HINDI PAGE 22
ਚਾਰੇ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰਿ ਮਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਜਲੁ ਪਾਇ ॥चारे अगनि निवारि मरु गुरमुखि हरि जलु पाइ ॥गुरमुख जीव हरि-नाम रुपी जल डाल कर चहु- अग्नि (हिंसा, मोह, क्रोध, लोभ) बुझा देता है ਅੰਤਰਿ ਕਮਲੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਭਰਿਆ ਅਘਾਇ ॥अंतरि कमलु प्रगासिआ अम्रितु भरिआ अघाइ ॥उसका ह्रदय कमल की भांति खिल उठता है, क्योंकि उनके हृदय