Hindi Page 95

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
माझ महला ४ ॥
माझ महला ४ ॥

ਹਰਿ ਗੁਣ ਪੜੀਐ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗੁਣੀਐ ॥
हरि गुण पड़ीऐ हरि गुण गुणीऐ ॥
हमें हरि-परमेश्वर की महिमा को ही पढ़ना चाहिए और हरि की महिमा का ही चिन्तन करना चाहिए।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕਥਾ ਨਿਤ ਸੁਣੀਐ ॥
हरि हरि नाम कथा नित सुणीऐ ॥
सदैव ही हरि नाम की कथा को सुनना चाहिए

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ਜਗੁ ਭਉਜਲੁ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ਜੀਉ ॥੧॥
मिलि सतसंगति हरि गुण गाए जगु भउजलु दुतरु तरीऐ जीउ ॥१॥
तथा संतों की सभा में मिलकर हरि की महिमा-स्तुति का गायन करना चाहिए; इस प्रकार भवसागर से पार हुआ जा सकता है ॥१॥

ਆਉ ਸਖੀ ਹਰਿ ਮੇਲੁ ਕਰੇਹਾ ॥
आउ सखी हरि मेलु करेहा ॥
हे मेरी सखियो ! आओ हम हरि मिलन का प्रयास करें।

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਾ ਮੈ ਦੇਇ ਸਨੇਹਾ॥
मेरे प्रीतम का मै देइ सनेहा ॥
कोई मुझे मेरे प्रियतम का संदेश दे जाए।

ਮੇਰਾ ਮਿਤ੍ਰੁ ਸਖਾ ਸੋ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਭਾਈ ਮੈ ਦਸੇ ਹਰਿ ਨਰਹਰੀਐ ਜੀਉ ॥੨॥
मेरा मित्रु सखा सो प्रीतमु भाई मै दसे हरि नरहरीऐ जीउ ॥२॥
केवल वही मेरा मित्र एवं सखा है, वही प्रियतम एवं बन्धु है, जो मुझे नरसिंह-हरि का मार्गदर्शन करता है॥२॥

ਮੇਰੀ ਬੇਦਨ ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਜਾਣੈ ॥
मेरी बेदन हरि गुरु पूरा जाणै ॥
मेरी वेदना को पूर्ण हरि-रूप गुरु जी समझते हैं।

ਹਉ ਰਹਿ ਨ ਸਕਾ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਵਖਾਣੇ ॥
हउ रहि न सका बिनु नाम वखाणे ॥
मैं प्रभु का नाम सिमरन किए बिना रह नहीं सकता।

ਮੈ ਅਉਖਧੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਜੈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਉਧਰੀਐ ਜੀਉ ॥੩॥
मै अउखधु मंत्रु दीजै गुर पूरे मै हरि हरि नामि उधरीऐ जीउ ॥३॥
हे मेरे पूर्ण गुरदेव जी ! मुझे नाम मंत्र रूपी औषधि दीजिए एवं हरि के नाम द्वारा मेरा उद्धार कर दीजिए॥ ३॥

ਹਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਦੀਨ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥
हम चात्रिक दीन सतिगुर सरणाई ॥
मैं दीन चातक हूँ और सतिगुरु की शरण में आया हूँ!

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬੂੰਦ ਮੁਖਿ ਪਾਈ ॥
हरि हरि नामु बूंद मुखि पाई ॥
गुरु जी ने हरि प्रभु के नाम की बूंद मुख में डाली है।

ਹਰਿ ਜਲਨਿਧਿ ਹਮ ਜਲ ਕੇ ਮੀਨੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮਰੀਐ ਜੀਉ ॥੪॥੩॥
हरि जलनिधि हम जल के मीने जन नानक जल बिनु मरीऐ जीउ ॥४॥३॥
हरि जल का समुद्र है और मैं उस जल की मछली हूँ। हे नानक ! इस जल के बिना मैं मर जाती हूँ ॥४॥३ ॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
माझ महला ४ ॥
माझ महला ४ ॥

ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਦਸਹੁ ਮੈ ਭੁਖ ਲਗਾਈ ॥
मेरा हरि प्रभु दसहु मै भुख लगाई ॥
मुझे मेरे हरि प्रभु बारे बताओ, क्योंकि मुझे हरि के दर्शनों की भूख लगी हुई है।

ਹਰਿ ਜਨ ਸੰਤ ਮਿਲਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
हरि जन संत मिलहु मेरे भाई ॥
हे मेरे हरि के संतजनों ! हे भाइयों ! मुझे मिलो।

ਮੇਰੀ ਸਰਧਾ ਪੂਰਿ ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤੇ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨਿ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ਜੀਉ ॥੧॥
मेरी सरधा पूरि जगजीवन दाते मिलि हरि दरसनि मनु भीजै जीउ ॥१॥
हे जगत् के जीवन दाता ! मेरी मनोकामना पूरी करो ; हरि से मिलकर उसके दर्शन करके मेरा मन प्रसन्न हो जाएगा ॥१॥

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਿ ਬੋਲੀ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥
मिलि सतसंगि बोली हरि बाणी ॥
सत्संग में मिलकर मैं हरि की वाणी बोलता हूँ।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥
हरि हरि कथा मेरै मनि भाणी ॥
हरि की कथा मेरे मन को बहुत अच्छी लगती है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ਜੀਉ ॥੨॥
हरि हरि अम्रितु हरि मनि भावै मिलि सतिगुर अम्रितु पीजै जीउ ॥२॥
हरि का हरि नाम रूपी अमृत मेरे मन को मधुर लगता है; गुरु से भेंट करके मैं नाम अमृत का पान करता हूँ ॥२॥

ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਸੰਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥
वडभागी हरि संगति पावहि ॥
भाग्यशाली व्यक्ति हरि की संगति प्राप्त करता है।

ਭਾਗਹੀਨ ਭ੍ਰਮਿ ਚੋਟਾ ਖਾਵਹਿ ॥
भागहीन भ्रमि चोटा खावहि ॥
किन्तु भाग्यहीन मनुष्य भ्रम में भटकते और चोटें सहते हैं।

ਬਿਨੁ ਭਾਗਾ ਸਤਸੰਗੁ ਨ ਲਭੈ ਬਿਨੁ ਸੰਗਤਿ ਮੈਲੁ ਭਰੀਜੈ ਜੀਉ ॥੩॥
बिनु भागा सतसंगु न लभै बिनु संगति मैलु भरीजै जीउ ॥३॥
भाग्य के बिना सत्संगति नहीं मिलती; सत्संग के बिना मनुष्य पापों की मलिनता के साथ लथपथ हो जाता है।॥३॥

ਮੈ ਆਇ ਮਿਲਹੁ ਜਗਜੀਵਨ ਪਿਆਰੇ ॥
मै आइ मिलहु जगजीवन पिआरे ॥
हे मेरे प्रियतम ! हे जगजीवन ! आकर मुझे दर्शन दीजिए।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਇਆ ਮਨਿ ਧਾਰੇ ॥
हरि हरि नामु दइआ मनि धारे ॥
अपने मन में दया धारण करके मुझे हरि नाम प्रदान कीजिए।

ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਮੀਠਾ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ਜੀਉ ॥੪॥੪॥
गुरमति नामु मीठा मनि भाइआ जन नानक नामि मनु भीजै जीउ ॥४॥४॥
गुरु के उपदेश से मेरे मन को हरि-नाम मधुर एवं अच्छा लगने लग गया है; हे नानक ! मेरा मन हरि नाम से भीग गया है ॥४॥४॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
माझ महला ४ ॥
माझ महला ४ ॥

ਹਰਿ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ॥
हरि गुर गिआनु हरि रसु हरि पाइआ ॥
मैंने हरि बारे गुरु के दिए ज्ञान द्वारा हरि-रस प्राप्त किया है।

ਮਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਆਇਆ ॥
मनु हरि रंगि राता हरि रसु पीआइआ ॥
जब गुरु ने मुझे हरि-रस का पान करवाया तो मेरा मन हरि के प्रेम में मग्न हो गया।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬੋਲੀ ਮਨੁ ਹਰਿ ਰਸਿ ਟੁਲਿ ਟੁਲਿ ਪਉਦਾ ਜੀਉ ॥੧॥
हरि हरि नामु मुखि हरि हरि बोली मनु हरि रसि टुलि टुलि पउदा जीउ ॥१॥
मैं हरि का हरिनाम अपने मुख से बोलता रहता हूँ; मेरा मन हरि रस पान करने को उत्सुक होता है॥१॥

