ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗੁ ਦੁਖੀਆ ਫਿਰੈ ਮਨਮੁਖਾ ਨੋ ਗਈ ਖਾਇ ॥
बिनु सबदै जगु दुखीआ फिरै मनमुखा नो गई खाइ ॥
नाम के अतिरिक्त सारा संसार दुखी है। माया मनमुखी प्राणियों को निगल गई है।
ਸਬਦੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਬਦੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥
सबदे नामु धिआईऐ सबदे सचि समाइ ॥४॥
शब्द द्वारा मनुष्य नाम-सिमरन करता है और शब्द द्वारा ही वह भगवान में समा जाता है ॥४॥
ਮਾਇਆ ਭੂਲੇ ਸਿਧ ਫਿਰਹਿ ਸਮਾਧਿ ਨ ਲਗੈ ਸੁਭਾਇ ॥
माइआ भूले सिध फिरहि समाधि न लगै सुभाइ ॥
माया में फँसकर सिद्ध पुरुष भी भटकते रहते हैं और भगवान के प्रेम में लीन करने वाली उनकी समाधि नहीं लगती।
ਤੀਨੇ ਲੋਅ ਵਿਆਪਤ ਹੈ ਅਧਿਕ ਰਹੀ ਲਪਟਾਇ ॥
तीने लोअ विआपत है अधिक रही लपटाइ ॥
माया आकाश, पाताल, धरती तीनों लोकों में जीवों को अपने मोह में फँसा रही है। वह समस्त जीवों को अत्याधिक लिपटी हुई है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈਐ ਨਾ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਇਆ ਜਾਇ ॥੫॥
बिनु गुर मुकति न पाईऐ ना दुबिधा माइआ जाइ ॥५॥
गुरु के बिना माया से मुक्ति प्राप्त नहीं होती और न ही दुविधापन व सांसारिक ममता दूर होते हैं। ॥५॥
ਮਾਇਆ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਕਿਆ ਮਾਇਆ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
माइआ किस नो आखीऐ किआ माइआ करम कमाइ ॥
माया किसे कहते हैं? माया क्या कार्य करती है?
ਦੁਖਿ ਸੁਖਿ ਏਹੁ ਜੀਉ ਬਧੁ ਹੈ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
दुखि सुखि एहु जीउ बधु है हउमै करम कमाइ ॥
दुःख व सुख के भीतर माया ने इस प्राणी को जकड़ा हुआ है और जिससे प्राणी अहंकार का कर्म करता है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਭਰਮੁ ਨ ਚੂਕਈ ਨਾ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥੬॥
बिनु सबदै भरमु न चूकई ना विचहु हउमै जाइ ॥६॥
शब्द के बिना भ्रम दूर नहीं होता और न ही अन्तर्मन से अहंकार दूर होता है ॥६॥
ਬਿਨੁ ਪ੍ਰੀਤੀ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਥਾਇ ਨ ਪਾਇ ॥
बिनु प्रीती भगति न होवई बिनु सबदै थाइ न पाइ
प्रेम के बिना भगवान की भक्ति नहीं हो सकती और नाम के अतिरिक्त मनुष्य को प्रभु के दरबार में स्थान नहीं मिलता।
ਸਬਦੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀਐ ਮਾਇਆ ਕਾ ਭ੍ਰਮੁ ਜਾਇ ॥
सबदे हउमै मारीऐ माइआ का भ्रमु जाइ ॥
जब अहंत्च को नाम द्वारा मार दिया जाता है तो माया का पैदा किया भ्रम दूर हो जाता है।
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੭॥
नामु पदारथु पाईऐ गुरमुखि सहजि सुभाइ ॥७॥
गुरमुख सहज ही हरि-नाम के धन को प्राप्त कर लेता है ॥७॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗੁਣ ਨ ਜਾਪਨੀ ਬਿਨੁ ਗੁਣ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
बिनु गुर गुण न जापनी बिनु गुण भगति न होइ ॥
गुरु के बिना शुभ गुणों का पता नहीं लगता तथा शुभ गुण ग्रहण किए बिना भगवान की भक्ति नहीं होती।
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਹਜਿ ਮਿਲਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
भगति वछलु हरि मनि वसिआ सहजि मिलिआ प्रभु सोइ ॥
