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ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਰਸੁ ਨ ਆਵੈ ਅਉਧੂ ਹਉਮੈ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥बिनु सबदै रसु न आवै अउधू हउमै पिआस न जाई ॥(गुरु जी उत्तर देते हैं कि) हे अवधूत ! शब्द के बिना रस प्राप्त नहीं होता और अभिमान के कारण लालसा दूर नहीं होती। ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਸਾਚੇ ਰਹੇ ਅਘਾਈ ॥सबदि रते अम्रित

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ਆਪੁ ਗਇਆ ਦੁਖੁ ਕਟਿਆ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਨਾਰਿ ॥੪੭॥आपु गइआ दुखु कटिआ हरि वरु पाइआ नारि ॥४७॥उस जीव रूपी नारी ने ही हरि रूपी वर प्राप्त किया है, जिसका अहम् दूर हो गया है और उसका दुख कट गया है॥ ४७ ॥ ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਸੰਚੀਐ ਧਨੁ ਕਾਚਾ ਬਿਖੁ ਛਾਰੁ ॥सुइना रुपा संचीऐ धनु काचा बिखु

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ਪੀਵਤ ਅਮਰ ਭਏ ਨਿਹਕਾਮ ॥पीवत अमर भए निहकाम ॥जिसे पान करने से जीव अमर एवं निष्काम हो जाता है। ਤਨੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰੀ ॥तनु मनु सीतलु अगनि निवारी ॥इससे मन-तन शीतल हो जाता है और तृष्णाग्नि बुझ जाती है। ਅਨਦ ਰੂਪ ਪ੍ਰਗਟੇ ਸੰਸਾਰੀ ॥੨॥अनद रूप प्रगटे संसारी ॥२॥वह आनंद स्वरूप में सारे संसार में

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ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੩॥जह देखा तह रहिआ समाइ ॥३॥फिर जहाँ भी दृष्टि जाती है, उधर ही भगवान समाया हुआ लगता है।३॥ ਅੰਤਰਿ ਸਹਸਾ ਬਾਹਰਿ ਮਾਇਆ ਨੈਣੀ ਲਾਗਸਿ ਬਾਣੀ ॥अंतरि सहसा बाहरि माइआ नैणी लागसि बाणी ॥जिसके अन्तर्मन में सन्देह होता है तो बाहर से माया के तीर उसकी आँखों पर लगते हैं। ਪ੍ਰਣਵਤਿ

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ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤबिलावलु महला ५ छंतबिलावलु महला ५ छंत ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ਸਖੀ ਆਉ ਸਖੀ ਵਸਿ ਆਉ ਸਖੀ ਅਸੀ ਪਿਰ ਕਾ ਮੰਗਲੁ ਗਾਵਹ ॥सखी आउ सखी वसि आउ सखी असी पिर का मंगलु गावह ॥हे सखी ! आओ, निष्ठापूर्वक आओ, हम सब मिलकर प्रभु का मंगलगान करें।

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ਪਾਵਉ ਧੂਰਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਕੀ ਨਾਨਕ ਕੁਰਬਾਣੀ ॥੪॥੩॥੩੩॥पावउ धूरि तेरे दास की नानक कुरबाणी ॥४॥३॥३३॥नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! अगर तेरे दास की चरण-धूलि मिल जाए तो उस पर ही कुर्बान होऊँ ॥ ४ ॥ ३॥ ३३॥ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥बिलावलु महला ५ ॥बिलावलु महला ५ ॥ ਰਾਖਹੁ ਅਪਨੀ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਮੋਹਿ ਕਿਰਪਾ

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ਲਾਲਿ ਰਤਾ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੨॥लालि रता मनु मानिआ गुरु पूरा पाइआ ॥२॥जब उसने पूर्ण गुरु पा लिया तो उसका मन प्रसन्न हो गया और वह प्रभु के प्रेम रूपी गहरे लाल-रंग में रंग गया ॥ २ ॥ ਹਉ ਜੀਵਾ ਗੁਣ ਸਾਰਿ ਅੰਤਰਿ ਤੂ ਵਸੈ ॥हउ जीवा गुण सारि अंतरि तू वसै ॥हे

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ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫ ਪੜਤਾਲरागु सूही महला ५ घरु ५ पड़तालरागु सूही महला ५ घरु ५ पड़ताल ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰੀਆ ਮੋਹਨ ਲਾਲਨਾ ॥प्रीति प्रीति गुरीआ मोहन लालना ॥प्यारे प्रभु का प्रेम जग के हर प्रकार के प्रेम से उत्तम एवं सुखदायक है। ਜਪਿ

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ਜੇ ਸਉ ਲੋਚੈ ਰੰਗੁ ਨ ਹੋਵੈ ਕੋਇ ॥੩॥जे सउ लोचै रंगु न होवै कोइ ॥३॥यदि वह सौ बार भी अभिलाषा करे, उसके मन को कोई प्रेम-रंग नहीं चढ़ता ॥ ३॥ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਵੈ ॥ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸਿ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਸਮਾਵੈ ॥੪॥੨॥੬॥नदरि करे ता सतिगुरु पावै ॥ नानक हरि रसि हरि रंगि समावै ॥४॥२॥६॥यदि

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ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਕਰਿ ਰੰਙੁ ॥मेरे मन हरि राम नामि करि रंङु ॥हे मेरे मन ! राम-नाम का रंग कर । ਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਹਰਿ ਉਪਦੇਸਿਆ ਹਰਿ ਭੇਟਿਆ ਰਾਉ ਨਿਸੰਙੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥गुरि तुठै हरि उपदेसिआ हरि भेटिआ राउ निसंङु ॥१॥ रहाउ ॥गुरु ने प्रसन्न होकर जिसे भी उपदेश दिया है, उसे हरि-बादशाह अवश्य

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