ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਲੋਚਦੇ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥
सुरि नर मुनि जन लोचदे सो सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ ॥४॥
सतिगुरु ने मुझे उस प्रभु बारे बताया है जिस परमात्मा को पाने को देवता, मानव और ऋषि-मुनि कामना करते हैं। ॥४॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੈਸੀ ਜਾਣੀਐ ॥
सतसंगति कैसी जाणीऐ ॥
सत्संगति किस प्रकार जानी जा सकती है?
ਜਿਥੈ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ ॥
जिथै एको नामु वखाणीऐ ॥
एक प्रभु के नाम का वहाँ उच्चारण होता है।
ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੫॥
एको नामु हुकमु है नानक सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ ॥५॥
हे नानक ! हरिनाम ही ईश्वर का हुक्म है, यह बात मुझे गुरु जी ने समझा दी है ॥५॥
ਇਹੁ ਜਗਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
इहु जगतु भरमि भुलाइआ ॥
यह संसार संदेह के कारण भ्रम भुलैया में पड़ा हुआ है।
ਆਪਹੁ ਤੁਧੁ ਖੁਆਇਆ ॥
आपहु तुधु खुआइआ ॥
हे प्रभु ! तुमने स्वयं ही प्राणियों के कर्मानुसार उन्हें भुलाया है।
ਪਰਤਾਪੁ ਲਗਾ ਦੋਹਾਗਣੀ ਭਾਗ ਜਿਨਾ ਕੇ ਨਾਹਿ ਜੀਉ ॥੬॥
परतापु लगा दोहागणी भाग जिना के नाहि जीउ ॥६॥
वे प्राणी जिनके भाग्य में परमात्मा का मिलन नहीं, वियोगिनी स्त्री के समान प्रतिदिन तड़पते रहते हैं। ॥६॥
ਦੋਹਾਗਣੀ ਕਿਆ ਨੀਸਾਣੀਆ ॥
दोहागणी किआ नीसाणीआ ॥
दुहागिन नारियों के क्या लक्ष्ण हैं?
ਖਸਮਹੁ ਘੁਥੀਆ ਫਿਰਹਿ ਨਿਮਾਣੀਆ ॥
खसमहु घुथीआ फिरहि निमाणीआ ॥
वे पति द्वारा उपेक्षित मान-रहित होकर भटकती रहती हैं।
ਮੈਲੇ ਵੇਸ ਤਿਨਾ ਕਾਮਣੀ ਦੁਖੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ਜੀਉ ॥੭॥
मैले वेस तिना कामणी दुखी रैणि विहाइ जीउ ॥७॥
उन दुर्भाग्यशाली नारियों की वेश-भूषा मलिन होती है और प्रतिदिन तड़प-तड़प कर रात्रि बिताती हैं ॥७॥
ਸੋਹਾਗਣੀ ਕਿਆ ਕਰਮੁ ਕਮਾਇਆ ॥
सोहागणी किआ करमु कमाइआ ॥
सुहागिन ने आखिर क्या शुभ कर्म कमाया है?
