Hindi Page 89

ਜਿਨ ਕਉ ਹੋਆ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹਰਿ ਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪੈਰੀ ਪਾਹੀ ॥
जिन कउ होआ क्रिपालु हरि से सतिगुर पैरी पाही ॥ 
जिन पर परमात्मा दयालु होता है, वह सतिगुरु पर नतमस्तक होते हैं।

ਤਿਨ ਐਥੈ ਓਥੈ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਧੇ ਜਾਹੀ ॥੧੪॥
तिन ऐथै ओथै मुख उजले हरि दरगह पैधे जाही ॥१४॥  
लोक तथा परलोक में उनके चेहरे उज्ज्वल होते हैं, वह परमात्मा के दरबार में प्रतिष्ठा की पोशाक धारण करके जाते हैं ॥ १४ ॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੨ ॥
सलोक मः २ ॥  
श्लोक महला २ ॥

ਜੋ ਸਿਰੁ ਸਾਂਈ ਨਾ ਨਿਵੈ ਸੋ ਸਿਰੁ ਦੀਜੈ ਡਾਰਿ ॥
जो सिरु सांई ना निवै सो सिरु दीजै डारि ॥  
जो सिर ईश्वर की याद में नमन नहीं होता, उस सिर को काट देना चाहिए।

ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਪਿੰਜਰ ਮਹਿ ਬਿਰਹਾ ਨਹੀ ਸੋ ਪਿੰਜਰੁ ਲੈ ਜਾਰਿ ॥੧॥
नानक जिसु पिंजर महि बिरहा नही सो पिंजरु लै जारि ॥१॥ 
हे नानक ! उस मनुष्य ढांचे को लेकर जला देना चाहिए, जिस मनुष्य ढांचे में ईश्वर से विरह की पीड़ा नहीं ॥१॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥ 
महला ५॥

ਮੁੰਢਹੁ ਭੁਲੀ ਨਾਨਕਾ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜਨਮਿ ਮੁਈਆਸੁ ॥
मुंढहु भुली नानका फिरि फिरि जनमि मुईआसु ॥ 
हे नानक ! जो जीव-स्त्री जगत् के मूल प्रभु को भूली हुई है, वह पुनः पुनः जन्मती और मरती है।

ਕਸਤੂਰੀ ਕੈ ਭੋਲੜੈ ਗੰਦੇ ਡੁੰਮਿ ਪਈਆਸੁ ॥੨॥
कसतूरी कै भोलड़ै गंदे डुमि पईआसु ॥२॥ 
वह कस्तूरी के भ्रम में गंदे पानी के गङ्गे में पड़ी हुई है ॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥  
पउड़ी ॥  

ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜੋ ਸਭਨਾ ਉਪਰਿ ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਏ ॥
सो ऐसा हरि नामु धिआईऐ मन मेरे जो सभना उपरि हुकमु चलाए ॥  
हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के ऐसे नाम का ध्यान कर, जो समस्त जीवों पर अपना हुक्म चलाता है।

ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜੋ ਅੰਤੀ ਅਉਸਰਿ ਲਏ ਛਡਾਏ ॥
सो ऐसा हरि नामु जपीऐ मन मेरे जो अंती अउसरि लए छडाए ॥ 
हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के ऐसे नाम का जाप कर, जो अंतिम समय तुझे मोक्ष प्रदान करेगा।

ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜੁ ਮਨ ਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਭ ਭੁਖ ਗਵਾਏ ॥
सो ऐसा हरि नामु जपीऐ मन मेरे जु मन की त्रिसना सभ भुख गवाए ॥  
हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के ऐसे नाम का सिमरन कर, जो तेरे चित्त की समस्त तृष्णाएँ एवं भूख को मिटा देता है।

ਸੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿਆ ਵਡਭਾਗੀ ਤਿਨ ਨਿੰਦਕ ਦੁਸਟ ਸਭਿ ਪੈਰੀ ਪਾਏ ॥
सो गुरमुखि नामु जपिआ वडभागी तिन निंदक दुसट सभि पैरी पाए ॥  
वे गुरमुख बड़े सौभाग्यशाली हैं, जो उस परमेश्वर के नाम का चिन्तन करके निन्दकों-दुष्टों को अपने अधीन कर लेते हैं।

ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿ ਸਭਨਾ ਤੇ ਵਡਾ ਸਭਿ ਨਾਵੈ ਅਗੈ ਆਣਿ ਨਿਵਾਏ ॥੧੫॥
नानक नामु अराधि सभना ते वडा सभि नावै अगै आणि निवाए ॥१५॥  
हे नानक ! उस नाम की आराधना करो जो सबसे महान है; प्रभु ने तो समस्त जीवों को नाम के समक्ष झुका दिया है ॥१५॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥  
श्लोक महला ३॥

ਵੇਸ ਕਰੇ ਕੁਰੂਪਿ ਕੁਲਖਣੀ ਮਨਿ ਖੋਟੈ ਕੂੜਿਆਰਿ ॥
वेस करे कुरूपि कुलखणी मनि खोटै कूड़िआरि ॥ 
कुरूप एवं आचरणहीन जीव-स्त्री बड़े सुन्दर वस्त्र सुशोभित करती है परन्तु मन में खोट होने के कारण वह झूठी है।

ਪਿਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਨਾ ਚਲੈ ਹੁਕਮੁ ਕਰੇ ਗਾਵਾਰਿ ॥
पिर कै भाणै ना चलै हुकमु करे गावारि ॥ 
वह अपने पति-प्रभु की इच्छानुसार नहीं चलती, वह गंवार अपने पति-प्रभु पर आदेश चलाती है।

ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਜੋ ਚਲੈ ਸਭਿ ਦੁਖ ਨਿਵਾਰਣਹਾਰਿ ॥
गुर कै भाणै जो चलै सभि दुख निवारणहारि ॥  
जो जीव-स्त्री गुरु की आज्ञानुसार चलती है, वह समस्त दुःखों से बच जाती है।

ਲਿਖਿਆ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੀਐ ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਕਰਤਾਰਿ ॥
लिखिआ मेटि न सकीऐ जो धुरि लिखिआ करतारि ॥ 
परमात्मा ने पूर्व-कर्म फल रूप में जो लिख दिया है, वह मिटाया अथवा बदला नहीं जा सकता।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਉਪੇ ਕੰਤ ਕਉ ਸਬਦੇ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥
मनु तनु सउपे कंत कउ सबदे धरे पिआरु ॥  
इसलिए उसे अपना तन-मन पति-परमेश्वर को अर्पण करके नाम में अपना प्रेम लगाना चाहिए।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ਦੇਖਹੁ ਰਿਦੈ ਬੀਚਾਰਿ ॥
बिनु नावै किनै न पाइआ देखहु रिदै बीचारि ॥
अपने मन में विचार करके देख लो कि नाम-स्मरण के अलावा किसी को भी परमात्मा प्राप्त नहीं हुआ।

ਨਾਨਕ ਸਾ ਸੁਆਲਿਓ ਸੁਲਖਣੀ ਜਿ ਰਾਵੀ ਸਿਰਜਨਹਾਰਿ ॥੧॥
नानक सा सुआलिओ सुलखणी जि रावी सिरजनहारि ॥१॥ 
हे नानक ! वहीं जीव-स्त्री सुन्दर एवं सुलक्षणा है, जिसकी सेज पर सृजनहार स्वामी रमण करता है ॥१॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਗੁਬਾਰੁ ਹੈ ਤਿਸ ਦਾ ਨ ਦਿਸੈ ਉਰਵਾਰੁ ਨ ਪਾਰੁ ॥
माइआ मोहु गुबारु है तिस दा न दिसै उरवारु न पारु ॥  
माया का मोह अज्ञानता का अँधकार है यह मोह रूपी अँधेरा एक समुद्र की तरह है, जिसका कोई आर-पार नजर नहीं आता।

ਮਨਮੁਖ ਅਗਿਆਨੀ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦੇ ਡੁਬੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ॥
मनमुख अगिआनी महा दुखु पाइदे डुबे हरि नामु विसारि ॥  
अज्ञानी मनमुख व्यक्ति ईश्वर के नाम को विस्मृत करके डूब जाते हैं और भयानक दुःख सहन करते हैं।

