ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਵਿਸਰਿ ਗਇਆ ਧਿਆਨੁ ॥
दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा विसरि गइआ धिआनु ॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय प्रहर में मनुष्य परमेश्वर के सिमरन को विस्मृत कर देता है। अर्थात्-जब प्राणी गर्भ से बाहर आता और जन्म लेता है तो गर्भ में की गई प्रार्थना को भूल जाता है।
ਹਥੋ ਹਥਿ ਨਚਾਈਐ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਜਿਉ ਜਸੁਦਾ ਘਰਿ ਕਾਨੁ ॥
हथो हथि नचाईऐ वणजारिआ मित्रा जिउ जसुदा घरि कानु ॥
उसके परिजन, भाई-बन्धु सब उसे ऐसे नचाते हैं, हर्षित होते हैं, जैसे माता यशोदा के घर कृष्ण नचाया जाता था।
ਹਥੋ ਹਥਿ ਨਚਾਈਐ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮਾਤ ਕਹੈ ਸੁਤੁ ਮੇਰਾ ॥
हथो हथि नचाईऐ प्राणी मात कहै सुतु मेरा ॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! परिवार के समस्त लोग नश्वर प्राणी उस बच्चे को उछालते-खेलाते हैं और माता मोह-वश उसे अपना पुत्र कहकर बड़ा मान करती है।
ਚੇਤਿ ਅਚੇਤ ਮੂੜ ਮਨ ਮੇਰੇ ਅੰਤਿ ਨਹੀ ਕਛੁ ਤੇਰਾ ॥
चेति अचेत मूड़ मन मेरे अंति नही कछु तेरा ॥
हे मेरे अज्ञानी एवं मूर्ख मन ! परमात्मा को स्मरण कर। अंतकाल तेरा कोई साथी नहीं होना।
ਜਿਨਿ ਰਚਿ ਰਚਿਆ ਤਿਸਹਿ ਨ ਜਾਣੈ ਮਨ ਭੀਤਰਿ ਧਰਿ ਗਿਆਨੁ ॥
जिनि रचि रचिआ तिसहि न जाणै मन भीतरि धरि गिआनु ॥
तू उसको नहीं समझता जिसने रचना रची है। अब तू अपने मन में ज्ञान प्राप्त कर ले।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਵਿਸਰਿ ਗਇਆ ਧਿਆਨੁ ॥੨॥
कहु नानक प्राणी दूजै पहरै विसरि गइआ धिआनु ॥२॥
गुरु जी कहते हैं कि रात्रि के द्वितीय प्रहर में प्राणी परमेश्वर का ध्यान भुला देता है ॥२॥
ਤੀਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਧਨ ਜੋਬਨ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ॥
तीजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा धन जोबन सिउ चितु ॥
हे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के तृतीय प्रहर में प्राणी का मन, धन-यौवन (स्त्री-यौवन) में रम जाता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਹੀ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਬਧਾ ਛੁਟਹਿ ਜਿਤੁ ॥
हरि का नामु न चेतही वणजारिआ मित्रा बधा छुटहि जितु ॥
वह हरि-नाम का चिंतन नहीं करता, जिसके द्वारा वह संसार-बंधन से मुक्ति पा सकता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਬਿਕਲੁ ਭਇਆ ਸੰਗਿ ਮਾਇਆ ॥
हरि का नामु न चेतै प्राणी बिकलु भइआ संगि माइआ ॥
नश्वर प्राणी प्रभु के नाम का सुमिरन नहीं करता और सांसारिक पदार्थों के साथ व्याकुल रहता है।
ਧਨ ਸਿਉ ਰਤਾ ਜੋਬਨਿ ਮਤਾ ਅਹਿਲਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
धन सिउ रता जोबनि मता अहिला जनमु गवाइआ ॥
वह भार्या-प्रेम की आसक्ति और यौवन की मस्ती में ऐसा लीन हो जाता है कि इस अमूल्य जीवन को व्यर्थ ही गंवा देता है।
ਧਰਮ ਸੇਤੀ ਵਾਪਾਰੁ ਨ ਕੀਤੋ ਕਰਮੁ ਨ ਕੀਤੋ ਮਿਤੁ ॥
धरम सेती वापारु न कीतो करमु न कीतो मितु ॥
वह न तो धर्मानुसार आचरण करता है और न ही शुभ कर्मों के साथ मैत्री बनाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤੀਜੈ ਪਹਰੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਧਨ ਜੋਬਨ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ॥੩॥
