ਐਸਾ ਤੈਂ ਜਗੁ ਭਰਮਿ ਲਾਇਆ ॥
ऐसा तैं जगु भरमि लाइआ ॥
हे प्रभु! आप ने ही इस तरह जगत् को भ्रम में डाला हुआ है।
ਕੈਸੇ ਬੂਝੈ ਜਬ ਮੋਹਿਆ ਹੈ ਮਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कैसे बूझै जब मोहिआ है माइआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! माया ने जगत् को अपने मोह में फँसाया हुआ है, फिर जगत् इस भेद को कैसे समझ सकता है? ॥१॥रहाउ॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਛੋਡਿ ਬਿਖਿਆ ਰਸ ਇਤੁ ਸੰਗਤਿ ਨਿਹਚਉ ਮਰਣਾ ॥
कहत कबीर छोडि बिखिआ रस इतु संगति निहचउ मरणा ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे प्राणी ! तू पापों का विषय-रस त्याग दे, क्योंकि इनकी संगति से तुम निश्चित ही मर जाओगे।
ਰਮਈਆ ਜਪਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਅਨਤ ਜੀਵਣ ਬਾਣੀ ਇਨ ਬਿਧਿ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਤਰਣਾ ॥੨॥
रमईआ जपहु प्राणी अनत जीवण बाणी इन बिधि भव सागरु तरणा ॥२॥
हे नश्वर प्राणी ! राम नाम का भजन करो, क्योंकि वहीं अनन्त जीवनदायक वाणी है। इस विधि से तुम भयानक सागर से पार हो जाओगे ॥२॥
ਜਾਂ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਲਾਗੈ ਭਾਉ ॥
जां तिसु भावै ता लागै भाउ ॥
जब भगवान को उपयुक्त लगता है तो ही जीव का उससे प्रेम होता है।
ਭਰਮੁ ਭੁਲਾਵਾ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥
भरमु भुलावा विचहु जाइ ॥
उसके मन में से दुविधा में डालने वाला भ्रम दूर हो जाता है।
ਉਪਜੈ ਸਹਜੁ ਗਿਆਨ ਮਤਿ ਜਾਗੈ ॥
उपजै सहजु गिआन मति जागै ॥
फिर मन में सहज अवस्था उत्पन्न होने से उसकी सोई हुई ज्ञान बुद्धि जाग जाती है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਅੰਤਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ॥੩॥
गुर प्रसादि अंतरि लिव लागै ॥३॥
गुरु की कृपा से उसके अन्तर्मन में भगवान से सुरति लग जाती है॥ ३॥
ਇਤੁ ਸੰਗਤਿ ਨਾਹੀ ਮਰਣਾ ॥
इतु संगति नाही मरणा ॥
परमात्मा की संगति में रहने से जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।
ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਿ ਤਾ ਖਸਮੈ ਮਿਲਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥
हुकमु पछाणि ता खसमै मिलणा ॥१॥ रहाउ दूजा ॥
ईश्वर की आज्ञा को पहचान कर ही जीव का उससे मिलन हो जाता है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ਕਾ ॥
सिरीरागु त्रिलोचन का ॥
श्रीरागु त्रिलोचन का ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਮਨਿ ਆਗਲੜਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜਰਾ ਮਰਣੁ ਭਉ ਵਿਸਰਿ ਗਇਆ ॥
माइआ मोहु मनि आगलड़ा प्राणी जरा मरणु भउ विसरि गइआ ॥
हे प्राणी ! तेरे मन में मोह-माया की इतनी आसक्ति है कि तुझे बुढ़ापा और मृत्यु का भय भी भूल गया है।
ਕੁਟੰਬੁ ਦੇਖਿ ਬਿਗਸਹਿ ਕਮਲਾ ਜਿਉ ਪਰ ਘਰਿ ਜੋਹਹਿ ਕਪਟ ਨਰਾ ॥੧॥
कुट्मबु देखि बिगसहि कमला जिउ पर घरि जोहहि कपट नरा ॥१॥
जैसे कमल का फूल जल में खिलता है, वैसे ही तुम अपने परिवार को देखकर प्रसन्न होते हो। परन्तु हे कपटी मानव ! तुम पराई-नारी को देखते रहते हो॥१॥
ਦੂੜਾ ਆਇਓਹਿ ਜਮਹਿ ਤਣਾ ॥ ਤਿਨ ਆਗਲੜੈ ਮੈ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
दूड़ा आइओहि जमहि तणा ॥
