ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪੀ ਆਪੁ ਗਵਾਈ ਚਲਾ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ॥
मनु तनु अरपी आपु गवाई चला सतिगुर भाए ॥
मैं अपनी आत्मा एवं देहि समर्पित करता हूँ और अपनी अहंकार-भावना त्यागता हूँ और सतिगुरु के उपदेशानुसार आचरण करता हूँ।
ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਵਿਟਹੁ ਜਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥੭॥
सद बलिहारी गुर अपुने विटहु जि हरि सेती चितु लाए ॥७॥
मैं सदैव अपने गुरु पर कुर्बान जाता हूँ, जो मेरी आत्मा को प्रभु के साथ मिलाते हैं।॥ ७ ॥
ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ਜੋ ਬਿੰਦੇ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
सो ब्राहमणु ब्रहमु जो बिंदे हरि सेती रंगि राता ॥
ब्राह्मण वही है जिसे ब्रह्म का ज्ञान है और प्रभु की प्रीति के साथ रंगा हुआ है।
ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਕਟਿ ਵਸੈ ਸਭਨਾ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲੈ ਜਾਤਾ ॥
प्रभु निकटि वसै सभना घट अंतरि गुरमुखि विरलै जाता ॥
पारब्रह्म-परमेश्वर समस्त प्राणियों के अति निकट उनके भीतर ही निवास करता है, किन्तु इस रहस्य को कोई विरला प्राणी गुरु के द्वारा ही जानता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥੮॥੫॥੨੨॥
नानक नामु मिलै वडिआई गुर कै सबदि पछाता ॥८॥५॥२२॥
हे नानक ! हरि-नाम द्वारा प्राणियों को बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और गुरु के शब्द द्वारा वह स्वामी को पहचान लेता है ॥८ ॥५॥२२॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सिरीरागु महला ३ ॥
श्रीरागु महला ३ ॥
ਸਹਜੈ ਨੋ ਸਭ ਲੋਚਦੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪਾਇਆ ਨ ਜਾਇ ॥
सहजै नो सभ लोचदी बिनु गुर पाइआ न जाइ ॥
सारी दुनिया सहज सुख की कामना करती है परन्तु गुरु के बिना सहज की प्राप्ति नहीं होती।
ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੰਡਿਤ ਜੋਤਕੀ ਥਕੇ ਭੇਖੀ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥
पड़ि पड़ि पंडित जोतकी थके भेखी भरमि भुलाइ ॥
पण्डित एवं ज्योतिष वेद एवं शास्त्रों का अध्ययन कर करके थक गए हैं और धार्मिक वेष धारण करने वाले साधु भ्रमों में भूले हुए हैं।
ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਸਹਜੁ ਪਾਇਆ ਆਪਣੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥੧॥
गुर भेटे सहजु पाइआ आपणी किरपा करे रजाइ ॥१॥
जिस पर भगवान स्वयं कृपा करता है, वहीं गुरु से मिलकर सहज सुख को प्राप्त करता है।॥१॥
ਭਾਈ ਰੇ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਸਹਜੁ ਨ ਹੋਇ ॥
भाई रे गुर बिनु सहजु न होइ ॥
हे भाई ! गुरु के बिना सहज सुख प्राप्त नहीं हो सकता।
ਸਬਦੈ ਹੀ ਤੇ ਸਹਜੁ ਊਪਜੈ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सबदै ही ते सहजु ऊपजै हरि पाइआ सचु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
भगवान का नाम जपने से ही सहज उत्पन्न होता है और फिर भगवान मिल जाता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਸਹਜੇ ਗਾਵਿਆ ਥਾਇ ਪਵੈ ਬਿਨੁ ਸਹਜੈ ਕਥਨੀ ਬਾਦਿ ॥
सहजे गाविआ थाइ पवै बिनु सहजै कथनी बादि ॥
भगवान का गायन किया यश तभी स्वीकृत होता है, यदि वह सहज ही गाया जाए। सहज के बिना भगवान के गुणों की कथा करना व्यर्थ है।
