HINDI PAGE 16

ਸੁਣਹਿ ਵਖਾਣਹਿ ਜੇਤੜੇ ਹਉ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
सुणहि वखाणहि जेतड़े हउ तिन बलिहारै जाउ ॥ 
जितने पुरुष नाम के श्रोता व वाचक हैं, उन पर मैं कुर्बान जाता हूँ।

ਤਾ ਮਨੁ ਖੀਵਾ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਮਹਲੀ ਪਾਏ ਥਾਉ ॥੨॥
ता मनु खीवा जाणीऐ जा महली पाए थाउ ॥२॥
इस नाम सिमरन रूपी मदिरा से मन मस्त हुआ तभी जाना जा सकता है,जब जिज्ञासु निरंकार के स्वरूप को प्राप्त कर ले ॥२॥

ਨਾਉ ਨੀਰੁ ਚੰਗਿਆਈਆ ਸਤੁ ਪਰਮਲੁ ਤਨਿ ਵਾਸੁ ॥
नाउ नीरु चंगिआईआ सतु परमलु तनि वासु ॥
जो नाम-जाप व सत्कर्म रुपी जल में स्नान करते हैं और सत्य वचन रूपी सुगंधि को तन पर लगाते हैं।

ਤਾ ਮੁਖੁ ਹੋਵੈ ਉਜਲਾ ਲਖ ਦਾਤੀ ਇਕ ਦਾਤਿ ॥
ता मुखु होवै उजला लख दाती इक दाति ॥
उनका ही मुँह उज्ज्वल होता है और अन्त लाखों प्राप्तियों में एक नाम की प्राप्ति ही श्रेष्ठ है।

ਦੂਖ ਤਿਸੈ ਪਹਿ ਆਖੀਅਹਿ ਸੂਖ ਜਿਸੈ ਹੀ ਪਾਸਿ ॥੩॥
दूख तिसै पहि आखीअहि सूख जिसै ही पासि ॥३॥
दुख भी उसके सम्मुख ही कथन किए जाएँ जिसके पास देने के लिए सुख हो। ॥ ३ ॥

ਸੋ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ਜਾ ਕੇ ਜੀਅ ਪਰਾਣ ॥
सो किउ मनहु विसारीऐ जा के जीअ पराण ॥ 
फिर उस वाहेगुरु को हृदय से विस्मृत क्योंकर किया जाए. जिसने संसार के समस्त प्राणियों को प्राण दिए हुए हैं।

ਤਿਸੁ ਵਿਣੁ ਸਭੁ ਅਪਵਿਤ੍ਰੁ ਹੈ ਜੇਤਾ ਪੈਨਣੁ ਖਾਣੁ ॥
तिसु विणु सभु अपवित्रु है जेता पैनणु खाणु ॥
उस निरंकार के बिना खाना-पीना व पहनना सब अपवित्र है।

ਹੋਰਿ ਗਲਾਂ ਸਭਿ ਕੂੜੀਆ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਪਰਵਾਣੁ ॥੪॥੫॥
होरि गलां सभि कूड़ीआ तुधु भावै परवाणु ॥४॥५॥
अन्य सभी बातें व्यर्थ अथवा मिथ्या हैं सिर्फ वही सत्य व स्वीकृत हैं जो तुझे भला लगता है॥ ४॥ ५॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲੁ ੧ ॥
सिरीरागु महलु १ ॥
सिरीरागु महलु १ ॥

ਜਾਲਿ ਮੋਹੁ ਘਸਿ ਮਸੁ ਕਰਿ ਮਤਿ ਕਾਗਦੁ ਕਰਿ ਸਾਰੁ ॥
जालि मोहु घसि मसु करि मति कागदु करि सारु ॥
मोह को जलाकर, तदनन्तर रगड़ स्याही बना लें और श्रेष्ठ बुद्धि को कागज़ बना लें।

