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ਮੁਖਿ ਝੂਠੈ ਝੂਠੁ ਬੋਲਣਾ ਕਿਉ ਕਰਿ ਸੂਚਾ ਹੋਇ ॥मुखि झूठै झूठु बोलणा किउ करि सूचा होइ ॥  मुख झूठा हो तो झूठा मनुष्य असत्य वचन ही व्यक्त करता है, फिर वह किस तरह पवित्र-पावन हो सकता है?” ਬਿਨੁ ਅਭ ਸਬਦ ਨ ਮਾਂਜੀਐ ਸਾਚੇ ਤੇ ਸਚੁ ਹੋਇ ॥੧॥बिनु अभ सबद न मांजीऐ साचे ते सचु होइ ॥१॥ नाम

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ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੀਐ ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਗੁਰ ਵਾਕਿ ॥हरि जीउ सबदि पछाणीऐ साचि रते गुर वाकि ॥ नाम द्वारा इन्सान पूज्य प्रभु को पहचान लेता है और गुरु की वाणी द्वारा वह सत्य के रंग में लिवलीन हो जाता है। ਤਿਤੁ ਤਨਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਗਈ ਸਚ ਘਰਿ ਜਿਸੁ ਓਤਾਕੁ ॥तितु तनि मैलु न लगई सच घरि

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ਗਣਤ ਗਣਾਵਣਿ ਆਈਆ ਸੂਹਾ ਵੇਸੁ ਵਿਕਾਰੁ ॥गणत गणावणि आईआ सूहा वेसु विकारु ॥ जो अपने प्राणपति से अनुकंपा करने की जगह उससे हिसाब-किताब मोल करने आई हैं, उनका दुल्हन-वेष लाल पहरावा भी बेकार है, अर्थात् आडम्बर है l ਪਾਖੰਡਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਨ ਪਾਈਐ ਖੋਟਾ ਪਾਜੁ ਖੁਆਰੁ ॥੧॥पाखंडि प्रेमु न पाईऐ खोटा पाजु खुआरु ॥१॥ हे जीवात्मा ! आडम्बर

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ਭਾਈ ਰੇ ਸਾਚੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵ ॥भाई रे साची सतिगुर सेव ॥ हे भाई ! केवल सतिगुरु की श्रद्धापूर्वक निष्काम सेवा ही सत्य है। ਸਤਿਗੁਰ ਤੁਠੈ ਪਾਈਐ ਪੂਰਨ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥सतिगुर तुठै पाईऐ पूरन अलख अभेव ॥१॥ रहाउ ॥जब सतिगुरु परम-प्रसन्न हो जाते हैं, तभी सर्वव्यापक अगाध, अदृश्य स्वामी प्राप्त होता है ॥१॥ रहाउ॥

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ਬੰਧਨ ਮੁਕਤੁ ਸੰਤਹੁ ਮੇਰੀ ਰਾਖੈ ਮਮਤਾ ॥੩॥बंधन मुकतु संतहु मेरी राखै ममता ॥३॥हे संतों ! वह मुझे समस्त बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है और मेरे लिए ममता-प्यार रखता है ॥३॥ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲ ਠਾਕੁਰ ਰਹਿਓ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥भए किरपाल ठाकुर रहिओ आवण जाणा ॥मेरा ठाकुर बड़ा दयालु हो गया है और मेरा (जन्म-मरण) आवागमन मिट

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ਨਾਨਕ ਧੰਨੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਸਹ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥੪॥੨੩॥੯੩॥नानक धंनु सोहागणी जिन सह नालि पिआरु ॥४॥२३॥९३॥हे नानक ! वह सुहागिनें (प्राणी) धन्य हैं, जिन्होंने अपने पति-परमेश्वर का प्रेम प्राप्त कर लिया है ॥४॥२३॥९३॥ ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬ ॥सिरीरागु महला ५ घरु ६ ॥श्रीरागु महला ५ ॥ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਏਕੁ ਓਹੀ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਆਕਾਰੁ ॥करण कारण

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਗਹਿਰ ਗਭੀਰੁ ਹੈ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਅਘਖੰਡੁ ॥सतिगुरु गहिर गभीरु है सुख सागरु अघखंडु ॥ सतिगुरु गहन, गंभीर एवं सुखों का सागर है और समस्त पापों का नाश करने वाले हैं। ਜਿਨਿ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਆਪਣਾ ਜਮਦੂਤ ਨ ਲਾਗੈ ਡੰਡੁ ॥जिनि गुरु सेविआ आपणा जमदूत न लागै डंडु ॥ जिस प्राणी ने अपने गुरु की सेवा का फल

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ਸੰਤਾ ਸੰਗਤਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਪ੍ਰਭੁ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਬਖਸਿੰਦੁ ॥संता संगति मनि वसै प्रभु प्रीतमु बखसिंदु ॥ संतों की संगति द्वारा क्षमावान प्रियतम प्रभु हृदय में बसता है।    ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣਾ ਸੋਈ ਰਾਜ ਨਰਿੰਦੁ ॥੨॥जिनि सेविआ प्रभु आपणा सोई राज नरिंदु ॥२॥  जिसने अपने प्रभु नाम का सिमरन किया है। वह राजाओं का भी राजा है॥ २॥    ਅਉਸਰਿ

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ਐਥੈ ਮਿਲਹਿ ਵਡਾਈਆ ਦਰਗਹਿ ਪਾਵਹਿ ਥਾਉ ॥੩॥ऐथै मिलहि वडाईआ दरगहि पावहि थाउ ॥३॥ यहाँ पर तुझे मान-सम्मान प्राप्त होगा और प्रभु के दरबार में भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होगा ॥३॥    ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਹੀ ਹਾਥਿ ॥करे कराए आपि प्रभु सभु किछु तिस ही हाथि ॥अकाल पुरुष स्वयं ही करने-करवाने वाला है। परमेश्वर

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ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਰੀਤਿ ਧ੍ਰਿਗੁ ਸੁਖੀ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥माइआ मोह परीति ध्रिगु सुखी न दीसै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥ मोह-माया की प्रीति को धिक्कार है। इससे कोई भी सुखी दिखाई नहीं देता ॥१॥ रहाउ॥    ਦਾਨਾ ਦਾਤਾ ਸੀਲਵੰਤੁ ਨਿਰਮਲੁ ਰੂਪੁ ਅਪਾਰੁ ॥दाना दाता सीलवंतु निरमलु रूपु अपारु ॥  वह परमेश्वर सर्वज्ञ, महान दाता, शीलवान, पवित्र, सुन्दर

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