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ਧਨੁ ਧਨੁ ਹਰਿ ਜਨ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ॥धनु धनु हरि जन जिनि हरि प्रभु जाता ॥वह हरि के सेवक धन्य हैं, जिन्होंने हरि-प्रभु को समझ लिया है। ਜਾਇ ਪੁਛਾ ਜਨ ਹਰਿ ਕੀ ਬਾਤਾ ॥जाइ पुछा जन हरि की बाता ॥मैं जाकर ऐसे सेवकों से हरि की बातें पूछता हूँ। ਪਾਵ ਮਲੋਵਾ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੋਵਾ

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ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥माझ महला ४ ॥माझ महला ४ ॥ ਹਰਿ ਗੁਣ ਪੜੀਐ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗੁਣੀਐ ॥हरि गुण पड़ीऐ हरि गुण गुणीऐ ॥हमें हरि-परमेश्वर की महिमा को ही पढ़ना चाहिए और हरि की महिमा का ही चिन्तन करना चाहिए। ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕਥਾ ਨਿਤ ਸੁਣੀਐ ॥हरि हरि नाम कथा नित सुणीऐ ॥सदैव ही हरि नाम

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ਰਾਗੁ ਮਾਝ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧ ਮਹਲਾ ੪रागु माझ चउपदे घरु १ महला ४रागु माझ चउपदे घरु १ महला ४ ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरुअकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥सबका मालिक एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टि की रचना करने वाला

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ਸ੍ਰੀਰਾਗ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਬੇਣੀ ਜੀਉ ਕੀ ॥स्रीराग बाणी भगत बेणी जीउ की ॥श्री राग बाणी भगत बेणी जीउ की ॥ ਪਹਰਿਆ ਕੈ ਘਰਿ ਗਾਵਣਾ ॥पहरिआ कै घरि गावणा ॥(प्रस्तुत पद को पहरे वाणी के स्वर में गाने का आदेश दिया गया है।) ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा

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ਐਸਾ ਤੈਂ ਜਗੁ ਭਰਮਿ ਲਾਇਆ ॥ऐसा तैं जगु भरमि लाइआ ॥हे प्रभु! आप ने ही इस तरह जगत् को भ्रम में डाला हुआ है। ਕੈਸੇ ਬੂਝੈ ਜਬ ਮੋਹਿਆ ਹੈ ਮਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥कैसे बूझै जब मोहिआ है माइआ ॥१॥ रहाउ ॥हे प्रभु ! माया ने जगत् को अपने मोह में फँसाया हुआ है, फिर जगत्

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ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਨੋ ਦੇਇ ਅਨੰਦੁ ਥਿਰੁ ਘਰੀ ਬਹਾਲਿਅਨੁ ॥हरि भगता नो देइ अनंदु थिरु घरी बहालिअनु ॥भगवान भक्तों को आनंद प्रदान करता है और उन्हें अपने अटल घर में स्थिर करके विराजमान करता है। ਪਾਪੀਆ ਨੋ ਨ ਦੇਈ ਥਿਰੁ ਰਹਣਿ ਚੁਣਿ ਨਰਕ ਘੋਰਿ ਚਾਲਿਅਨੁ ॥पापीआ नो न देई थिरु रहणि चुणि नरक घोरि चालिअनु ॥वह

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ਮਃ ੩ ॥मः ३ ॥  महला ३॥ ਸਬਦਿ ਰਤੀ ਸੋਹਾਗਣੀ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰਿ ॥सबदि रती सोहागणी सतिगुर कै भाइ पिआरि ॥  सुहागिन जीव-स्त्री सतिगुरु की रज़ा में प्रेमपूर्वक नाम में मग्न रहती है। ਸਦਾ ਰਾਵੇ ਪਿਰੁ ਆਪਣਾ ਸਚੈ ਪ੍ਰੇਮਿ ਪਿਆਰਿ ॥सदा रावे पिरु आपणा सचै प्रेमि पिआरि ॥  वह सत्य-प्रेम से अपने पति-प्रभु के साथ सदैव ही

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ਜਿਨ ਕਉ ਹੋਆ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹਰਿ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪੈਰੀ ਪਾਹੀ ॥जिन कउ होआ क्रिपालु हरि से सतिगुर पैरी पाही ॥ जिन पर परमात्मा दयालु होता है, वह सतिगुरु पर नतमस्तक होते हैं। ਤਿਨ ਐਥੈ ਓਥੈ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਧੇ ਜਾਹੀ ॥੧੪॥तिन ऐथै ओथै मुख उजले हरि दरगह पैधे जाही ॥१४॥  लोक तथा परलोक में उनके चेहरे उज्ज्वल

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ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥सलोकु मः ३ ॥ श्लोक महला ३॥ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਆਪਣਾ ਸੋ ਸਿਰੁ ਲੇਖੈ ਲਾਇ ॥सतिगुरु सेवे आपणा सो सिरु लेखै लाइ ॥ जो व्यक्ति अपने सतिगुरु की सेवा करते हैं, वह अपना सिर प्रभु के लेखे में लगा देते हैं अर्थात् वह अपना जन्म सफल कर लेते हैं। ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਕੈ ਰਹਨਿ ਸਚਿ

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ਗੁਰਮਤੀ ਜਮੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਸਾਚੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥गुरमती जमु जोहि न साकै साचै नामि समाइआ ॥  गुरु की मति पर अनुसरण करने से मृत्यु उन्हें देख भी नहीं सकती; वे सत्य-प्रभु के नाम में ही मग्न रहते हैं। ਸਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤੈ ਕਰਤਾ ਜੋ ਭਾਵੈ ਸੋ ਨਾਇ ਲਾਇਆ ॥सभु आपे आपि वरतै करता जो भावै

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