ਭਾਉ ਕਲਮ ਕਰਿ ਚਿਤੁ ਲੇਖਾਰੀ ਗੁਰ ਪੁਛਿ ਲਿਖੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
भाउ कलम करि चितु लेखारी गुर पुछि लिखु बीचारु ॥
प्रेम-रूपी लेखनी से एकाग्र मन रूपी लेखक द्वारा गुरु से सत्यासत्य का विचार उस बुद्धि रूपी कागज़ पर लिखें।

ਲਿਖੁ ਨਾਮੁ ਸਾਲਾਹ ਲਿਖੁ ਲਿਖੁ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੧॥
लिखु नामु सालाह लिखु लिखु अंतु न पारावारु ॥१॥
वाहिगुरु का नाम लिखें, उसकी स्तुति को लिखें और फिर उसकी अनंतता को लिखें ॥ १॥

ਬਾਬਾ ਏਹੁ ਲੇਖਾ ਲਿਖਿ ਜਾਣੁ ॥
बाबा एहु लेखा लिखि जाणु ॥ 
हे बाबा जी ! ऐसा लेखा लिखा जाना चाहिए।

ਜਿਥੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੀਐ ਤਿਥੈ ਹੋਇ ਸਚਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिथै लेखा मंगीऐ तिथै होइ सचा नीसाणु ॥१॥ रहाउ ॥
ताकि जहां (परलोक में) जीवों से कर्मो का हिसाब लिया जाता है वहाँ सत्य नाम का चिन्ह साथ हो II १॥ रहाउ॥

ਜਿਥੈ ਮਿਲਹਿ ਵਡਿਆਈਆ ਸਦ ਖੁਸੀਆ ਸਦ ਚਾਉ ॥
जिथै मिलहि वडिआईआ सद खुसीआ सद चाउ ॥
जिस परलोक में भक्त जनों को सम्मान मिलता है, सदैव प्रसन्नता तथा सदैव आनन्द की प्राप्ति होती है।

ਤਿਨ ਮੁਖਿ ਟਿਕੇ ਨਿਕਲਹਿ ਜਿਨ ਮਨਿ ਸਚਾ ਨਾਉ ॥
तिन मुखि टिके निकलहि जिन मनि सचा नाउ ॥
जिनके ह्रदय में सत्य नाम बसा हुआ है, उनके ललाट पर तिलक सुशोभित होते हैं।

ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਤਾ ਪਾਈਐ ਨਾਹੀ ਗਲੀ ਵਾਉ ਦੁਆਉ ॥੨॥
करमि मिलै ता पाईऐ नाही गली वाउ दुआउ ॥२॥
ऐसा नाम जब निरंकार की कृपा हो तभी प्राप्त होता है, अन्यथा जो और वार्ता करनी है वह व्यर्थ है ॥२॥

ਇਕਿ ਆਵਹਿ ਇਕਿ ਜਾਹਿ ਉਠਿ ਰਖੀਅਹਿ ਨਾਵ ਸਲਾਰ ॥
इकि आवहि इकि जाहि उठि रखीअहि नाव सलार ॥
कोई यहाँ जन्मता है और कोई मृत्यु को प्राप्त होता है, किन्हीं यहाँ पर मुखिया बन बैठते हैं।

ਇਕਿ ਉਪਾਏ ਮੰਗਤੇ ਇਕਨਾ ਵਡੇ ਦਰਵਾਰ ॥
इकि उपाए मंगते इकना वडे दरवार ॥
कोई भिखारी पैदा होता है, कोई यहाँ पर बड़े दरबार लगा कर रहते हैं।

ਅਗੈ ਗਇਆ ਜਾਣੀਐ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਵੇਕਾਰ ॥੩॥
अगै गइआ जाणीऐ विणु नावै वेकार ॥३॥
किन्तु परलोक में जाकर ही प्रतीत होता है कि निरंकार के नाम बिना यह सब-कुछ व्यर्थ है ॥ ३॥

ਭੈ ਤੇਰੈ ਡਰੁ ਅਗਲਾ ਖਪਿ ਖਪਿ ਛਿਜੈ ਦੇਹ ॥
भै तेरै डरु अगला खपि खपि छिजै देह ॥
हे पांधा जी ! आप के हृदय में परलोक का भय है अथवा नहीं, किन्तु मुझे आगे परलोक का भय बहुत है। इसलिए यह शरीर व्यवहारिक कार्यों में खप-खप कर टूट रहा है।

