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ਸਾਹਿਬੁ ਅਤੁਲੁ ਨ ਤੋਲੀਐ ਕਥਨਿ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥੫॥
साहिबु अतुलु न तोलीऐ कथनि न पाइआ जाइ ॥५॥
वह साहिब (प्रभु) अतुल्य है जिसे किसी वस्तु के समक्ष तोला नहीं जा सकता, उसकी प्राप्ति सिर्फ कहने या बाते करने से नहीं हो सकती ॥ ५ ॥

ਵਾਪਾਰੀ ਵਣਜਾਰਿਆ ਆਏ ਵਜਹੁ ਲਿਖਾਇ ॥
वापारी वणजारिआ आए वजहु लिखाइ ॥
जीव वणजारे हैं। वह जगत् में नाम का व्यापार करने आते हैं। वह प्रभु के दरबार में अपना वेतन लिखवाकर लाते हैं।

ਕਾਰ ਕਮਾਵਹਿ ਸਚ ਕੀ ਲਾਹਾ ਮਿਲੈ ਰਜਾਇ ॥
कार कमावहि सच की लाहा मिलै रजाइ ॥
जो सत्य की कमाई करते हैं और ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करते हैं। वह कर्म का लाभ कमाते हैं।

ਪੂੰਜੀ ਸਾਚੀ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਨਾ ਤਿਸੁ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਇ ॥੬॥
पूंजी साची गुरु मिलै ना तिसु तिलु न तमाइ ॥६॥
सत्य की पूँजी द्वारा वही गुरु प्राप्त करते हैं, जिनको तुल्य मात्र भी लोभ-लालच नहीं ॥ ६॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਤੋਲਿ ਤੋੁਲਾਇਸੀ ਸਚੁ ਤਰਾਜੀ ਤੋਲੁ ॥
गुरमुखि तोलि तोलाइसी सचु तराजी तोलु ॥
सत्य के तराजू पर सत्य के वजन से गुरमुख प्राणियों को गुरदेव स्वयं तोलते हैं तथा अन्यों को तुलाते हैं।

ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਮੋਹਣੀ ਗੁਰਿ ਠਾਕੀ ਸਚੁ ਬੋਲੁ ॥
आसा मनसा मोहणी गुरि ठाकी सचु बोलु ॥
गुरु ने, जिसका वचन सत्य है, आशा-तृष्णा जो सभी को बहका लेती है, उनकी रोकथाम (गुरु) करते हैं।

ਆਪਿ ਤੁਲਾਏ ਤੋਲਸੀ ਪੂਰੇ ਪੂਰਾ ਤੋਲੁ ॥੭॥
आपि तुलाए तोलसी पूरे पूरा तोलु ॥७॥
परमेश्वर कर्मो अनुसार प्राणियों को स्वयं तराजू पर तोलता है, पूर्ण पुरुष का तोल-परिमाण पूर्ण है॥ ७॥

ਕਥਨੈ ਕਹਣਿ ਨ ਛੁਟੀਐ ਨਾ ਪੜਿ ਪੁਸਤਕ ਭਾਰ ॥
कथनै कहणि न छुटीऐ ना पड़ि पुसतक भार ॥
केवल कहने तथा बातचीत द्वारा किसी की मुक्ति नहीं होती और न ही ढेर सारे ग्रंथों के अध्ययन द्वारा।

ਕਾਇਆ ਸੋਚ ਨ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਪਿਆਰ ॥
काइआ सोच न पाईऐ बिनु हरि भगति पिआर ॥
हरि की भक्ति और प्रीति के बिना तन की पवित्रता प्राप्त नहीं होती।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਮੇਲੇ ਗੁਰੁ ਕਰਤਾਰ ॥੮॥੯॥
नानक नामु न वीसरै मेले गुरु करतार ॥८॥९॥
हे नानक ! मुझे भगवान का नाम विस्मृत न हो और गुरु मुझे भगवान से मिला दे ॥ ८ ॥९ ॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਜੇ ਮਿਲੈ ਪਾਈਐ ਰਤਨੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
सतिगुरु पूरा जे मिलै पाईऐ रतनु बीचारु ॥
यदि प्राणी को पूर्ण सतिगुरु मिल जाए तो उसे ज्ञान रूपी रत्न प्राप्त हो जाता है।

ਮਨੁ ਦੀਜੈ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਪਾਈਐ ਸਰਬ ਪਿਆਰੁ ॥
मनु दीजै गुर आपणे पाईऐ सरब पिआरु ॥
यदि अपना मन अपने गुरु को अर्पित कर दे तो उसे सबका प्रेम प्राप्त हो जाता है।

ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਅਵਗਣ ਮੇਟਣਹਾਰੁ ॥੧॥
मुकति पदारथु पाईऐ अवगण मेटणहारु ॥१॥
उसे गुरु से मोक्ष-रूपी धन मिल जाता है जो समस्त अवगुणों का नाश करने वाला है॥१॥

ਭਾਈ ਰੇ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨੁ ਨ ਹੋਇ ॥
भाई रे गुर बिनु गिआनु न होइ ॥
हे भाई ! गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता।