ਸਹਜੇ ਹੀ ਭਗਤਿ ਊਪਜੈ ਸਹਜਿ ਪਿਆਰਿ ਬੈਰਾਗਿ ॥
सहजे ही भगति ऊपजै सहजि पिआरि बैरागि ॥
सहज से ही मनुष्य के हृदय में भक्ति उत्पन्न होती है। सहज से ही भगवान हेतु प्रेम एवं उसके मिलन हेतु वैराग्य उत्पन्न होता है।
ਸਹਜੈ ਹੀ ਤੇ ਸੁਖ ਸਾਤਿ ਹੋਇ ਬਿਨੁ ਸਹਜੈ ਜੀਵਣੁ ਬਾਦਿ ॥੨॥
सहजै ही ते सुख साति होइ बिनु सहजै जीवणु बादि ॥२॥
सहज से ही सुख एवं शांति मिलती है। सहज के बिना जीवन व्यर्थ है ॥२ ॥
ਸਹਜਿ ਸਾਲਾਹੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਇ ॥
सहजि सालाही सदा सदा सहजि समाधि लगाइ ॥
भगवान की महिमा सदैव सहज ही करनी चाहिए और सहज ही समाधि लगानी चाहिए।
ਸਹਜੇ ਹੀ ਗੁਣ ਊਚਰੈ ਭਗਤਿ ਕਰੇ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
सहजे ही गुण ऊचरै भगति करे लिव लाइ ॥
सहज ही भगवान की महिमा उच्चारण करनी चाहिए और सहज ही सुरति लगाकर भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
ਸਬਦੇ ਹੀ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਖਾਇ ॥੩॥
सबदे ही हरि मनि वसै रसना हरि रसु खाइ ॥३॥
शब्द द्वारा भगवान मन में आकर बसता है और रसना हरि-रस का पान करती है ॥३॥
ਸਹਜੇ ਕਾਲੁ ਵਿਡਾਰਿਆ ਸਚ ਸਰਣਾਈ ਪਾਇ ॥
सहजे कालु विडारिआ सच सरणाई पाइ ॥
सत्य की शरण में आने वाला प्राणी सहजावस्था में मृत्यु-भय से मुक्त हो जाता है।
ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਚੀ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
सहजे हरि नामु मनि वसिआ सची कार कमाइ ॥
यदि प्राणी सच्ची जीवन मर्यादा की कमाई करे तो ईश्वर का नाम सहज ही उसके चित्त में टिक जाता है।
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨੀ ਪਾਇਆ ਸਹਜੇ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥੪॥
से वडभागी जिनी पाइआ सहजे रहे समाइ ॥४॥
वे प्राणी बड़े भाग्यशाली हैं, जिन्होंने ईश्वर को पा लिया है और सहज ही उस हरि के नाम में लीन रहते हैं ॥४ ॥
ਮਾਇਆ ਵਿਚਿ ਸਹਜੁ ਨ ਊਪਜੈ ਮਾਇਆ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
माइआ विचि सहजु न ऊपजै माइआ दूजै भाइ ॥
माया में लिप्त प्राणी कभी सहज-ज्ञान को नहीं पा सकता, क्योंकि माया द्वैत-भाव को बढ़ाती है।
ਮਨਮੁਖ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਹਉਮੈ ਜਲੈ ਜਲਾਇ ॥
मनमुख करम कमावणे हउमै जलै जलाइ ॥
मनमुख प्राणी चाहे धार्मिक संस्कार करते हैं परन्तु अहंभावना उनको जला देती है।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣੁ ਨ ਚੂਕਈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੫॥
जमणु मरणु न चूकई फिरि फिरि आवै जाइ ॥५॥
वे कभी जन्म-मरण के चक्र से निवृत नहीं होते अपितु पुनः पुनः जन्म लेते और मृत्यु को प्राप्त होते हैं।॥५॥
ਤ੍ਰਿਹੁ ਗੁਣਾ ਵਿਚਿ ਸਹਜੁ ਨ ਪਾਈਐ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥
त्रिहु गुणा विचि सहजु न पाईऐ त्रै गुण भरमि भुलाइ ॥
जब तक माया के तीनों गुणों-रजस्, तमस्, सत में प्राणी का चित्त लिप्त रहता है, वह सहज का अधिकारी नहीं हो पाता; उक्त तीनों गुण भ्रान्ति उत्पन्न करते हैं।
ਪੜੀਐ ਗੁਣੀਐ ਕਿਆ ਕਥੀਐ ਜਾ ਮੁੰਢਹੁ ਘੁਥਾ ਜਾਇ ॥
पड़ीऐ गुणीऐ किआ कथीऐ जा मुंढहु घुथा जाइ ॥
ऐसे प्राणी को पढ़ने-लिखने एवं बोलने का क्या लाभ है, यदि वह जगत् के मूल (प्रभु) को ही विस्मृत किए रहता है।
ਚਉਥੇ ਪਦ ਮਹਿ ਸਹਜੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੬॥