जब बलवान यमदूत आते हैं तो मैं उनके समक्ष टिक नहीं सकता।
ਤਿਨ ਆਗਲੜੈ ਮੈ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
तिन आगलड़ै मै रहणु न जाइ ॥
कोई विरला ही संत है जो इस जगत् में आकर यह बात कहता है।
ਕੋਈ ਕੋਈ ਸਾਜਣੁ ਆਇ ਕਹੈ ॥
कोई कोई साजणु आइ कहै ॥
हे मेरे प्रभु ! मुझे दर्शन दीजिए और अपनी भुजाएं गले में डालकर मुझसे भेंट करो।
ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਬੀਠੁਲਾ ਲੈ ਬਾਹੜੀ ਵਲਾਇ ॥ ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਰਮਈਆ ਮੈ ਲੇਹਿ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलु मेरे बीठुला लै बाहड़ी वलाइ ॥
हे मेरे राम ! मुझे मिलो और बन्धन से मुक्त करो ॥१॥ रहाउ ॥
ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਰਮਈਆ ਮੈ ਲੇਹਿ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलु मेरे रमईआ मै लेहि छडाइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्राणी ! तूने विभिन्न प्रकार के भोग-विलासों एवं राजकीय शान-शौकत में पड़कर ईश्वर को विस्मृत कर दिया है तथा इस संसार सागर में पड़कर तुम ध्यान करते हो कि तुम अमर हो गए हो।
ਅਨਿਕ ਅਨਿਕ ਭੋਗ ਰਾਜ ਬਿਸਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਪੈ ਅਮਰੁ ਭਇਆ ॥
अनिक अनिक भोग राज बिसरे प्राणी संसार सागर पै अमरु भइआ ॥
तुझे माया ने छल लिया है इसलिए तू प्रभु को स्मरण ही नहीं करता।
ਮਾਇਆ ਮੂਠਾ ਚੇਤਸਿ ਨਾਹੀ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਓ ਆਲਸੀਆ ॥੨॥
माइआ मूठा चेतसि नाही जनमु गवाइओ आलसीआ ॥२॥
हे आलसी प्राणी ! तूने अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया है॥ २॥
ਬਿਖਮ ਘੋਰ ਪੰਥਿ ਚਾਲਣਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਰਵਿ ਸਸਿ ਤਹ ਨ ਪ੍ਰਵੇਸੰ ॥
बिखम घोर पंथि चालणा प्राणी रवि ससि तह न प्रवेसं ॥
हे प्राणी ! मरणोपरांत तुझे यमपुरी जाते वक्त बहुत ही भयानक अंधकारमय मार्ग से चलना पड़ेगा। उस यमपुरी में सूर्य एवं चन्द्रमा का भी प्रवेश नहीं।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਤਬ ਬਿਸਰਿ ਗਇਆ ਜਾਂ ਤਜੀਅਲੇ ਸੰਸਾਰੰ ॥੩॥
माइआ मोहु तब बिसरि गइआ जां तजीअले संसारं ॥३॥
जब प्राणी संसार को त्याग देता है, तब वह माया के मोह को भूल जाता है।॥३॥
ਆਜੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਪ੍ਰਗਟੁ ਭਇਆ ਹੈ ਪੇਖੀਅਲੇ ਧਰਮਰਾਓ ॥
आजु मेरै मनि प्रगटु भइआ है पेखीअले धरमराओ ॥
आज मेरे मन में यमराज प्रगट हो गया था और मैंने उसे नेत्रों से देख लिया है।
ਤਹ ਕਰ ਦਲ ਕਰਨਿ ਮਹਾਬਲੀ ਤਿਨ ਆਗਲੜੈ ਮੈ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥੪॥
तह कर दल करनि महाबली तिन आगलड़ै मै रहणु न जाइ ॥४॥
वहाँ यमराज के शक्तिशाली दूत लोगों को अपने हाथों से दलन करते हैं और मैं उनके समक्ष टिक नहीं सकता ॥४॥
ਜੇ ਕੋ ਮੂੰ ਉਪਦੇਸੁ ਕਰਤੁ ਹੈ ਤਾ ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ਰਤੜਾ ਨਾਰਾਇਣਾ ॥
जे को मूं उपदेसु करतु है ता वणि त्रिणि रतड़ा नाराइणा ॥
हे नारायण ! जब कोई मुझे उपदेश करता है तो मुझे यूं लगता है कि जैसे तुम वनों एवं घास के तृणों में भी विद्यमान हो।
ਐ ਜੀ ਤੂੰ ਆਪੇ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ਬਦਤਿ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨੁ ਰਾਮਈਆ ॥੫॥੨॥