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
पूरबि लिखिआ फलु पाइआ ॥
उसे ईश्वर ने पूर्व जन्म के किसी उत्तम कर्म का फल प्रदान किया है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਕੈ ਆਪਣੀ ਆਪੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ਜੀਉ ॥੮॥
नदरि करे कै आपणी आपे लए मिलाइ जीउ ॥८॥
अपनी कृपा-दृष्टि करके परमेश्वर उनको अपने साथ मिला लेता है ॥८॥
ਹੁਕਮੁ ਜਿਨਾ ਨੋ ਮਨਾਇਆ ॥
हुकमु जिना नो मनाइआ ॥
जिन जिज्ञासु प्राणियों ने परमात्मा के आदेश की पालना की है,
ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਵਸਾਇਆ ॥
तिन अंतरि सबदु वसाइआ ॥
वे गुरु का सच्चा उपदेश मन में धारण करते हैं।
ਸਹੀਆ ਸੇ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਸਹ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ਜੀਉ ॥੯॥
सहीआ से सोहागणी जिन सह नालि पिआरु जीउ ॥९॥
ऐसी सखियाँ सत्यवती पत्नी हैं, जो अपने पिया के साथ प्रीति करती हैं ॥९ ॥
ਜਿਨਾ ਭਾਣੇ ਕਾ ਰਸੁ ਆਇਆ ॥
जिना भाणे का रसु आइआ ॥
जो ईश्वर की इच्छानुसार प्रसन्नता अनुभव करती हैं,
ਤਿਨ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
तिन विचहु भरमु चुकाइआ ॥
उनके भीतर से संदेह निवृत्त हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਐਸਾ ਜਾਣੀਐ ਜੋ ਸਭਸੈ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ਜੀਉ ॥੧੦॥
नानक सतिगुरु ऐसा जाणीऐ जो सभसै लए मिलाइ जीउ ॥१०॥
हे नानक ! सतिगुरु ऐसा दयालु है जो सभी को भगवान के साथ मिला देता है ॥१०॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
सतिगुरि मिलिऐ फलु पाइआ ॥
वह सतिगुरु से मिलन करके हरि-नाम रूपी फल प्राप्त कर लेता है।
ਜਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਅਹਕਰਣੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
जिनि विचहु अहकरणु चुकाइआ ॥
जो अपने अहंकार को नाश कर देता है,
ਦੁਰਮਤਿ ਕਾ ਦੁਖੁ ਕਟਿਆ ਭਾਗੁ ਬੈਠਾ ਮਸਤਕਿ ਆਇ ਜੀਉ ॥੧੧॥
दुरमति का दुखु कटिआ भागु बैठा मसतकि आइ जीउ ॥११॥
उसकी मंद-बुद्धि की पीड़ा निवृत हो जाती है और उसके मस्तक पर भाग्योदय हो जाता है ॥११॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀਆ ॥
अम्रितु तेरी बाणीआ ॥
हे प्रभु ! तेरी वाणी अमृत समान है।
ਤੇਰਿਆ ਭਗਤਾ ਰਿਦੈ ਸਮਾਣੀਆ ॥
तेरिआ भगता रिदै समाणीआ ॥
यह तेरे भक्तों के मन में रमी हुई है।
ਸੁਖ ਸੇਵਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿਐ ਆਪਣੀ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਨਿਸਤਾਰਿ ਜੀਉ ॥੧੨॥
सुख सेवा अंदरि रखिऐ आपणी नदरि करहि निसतारि जीउ ॥१२॥
तुम्हारी सेवा में ही वास्तविक सुख की उपलब्धि है और अपनी कृपा-दृष्टि से तुम अपने भक्तों को भवसागर से पार कर देते हो ॥१२॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਜਾਣੀਐ ॥
सतिगुरु मिलिआ जाणीऐ ॥
सतिगुरु से मिलन तभी समझा जाता है।
ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ ॥
जितु मिलिऐ नामु वखाणीऐ ॥
यदि इस मिलन द्वारा ईश्वर के नाम का उच्चारण किया जाए।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝੁ ਨ ਪਾਇਓ ਸਭ ਥਕੀ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥੧੩॥
सतिगुर बाझु न पाइओ सभ थकी करम कमाइ जीउ ॥१३॥
सतिगुरु के बिना किसी को भी प्रभु प्राप्त नहीं हुआ। सारी दुनिया धर्म-कर्म करते-करते थक गई है ॥१३॥
ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਘੁਮਾਇਆ ॥
हउ सतिगुर विटहु घुमाइआ ॥
मैं अपने सतिगुरु पर बलिहार जाता हूँ
ਜਿਨਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭੁਲਾ ਮਾਰਗਿ ਪਾਇਆ ॥
जिनि भ्रमि भुला मारगि पाइआ ॥
जिसने मुझे माया-तृष्णा के भ्रमों से निकाल कर सद्मार्ग लगाया है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜੇ ਆਪਣੀ ਆਪੇ ਲਏ ਰਲਾਇ ਜੀਉ ॥੧੪॥
नदरि करे जे आपणी आपे लए रलाइ जीउ ॥१४॥
यदि सतिगुरु अपनी कृपा-दृष्टि करे तो यह मनुष्य को अपनी संगति में मिला लेता है ॥१४॥
ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥
तूं सभना माहि समाइआ ॥
हे भगवान ! तुम समस्त प्राणियों के भीतर समाए हुए हो।
ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ ਆਪੁ ਲੁਕਾਇਆ ॥-
तिनि करतै आपु लुकाइआ ॥
ईश्वर ने अपनी ज्योति गुप्त रूप में मनुष्य के हृदय में रखी हुई है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇਆ ਜਾ ਕਉ ਜੋਤਿ ਧਰੀ ਕਰਤਾਰਿ ਜੀਉ ॥੧੫॥
नानक गुरमुखि परगटु होइआ जा कउ जोति धरी करतारि जीउ ॥१५॥
हे नानक ! जिस मनुष्य के ह्रदय में ईश्वर ने अपनी ज्योति रखी हुई हैं, ईश्वर गुरु के माध्यम से उस मनुष्य के हृदय में प्रगट हो जाता है। ॥१५॥
ਆਪੇ ਖਸਮਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ॥
आपे खसमि निवाजिआ ॥
हे ईश्वर ! तुमने ही तन की मूर्ति गढ़कर
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੇ ਸਾਜਿਆ ॥
जीउ पिंडु दे साजिआ ॥
उसमें प्राणों का संचार करके मुझे पैदा किया है।
ਆਪਣੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖੀਆ ਦੁਇ ਕਰ ਮਸਤਕਿ ਧਾਰਿ ਜੀਉ ॥੧੬॥
आपणे सेवक की पैज रखीआ दुइ कर मसतकि धारि जीउ ॥१६॥
अपने दोनों हाथ उसके मस्तक पर रखकर प्रभु अपने सेवक की प्रतिष्ठा बरकरार रखता है ॥१६॥
ਸਭਿ ਸੰਜਮ ਰਹੇ ਸਿਆਣਪਾ ॥
सभि संजम रहे सिआणपा ॥
समूह अटकलें और चतुराईयाँ किसी काम नहीं आती।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ॥
मेरा प्रभु सभु किछु जाणदा ॥
मेरा प्रभु सब कुछ जानता है।
ਪ੍ਰਗਟ ਪ੍ਰਤਾਪੁ ਵਰਤਾਇਓ ਸਭੁ ਲੋਕੁ ਕਰੈ ਜੈਕਾਰੁ ਜੀਉ ॥੧੭॥
प्रगट प्रतापु वरताइओ सभु लोकु करै जैकारु जीउ ॥१७॥
ईश्वर ने मेरा प्रताप सब ओर प्रकट किया है और सब मेरी जय-जयकार करने लगे हैं ॥१७॥
ਮੇਰੇ ਗੁਣ ਅਵਗਨ ਨ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥
मेरे गुण अवगन न बीचारिआ ॥
परमात्मा ने मेरे गुणों-अवगुणों पर ध्यान नहीं दिया,
ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਣਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮਾਰਿਆ ॥
प्रभि अपणा बिरदु समारिआ ॥
उसने तो केवल अपने विरद की लाज निभाई है।
ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਕੈ ਰਖਿਓਨੁ ਲਗੈ ਨ ਤਤੀ ਵਾਉ ਜੀਉ ॥੧੮॥
कंठि लाइ कै रखिओनु लगै न तती वाउ जीउ ॥१८॥
ईश्वर ने अपने गले लगा कर मेरी रक्षा की है और मुझे गर्म हवा भी नहीं छूती ॥१८॥
ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਇਆ ॥
मै मनि तनि प्रभू धिआइआ ॥
अपने तन-मन से मैंने प्रभु की स्तुति की है।
ਜੀਇ ਇਛਿਅੜਾ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
जीइ इछिअड़ा फलु पाइआ ॥
इसलिए मुझे मनोवांछित फल प्राप्त हुआ है।
ਸਾਹ ਪਾਤਿਸਾਹ ਸਿਰਿ ਖਸਮੁ ਤੂੰ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਜੀਵੈ ਨਾਉ ਜੀਉ ॥੧੯॥
साह पातिसाह सिरि खसमु तूं जपि नानक जीवै नाउ जीउ ॥१९॥
हे ईश्वर ! तुम सम्राटों के भी सम्राट हो, इसलिए हे नानक ! मैं तुम्हारे ही नाम-सिमरन से जीवन धारण करता हूँ ॥१९॥