ਭਲਕੇ ਉਠਿ ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਵਹਿ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰੁ ॥
भलके उठि बहु करम कमावहि दूजै भाइ पिआरु ॥  
वह माया के मोह में मुग्ध हुए प्रातः काल उठकर बहुत सारे कर्मकाण्ड करते हैं।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਆਪਣਾ ਭਉਜਲੁ ਉਤਰੇ ਪਾਰਿ ॥
सतिगुरु सेवहि आपणा भउजलु उतरे पारि ॥  
जो व्यक्ति अपने सतिगुरु की सेवा करते हैं, वह भवसागर से पार हो जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚਿ ਸਮਾਵਹਿ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥੨॥
नानक गुरमुखि सचि समावहि सचु नामु उर धारि ॥२॥  
हे नानक ! गुरमुख जन सत्यनाम को अपने हृदय में लगा कर रखते हैं और सत्य प्रभु में लीन हो जाते हैं ॥२ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥  
पउड़ी ॥

ਹਰਿ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਭਰਪੂਰਿ ਦੂਜਾ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ॥
हरि जलि थलि महीअलि भरपूरि दूजा नाहि कोइ ॥  
ईश्वर सागर, मरुस्थल, धरती एवं गगन के अन्दर परिपूर्ण है, उसके अलावा अन्य दूसरा कोई नहीं।

ਹਰਿ ਆਪਿ ਬਹਿ ਕਰੇ ਨਿਆਉ ਕੂੜਿਆਰ ਸਭ ਮਾਰਿ ਕਢੋਇ ॥
हरि आपि बहि करे निआउ कूड़िआर सभ मारि कढोइ ॥ 
ईश्वर अपने दरबार में विराजमान होकर जीवों के कर्मों का स्वयं न्याय करता है और समस्त झूठों को पीटकर बाहर निकाल देता है।

ਸਚਿਆਰਾ ਦੇਇ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਧਰਮ ਨਿਆਉ ਕੀਓਇ ॥
सचिआरा देइ वडिआई हरि धरम निआउ कीओइ ॥ 
सत्यवादियों को परमेश्वर शोभा प्रदान करता है और कर्मानुसार प्रत्येक प्राणी को फल देकर न्याय करता है।

ਸਭ ਹਰਿ ਕੀ ਕਰਹੁ ਉਸਤਤਿ ਜਿਨਿ ਗਰੀਬ ਅਨਾਥ ਰਾਖਿ ਲੀਓਇ ॥
सभ हरि की करहु उसतति जिनि गरीब अनाथ राखि लीओइ ॥  
इसलिए तुम सभी हरि की महिमा- स्तुति करो, जो निर्धनों एवं अनाथों की रक्षा करता है।

ਜੈਕਾਰੁ ਕੀਓ ਧਰਮੀਆ ਕਾ ਪਾਪੀ ਕਉ ਡੰਡੁ ਦੀਓਇ ॥੧੬॥
जैकारु कीओ धरमीआ का पापी कउ डंडु दीओइ ॥१६॥  
वह भद्रपुरुषों को मान-प्रतिष्ठा प्रदान करता है और दोषियों को वह दण्ड देता है ॥१६ ॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥

ਮਨਮੁਖ ਮੈਲੀ ਕਾਮਣੀ ਕੁਲਖਣੀ ਕੁਨਾਰਿ ॥
मनमुख मैली कामणी कुलखणी कुनारि ॥
मनमुख जीव-स्त्री विषय-विकारों से मलिन, कुलक्षणी एवं धुरी नारी है।

ਪਿਰੁ ਛੋਡਿਆ ਘਰਿ ਆਪਣਾ ਪਰ ਪੁਰਖੈ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥
पिरु छोडिआ घरि आपणा पर पुरखै नालि पिआरु ॥  
वह अपने स्वामी एवं घर को त्याग देती हैं और पराए पुरुष के साथ प्रीत करती है।

ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਕਦੇ ਨ ਚੁਕਈ ਜਲਦੀ ਕਰੇ ਪੂਕਾਰ ॥
त्रिसना कदे न चुकई जलदी करे पूकार ॥  
उसकी तृष्णा कभी बुझती नहीं, वह तृष्णा अग्नि में जलती है और तृष्णा अग्नि में जलती हुई विलाप करती रहती है।

ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੁਰੂਪਿ ਕੁਸੋਹਣੀ ਪਰਹਰਿ ਛੋਡੀ ਭਤਾਰਿ ॥੧॥
नानक बिनु नावै कुरूपि कुसोहणी परहरि छोडी भतारि ॥१॥
हे नानक ! हरिनाम के अलावा वह कुरुप और कुलक्षणी है और उसके स्वामी ने उसे त्याग दिया है॥ १॥

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