ऐ जी तूं आपे सभ किछु जाणदा बदति त्रिलोचनु रामईआ ॥५॥२॥
भक्त त्रिलोचन जी प्रार्थना करते हैं कि हे मेरे राम ! तुम स्वयं ही सबकुछ जानते हो ॥ ५ ॥ २ ॥
ਸ੍ਰੀਰਾਗੁ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕਾ ॥
स्रीरागु भगत कबीर जीउ का ॥
श्री रागु भगत कबीर जीउ का ॥
ਅਚਰਜ ਏਕੁ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਪੰਡੀਆ ਅਬ ਕਿਛੁ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥
अचरज एकु सुनहु रे पंडीआ अब किछु कहनु न जाई ॥
हे पण्डित ! परमात्मा की माया की एक आश्चर्यजनक बात सुनो। उस बारे अब कुछ कहा नहीं जा सकता,
ਸੁਰਿ ਨਰ ਗਣ ਗੰਧ੍ਰਬ ਜਿਨਿ ਮੋਹੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਮੇਖੁਲੀ ਲਾਈ ॥੧॥
सुरि नर गण गंध्रब जिनि मोहे त्रिभवण मेखुली लाई ॥१॥
उसने देवते, मनुष्य, स्वर्ग के गण-गंधर्व सभी मोहित कर रखे हैं और उसने तीनों लोकों आकाश, पाताल एवं पृथ्वी को जकड़ा हुआ है। ॥१॥
ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਅਨਹਦ ਕਿੰਗੁਰੀ ਬਾਜੈ ॥
राजा राम अनहद किंगुरी बाजै ॥
हे मेरे राम ! तेरी वीणा बज रही है, जिससे अनहद नाद उत्पन्न हो रहा है।
ਜਾ ਕੀ ਦਿਸਟਿ ਨਾਦ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा की दिसटि नाद लिव लागै ॥१॥ रहाउ ॥
तेरी कृपा-दृष्टि से भक्तों की उस नाद में सुरति लगती है ॥१॥ रहाउ॥
ਭਾਠੀ ਗਗਨੁ ਸਿੰਙਿਆ ਅਰੁ ਚੁੰਙਿਆ ਕਨਕ ਕਲਸ ਇਕੁ ਪਾਇਆ ॥
भाठी गगनु सिंङिआ अरु चुंङिआ कनक कलस इकु पाइआ ॥
“(दशम द्वार पर मदिरा खींचने की भट्टी है, इड़ा-पिंगला दोनों नलकियाँ हैं और शुद्ध अन्तःकरण मदिरा भरने के लिए स्वर्ण-पात्र है।) मुझे दशम द्वार की भट्ठी सहित एक नलकी अंदर खींचने वाली और एक नलिका बाहर फेंकने वाली के अन्तःकरण का स्वर्ण-पात्र प्राप्त हुआ है।
ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਧਾਰ ਚੁਐ ਅਤਿ ਨਿਰਮਲ ਰਸ ਮਹਿ ਰਸਨ ਚੁਆਇਆ ॥੨॥
तिसु महि धार चुऐ अति निरमल रस महि रसन चुआइआ ॥२॥
उस पात्र में निर्मल हरि रस की धारा स्रवित होती है। यह बहने वाला हरि रस अन्यों रसों से श्रेष्ठ रस है ॥२॥
ਏਕ ਜੁ ਬਾਤ ਅਨੂਪ ਬਨੀ ਹੈ ਪਵਨ ਪਿਆਲਾ ਸਾਜਿਆ ॥
एक जु बात अनूप बनी है पवन पिआला साजिआ ॥
एक बहुत ही सुन्दर बात बनी है कि प्रभु ने श्वास रूपी पवन को हरि रस पान करने के लिए प्याला बना दिया है।
ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਮਹਿ ਏਕੋ ਜੋਗੀ ਕਹਹੁ ਕਵਨੁ ਹੈ ਰਾਜਾ ॥੩॥
तीनि भवन महि एको जोगी कहहु कवनु है राजा ॥३॥
तीनों लोकों में एक प्रभु ही योगी रूप में निवास कर रहा है। बताओ, उस प्रभु के अतिरिक्त इस जगत् का राजा अन्य कौन है? ॥ ३॥
ਐਸੇ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਪੁਰਖੋਤਮ ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
ऐसे गिआन प्रगटिआ पुरखोतम कहु कबीर रंगि राता ॥
भगत कबीर जी कहते हैं कि मेरे अन्तर्मन में पुरुषोत्तम प्रभु का ऐसा ज्ञान प्रगट हो गया है कि मैं प्रभु के प्रेम में मग्न हो गया हूँ।
ਅਉਰ ਦੁਨੀ ਸਭ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨੀ ਮਨੁ ਰਾਮ ਰਸਾਇਨ ਮਾਤਾ ॥੪॥੩॥
अउर दुनी सभ भरमि भुलानी मनु राम रसाइन माता ॥४॥३॥
शेष सारी दुनिया भ्रम में भूली हुई है, मैं तो समस्त रसों के स्रोत प्रभु नाम में मग्न रहता हूँ ॥४॥३॥