागर कैसे पार किया जा सकता है, लोग बेकार ही कहते हैं कि हम तैर गए हैं।॥२॥
ਸਿਵ ਬਿਰੰਚਿ ਅਸੁਰ ਸੁਰ ਜੇਤੇ ਕਾਲ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਜਰਤੇ ॥
सिव बिरंचि असुर सुर जेते काल अगनि महि जरते ॥
शिवशंकर, ब्रह्मा, राक्षस एवं देवता इत्यादि काल की अग्नि में जलते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਚਰਨ ਕਮਲਨ ਕੀ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਨ ਡਾਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕਰਤੇ ॥੩॥੪॥
नानक सरनि चरन कमलन की तुम्ह न डारहु प्रभ करते ॥३॥४॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे कर्ता प्रभु ! हम तेरे चरण-कमल की शरण में हैं, तुम हमें दूर मत करना॥३॥४॥
ਰਾਗੁ ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ ਘਰੁ ੧
रागु मलार महला ५ दुपदे घरु १
रागु मलार महला ५ दुपदे घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਓਇ ਬੈਰਾਗੀ ਤਿਆਗੀ ॥
प्रभ मेरे ओइ बैरागी तिआगी ॥
जो मेरे प्रभु के वैरागी एवं सन्यासी हैं,
ਹਉ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਮਾਰੀ ਲਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ इकु खिनु तिसु बिनु रहि न सकउ प्रीति हमारी लागी ॥१॥ रहाउ ॥
उनके साथ ही हमारी प्रीति लगी हुई है और उनके बिना एक पल भी रह नहीं सकता॥१॥रहाउ॥
ਉਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਮੋਹਿ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਆਵੈ ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੋਹਿ ਜਾਗੀ ॥
उन कै संगि मोहि प्रभु चिति आवै संत प्रसादि मोहि जागी ॥
उनके साथ मुझे प्रभु याद आता है और संतों की कृपा से जाग्रत हो गया हूँ।
ਸੁਨਿ ਉਪਦੇਸੁ ਭਏ ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਗੁਨ ਗਾਏ ਰੰਗਿ ਰਾਂਗੀ ॥੧॥
सुनि उपदेसु भए मन निरमल गुन गाए रंगि रांगी ॥१॥
उनका उपदेश सुनकर मेरा मन निर्मल हो गया है और प्रेम के रंग में रंग कर मैं प्रभु का गुणानुवाद करता हूँ॥१॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੇਇ ਕੀਏ ਸੰਤ ਮੀਤਾ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਭਏ ਬਡਭਾਗੀਂ ॥
इहु मनु देइ कीए संत मीता क्रिपाल भए बडभागीं ॥
यह मन अर्पण करके संत पुरुषों को अपना मित्र बना लिया है, मैं भाग्यशाली हूँ, जो उनकी कृपा हुई है।
ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਰੇਨੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਪਾਗੀ ॥੨॥੧॥੫॥
महा सुखु पाइआ बरनि न साकउ रेनु नानक जन पागी ॥२॥१॥५॥
नानक का कथन है कि संत-पुरुषों की चरण-धूल से महा सुख प्राप्त हुआ है, जो वर्णन नहीं किया जा सकता॥२॥१॥५॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਮਾਈ ਮੋਹਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਦੇਹੁ ਮਿਲਾਈ ॥
माई मोहि प्रीतमु देहु मिलाई ॥
हे माई ! मुझे प्रियतम से मिला दो।
ਸਗਲ ਸਹੇਲੀ ਸੁਖ ਭਰਿ ਸੂਤੀ ਜਿਹ ਘਰਿ ਲਾਲੁ ਬਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल सहेली सुख भरि सूती जिह घरि लालु बसाई ॥१॥ रहाउ ॥
जिनके हृदय-घर में प्रभु बसता है, वे सभी सहेलियाँ सुखपूर्वक रहती हैं॥१॥रहाउ॥
ਮੋਹਿ ਅਵਗਨ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਦਇਆਲਾ ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨਿ ਕਿਆ ਚਤੁਰਾਈ ॥
मोहि अवगन प्रभु सदा दइआला मोहि निरगुनि किआ चतुराई ॥
मुझ में अवगुण ही अवगुण हैं। मेरा प्रभु सदा दयालु है, मैं गुणविहीन क्या चतुराई कर सकती हूँ।
ਕਰਉ ਬਰਾਬਰਿ ਜੋ ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗਿ ਰਾਤੀਂ ਇਹ ਹਉਮੈ ਕੀ ਢੀਠਾਈ ॥੧॥
करउ बराबरि जो प्रिअ संगि रातीं इह हउमै की ढीठाई ॥१॥
जो प्रियतम प्रभु में लीन है, अगर उसकी बराबरी करती हूँ तो यह मेरे अहंकार की निर्लज्जता है॥१॥
ਭਈ ਨਿਮਾਣੀ ਸਰਨਿ ਇਕ ਤਾਕੀ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖ ਸੁਖਦਾਈ ॥
भई निमाणी सरनि इक ताकी गुर सतिगुर पुरख सुखदाई ॥
मैंने विनम्र होकर सुख देने वाले गुरु की शरण ली है।
ਏਕ ਨਿਮਖ ਮਹਿ ਮੇਰਾ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਕਾਟਿਆ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਰੈਨਿ ਬਿਹਾਈ ॥੨॥੨॥੬॥
एक निमख महि मेरा सभु दुखु काटिआ नानक सुखि रैनि बिहाई ॥२॥२॥६॥
हे नानक ! उसने एक पल में मेरा सारा दुख काट दिया है और जीवन-रात्रि सुख में व्यतीत हो रही है ॥२॥२॥६॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਬਰਸੁ ਮੇਘ ਜੀ ਤਿਲੁ ਬਿਲਮੁ ਨ ਲਾਉ ॥
बरसु मेघ जी तिलु बिलमु न लाउ ॥
हे बादल सतगुरु ! प्रेम एवं ज्ञान की वर्षा कर दो, कोई देरी मत करो।
ਬਰਸੁ ਪਿਆਰੇ ਮਨਹਿ ਸਧਾਰੇ ਹੋਇ ਅਨਦੁ ਸਦਾ ਮਨਿ ਚਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बरसु पिआरे मनहि सधारे होइ अनदु सदा मनि चाउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्यारे ! सुख की वर्षा कर दो, मन को तेरा ही आसरा है, बरसने से आनंद मिल जाएगा, मन को यही चाव है॥१॥ रहाउ॥
ਹਮ ਤੇਰੀ ਧਰ ਸੁਆਮੀਆ ਮੇਰੇ ਤੂ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰੇ ॥
हम तेरी धर सुआमीआ मेरे तू किउ मनहु बिसारे ॥
हे मेरे स्वामी ! हमें तेरा ही अवलम्ब है, तूने क्यों मन से भुला दिया है।