जब भक्तवत्सल श्री हरि मन में आकर बसता है तो मनुष्य के भीतर सहज अवस्था उत्पन्न हो जाती है। फिर वह प्रभु स्वयं आकर मिल जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਬਦੇ ਹਰਿ ਸਾਲਾਹੀਐ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੮॥੪॥੨੧॥
नानक सबदे हरि सालाहीऐ करमि परापति होइ ॥८॥४॥२१॥
हे नानक ! किस्मत से ही सतिगुरु की प्राप्ति होती है और गुरु के शब्द द्वारा ही भगवान की महिमा-स्तुति करनी चाहिए ॥८॥४॥२१॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सिरीरागु महला ३ ॥
श्रीरागु महला ३ ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨਾ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥
माइआ मोहु मेरै प्रभि कीना आपे भरमि भुलाए ॥
भगवान ने स्वयं ही माया-मोह की रचना की है। उसने स्वयं ही जीवों को माया के मोह में फंसा कर भुलाया हुआ है।
ਮਨਮੁਖਿ ਕਰਮ ਕਰਹਿ ਨਹੀ ਬੂਝਹਿ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਏ ॥
मनमुखि करम करहि नही बूझहि बिरथा जनमु गवाए ॥
मनमुख कर्म तो करते हैं परन्तु उन्हें इसकी सूझ नहीं होती। लेकिन वह अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा देते हैं।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਕਰਮਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥੧॥
गुरबाणी इसु जग महि चानणु करमि वसै मनि आए ॥१॥
गुरुवाणी इस संसार में ईश्वरीय प्रकाश है। प्रभु की दया से प्राणी के मन में यह वाणी आकर बसती है ॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
मन रे नामु जपहु सुखु होइ ॥
हे मेरे मन ! भगवान का नाम जपो, इससे ही सुख की उपलब्धि होती है।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਾਲਾਹੀਐ ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु पूरा सालाहीऐ सहजि मिलै प्रभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु की महिमा करने से परमेश्वर सहज ही प्राणी को मिल जाता है ॥१॥ रहाउ॥
ਭਰਮੁ ਗਇਆ ਭਉ ਭਾਗਿਆ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
भरमु गइआ भउ भागिआ हरि चरणी चितु लाइ ॥
ईश्वर के चरणों में चित्त लगाने से मनुष्य का माया का भ्रम एवं मृत्यु का भय नाश हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਕਮਾਈਐ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
गुरमुखि सबदु कमाईऐ हरि वसै मनि आइ ॥
जिज्ञासु प्राणी जब गुरु-कृपा से नाम की आराधना करता है तो ईश्वर स्वयं उसके हृदय में निवास करता है।
ਘਰਿ ਮਹਲਿ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ਜਮਕਾਲੁ ਨ ਸਕੈ ਖਾਇ ॥੨॥
घरि महलि सचि समाईऐ जमकालु न सकै खाइ ॥२॥
मनुष्य सत्य प्रभु के आत्म स्वरूप रूपी महल के अन्दर लीन हो जाता है और यमदूत उसे कदापि नहीं निगल सकता ॥२॥
ਨਾਮਾ ਛੀਬਾ ਕਬੀਰੁ ਜੋੁਲਾਹਾ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥
नामा छीबा कबीरु जोलाहा पूरे गुर ते गति पाई ॥
निम्न जाति के नामदेव छींबे और कबीर जुलाहे ने पूर्ण गुरु की कृपा से मोक्ष प्राप्त किया था।
ਬ੍ਰਹਮ ਕੇ ਬੇਤੇ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣਹਿ ਹਉਮੈ ਜਾਤਿ ਗਵਾਈ ॥
ब्रहम के बेते सबदु पछाणहि हउमै जाति गवाई ॥
वे गुरु-शब्द का ज्ञान पाकर ब्रह्मज्ञानी बने और उन्होंने जातिगत गौरव अथवा अहंत्व का पूर्ण त्याग कर दिया।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਤਿਨ ਕੀ ਬਾਣੀ ਗਾਵਹਿ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟੈ ਭਾਈ ॥੩॥