ਨਾਵ ਜਿਨਾ ਸੁਲਤਾਨ ਖਾਨ ਹੋਦੇ ਡਿਠੇ ਖੇਹ ॥
नाव जिना सुलतान खान होदे डिठे खेह ॥
जिनके नाम बादशाह व सरदार होते हैं, वे भी ख्वार होते यहाँ देखे गए हैं।

ਨਾਨਕ ਉਠੀ ਚਲਿਆ ਸਭਿ ਕੂੜੇ ਤੁਟੇ ਨੇਹ ॥੪॥੬॥
नानक उठी चलिआ सभि कूड़े तुटे नेह ॥४॥६॥ 
सतिगुरु जी कथन करते हैं कि जब जीव इस नश्वर संसार को त्याग कर चला जाता है तो जितने भी यहाँ पर मेिथ्या प्रेम-सम्वन्ध स्थापेित किए होते हैं, वे टूट जाते हैं। ॥ ४॥ ६॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥
सिरीरागु महला १ ॥

ਸਭਿ ਰਸ ਮਿਠੇ ਮੰਨਿਐ ਸੁਣਿਐ ਸਾਲੋਣੇ ॥
सभि रस मिठे मंनिऐ सुणिऐ सालोणे ॥
हे पिता जी ! परमेश्वर के नाम का चिन्तन करने से मीठे रस तथा श्रवण करने से लवणीय रस प्राप्त होते हैं।

ਖਟ ਤੁਰਸੀ ਮੁਖਿ ਬੋਲਣਾ ਮਾਰਣ ਨਾਦ ਕੀਏ ॥
खट तुरसी मुखि बोलणा मारण नाद कीए ॥
मुँह से उसकी स्तुति कथन करने से खट्टे व तुर्श पदार्थों का स्वाद प्राप्त होता है और रागों में कीर्तन करने से सर्व प्रकार के मसालों का स्वाद मिलता है।

ਛਤੀਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਾਉ ਏਕੁ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥੧॥
छतीह अम्रित भाउ एकु जा कउ नदरि करेइ ॥१॥
वास्तव में छत्तीस प्रकार का अमृत रूपी भोजन एक परमेश्वर का प्रेम है, परंतु जिन पर परमात्मा की कृपा होती है यह उसी को प्राप्त होते हैं। ॥ १॥

ਬਾਬਾ ਹੋਰੁ ਖਾਣਾ ਖੁਸੀ ਖੁਆਰੁ ॥
बाबा होरु खाणा खुसी खुआरु ॥
हे पिता जी ! जिव्हा के स्वाद हेतु अन्य पदार्थों का भक्षण करना ख्वार करता है।

ਜਿਤੁ ਖਾਧੈ ਤਨੁ ਪੀੜੀਐ ਮਨ ਮਹਿ ਚਲਹਿ ਵਿਕਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु खाधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके खाने से मन में कामादिक विकारों की प्रवृति हो, उससे परलोक में देह को पीड़ित किया जाता है ॥ १॥ रहाउ ॥

ਰਤਾ ਪੈਨਣੁ ਮਨੁ ਰਤਾ ਸੁਪੇਦੀ ਸਤੁ ਦਾਨੁ ॥
रता पैनणु मनु रता सुपेदी सतु दानु ॥
मन को वाहिगुरु-नाम में लीन करने को ही मैंने लाल रंग का पहरावा बनाया है, सत्य वचन कथन करने को श्वेत पहरावा बनाया है।

ਨੀਲੀ ਸਿਆਹੀ ਕਦਾ ਕਰਣੀ ਪਹਿਰਣੁ ਪੈਰ ਧਿਆਨੁ ॥
नीली सिआही कदा करणी पहिरणु पैर धिआनु ॥
पाप रहित होकर प्रभु के चरणों का ध्यान करने को मैंने नील वस्त्र का पहरावा बनाया है।

