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ਜੀਅ ਦਾਨੁ ਦੇਇ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਸਚੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਹੀ ॥जीअ दानु देइ त्रिपतासे सचै नामि समाही ॥जीवन देकर उसने तृप्त किया है, अतः सच्चे नाम में समाहित रहते हैं। ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਰਵਿਆ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਹੀ ॥੨॥अनदिनु हरि रविआ रिद अंतरि सहजि समाधि लगाही ॥२॥जिनके दिल में नित्य परमेश्वर लीन रहता है, वे सहज समाधि लगाते

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ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੨ ॥सलोक महला २ ॥श्लोक महला २ ॥ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਨਾਨਕਾ ਆਪੇ ਰਖੈ ਵੇਕ ॥आपि उपाए नानका आपे रखै वेक ॥हे नानक ! ईश्वर सबको उत्पन्न करता है, स्वयं ही अलग-अलग रखता है। ਮੰਦਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਜਾਂ ਸਭਨਾ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ॥मंदा किस नो आखीऐ जां सभना साहिबु एकु ॥बुरा किसको कहा जाए,

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ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥सारग महला ५ ॥सारग महला ५ ॥ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਮਨਹਿ ਆਧਾਰੋ ॥अम्रित नामु मनहि आधारो ॥परमात्मा का अमृत नाम मन का अवलंब है। ਜਿਨ ਦੀਆ ਤਿਸ ਕੈ ਕੁਰਬਾਨੈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਨਮਸਕਾਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥जिन दीआ तिस कै कुरबानै गुर पूरे नमसकारो ॥१॥ रहाउ ॥जिसने यह दिया है, उस पर कुर्बान हूँ और

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ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਦੁਤੁਕੀਆबसंतु महला ५ घरु १ दुतुकीआबसंतु महला ५ घरु १ दुतुकीआ ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ਸੁਣਿ ਸਾਖੀ ਮਨ ਜਪਿ ਪਿਆਰ ॥सुणि साखी मन जपि पिआर ॥हे मन ! प्रेम से शिक्षाओं को सुनकर जाप कर। ਅਜਾਮਲੁ ਉਧਰਿਆ ਕਹਿ ਏਕ ਬਾਰ ॥अजामलु उधरिआ कहि एक

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ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਸਿ ॥से धनवंत जिन हरि प्रभु रासि ॥वही धनवान है, जिसके पास प्रभु रूपी राशि है। ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਨਾਸਿ ॥काम क्रोध गुर सबदि नासि ॥गुरु के उपदेश से काम क्रोध का नाश होता है। ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਨਿਰਭੈ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥भै बिनसे निरभै पदु पाइआ ॥भय नष्ट हो जाता

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ਹਰਾਮਖੋਰ ਨਿਰਗੁਣ ਕਉ ਤੂਠਾ ॥हरामखोर निरगुण कउ तूठा ॥अगर वह किसी हरामखोर एवं गुणविहीन पुरुष पर प्रसन्न हो जाता है तो ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਮਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵੂਠਾ ॥मनु तनु सीतलु मनि अम्रितु वूठा ॥उसका मन-तन शीतल हो जाता है और उसके मन में अमृत स्थित हो जाता है। ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ॥पारब्रहम गुर भए

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ਰੋਗ ਬੰਧ ਰਹਨੁ ਰਤੀ ਨ ਪਾਵੈ ॥रोग बंध रहनु रती न पावै ॥रोगों के बन्धन में पड़कर उसे बिल्कुल भी ठिकाना नहीं मिलता और ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਰੋਗੁ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਵੈ ॥੩॥बिनु सतिगुर रोगु कतहि न जावै ॥३॥सतगुरु के बिना उसके रोग कदापि दूर नहीं होते॥३॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਜਿਸੁ ਕੀਨੀ ਦਇਆ ॥पारब्रहमि जिसु कीनी दइआ ॥परब्रह्म ने

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ਮਿਰਤ ਲੋਕ ਪਇਆਲ ਸਮੀਪਤ ਅਸਥਿਰ ਥਾਨੁ ਜਿਸੁ ਹੈ ਅਭਗਾ ॥੧੨॥मिरत लोक पइआल समीपत असथिर थानु जिसु है अभगा ॥१२॥जिसका निवास स्थान सदा अटल है, वह मृत्युलोक, पाताललोक में रहने वाले जीवों के पास ही रहता है॥१२॥ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਦੁਖ ਭੈ ਭੰਜਨੁ ॥पतित पावन दुख भै भंजनु ॥वह पतितपावन सारे दुःख-भय नाश करने वाला हैं,” ਅਹੰਕਾਰ

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ਇਕਿ ਭੂਖੇ ਇਕਿ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਏ ਸਭਸੈ ਤੇਰਾ ਪਾਰਣਾ ॥੩॥इकि भूखे इकि त्रिपति अघाए सभसै तेरा पारणा ॥३॥कई भूखे रहते हैं और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो खा कर तृप्त रहते हैं, मगर सब जीवों को एक तेरा ही भरोसा है॥ ३॥ ਆਪੇ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਾਚਾ ॥आपे सति सति सति साचा ॥वह सत्यस्वरूप परमेश्वर

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ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ਸਮਾਵੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਹੇ ॥੧੨॥गुरमुखि नामि समाइ समावै नानक नामु धिआई हे ॥१२॥गुरुमुख नाम में लीन रहकर परमात्मा में ही विलीन हो जाता है, हे नानक ! वह परमात्मा के नाम का ही मनन करता रहता है।॥ १२॥ ਭਗਤਾ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਹੈ ਬਾਣੀ ॥भगता मुखि अम्रित है बाणी ॥भक्तों के मुँह

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