ਪੂਛਹੁ ਬ੍ਰਹਮੇ ਨਾਰਦੈ ਬੇਦ ਬਿਆਸੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूछहु ब्रहमे नारदै बेद बिआसै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
चाहे कोई भी जाकर ब्रह्मा, नारद एवं वेदों के रचयिता व्यास से पूछ ले॥१॥ रहाउ ॥

ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਧੁਨਿ ਜਾਣੀਐ ਅਕਥੁ ਕਹਾਵੈ ਸੋਇ ॥
गिआनु धिआनु धुनि जाणीऐ अकथु कहावै सोइ ॥
ज्ञान एवं ध्यान गुरु के शब्द द्वारा ही प्राप्त होते हैं और गुरु अपने सेवक से अकथनीय हरि का वर्णन करवा देते हैं।

ਸਫਲਿਓ ਬਿਰਖੁ ਹਰੀਆਵਲਾ ਛਾਵ ਘਣੇਰੀ ਹੋਇ ॥
सफलिओ बिरखु हरीआवला छाव घणेरी होइ ॥
गुरु जी हरे भरे, फल प्रदान करने वाले एवं छायादार पेड़ के समान हैं।

ਲਾਲ ਜਵੇਹਰ ਮਾਣਕੀ ਗੁਰ ਭੰਡਾਰੈ ਸੋਇ ॥੨॥
लाल जवेहर माणकी गुर भंडारै सोइ ॥२॥
सर्वगुण मणियाँ, जवाहर एवं पन्ने ये गुरु जी के अमूल्य भण्डार में हैं। २॥

ਗੁਰ ਭੰਡਾਰੈ ਪਾਈਐ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮ ਪਿਆਰੁ ॥
गुर भंडारै पाईऐ निरमल नाम पिआरु ॥
गुरु जी के कोष गुरुवाणी में से पवित्र-पावन नाम की प्रीति प्राप्त होती है।

ਸਾਚੋ ਵਖਰੁ ਸੰਚੀਐ ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਅਪਾਰੁ ॥
साचो वखरु संचीऐ पूरै करमि अपारु ॥
अनंत परमेश्वर की पूर्ण कृपा द्वारा हम सत्य नाम का सौदा संचित करते हैं।

ਸੁਖਦਾਤਾ ਦੁਖ ਮੇਟਣੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਸੁਰ ਸੰਘਾਰੁ ॥੩॥
सुखदाता दुख मेटणो सतिगुरु असुर संघारु ॥३॥
सुखों के दाता सतिगुरु सुख प्रदान करने वाले, कष्ट निवृत्त करने वाले एवं दुष्कर्मों के दैत्यों का संहार करने वाले हैं॥३॥

ਭਵਜਲੁ ਬਿਖਮੁ ਡਰਾਵਣੋ ਨਾ ਕੰਧੀ ਨਾ ਪਾਰੁ ॥
भवजलु बिखमु डरावणो ना कंधी ना पारु ॥
यह भवसागर बड़ा विषम एवं भयानक है, इसका कोई भी तट नहीं तथा न ही उसका कोई आर-पार किनारा है।

ਨਾ ਬੇੜੀ ਨਾ ਤੁਲਹੜਾ ਨਾ ਤਿਸੁ ਵੰਝੁ ਮਲਾਰੁ ॥
ना बेड़ी ना तुलहड़ा ना तिसु वंझु मलारु ॥
इसकी न ही कोई नैया, न ही कोई लकड़ी है, न ही कोई चप्पू और न ही कोई खेवट है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੈ ਕਾ ਬੋਹਿਥਾ ਨਦਰੀ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੁ ॥੪॥
सतिगुरु भै का बोहिथा नदरी पारि उतारु ॥४॥
केवल सतिगुरु ही भयानक सागर पर एक जहाज है, जिसकी कृपा-दृष्टि मनुष्यों को पार कर देती है अर्थात् इहलोक से परलोक तक पहुँचाती है॥ ४॥

ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਪਿਆਰਾ ਵਿਸਰੈ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਸੁਖੁ ਜਾਇ ॥
इकु तिलु पिआरा विसरै दुखु लागै सुखु जाइ ॥
यदि मैं एक क्षण भर के लिए भी प्रीतम प्रभु को विस्मृत कर दूँ तो मुझे कष्ट घेर लेते हैं तथा सुख चला जाता है।

ਜਿਹਵਾ ਜਲਉ ਜਲਾਵਣੀ ਨਾਮੁ ਨ ਜਪੈ ਰਸਾਇ ॥
जिहवा जलउ जलावणी नामु न जपै रसाइ ॥
जो जिव्हा प्यार से ईश्वर के नाम का उच्चारण नहीं करती, उसे जल जाना चाहिए, क्योंकि नाम का उच्चारण न करने वाली जिव्हा जलाने योग्य ही है।

