Hindi Page 48

ਐਥੈ ਮਿਲਹਿ ਵਡਾਈਆ ਦਰਗਹਿ ਪਾਵਹਿ ਥਾਉ ॥੩॥
ऐथै मिलहि वडाईआ दरगहि पावहि थाउ ॥३॥ 
यहाँ पर तुझे मान-सम्मान प्राप्त होगा और प्रभु के दरबार में भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होगा ॥३॥   

ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਹੀ ਹਾਥਿ ॥
करे कराए आपि प्रभु सभु किछु तिस ही हाथि ॥
अकाल पुरुष स्वयं ही करने-करवाने वाला है। परमेश्वर सर्व-कर्ता है, सब कुछ उसके अधीन है।   

ਮਾਰਿ ਆਪੇ ਜੀਵਾਲਦਾ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਾਥਿ ॥
मारि आपे जीवालदा अंतरि बाहरि साथि ॥   
वह सर्वव्यापक प्रभु कण-कण में विद्यमान है, जो स्वयं ही मारने वाला तथा जीवन दाता है। अन्दर तथा बाहर वह प्राणी का साथी है।   

ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਸਰਬ ਘਟਾ ਕੇ ਨਾਥ ॥੪॥੧੫॥੮੫॥
नानक प्रभ सरणागती सरब घटा के नाथ ॥४॥१५॥८५॥ 
हे नानक ! प्रभु समस्त जीवों का स्वामी है, अत : मैं उसकी शरण में आया हूँ ॥४॥१५॥८५॥   

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥   
श्रीरागु महला ५ ॥   

ਸਰਣਿ ਪਏ ਪ੍ਰਭ ਆਪਣੇ ਗੁਰੁ ਹੋਆ ਕਿਰਪਾਲੁ ॥
सरणि पए प्रभ आपणे गुरु होआ किरपालु ॥ 
जब मेरा गुरु मुझ पर कृपालु हुआ तो मैं अपने प्रभु की शरण में आ गया।   

ਸਤਗੁਰ ਕੈ ਉਪਦੇਸਿਐ ਬਿਨਸੇ ਸਰਬ ਜੰਜਾਲ ॥
सतगुर कै उपदेसिऐ बिनसे सरब जंजाल ॥   
सतिगुरु के उपदेश द्वारा मेरे समस्त बन्धन दूर हो गए हैं।   

ਅੰਦਰੁ ਲਗਾ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੁ ॥੧॥
अंदरु लगा राम नामि अम्रित नदरि निहालु ॥१॥ 
जब अन्तर्मन राम नाम के सिमरन में लीन हो गया तो मैं गुरु की कृपा से कृतार्थ हो गया।॥ १॥   

ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਸਾਰੁ ॥                                                                                        
मन मेरे सतिगुर सेवा सारु ॥  
हे मेरे मन ! सतिगुरु की सेवा श्रेष्ठ है।                                                                                                                         

ਕਰੇ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣੀ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करे दइआ प्रभु आपणी इक निमख न मनहु विसारु ॥ रहाउ ॥   
उस प्रभु को एक पल के लिए भी विस्मृत मत करना, तभी वह तुझ पर कृपा-दृष्टि करेगा ॥ रहाउ॥   

ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਨਿਤ ਗਾਵੀਅਹਿ ਅਵਗੁਣ ਕਟਣਹਾਰ ॥
गुण गोविंद नित गावीअहि अवगुण कटणहार ॥  
हमें प्रतिदिन उस गोविन्द-प्रभु का यशगान करना चाहिए, जो मनुष्य के समस्त अवगुणों को निवृत्त करने वाला है।   

ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ਕਰਿ ਡਿਠੇ ਬਿਸਥਾਰ ॥
बिनु हरि नाम न सुखु होइ करि डिठे बिसथार ॥ 
अनेक व्यक्तियों ने माया के प्रपंच करके देख लिए हैं किन्तु हरि-नाम के अलावा सुख नहीं मिलता।   

ਸਹਜੇ ਸਿਫਤੀ ਰਤਿਆ ਭਵਜਲੁ ਉਤਰੇ ਪਾਰਿ ॥੨॥
सहजे सिफती रतिआ भवजलु उतरे पारि ॥२॥   
जो व्यक्ति भगवान की उपमा करने में मग्न रहते हैं, वे सहज ही भवसागर से पार हो जाते हैं ॥ २ ॥   