सुरि नर तिन की बाणी गावहि कोइ न मेटै भाई ॥३॥
देवते एवं मनुष्य उनकी पावन वाणी का गायन करते है। उनकी शोभा कोई भी मिटा नहीं सकता ॥३॥
ਦੈਤ ਪੁਤੁ ਕਰਮ ਧਰਮ ਕਿਛੁ ਸੰਜਮ ਨ ਪੜੈ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਨ ਜਾਣੈ ॥
दैत पुतु करम धरम किछु संजम न पड़ै दूजा भाउ न जाणै ॥
दैत्य हिरण्यकशिपु का पुत्र भक्त प्रहलाद कोई धर्म-कर्म नहीं करता था। वह मन को स्थिर करने वाली संयम, ध्यान एवं समाधि रूप विधियों बारे कुछ भी नहीं जानता था। वह माया के मोह को नहीं जानता था।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਐ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਆ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥
सतिगुरु भेटिऐ निरमलु होआ अनदिनु नामु वखाणै ॥
सतिगुरु से मिलकर वह निर्मल हो गया था वह रात-दिन नाम का जाप करता था
ਏਕੋ ਪੜੈ ਏਕੋ ਨਾਉ ਬੂਝੈ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ॥੪॥
एको पड़ै एको नाउ बूझै दूजा अवरु न जाणै ॥४
और एक नाम को ही जानता था तथा अन्य किसी दूसरे को नहीं जानता था ॥४॥
ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਜੋਗੀ ਸੰਨਿਆਸੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥
खटु दरसन जोगी संनिआसी बिनु गुर भरमि भुलाए ॥
छः शास्त्रों के उपदेशों को मानने वाले योगी, संन्यासी इत्यादि गुरु के बिना संदेह में भूले पड़े हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਤਾ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
सतिगुरु सेवहि ता गति मिति पावहि हरि जीउ मंनि वसाए ॥
यदि वे सतिगुरु की सेवा का सौभाग्य प्राप्त करें तो वे मोक्ष एवं ईश्वर को खोजने में समर्थ होते हैं और पूज्य हरि को अपने चित्त में टिका लेते हैं।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਗੈ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਰਹਾਏ ॥੫॥
सची बाणी सिउ चितु लागै आवणु जाणु रहाए ॥५॥
सच्ची गुरुवाणी से उनका मन जुड़ जाता है और उनका आवागमन (जन्म-मरण के चक्र से) मिट जाता है। ॥ ५॥
ਪੰਡਿਤ ਪੜਿ ਪੜਿ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥
पंडित पड़ि पड़ि वादु वखाणहि बिनु गुर भरमि भुलाए ॥
गुरु के बिना भ्रम में भूले हुए पण्डित शास्त्र इत्यादि का अध्ययन करके वाद-विवाद करते हैं, किन्तु शब्द के बिना उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होता,
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਫੇਰੁ ਪਇਆ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਏ ॥
लख चउरासीह फेरु पइआ बिनु सबदै मुकति न पाए ॥
वे चौरासी लाख योनियों में भटकते फिरते हैं। जब ईश्वर की अनुकंपा होती है तो सतिगुरु से मिलन होता है
ਜਾ ਨਾਉ ਚੇਤੈ ਤਾ ਗਤਿ ਪਾਏ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥੬॥
जा नाउ चेतै ता गति पाए जा सतिगुरु मेलि मिलाए ॥६॥
और जब सतिगुरु के उपदेशानुसार नाम की आराधना करते हैं, तब वह गति प्राप्त करते हैं। ॥ ६॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਉਪਜੈ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੁਭਾਏ ॥
सतसंगति महि नामु हरि उपजै जा सतिगुरु मिलै सुभाए ॥
यदि प्राणी का गुरु से मिलन हो जाए तो सत्संग के कारण वह हरि-नाम स्मरण कर पाता है।