कहु नानक तीजै पहरै प्राणी धन जोबन सिउ चितु ॥३॥
गुरु जी कहते हैं कि हे नानक ! मनुष्य का जीवन रूपी तृतीय प्रहर भी धन-यौवन की तृष्णा में नष्ट हो जाता है॥३॥
ਚਉਥੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਲਾਵੀ ਆਇਆ ਖੇਤੁ ॥
चउथै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा लावी आइआ खेतु ॥
हे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के चौथे प्रहर (वृद्धावस्था) में जीवन-रूपी कृषि को काटने के लिए यमदूत उपस्थित हो जाते हैं अर्थात् देहि की कृषि तब तक पककर कटने को तैयार हो जाती है।
ਜਾ ਜਮਿ ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਆ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਕਿਸੈ ਨ ਮਿਲਿਆ ਭੇਤੁ ॥
जा जमि पकड़ि चलाइआ वणजारिआ मित्रा किसै न मिलिआ भेतु ॥
हे वणजारे मित्र ! जब यमदूत उसको पकड़कर चल देते हैं तो प्राणों के अलग होने का रहस्य किसी को भी पता नहीं चलता।
ਭੇਤੁ ਚੇਤੁ ਹਰਿ ਕਿਸੈ ਨ ਮਿਲਿਓ ਜਾ ਜਮਿ ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਆ ॥
भेतु चेतु हरि किसै न मिलिओ जा जमि पकड़ि चलाइआ ॥
इस रहस्य बारे कि कब यमदूतों ने प्राणी को पकड़कर आगे ले जाना है, किसी को भी पता नहीं लगा।
ਝੂਠਾ ਰੁਦਨੁ ਹੋਆ ਦੋੁਆਲੈ ਖਿਨ ਮਹਿ ਭਇਆ ਪਰਾਇਆ ॥
झूठा रुदनु होआ दोआलै खिन महि भइआ पराइआ ॥
सो हरि का चिन्तन कर, हे मनुष्य ! झूठा है रुदन उसके आसपास। एक क्षण में ही प्राणी परदेसी हो जाता है।
ਸਾਈ ਵਸਤੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਈ ਜਿਸੁ ਸਿਉ ਲਾਇਆ ਹੇਤੁ ॥
साई वसतु परापति होई जिसु सिउ लाइआ हेतु ॥
आगामी लोक में प्राणी को वही उपलब्धि होती है, जिसमें उसने चित्त एकाग्र किया होता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਚਉਥੈ ਪਹਰੈ ਲਾਵੀ ਲੁਣਿਆ ਖੇਤੁ ॥੪॥੧॥
कहु नानक प्राणी चउथै पहरै लावी लुणिआ खेतु ॥४॥१॥
गुरु नानक देव जी कहते हैं कि हे नानक ! जीवन रूपी चौथे प्रहर में मानव जीवन पकी कृषि लावी द्वारा काट ली जाती है। अर्थात् वृद्धावस्था में देहि का अन्त निकट आ जाता है और समय पर यमदूत प्राणी को पकड़ कर ले जाते हैं ॥४॥१॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥
श्रीरागु महला १ ॥
ਪਹਿਲੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਬਾਲਕ ਬੁਧਿ ਅਚੇਤੁ ॥
पहिलै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा बालक बुधि अचेतु ॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के प्रथम प्रहर में जीव बालक बुद्धि वाला एवं ज्ञानहीन होता है।
ਖੀਰੁ ਪੀਐ ਖੇਲਾਈਐ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਹੇਤੁ ॥
खीरु पीऐ खेलाईऐ वणजारिआ मित्रा मात पिता सुत हेतु ॥
बालक माता का दूध पीता है और उससे बड़ा लाड-प्यार किया जाता है। हे मेरे वणजारे मित्र ! माता-पिता अपने बालक से बड़ा अनुराग करते हैं।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਨੇਹੁ ਘਨੇਰਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਬਾਈ ॥
मात पिता सुत नेहु घनेरा माइआ मोहु सबाई ॥संसार में व्याप्त मोह-माया के कारण माता-पिता स्नेह में उसके पोषण में उठाए कष्टों की भी उपेक्षा कर देते हैं।
ਸੰਜੋਗੀ ਆਇਆ ਕਿਰਤੁ ਕਮਾਇਆ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਕਰਾਈ ॥
संजोगी आइआ किरतु कमाइआ करणी कार कराई ॥