चउथे पद महि सहजु है गुरमुखि पलै पाइ ॥६॥
वास्तव में सहज सुख चौथे पद पर लभ्य होता है, जिसकी प्राप्ति केवल गुरमुख के दामन में ही होती है।॥६॥
ਨਿਰਗੁਣ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਸਹਜੇ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥
निरगुण नामु निधानु है सहजे सोझी होइ ॥
निर्गुण प्रभु का नाम एक अमूल्य भण्डार है। मनुष्य को इसका ज्ञान सहज अवस्था में ही होता है।
ਗੁਣਵੰਤੀ ਸਾਲਾਹਿਆ ਸਚੇ ਸਚੀ ਸੋਇ ॥
गुणवंती सालाहिआ सचे सची सोइ ॥
भगवान की महिमा गुणवान जीव ही करते हैं। भगवान की महिमा करने वाला सच्ची शोभा वाला बन जाता है।
ਭੁਲਿਆ ਸਹਜਿ ਮਿਲਾਇਸੀ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਵਾ ਹੋਇ ॥੭॥
भुलिआ सहजि मिलाइसी सबदि मिलावा होइ ॥७॥
प्रभु भूले हुए जीवों को भी सहज द्वारा अपने साथ मिला लेता है। यह मिलाप शब्द द्वारा होता है ॥७ ॥
ਬਿਨੁ ਸਹਜੈ ਸਭੁ ਅੰਧੁ ਹੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਗੁਬਾਰੁ ॥
बिनु सहजै सभु अंधु है माइआ मोहु गुबारु ॥
सहज ज्ञान के बिना सारा जगत् ज्ञानहीन है। मोह-माया की ममता बिल्कुल अंधेरा है।
ਸਹਜੇ ਹੀ ਸੋਝੀ ਪਈ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਅਪਾਰਿ ॥
सहजे ही सोझी पई सचै सबदि अपारि ॥
सहज ज्ञान द्वारा अपार सच्चे शब्द की सूझ हो जाती है
ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇਅਨੁ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕਰਤਾਰਿ ॥੮॥
आपे बखसि मिलाइअनु पूरे गुर करतारि ॥८॥
पूर्ण गुरु करतार स्वयं ही क्षमा करके अपने साथ मिला लेता है। ॥८ ॥
ਸਹਜੇ ਅਦਿਸਟੁ ਪਛਾਣੀਐ ਨਿਰਭਉ ਜੋਤਿ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
सहजे अदिसटु पछाणीऐ निरभउ जोति निरंकारु ॥
सहज ज्ञान द्वारा ही उस अदृश्य, निर्भय, निरंकार ज्योति प्रभु को जिज्ञासु प्राणी पहचानता है।
ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਕਾ ਇਕੁ ਦਾਤਾ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਵਣਹਾਰੁ ॥
सभना जीआ का इकु दाता जोती जोति मिलावणहारु ॥
समस्त प्राणियों का एकमात्र पालनहार दाता है। यह सबकी ज्योति को अपनी ज्योति के साथ मिलाने में समर्थ है।
ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀਐ ਜਿਸ ਦਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੯॥
पूरै सबदि सलाहीऐ जिस दा अंतु न पारावारु ॥९॥
पूर्ण शब्द द्वारा तू उस परमात्मा का यशोगान कर जिसका कोई अन्त या सीमा नहीं अथवा सागर की भांति अपरिमित है ॥९॥
ਗਿਆਨੀਆ ਕਾ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਸਹਜਿ ਕਰਹਿ ਵਾਪਾਰੁ ॥
गिआनीआ का धनु नामु है सहजि करहि वापारु ॥
भगवान का नाम ही ज्ञानियों का धन है। वह सहज अवस्था में रहकर नाम का व्यापार करते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੈਨਿ ਅਖੁਟ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
अनदिनु लाहा हरि नामु लैनि अखुट भरे भंडार ॥
वे दिन-रात हरि नाम रूपी लाभ प्राप्त करते हैं तथा उनके भण्डार नाम से भरे रहते हैं और कभी समाप्त नहीं होते।
ਨਾਨਕ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਈ ਦੀਏ ਦੇਵਣਹਾਰਿ ॥੧੦॥੬॥੨੩॥
नानक तोटि न आवई दीए देवणहारि ॥१०॥६॥२३॥
हे नानक ! यह नाम के भण्डार दाता प्रभु ने स्वयं उन्हें दिए हैं और इन भण्डारों में कोई कमी नहीं आती ॥१०॥६॥२३॥