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ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਪਛੁਤਾਸੀ ਅੰਧੁਲੇ ਜਾ ਜਮਿ ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਆ ॥अंति कालि पछुतासी अंधुले जा जमि पकड़ि चलाइआ अज्ञानी प्राणी, अन्तकाल पश्चाताप करता है, जब यमदूत इसे आ पकड़ते हैं अर्थात् काल आने पर प्राणी पछतावा करने लगता है। ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਅਪੁਨਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਰਾਖਿਆ ਖਿਨ ਮਹਿ ਭਇਆ ਪਰਾਇਆ ॥सभु किछु अपुना करि करि राखिआ खिन महि भइआ

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ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਵਿਸਰਿ ਗਇਆ ਧਿਆਨੁ ॥दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा विसरि गइआ धिआनु ॥  हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय प्रहर में मनुष्य परमेश्वर के सिमरन को विस्मृत कर देता है। अर्थात्-जब प्राणी गर्भ से बाहर आता और जन्म लेता है तो गर्भ में की गई प्रार्थना

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ਸੁਣਿ ਗਲਾ ਗੁਰ ਪਹਿ ਆਇਆ ॥सुणि गला गुर पहि आइआ ॥  गुरु के शिष्यों से बातें सुनकर मैं गुरु के पास आया हूँ। ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਦਿੜਾਇਆ ॥नामु दानु इसनानु दिड़ाइआ ॥ गुरु ने मुझे नाम, दान-पुण्य और स्नान निश्चित करवा दिया है।. ਸਭੁ ਮੁਕਤੁ ਹੋਆ ਸੈਸਾਰੜਾ ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਬੇੜੀ ਚਾੜਿ ਜੀਉ ॥੧੧॥सभु मुकतु होआ सैसारड़ा नानक

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ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇਆ ॥तुधु आपे आपु उपाइआ ॥ हे भगवान ! तुमने स्वयं ही सृष्टि की रचना की है ਦੂਜਾ ਖੇਲੁ ਕਰਿ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥दूजा खेलु करि दिखलाइआ ॥ और जगत् रूपी खेल को साज कर प्रत्यक्ष किया है। ਸਭੁ ਸਚੋ ਸਚੁ ਵਰਤਦਾ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੈ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੨੦॥सभु सचो सचु वरतदा जिसु भावै तिसै बुझाइ जीउ

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ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਲੋਚਦੇ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥सुरि नर मुनि जन लोचदे सो सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ ॥४॥  सतिगुरु ने मुझे उस प्रभु बारे बताया है जिस परमात्मा को पाने को देवता, मानव और ऋषि-मुनि कामना करते हैं। ॥४॥ ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੈਸੀ ਜਾਣੀਐ ॥सतसंगति कैसी जाणीऐ ॥  सत्संगति किस प्रकार जानी जा सकती है? ਜਿਥੈ

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ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਤਾ ਖੜਿ ਰਸਾਤਲਿ ਦੀਤ ॥੭॥चिति न आइओ पारब्रहमु ता खड़ि रसातलि दीत ॥७॥ तब भी यदि उसका मन पारब्रह्म के निर्मल नाम से रहित है तो उसे ले जाकर कुंभी नरक में फेंक दिया जाता है॥ ७॥ ਕਾਇਆ ਰੋਗੁ ਨ ਛਿਦ੍ਰੁ ਕਿਛੁ ਨਾ ਕਿਛੁ ਕਾੜਾ ਸੋਗੁ ॥काइआ रोगु न छिद्रु किछु ना

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ਏਹੁ ਜਗੁ ਜਲਤਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭਜਿ ਪਏ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾ ॥एहु जगु जलता देखि कै भजि पए सतिगुर सरणा ॥   इस संसार को मोह-तृष्णा की अग्नि में जलता देखकर जो जिज्ञासु प्राणी भागकर सतिगुरु की शरण लेते हैं। ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਚੁ ਦਿੜਾਇਆ ਸਦਾ ਸਚਿ ਸੰਜਮਿ ਰਹਣਾ ॥सतिगुरि सचु दिड़ाइआ सदा सचि संजमि रहणा ॥  सतिगुरु उनकें हृदय में भगवान

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ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥सिरीरागु महला ३ ॥  श्रीरागु महला ३ ॥ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਫੇਰੁ ਨ ਪਵੈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥सतिगुरि मिलिऐ फेरु न पवै जनम मरण दुखु जाइ ॥ यदि सतिगुरु मिल जाए तो प्राणी जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उसकी जन्म एवं मृत्यु की पीड़ा निवृत्त हो जाती है। ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ

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ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪੀ ਆਪੁ ਗਵਾਈ ਚਲਾ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ॥मनु तनु अरपी आपु गवाई चला सतिगुर भाए ॥ मैं अपनी आत्मा एवं देहि समर्पित करता हूँ और अपनी अहंकार-भावना त्यागता हूँ और सतिगुरु के उपदेशानुसार आचरण करता हूँ। ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਵਿਟਹੁ ਜਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥੭॥सद बलिहारी गुर अपुने विटहु जि हरि सेती चितु

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ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗੁ ਦੁਖੀਆ ਫਿਰੈ ਮਨਮੁਖਾ ਨੋ ਗਈ ਖਾਇ ॥बिनु सबदै जगु दुखीआ फिरै मनमुखा नो गई खाइ ॥नाम के अतिरिक्त सारा संसार दुखी है। माया मनमुखी प्राणियों को निगल गई है। ਸਬਦੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਬਦੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥सबदे नामु धिआईऐ सबदे सचि समाइ ॥४॥शब्द द्वारा मनुष्य नाम-सिमरन करता है और शब्द द्वारा ही वह

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