ਘਟੁ ਬਿਨਸੈ ਦੁਖੁ ਅਗਲੋ ਜਮੁ ਪਕੜੈ ਪਛੁਤਾਇ ॥੫॥
घटु बिनसै दुखु अगलो जमु पकड़ै पछुताइ ॥५॥
जब देहि का घड़ा टूट जाता है, मनुष्य बहुत पीड़ा तथा कष्ट भोगता है और यमदूत जब शिकंजे में लेता है तो मनुष्य अफसोस प्रकट करता है ॥५॥

ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਗਏ ਤਨੁ ਧਨੁ ਕਲਤੁ ਨ ਸਾਥਿ ॥
मेरी मेरी करि गए तनु धनु कलतु न साथि ॥
मनुष्य “मुझे, मैं, मेरी” पुकारते हुए संसार से चले गए हैं और उनका तन, धन एवं नारियाँ उनके साथ नहीं गई अर्थात् मृत्युकाल के समय कोई भी साथ नहीं देता।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧਨੁ ਬਾਦਿ ਹੈ ਭੂਲੋ ਮਾਰਗਿ ਆਥਿ ॥
बिनु नावै धनु बादि है भूलो मारगि आथि ॥
नामविहीन पदार्थ रसहीन है। धन इत्यादि के मोह में बहका हुआ प्राणी कुमार्ग लग जाता है।

ਸਾਚਉ ਸਾਹਿਬੁ ਸੇਵੀਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਕਥੋ ਕਾਥਿ ॥੬॥
साचउ साहिबु सेवीऐ गुरमुखि अकथो काथि ॥६॥
इसलिए गुरु के आश्रय में आकर परमेश्वर की भक्ति कर और अकथनीय परमात्मा का वर्णन कर ॥६॥

ਆਵੈ ਜਾਇ ਭਵਾਈਐ ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਇ ॥
आवै जाइ भवाईऐ पइऐ किरति कमाइ ॥
प्राणी आवागमन के चक्कर में पड़कर जन्म लेता और मरता रहता है और योनियों में पड़ा रहता है।

ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਕਿਉ ਮੇਟੀਐ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਰਜਾਇ ॥
पूरबि लिखिआ किउ मेटीऐ लिखिआ लेखु रजाइ ॥
वह अपने पूर्व जन्म के कर्मो अनुसार काम करता है। विधाता की लिखी विधि को कैसे मिटाया जा सकता है, जबकि लिखी विधि परमेश्वर की इच्छानुसार लिखी गई हो?

ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਛੁਟੀਐ ਗੁਰਮਤਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇ ॥੭॥
बिनु हरि नाम न छुटीऐ गुरमति मिलै मिलाइ ॥७॥
ईश्वर के नाम के बिना प्राणी की मुक्ति नहीं हो सकती। गुरु उपदेशानुसार ही वह परमात्मा के मिलाप में मिल जाता है।॥७॥

ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਮੇਰਾ ਕੋ ਨਹੀ ਜਿਸ ਕਾ ਜੀਉ ਪਰਾਨੁ ॥
तिसु बिनु मेरा को नही जिस का जीउ परानु ॥
मेरे प्राणों के स्वामी परमात्मा के अलावा मेरा कोई भी अपना नहीं, मेरी आत्मा व जीवन सब पर उसका अधिकार है।

ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਜਲਿ ਬਲਉ ਲੋਭੁ ਜਲਉ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
हउमै ममता जलि बलउ लोभु जलउ अभिमानु ॥
हे मेरे अहंकार एवं सांसारिक मोह ! तू जल कर राख हो जा, मेरे लोभ, ममता, अभिमान इत्यादि सब जल जाएँ जो मुझे ईश्वर से दूर करते हैं।

ਨਾਨਕ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੀਐ ਪਾਈਐ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ॥੮॥੧੦॥
नानक सबदु वीचारीऐ पाईऐ गुणी निधानु ॥८॥१०॥
हे नानक ! नाम की आराधना करने से गुणों के भण्डार (ईश्वर) की प्राप्ति हो जाती है। ॥८ ॥१०॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥

ਰੇ ਮਨ ਐਸੀ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਜੈਸੀ ਜਲ ਕਮਲੇਹਿ
रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी जल कमलेहि ॥
हे मेरे मन ! ईश्वर से ऐसी मुहब्बत कर, जैसी कमल की जल से है।

ਲਹਰੀ ਨਾਲਿ ਪਛਾੜੀਐ ਭੀ ਵਿਗਸੈ ਅਸਨੇਹਿ ॥
लहरी नालि पछाड़ीऐ भी विगसै असनेहि ॥
इसको जल की लहरें टपका कर लगातार धकियाती हैं परन्तु फिर भी यह प्रेम के भीतर प्रफुल्लित रहता है।

ਜਲ ਮਹਿ ਜੀਅ ਉਪਾਇ ਕੈ ਬਿਨੁ ਜਲ ਮਰਣੁ ਤਿਨੇਹਿ ॥੧॥
जल महि जीअ उपाइ कै बिनु जल मरणु तिनेहि ॥१॥
प्रभु जल के भीतर ऐसे प्राणी उत्पन्न करता है, जिनकी जल के बिना मृत्यु हो जाती है।॥१॥

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