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ਹੁਕਮੇ ਸਾਜੇ ਹੁਕਮੇ ਢਾਹੇ ਹੁਕਮੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੫॥हुकमे साजे हुकमे ढाहे हुकमे मेलि मिलाइदा ॥५॥तू हुक्म से ही बनाता एवं तबाह कर देता है और हुक्म से ही मिला लेता है। ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਸੁ ਹੁਕਮੁ ਸਲਾਹੇ ॥ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਵੇਪਰਵਾਹੇ ॥हुकमै बूझै सु हुकमु सलाहे ॥ अगम अगोचर वेपरवाहे ॥जो तेरे हुक्म को समझ लेता

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ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥जुग चारे गुर सबदि पछाता ॥उसने शब्द-गुरु के भेद को चारों युग में पहचान लिया है। ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਰੈ ਨ ਜਨਮੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਸਮਾਹਾ ਹੇ ॥੧੦॥गुरमुखि मरै न जनमै गुरमुखि गुरमुखि सबदि समाहा हे ॥१०॥वह जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है और शब्द में ही लीन रहता है।॥ १०॥

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ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਸਿ ਰਹਿਆ ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ॥घटि घटि वसि रहिआ जगजीवनु दाता ॥जीवन देने वाला घट-घट सब में बसा रहा है। ਇਕ ਥੈ ਗੁਪਤੁ ਪਰਗਟੁ ਹੈ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਜਾਈ ਹੇ ॥੧੫॥इक थै गुपतु परगटु है आपे गुरमुखि भ्रमु भउ जाई हे ॥१५॥किसी स्थान पर वह गुप्त है और कहीं वह साक्षात् रूप में

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਏ ॥सतिगुरु दाता मुकति कराए ॥सतिगुरु ही दाता है, वही जीव की मुक्ति करवाता है। ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਏ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਏ ॥सभि रोग गवाए अम्रित रसु पाए ॥वह मुँह में नामामृत डाल कर सभी रोग दूर कर देता है। ਜਮੁ ਜਾਗਾਤਿ ਨਾਹੀ ਕਰੁ ਲਾਗੈ ਜਿਸੁ ਅਗਨਿ ਬੁਝੀ ਠਰੁ ਸੀਨਾ ਹੇ ॥੫॥जमु जागाति

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ਦੋਜਕਿ ਪਾਏ ਸਿਰਜਣਹਾਰੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੈ ਬਾਣੀਆ ॥੨॥दोजकि पाए सिरजणहारै लेखा मंगै बाणीआ ॥२॥सृजनहार उन्हें नरक में धकेल देता है और यमराज रूपी बानिया उनसे कर्मो का हिसाब-किताब माँगता है॥ २॥ ਸੰਗਿ ਨ ਕੋਈ ਭਈਆ ਬੇਬਾ ॥संगि न कोई भईआ बेबा ॥अन्त में बहिन भाई कोई भी साथी नहीं बनता। ਮਾਲੁ ਜੋਬਨੁ ਧਨੁ ਛੋਡਿ ਵਞੇਸਾ ॥मालु

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ਲਾਗੀ ਭੂਖ ਮਾਇਆ ਮਗੁ ਜੋਹੈ ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਮੋਹਿ ਖਰੇ ॥੩॥लागी भूख माइआ मगु जोहै मुकति पदारथु मोहि खरे ॥३॥फिर उसे तृष्णा की भूख लग गई, वह धन-दौलत को पाने के लिए भागता है पर माया के मोह ने उससे मोक्ष-पदार्थ छीन लिया॥ ३॥ ਕਰਣ ਪਲਾਵ ਕਰੇ ਨਹੀ ਪਾਵੈ ਇਤ ਉਤ ਢੂਢਤ ਥਾਕਿ ਪਰੇ ॥करण पलाव

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ਹਰਿ ਪੜੀਐ ਹਰਿ ਬੁਝੀਐ ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਮਿ ਉਧਾਰਾ ॥हरि पड़ीऐ हरि बुझीऐ गुरमती नामि उधारा ॥ईश्वर का पाठ करो, उसे ही समझो, गुरु-मतानुसार हरि-नाम का जाप करने से ही उद्धार होता है, ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਹੈ ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥गुरि पूरै पूरी मति है पूरै सबदि बीचारा ॥पूर्ण गुरु का उपदेश पूर्ण है, जो पूर्ण

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ਰਾਗੁ ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੫रागु मारू महला १ घरु ५रागु मारू महला १ घरु ५ ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि॥ ਅਹਿਨਿਸਿ ਜਾਗੈ ਨੀਦ ਨ ਸੋਵੈ ॥अहिनिसि जागै नीद न सोवै ॥वह रात-दिन जागता रहता है, उसे नींद नहीं आती। ਸੋ ਜਾਣੈ ਜਿਸੁ ਵੇਦਨ ਹੋਵੈ ॥सो जाणै जिसु वेदन होवै ॥जिसे

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ਸੀਤਾ ਲਖਮਣੁ ਵਿਛੁੜਿ ਗਇਆ ॥सीता लखमणु विछुड़ि गइआ ॥तदन्तर वन में सीता एवं लक्ष्मण से बिछुड़ गया था। ਰੋਵੈ ਦਹਸਿਰੁ ਲੰਕ ਗਵਾਇ ॥रोवै दहसिरु लंक गवाइ ॥अपनी सोने की लंका को गंवाकर रावण बहुत दुखी हुआ, ਜਿਨਿ ਸੀਤਾ ਆਦੀ ਡਉਰੂ ਵਾਇ ॥जिनि सीता आदी डउरू वाइ ॥जिसने छल से साधु का वेष धारण करके सीता

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ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਰਸੁ ਨ ਆਵੈ ਅਉਧੂ ਹਉਮੈ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥बिनु सबदै रसु न आवै अउधू हउमै पिआस न जाई ॥(गुरु जी उत्तर देते हैं कि) हे अवधूत ! शब्द के बिना रस प्राप्त नहीं होता और अभिमान के कारण लालसा दूर नहीं होती। ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਸਾਚੇ ਰਹੇ ਅਘਾਈ ॥सबदि रते अम्रित

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