ਕਮਰਬੰਦੁ ਸੰਤੋਖ ਕਾ ਧਨੁ ਜੋਬਨੁ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ॥੨॥
कमरबंदु संतोख का धनु जोबनु तेरा नामु ॥२॥
संतोष को कमरबंद और ईश्वर-नाम को धन व यौवन माना है ॥ २॥

ਬਾਬਾ ਹੋਰੁ ਪੈਨਣੁ ਖੁਸੀ ਖੁਆਰੁ ॥
बाबा होरु पैनणु खुसी खुआरु ॥
हे पिता जी ! मन-भावना के अनुसार अन्य पहनने से मानव ख्वार होता है।

ਜਿਤੁ ਪੈਧੈ ਤਨੁ ਪੀੜੀਐ ਮਨ ਮਹਿ ਚਲਹਿ ਵਿਕਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु पैधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके पहनने से तन को पीड़ा हो तथा मन में विकारों की उत्पति हो, ऐसे वस्त्र पहनने व्यर्थ हैं ॥१॥ रहाउ॥

ਘੋੜੇ ਪਾਖਰ ਸੁਇਨੇ ਸਾਖਤਿ ਬੂਝਣੁ ਤੇਰੀ ਵਾਟ ॥
घोड़े पाखर सुइने साखति बूझणु तेरी वाट ॥
धर्म रूपी घोड़े को सत्य वचन की ज़ीन पहना कर, उसको करुणादि स्वर्ण के दुमची भूषण से सजा कर निरंकार की प्राप्ति के मार्ग की सूझ पर मैंने चलन किया है।

ਤਰਕਸ ਤੀਰ ਕਮਾਣ ਸਾਂਗ ਤੇਗਬੰਦ ਗੁਣ ਧਾਤੁ ॥
तरकस तीर कमाण सांग तेगबंद गुण धातु ॥
शुद्धचित रूपी तरकश में प्रेम रूपी तीर हैं, परमेश्वर की ओर उन्मुख बुद्धि मेरा कमान है, शांति मेरे लिए बर्छीं है, ज्ञान को मैंने म्यान माना है, इन शुभ गुणों की ओर ही मैंने दौड़ना किया है।

ਵਾਜਾ ਨੇਜਾ ਪਤਿ ਸਿਉ ਪਰਗਟੁ ਕਰਮੁ ਤੇਰਾ ਮੇਰੀ ਜਾਤਿ ॥੩॥
वाजा नेजा पति सिउ परगटु करमु तेरा मेरी जाति ॥३॥
ईश्वर-कृपा से आपके घर में प्रतिष्ठा से प्रकट होना मेरे लिए धोंसा व भाला है, आपकी साक्षात् कृपा ही मानों मेरी उच्च जाति है II ३ II

ਬਾਬਾ ਹੋਰੁ ਚੜਣਾ ਖੁਸੀ ਖੁਆਰੁ ॥
बाबा होरु चड़णा खुसी खुआरु ॥
हे पिता जी ! चित प्रसंन करते हेतु किसी अन्य की सवारी करने से मानव ख्वार होता है।

ਜਿਤੁ ਚੜਿਐ ਤਨੁ ਪੀੜੀਐ ਮਨ ਮਹਿ ਚਲਹਿ ਵਿਕਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु चड़िऐ तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥ रहाउ ||
जिस पर चढ़ने से तन को पीड़ा हो और मन में विकारों की उत्पति हो, ऐसी सवारी करना व्यर्थ है॥ १॥ रहाउ॥

ਘਰ ਮੰਦਰ ਖੁਸੀ ਨਾਮ ਕੀ ਨਦਰਿ ਤੇਰੀ ਪਰਵਾਰੁ ॥
घर मंदर खुसी नाम की नदरि तेरी परवारु ॥
हे निरंकार ! तेरे नाम की प्रसंनता ही मेरे लिए भवनादि हैं और तुम्हारी कृपा-दृष्टि मेरा परिवार है।

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