ਤੀਰਥ ਵਰਤ ਲਖ ਸੰਜਮਾ ਪਾਈਐ ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ॥
तीरथ वरत लख संजमा पाईऐ साधू धूरि ॥ 
लाखों तीर्थों के स्नान, लाखों व्रत रखने व इन्द्रियों को विषय-विकारों से रोकने का फल संतजनों की चरण-धूलि ग्रहण करने से ही प्राप्त हो जाता है।   

ਲੂਕਿ ਕਮਾਵੈ ਕਿਸ ਤੇ ਜਾ ਵੇਖੈ ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ॥
लूकि कमावै किस ते जा वेखै सदा हदूरि ॥   
हे भाई ! मानव किससे छिपकर पाप कमाता है, जबकि वह प्रभु सदैव समक्ष देख रहा है।   

ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਭਰਪੂਰਿ ॥੩॥
थान थनंतरि रवि रहिआ प्रभु मेरा भरपूरि ॥३॥  
मेरा परिपूर्ण परमेश्वर सर्वत्र व्याप्त हो रहा है ॥३॥   

ਸਚੁ ਪਾਤਿਸਾਹੀ ਅਮਰੁ ਸਚੁ ਸਚੇ ਸਚਾ ਥਾਨੁ ॥
सचु पातिसाही अमरु सचु सचे सचा थानु ॥  
सत्य परमेश्वर का साम्राज्य सत्य है, उसका आदेश भी सत्य है, उस सत्य परमेश्वर का स्थिर रहने वाला स्थान भी सत्य है।   

ਸਚੀ ਕੁਦਰਤਿ ਧਾਰੀਅਨੁ ਸਚਿ ਸਿਰਜਿਓਨੁ ਜਹਾਨੁ ॥
सची कुदरति धारीअनु सचि सिरजिओनु जहानु ॥ 
उसने सत्य शक्ति धारण की हुई है और उसने सत्य-सृष्टि की रचना की हुई है।   

ਨਾਨਕ ਜਪੀਐ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਹਉ ਸਦਾ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥੪॥੧੬॥੮੬॥
नानक जपीऐ सचु नामु हउ सदा सदा कुरबानु ॥४॥१६॥८६॥  
हे नानक ! मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ, जो सत्यस्वरूप परमात्मा का नाम-सिमरन करता है ॥ ४ ॥ १६ ॥ ८६ ॥   

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥  
श्रीरागु महला ५ ॥   

ਉਦਮੁ ਕਰਿ ਹਰਿ ਜਾਪਣਾ ਵਡਭਾਗੀ ਧਨੁ ਖਾਟਿ ॥
उदमु करि हरि जापणा वडभागी धनु खाटि ॥ 
हे भाग्यवान पुरुष ! परिश्रम करके हरि नाम सिमरन रूपी आत्म-धन एकत्र करो।   

ਸੰਤਸੰਗਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਣਾ ਮਲੁ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਕਾਟਿ ॥੧॥
संतसंगि हरि सिमरणा मलु जनम जनम की काटि ॥१॥   
सत्संग में जाकर हरि नाम का सिमरन किया जाता है, जिससे जन्म-जन्म के पापों की मैल कट जाती है। १॥   

ਮਨ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਜਾਪੁ ॥
मन मेरे राम नामु जपि जापु ॥  
हे मेरे मन ! राम-नाम रूपी जाप का सिमरन करो।

ਮਨ ਇਛੇ ਫਲ ਭੁੰਚਿ ਤੂ ਸਭੁ ਚੂਕੈ ਸੋਗੁ ਸੰਤਾਪੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मन इछे फल भुंचि तू सभु चूकै सोगु संतापु ॥ रहाउ ॥ 
इससे तुझे मनोवांछित फल प्राप्त होंगे और तुम्हारे दुख तथा संताप सब नष्ट हो जाएँगे। ॥ रहाउ ॥   

ਜਿਸੁ ਕਾਰਣਿ ਤਨੁ ਧਾਰਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਡਿਠਾ ਨਾਲਿ ॥
जिसु कारणि तनु धारिआ सो प्रभु डिठा नालि ॥   
जिस भगवान को पाने के लिए यह मानव-देह को धारण किया है, वह प्रभु अपने अंग-संग ही देख लिया है।   