ਆਵਹੁ ਸੰਤ ਮੈ ਗਲਿ ਮੇਲਾਈਐ ॥
आवहु संत मै गलि मेलाईऐ ॥
हे संतजनो ! आओ और मुझे अपने गले से लगाओ।

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕੀ ਮੈ ਕਥਾ ਸੁਣਾਈਐ ॥
मेरे प्रीतम की मै कथा सुणाईऐ ॥
मेरे प्रियतम प्रभु की कथा सुनाओ।

ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਮਿਲਹੁ ਮਨੁ ਦੇਵਾ ਜੋ ਗੁਰਬਾਣੀ ਮੁਖਿ ਚਉਦਾ ਜੀਉ ॥੨॥
हरि के संत मिलहु मनु देवा जो गुरबाणी मुखि चउदा जीउ ॥२॥
हे हरि के संतजनो ! मुझे मिलो ; जो मेरे मुंह में गुरुवाणी डालता है, मैं उसे अपना मन अर्पण कर दूँगा ॥२॥

ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਸੰਤੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥
वडभागी हरि संतु मिलाइआ ॥
पूर्ण सौभाग्य से ईश्वर ने मुझे अपने संत से मिला दिया है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਰਸੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ॥
गुरि पूरै हरि रसु मुखि पाइआ ॥
पूर्णगुरु ने मेरे मुख में हरि-रस डाल दिया है।

ਭਾਗਹੀਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ਮਨਮੁਖੁ ਗਰਭ ਜੂਨੀ ਨਿਤਿ ਪਉਦਾ ਜੀਉ ॥੩॥
भागहीन सतिगुरु नही पाइआ मनमुखु गरभ जूनी निति पउदा जीउ ॥३॥
भाग्यहीन मनुष्य को सतिगुरु प्राप्त नहीं होता; मनमुख व्यक्ति सदा गर्भ-योनि में प्रवेश करता है ॥३॥

ਆਪਿ ਦਇਆਲਿ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੀ ॥
आपि दइआलि दइआ प्रभि धारी ॥
दयालु ईश्वर ने स्वयं मुझ पर दया की है

ਮਲੁ ਹਉਮੈ ਬਿਖਿਆ ਸਭ ਨਿਵਾਰੀ ॥
मलु हउमै बिखिआ सभ निवारी ॥
और उसने अहंकार की समस्त विषैली मलिनता हटा दी है।

ਨਾਨਕ ਹਟ ਪਟਣ ਵਿਚਿ ਕਾਂਇਆ ਹਰਿ ਲੈਂਦੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਉਦਾ ਜੀਉ ॥੪॥੫॥
नानक हट पटण विचि कांइआ हरि लैंदे गुरमुखि सउदा जीउ ॥४॥५॥
हे नानक ! गुरमुख मनुष्य देह रूपी नगर में इन्द्रिय रूपी दुकानों पर ईश्वर के नाम का सौदा खरीदते हैं।॥४॥५॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
माझ महला ४ ॥
माझ महला ४ ॥

ਹਉ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥
हउ गुण गोविंद हरि नामु धिआई ॥
मैं गोविन्द का गुणानुवाद करता हूँ और हरि नाम का ध्यान करने में ही मग्न रहता हूँ।

ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਈ ॥
मिलि संगति मनि नामु वसाई ॥
मैं सत्संग में मिलकर नाम को अपने मन में बसाता हूँ।

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਸੁਆਮੀ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਹਰਿ ਰਸੁ ਕੀਚੈ ਜੀਉ ॥੧॥
हरि प्रभ अगम अगोचर सुआमी मिलि सतिगुर हरि रसु कीचै जीउ ॥१॥
मेरा स्वामी हरि-प्रभु अगम्य एवं अगोचर है तथा सतिगुरु से मिलकर मैं हरि-रस का आनंद प्राप्त करता हूँ ॥१॥

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