संयोग और पूर्व जन्मों के कर्मों की बदौलत प्राणी संसार में आता है और अब अपनी अगली जीवन मर्यादा के लिए कर्म कर रहा है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ਬੂਡੀ ਦੂਜੈ ਹੇਤਿ ॥
राम नाम बिनु मुकति न होई बूडी दूजै हेति ॥
राम नाम के बिना मुक्ति नहीं हो सकती और द्वैत भाव में लीन रहने के कारण समूची सृष्टि का विनाश हो जाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਪਹਿਲੈ ਪਹਰੈ ਛੂਟਹਿਗਾ ਹਰਿ ਚੇਤਿ ॥੧॥
कहु नानक प्राणी पहिलै पहरै छूटहिगा हरि चेति ॥१॥
हे नानक ! प्राणी जीवन रूपी रात्रि के प्रथम प्रहर में भगवान का नाम-सिमरन करके ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है।॥१॥
ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਭਰਿ ਜੋਬਨਿ ਮੈ ਮਤਿ ॥
दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा भरि जोबनि मै मति ॥
हे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय प्रहर में प्राणी यौवन की भरपूर मस्ती में मस्त रहता है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਕਾਮਿ ਵਿਆਪਿਆ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਅੰਧੁਲੇ ਨਾਮੁ ਨ ਚਿਤਿ ॥
अहिनिसि कामि विआपिआ वणजारिआ मित्रा अंधुले नामु न चिति
हे वणजारे मित्र ! दिन-रात वह भोग-विलास में आसक्त रहता है और उस अज्ञानी को भगवान का नाम याद ही नहीं आता।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਨਾਹੀ ਹੋਰਿ ਜਾਣੈ ਰਸ ਕਸ ਮੀਠੇ ॥
राम नामु घट अंतरि नाही होरि जाणै रस कस मीठे ॥
राम नाम उसके हृदय में नहीं बसता। वह अन्यों रसों को ही मीठा समझता है।
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਗੁਣ ਸੰਜਮੁ ਨਾਹੀ ਜਨਮਿ ਮਰਹੁਗੇ ਝੂਠੇ ॥
गिआनु धिआनु गुण संजमु नाही जनमि मरहुगे झूठे ॥
जिन्हें प्रभु बारे कोई ज्ञान नहीं, जो भगवान का ध्यान नहीं करते, जो प्रभु की महिमा को स्मरण नहीं करते, जो संयम नहीं करते, ऐसे झूठे प्राणी जन्मते-मरते रहेंगे।
ਤੀਰਥ ਵਰਤ ਸੁਚਿ ਸੰਜਮੁ ਨਾਹੀ ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਨਹੀ ਪੂਜਾ ॥
गिआनु धिआनु गुण संजमु नाही जनमि मरहुगे झूठे ॥
जिन्हें प्रभु बारे कोई ज्ञान नहीं, जो भगवान का ध्यान नहीं करते, जो प्रभु की महिमा को स्मरण नहीं करते, जो संयम नहीं करते, ऐसे झूठे प्राणी जन्मते-मरते रहेंगे।
ਨਾਨਕ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਦੁਬਿਧਾ ਵਿਆਪੈ ਦੂਜਾ ॥੨॥
नानक भाइ भगति निसतारा दुबिधा विआपै दूजा ॥२॥
ऐसे प्राणियों का प्रेमपूर्वक भगवान की भक्ति करने से उद्धार हो जाता है। दुविधा में फँसे हुए जीवों को माया का मोह लगा रहता है।॥२॥
ਤੀਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਸਰਿ ਹੰਸ ਉਲਥੜੇ ਆਇ ॥
तीजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा सरि हंस उलथड़े आइ ॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के तृतीय प्रहर में शरीर-सरोवर पर हंस आ बैठते हैं अर्थात् प्राणी के सिर पर सफेद बाल पकने लगते हैं।
ਜੋਬਨੁ ਘਟੈ ਜਰੂਆ ਜਿਣੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਆਵ ਘਟੈ ਦਿਨੁ ਜਾਇ ॥
जोबनु घटै जरूआ जिणै वणजारिआ मित्रा आव घटै दिनु जाइ ॥
हे वणजारे मित्र ! जीवन बीतने पर शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है और धीरे-धीरे शरीर पर प्रौढ़ावस्था हावी होने लगती है।