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੨॥
जलि थलि महीअलि पूरिआ प्रभु आपणी नदरि निहालि ॥२॥   
वह परिपूर्ण प्रभु जल में, धरती में, गगन में सर्वत्र व्यापक है, वह सब प्राणियों को दया की दृष्टि से देखता है ॥२॥   

ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇਆ ਲਾਗੀ ਸਾਚੁ ਪਰੀਤਿ ॥
मनु तनु निरमलु होइआ लागी साचु परीति ॥
सच्चे स्वामी प्रभु के साथ प्रीति लगाने से तन-मन सभी पवित्र हो जाते हैं।

ਚਰਣ ਭਜੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੇ ਸਭਿ ਜਪ ਤਪ ਤਿਨ ਹੀ ਕੀਤਿ ॥੩॥
चरण भजे पारब्रहम के सभि जप तप तिन ही कीति ॥३॥ 
जो प्राणी प्रभु के चरणों का ध्यान करता है, मानो उसने समस्त जप-तप (उपासना-तपस्या) कर लिए हैं।॥३॥   

ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਮਾਣਿਕਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ॥
रतन जवेहर माणिका अम्रितु हरि का नाउ ॥ 
अमृत रूपी हरि का नाम हीरे, जवाहर रत्नों की भाँति अमूल्य है।   

ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਰਸ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੪॥੧੭॥੮੭॥
सूख सहज आनंद रस जन नानक हरि गुण गाउ ॥४॥१७॥८७॥ 
हे नानक ! जिसने प्रेम भाव से भगवान की महिमा का गायन किया है, उसे सहज ही अच्युत सुख के आनंद का रस प्राप्त हुआ है ॥४॥१७॥८७

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥  
श्रीरागु महला ५ ॥   

ਸੋਈ ਸਾਸਤੁ ਸਉਣੁ ਸੋਇ ਜਿਤੁ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
सोई सासतु सउणु सोइ जितु जपीऐ हरि नाउ ॥  
वह धार्मिक शास्त्र उचित है और वही शगुन शुभ है जिसके द्वारा हरि-नाम का सिमरन किया जाए।   

ਚਰਣ ਕਮਲ ਗੁਰਿ ਧਨੁ ਦੀਆ ਮਿਲਿਆ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥
चरण कमल गुरि धनु दीआ मिलिआ निथावे थाउ ॥ 
जिस मानव जीव को गुरु ने चरण कमल रूप धन दिया है उस आश्रयहीन व्यक्ति को आश्रय मिल गया।   

ਸਾਚੀ ਪੂੰਜੀ ਸਚੁ ਸੰਜਮੋ ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
साची पूंजी सचु संजमो आठ पहर गुण गाउ ॥ 
आठ पहर भगवान के गुणों का गायन करना ही सत्य राशि है तथा सत्य संयम है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭੁ ਭੇਟਿਆ ਮਰਣੁ ਨ ਆਵਣੁ ਜਾਉ ॥੧॥
करि किरपा प्रभु भेटिआ मरणु न आवणु जाउ ॥१॥   
भगवान स्वयं जिनको कृपा करके मिला है वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।॥१॥   

ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਭਜੁ ਸਦਾ ਇਕ ਰੰਗਿ ॥
मेरे मन हरि भजु सदा इक रंगि ॥   
हे मेरे मन ! तू सदैव एकाग्रचित होकर भगवान का भजन किया कर,   

ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਸੰਗਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
घट घट अंतरि रवि रहिआ सदा सहाई संगि ॥१॥ रहाउ ॥  
चूंकि भगवान तो प्रत्येक हृदय के अन्दर समाया हुआ है तथा जीव के साथ होकर सहायता करता है ॥१॥ रहाउ॥   

ਸੁਖਾ ਕੀ ਮਿਤਿ ਕਿਆ ਗਣੀ ਜਾ ਸਿਮਰੀ ਗੋਵਿੰਦੁ ॥
सुखा की मिति किआ गणी जा सिमरी गोविंदु ॥   
जब प्रभु स्मरण किया तो इतने सुखों की उपलब्धि होती है कि उनकी गिनती नहीं हो सकती।   

ਜਿਨ ਚਾਖਿਆ ਸੇ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸਿਆ ਉਹ ਰਸੁ ਜਾਣੈ ਜਿੰਦੁ ॥
जिन चाखिआ से त्रिपतासिआ उह रसु जाणै जिंदु ॥  
जिसने भी हरि रस को चखा है, वह तृप्त हो गया तथा उस रस को वही आत्मा जानती है।   

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